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खत लिखिया दिस खांन, डकर धारै वजराई। कहर गरीबों करण, मकर छाडो मुगळाई । काम फैल मति करो, स्यांम ध्रम धरौ सिपाही । सराजांम दौ सरब, तोपखांनां पतिसाही । अहमदाबाद दीधो अम्हां, सुणो हुकम पतिसाह रौ। मामलौ तजौ आवौ मिळो, किलो सहर खाली करो।
सू. प्र. भाग २, पृ. २७६ टॉड साहब के अतिरिक्त किसी भी इतिहासवेत्ता ने इस पत्र का उल्लेख किया हो ऐसा देखने में नहीं पाया है। अन्य इतिहासकारों के रुपये की हुण्डी व उसको नायब हाकमी की आज्ञा के साथ लिख दिया कि सम्भव हो सके तो अहमदाबाद पर अधिकार करलो। इस पर मुहम्मद खां ने गुजरातियों की सेना इकट्ठी की और मौका देखने लगा, किन्तु सर बुलन्द के आदमी नगर रक्षा के लिये अधिक सतर्क रहने लगे। उन्होंने दरवाजे वगैरह ईंटों से चुनवा दिये । अतः मुहम्मद खां सफल नहीं हो सका।' इस पत्र का उल्लेख कवि ने ग्रंथ में नहीं किया है। महाराजा अभयसिंह का सर बुलन्द से युद्ध, सर बुलन्द का प्रात्म-समर्पण
यूद्ध का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है कि पहले तीन दिन तक दोनों ओर से गोलाबारी होती रही, यथा
मोरचा राड त्रण दिन मंडे, सूरां धरम सबाब रा । प्रांम सम्हां कठठि चौड़े उरड़ि, नरियंद भूळ नबाब ।।
सू. प्र. भाग ३, पृ. २६ तत्पश्चात् मैदान में लड़ाई हुई। दोनों तरफ के सुभट जम कर लड़े। आखिर सर बुलन्द की सेना के पांव उखड़ गये । दूसरे दिन सर बुलन्द ने महाराजा अभयसिंह के डेरे में उपस्थित होकर आत्म-समर्पण कर दिया। नींबाज ठाकुर अमरसिंह ने इस संधि में विशेष भाग लिया।
उपरोक्त वर्णन कुछ प्रशंसात्मक अवश्य है परन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार सर बुलन्द को महाराजा अभयसिंह के सामने आत्म-समर्पण करना पड़ा
. (अ) पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृ० ३३७ । (प्रा) डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २,
पु० ६१३ ।
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