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[ ४७ ] पुत्र की अनबन हो जाने से यह अपने पिता से अलग रहता था। पहले ये एकदूसरे के विरोधी थे किन्तु महाराजा अजीतसिंह ने पिता-पुत्र का मेल करवा दिया।
इसने अपने राज्य में अनेक सुधार किये। इसके एक राजकुमार और एक राजकुमारी थी । इसकी मृत्यु वि.सं. १७६७ में हुई। अमरसिंह (राव अमरसिंह राठौड़)
यह जोधपुर के महाराजा गजसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। इसका जन्म वि.सं. १६७० पौष सुदि ११ (ई.सं. १६१३ ता. १२ दिसम्बर) को राणी सोनगरी के गर्भ से हुआ था। हठी और उद्दण्ड होने के कारण महाराजा इससे अप्रसन्न रहता था और अपने छोटे पुत्र जसवन्तसिंह पर अधिक प्रेम रखता था। महाराजा अपने छोटे पुत्र को ही राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। इसलिये वकील भगवानशाह जसकरण ने बादशाह को कह कर अमरसिंह के नाम मनसब और नागौर की जागीर लिखवा लो। इस पर वह राजसिंह कुंपावत और पन्द्रहसौ सवारों के साथ बोदशाह की सेवा में चला गया। बादशाह शाहजहाँ के समय में इसने अनेक युद्धों में शाही सेना के साथ रह कर अपनी वीरता का परिचय दिया, किन्तु वि.सं. १७०१ में इसने बादशाह के प्रमुख दरबारी सलावत खां को मार डाला और उसी समय इसे भी 'अर्जुन गौड़ तथा बादशाह के अन्य व्यक्तियों ने आक्रमण कर के मार डाला । अमरसिंह (ऊदावत ठाकुर अमरसिंह)
यह वि.सं. १७६७ में गद्दी पर बैठा । यह महाराजा अजीतसिंह के समय में महावीर पुरुषों की गणना में था। बादशाह मुहम्मदशाह को भी इसके सामने मुंह की खानी पड़ी। इसी बीच अहमदाबाद का सूबेदार सर बुलन्द खां स्वतन्त्रता से शासन करने लगा और बादशाह की आज्ञा की अवहेलना करने लगा। उसका दमन करने के लिए बादशाह ने महाराजा अभयसिंह को गुजरात का सूबेदार नियत किया । अतः महाराजा ने अहमदाबाद के लिये प्रस्थान कर दिया और ठाकुर अमरसिंह पीछे सेना लेकर पहुंचा। रास्ते में ईडर विजय किया। अहमदाबाद पहुंचते ही भयंकर युद्ध हुअा। सर बुलन्द के बहुत से मनुष्य मारे गये, बहुत से पकड़े गये, इससे नबाब का बल घट गया और उसने अपना प्रतिनिधि भेज कर महाराजा से अमरसिंह को अपने पास भेजने के लिए कहा। अमरसिंह सर बुलन्द से मिला और महाराजा से उसकी संधि करवा दी। अमरसिंह (भंडारी)
इसके पिता का नाम खींवसी भंडारी था जो कि महाराजा श्री अजीतसिंह
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