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________________ [ ७२ ] सम्भालने के लिए लिखा । राव रायसिंह बादशाह की आज्ञा पाकर वि० सं० १६३६ ( ई० स० १५८२ ) सोजत पहुँच कर गद्दी पर बैठा। साल भर बाद वि० सं० १६४० में बादशाह अकबर की प्राज्ञा से सिरोही के राव सुरतान पर आक्रमण कर दिया । सुरतान भाग कर श्राबू के पहाड़ों में चला गया, परन्तु कुछ दिन के बाद शाही सेना के गुजरात की प्रोर चले जाने पर राव सुरतान ने बची हुई सेना पर रात को अचानक आक्रमण कर दिया और निःशस्त्र राव रायसिंह चारों ओर से घिर जाने के कारण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ । इसका बदला सवाई राजा सूरसिंह ने गुजरात की ओर जाते हुए सिरोही के गांवों को लूट कर और सुरतान से बहुत-सा रुपया वसूल कर के लिया । रुस्तम अली खां - यह बादशाह मुहम्मदशाह का छोटा भाई था और बड़ा ही वीर और नीतिज्ञ था । यह सूरत का शासक तथा बड़ौदा व पीपलाद का फौजदार था । हमीद खां के बागी होने पर उसको काबू में लाने के लिए सेना तैयार करने का बादशाह ने हुक्म दिया । हुवम पाते ही रुस्तम अली खां ने १५००० घुड़ सवार और २०००० अन्य सेना तैयार की। उसी समय मरहठों का हमला गुजरात पर हो गया । पिलाजी हमीद खां से मिल गया । किन्तु रुस्तमाली खां ने ४००० पैदल सेना के साथ आक्रमण कर दिया। हमीद खां बुरी तरह से हारा। उसकी सारी जायदाद रुस्तमअली खां ने अपने कब्जे में करली । शान्ति स्थापित करने व शहर की देखभाल हेतु एक टुकड़ी मुहम्मद बाकिर के आधिपत्य में लगा दी । किन्तु मरहठों की मदद से हमीद खां ने पुनः रुस्तमअली खां को घेर लिया । यहीं बसू गांव के पास लड़ता हुआ यह मारा गया । रुस्तम अली खां का सिर अहमदाबाद ले जाया गया और धड़ बसु गांव में ही जला दिया गया । रुस्तम जंग यह दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के उच्चकोटि के उमरावों में से एक था । जिस समय महाराजा अभयसिंह को अहमदाबाद की सूबेदारी मिली थी उस समय यह शाही अफसर था और वहीं बादशाह की सभा में मौजूद था । इससे भी बादशाह ने सर बुलन्द के विरुद्ध अहमदाबाद जाने का अनुरोध किया था पर इसकी हिम्मत नहीं हुई और इसने उस बात को टाल दिया । तब महाराजा अभयसिंह ने सर बुलन्द को बादशाह के चरणों में झुकाने का प्रण कर वहां से प्रस्थान किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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