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________________ [ ७१ ] मरहठों का जोर दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। ऐसी विकट परिस्थिति में सफलता प्राप्त करना रतनसिंह जैसे चतुर और वीर योद्धा ही का काम था। रफीउद्दाराजात बादशाह फर्रुखसियर की हत्या करवा देने के बाद महाराजा अजीतसिंह और सैयद भाइयों की सहायता से इसको दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया गया। यह शाही खानदान का साधारण व्यक्ति था और सैयद भाइयों के हाथ की कठपुतली बना हुआ था। सिंहासनारूढ़ होने से पूर्व ही राजयक्ष्मा रोग से पीड़ित था । ई० स० १७१६ में केवल दो मास शासन करने के बाद ही यह गद्दी से उतार दिया गया और इसके एक सप्ताह बाद ही इसका देहान्त हो गया। रफी-उद-दौला यह रफी-उद-दाराजात का बड़ा भाई था। उसको सिंहासन से उतार देंने के बाद सैयद भाइयों और महाराजा अजीतसिंह की सलाह से रफी-उद-दौला को शाहजहाँ द्वितीय के नाम से सिंहासन पर बैठा दिया गया। यह नाम मात्र का ही बादशाह था। राज्य की वास्तविक सत्ता सैयद भाइयों के हाथ में थी। सिंहासन पर बैठने के कुछ ही दिन बाद पेचिश की बीमारी से इसका भी परलोकवास हो गया परन्तु सैयद भाइयों की मिलावट से सम्राट की मृत्यु को नौ दिनों तक गुप्त रखा गया। राजसिंह बारहठ यह रूपावास का जागीरदार था। यह महाराजा गजसिंह की सेवा में रहता था। वि० सं० १६७४ में जिस समय जालोर का किला बिहारी पठानों से फतह किया था उस समय यह भी साथ था। इसकी वीरता से प्रसन्न होकर महाराजा ने इसको गांव रूपावास प्रदान किया था। इसके बाद नागौर के राव अमरसिंह ने भी एक गांव, जिसका नाम बाइली था, अपनी जागीर नागौर में से दिया था परन्तु यह गांव थोड़े दिन तक ही रहा । बारहठ राजसिंह के चार बेटे थे- (१) नाराजी (२) भीमसिंह (३) मुकंददास और (४) विजराम । रायसिंह___ यह जोधपुर नरेश राव चन्द्रसेन का ज्येष्ठ पुत्र था। इसका जन्म वि० सं० १६१४ की भादों सुदि १३ (ई० स० १५५७ की ६ सितम्बर) को हुआ था। पिता की मृत्यु के समय यह काबुल में था । इसके अनुज उग्रसेन और आसकरण चौसर खेलते हुए मारे गए, तब सरदारों ने इसको पैतृक राज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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