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जयसिंह का सौतेला भाई था। महाराजा सवाई जयसिंह ने अत्यन्त उपजाऊ बसवा का प्रदेश अपने भाई विजयसिंह को दे दिया था। किन्तु सौतिया डाह के कारण विजयसिंह की माता अपने पुत्र को राजा बनाना चाहती थी, अतः उसने बादशाह के प्रधान मंत्री कमरुद्दीन खाँ को अपनी ओर मिला लिया । इसने बादशाह को समझा-बुझा कर आमेर की सनद विजयसिंह के नाम लिखवा दी। परन्तु खान दौरान के द्वारा यह सूचना जयसिंह को मिल गई। इस पर सवाई जयसिंह ने अपनी चतुराई से विजयसिंह को आमेर के किले में बुला कर कैद कर लिया। विष्णुसिंह (महाराजा)
राजा रामसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पौत्र विष्णुसिंह आमेर की गद्दी पर बैठा। इसके पिता कृष्णसिंह की मृत्यु दक्षिण के युद्ध में पहले ही हो चुकी थी। इसका जन्म वि० सं० १७२८ में और राज्याभिषेक वि० सं० १७४६ में हुआ था। उस समय यह अपने दादा रामसिंह के साथ काबुल में था। वहाँ से यह बादशाह को आज्ञा पर अपने देश को लौट आया। कुछ दिन यहाँ रहने के बाद यह पुनः वि० सं० १७५५ को शाहजादा मुअज्जम के साथ काबुल गया। वहाँ पहुँचने पर पठानों के साथ भयंकर युद्ध हुआ। इसने युद्ध में बड़ी बहादुरी दिखलाई। वि० सं० १७५६ में काबुल में हो इसका देहावसान हो गया । इसके दो पुत्र थे-बड़ा जयसिंह और छोटा विजयसिंह । वीकमसी__यह राव सीहा का पौत्र और अज का पुत्र था । यह अपने पिता के साथ द्वारिका की ओर गया। वहाँ का स्वामी चावड़ा विक्रमसेन था। ग्रंथ सूरजप्रकास के अनुसार जलदेवी ने वीकमसी को स्वप्न दिया कि मैं यहाँ की भूमि तुझे देती हूँ, तूं चावड़ा विक्रमसेन का सिर काट कर मुझे चढ़ा । इसके अनुसार वीकमसी ने चावड़ा राजा वीक्रमसेन का सिर काट कर देवी को चढ़ा दिया और उस प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया । उसका सिर काटने के कारण इसके वंशज वाढेल राठौड़ कहलाये । सादत खाँ
यह बादशाह मुहम्मद शाह के समय में गोलन्दाज दल का सेनापति था। महाराजा अभयसिंह ने जिस समय सर बुलन्द को हरा कर बादशाह के चरणों में झुकाने की प्रतिज्ञा की थी उस समय यह सादत खां सभा-स्थान पर मौजूद था । इसने ही महाराजा को अहमदाबाद की चढ़ाई के समय शाही
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