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________________ १८ ] . सूरजप्रकास निज सरीक पवनरौ, धाव धखपँख जिम धावै । कमठ पूठि' अहि कमळ, धमक चवबँधा धुजावै । पड़े कोट उर टकर', पडै गज धकै अपारां । जळ धारां मछ जेम, धसै सामौ' खग धारां । हमगीर जिको वागां हकां, सिंधुर ऊपर सेर सौ । सूरज पसाव भैराक सुध', सूरज तुरंगा एर सौ ॥ ५३ लोह डाच धरि लीण'', मळे हाथळ दुसमालां । फिरँग साज झड़फियौ'', पॅडव' छोडियां अपालां । उछटिडोर ऊपरा, बेव' करतौ' बिसतारै'८ । पै उठाय दांहिणौ'६, अंग दांहिणौ निहारै । .. सपतास नहीं इण सारिखौ२०, जोय सूर'' इम२२ जांणियौ । सूरजपसाव साकति सजे४, इण विध२५ हाजर आणियौ२६ ॥ ५४ १ ग. पूठ। २ गं. टकरि। ३ ग. षडै । ४ ख. ग. सांम्हौ। ५ ख. जिको। ६ ख. ग. सींधुर । ७ ग. उपर। ८ ग. पसा। ग. सूध। १० ग. लीन । ११ ख. झडफीयो। १२ ग. पंडवि । १३ ख. ग. छोडीयौ। १४ ख. उछट । ग. ऊछट । १५ ग. डौर । १६ ख. ग. वेव। १७ ग. करतो। १८ ख. विसतारै। ग. विस्तारै। १९ ग. दांहो । २० ग. सारीषो। २१ ख. सूरिज । ग. सूरज । २२ ग. ईम। २३ ख. जांणीयौ । २४ ख. ग. सझे। २५ ख. ग. विधि । २६ ख. प्राणीयो। ५३. धाव - गति, दौड़। धख पंख - गरुड़। कमठ'' कमळ - इस घोड़ेकी पीठ कच्छपा वतारकी पीठके समान है और शिर शेषनागके शिरके समान है । धमक - चलनेसे पैरकी होने वाली पाहट। चवबंधा - चारों ओर, चारों दिशाओंमें। पड़े"खग धारां - इस घोड़ेकी वक्षस्थलकी टक्कर लगने से बड़े बड़े गढ़ ढह जाते हैं और बड़े बड़े हाथी गिर जाते हैं । युद्धस्थल में तलवारोंके प्रहारों के सम्मुख इस प्रकार टूट पड़ता है मानों मत्स्य जलमें तेजीसे गिरता हो। सिंधुर - हाथी। औराक - घोड़ा । हमगीर'. "एरसौ- यह घोड़ा हल्ला होने पर युद्ध भूमिमें सदैव आगे रहने वाला है और हाथियोंके टक्कर मारनेमें सिंहके समान है। यह महाराजा अभयसिंहजीका घोड़ा सूरज-पसाव सूर्य भगवानके घोड़े सप्ताश्वके समान है। ५४. डाच - मुख । फिरंग साज - यूरोपियन ढंगकी घोड़ेकी जीन आदि । पॅडव -( ? )। अपालां-बेरोक। डोर - लगाम । बेव-वेग, गति (?)। साकात - घोड़ेकी जीन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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