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[ १२ ] भांजिया जिकै भुजाळ, 'प्रभमाल' विरद उजाळ । मंडियौ न धर्क मुगकळ, इम जीपियौ प्रभमल्ल ॥ धर साह धोकळ धींग, सो कहैं धोकळ सींग । सझि साह मुलक सरद्द, मोसरां पहल मरद्द । कुळ भांण विरद कहाय, जुध जीत तबल वजाय । इम हले थाट अथाह, छिल उरस छिब 'प्रभसाह'।। गाजतां गयंद गहीर, वाजतां नौबत वीर । प्रावियो थाट अथाग, रंग हुवां उच्छब राग ॥ 'अजमाल' सजि उच्छाह, गह-महत भड़ दरगाह । उणवार 'भमल' प्राय, पह कीध वंदरण पाय ॥ सुत तात मिळं सनेह, दो जांणि सूरज देह । अति पूर छक अमराव, पति करत वंदण पाव ॥
सू.प्र. भाग २, पृ. ११०, १११ अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा :-- ___महाराजा अभयसिंह भी सवाई राजा सूरसिंह, गजसिंह आदि अपने पूर्वजों के समान ही शक्तिशाली राजा थे। बादशाह मुहम्मदशाह ने सर बुलन्द को गुजरात का सबेदार बना कर भेजा था। उसने वहाँ जाकर अपनी शक्ति बढ़ाई और स्वयं वहाँ का अधीश्वर बन बैठा। बादशाह बहुत चितित हुआ और उसने एक बहुत बड़ा दरबार किया जिसमें बड़े-बड़े राजा, महाराजा, सामन्त, नवाब, अमीर आदि उपस्थित थे। बादशाह ने सर बुलन्द का दमन करने के लिये सभा में पान का बीड़ा घुमाया। सर बुलन्द की शक्ति का मुकाबिला करने के लिये कोई भी तैयार नहीं हुआ, आखिर महाराजा अभयसिंह ने ही बीड़ा उठा कर यह प्रतिज्ञा की कि मैं सर बुलन्द को झुका कर रहूँगा। इस प्राशय को कवि ने निम्न पंक्तियों में चित्रित किया है
फिर पांन साहरा, कितां ह्र ज्यांन थरत्थर । फिर पांन साहरा, कितां निजरां न धरै कर । तुजक मीर कर तांन, केइक मसतांन कहावै । अांन ांन कथ कहै, पान नह कोय उठावं । 'अभमाल' विनां हिंदू असुर, दिल अंब खास दबावियो, मेर गिर भार पानां महीं, उण दिन निजरां प्रावियो।
नी लिये खांन निबाब, प्रांन न लियै प्रधपत्ती । तुजक भोर कर हूंत, पान लीधा असपत्ती।
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