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________________ १७८२ में महाराजा अभयसिंह ने इसको 'राजाधिराज' की पदवी देकर नागौर का स्वामी बना दिया। इसने मारवाड़ में उत्पात करने वाले प्रानन्दसिंह, रायसिंह और किशोरसिंह आदि का दमन किया था। अपने भ्राता अभयसिंह को गुजरात अहमदाबाद की सूबेदारी मिलने पर सर बुलन्द खाँ के विरुद्ध २० हजार की सेना के साथ अहमदाबाद के युद्ध में सम्मिलित हुआ और युद्ध में अतुल शौर्य का परिचय दिया। यह बड़ौदा युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था । इसके अलावा बीकानेर, मेड़ता, जयपुर आदि के अनेक युद्धों में भाग लेकर इसने अपनी वीरता का परिचय दिया था। वि० सं० १८०६ में अपने भ्राता महाराज अभयसिंह की मृत्यु के बाद वि० सं० १८०८ में अपने भतीजे महाराजा रामसिंह को हरा कर जोधपुर की गद्दी पर अधिकार कर लिया। । बलू (वीरवर बलू चांपावत) यह पाली ठाकुर गोपालदास का पुत्र था। इसके ८ पुत्र थे। भिन्न-भिन्न स्थानों पर पाठों भाई जाति, मान-मर्यादा, स्वधर्म और स्वदेश-रक्षा के लिए युद्धों में काम आये। राव अमरसिंह को देश-निकाला होने पर यह उनके साथ रहा । बाद में नागौर और नागौर से बीकानेरनरेश कर्णसिंह के पास आ गया। यहाँ भी दुष्ट पुरुषों के कारण टिक नहीं सका और उदयपुर चला गया। वहाँ से यह दिल्ली आ गया। बादशाह ने इसका खूब आदर किया और इसको पांच सौ घोड़ों का नायक बना दिया और वहां सुख से रहने लगा। कुछ समय बाद आगरे में राव अमरसिंह के शव को लाने के लिए अपने ५०० सवारों को लेकर पहुँचा और अमरसिंह का शव लाकर हाड़ी रानी को दिया व उसे सती होने में सहायता दी। इसी युद्ध में यह काम पाया। बुधसिंह (राव बुसिंह) यह बंदी के राव अनिरुद्धसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। लाहौर में अनिरुद्धसिंह की मृत्यु हो जाने के बाद बुधसिंह को बूंदी का राज्य सिंहासन प्राप्त हुप्रा । बुधसिंह कुछ दिन बादशाह औरंगजेब के बीमार पड़ने पर औरंगाबाद चला गया। बादशाह औरंगजेब की इच्छानुसार इसने बहादुरशाह को बादशाह बनाने का विचार कर के उसका पक्ष लिया। राव बुधसिंह शाह आलम की प्रधान सेना का नेता था। धौलपुर के युद्ध में इसने अतुलनीय साहस और शूरवीरता का परिचय दिया। उसी के फलस्वरूप बादशाह ने इसको रावराजा की पदवी के साथ अपना परम मित्र बना लिया। अन्त तक यह मित्रता अचल रही। बादशाह बहादुर शाह की मृत्यु के बाद आमेर का महाराजा जयसिंह, जोधपुर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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