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________________ १०२ ] सूरजप्रकास जठे उछटै खळ सेल जड़त । पटै' चढ़ि जांणि कनहीं पड़त ॥ ३४६ महाबळ मूग्गळ ढाहि अमाप । पटाभर सेल जड़ 'परताप' । अोपै रत चाचर घाव उफांण' । खुलै गिर जांणिक मांणिक खांण ।। ३४७ खत्री गुर खापहुताई खळकाय । धारूजळ'' काढ़िय'' सेल धपाय । अडै खग झाट अँगोअँग पाप । पड़े खळ थाट लड़े परताप' ।। ३४८ *धड़च्छत'२ फांक उडै खळ धूठ । सिरा चाचरार' जड़ी१५ लग सूठ । १ ग. पढ़े। २ क. कनंक। ३ ख. माहाबल। ४ ख. मूगल । ग. मुगल । ५ ख. ग. . उपै।. ६ ख. उफाणि। ७ ख. ग. षुले। ८ ख. षांणि । ग. षांन। ६ ख. खापहंत ! ग. खापहूता। १० ख. ग. धरूजल । ११ ख. ग. कट्टीय । ___ *... *यहांसे आगे चिन्हांकित पंक्तियां तो ग. प्रतिमें नहीं मिली हैं किन्तु कुछ दूसरी पंक्तियां मिली हैं जो क. तथा ख. प्रतियोंसे मेल नहीं खाती हैं, वे निम्न हैं-- 'अनौ हरनाथ तणो अवनाड, विढे विचत्रां धड षागि विभाड । जठ षग वाहि वरै करि जोस, पछाडत मीर वगत र पौस । कटै किलमांण हुवै रत कीच, विटै इक जोध षलां दळ वीच ।' यह पंक्ति पृष्ठ १०५ (पृष्ठके पाठान्तरका नोट देखिए) के पाठान्तरके अनुसार निम्न प्रकार है 'बढे इक वाज तठे रिण बीच।' १२ ख. धडछत । १३ ख. धूत । १४ ख. क. चचरार । १५ ख. जाडी। १६ ख. सूत । ३४६. उछट - उछलते हैं, कटते हैं। जईत - प्रहार करता है। पटै - पटा नामक खेल । ३४७. ढाहि-मार कर, काट कर । अमाप - अपार । पटाझर-हाथी। जड़े-प्रहार करता है। रत- रक्त, खून । चाचर-भाल, ललाट, मस्तक। जांणिक - मानों। माणिक - मानिक्य । ३४८. खत्री गुर-बीर, योद्धा । खापहता- तलवारके म्यानसे । खळकाय - प्रहार कर के। धारूजळ - तलवार । सेल - भाला। धपाय - तृप्त करके। पड़े-वीर-गति प्राप्त होते हैं । थाट - सेना। ३४६. घडच्छत -प्रहार करता है । फांक - यहां 'खाप' शब्द होना चाहिये जिसका अर्थ तल वार भी होता है। धूठ-वीर। चाचरार-भाल, ललाट । जड़ी-प्रहार किया। लग - तक, पर्यन्त । सूठ-( ? )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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