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[ ३४ ] महाराजा का बादशाह से बिदाई लेकर जोधपुर लौटना दिल्ली से विदा होते समय बादशाह ने इन्हें कीमती उपहारों के साथ सेना के लिये व्यय आदि भी दिया।' महाराजा वहाँ से जयपुर आये। जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने इनका समुचित स्वागत किया। कुछ दिन जयपुर में ठहरने के पश्चात् ये मेड़ते आये और अपने अनुज बखतसिंह से मिले। तत्पश्चात् बखतसिंह को साथ लेकर जोधपुर आये।
इस बात की पुष्टि 'राजरूपक' से भी होती है किन्तु कुछ इतिहासकारों ने महाराजा का दिल्ली से अलवर होते हुए अजमेर जाना और वहाँ का प्रबन्ध करके मेड़ते होते हुए जोधपुर जाना लिखा है । अधिकांश इतिहासकारों ने इनका वि० सं० १७८६ में दिल्ली से जयपुर और वहाँ से मेड़ते होते हुए जोधपुर जाना ही लिखा है । अतः कवि का यह कथन इतिहाससम्मत है ।
महाराजा का जोधपुर से गुजरात की ओर प्रयाण दिल्ली से लौटने के पश्चात् महाराजा अभयसिंह अपने अनुज बखतसिंह के साथ जोधपुर में युद्ध की तैयारी करने में लग गये। सभी सामन्तों को फरमान भेज कर बुलाया गया। अश्वारोही सेना तैयार की गई। जब युद्ध की पूर्ण सामग्री के साथ सेना तैयार हो गई तो जोधपुर से रवाना हो कर कुछ विद्रोही जागीरदारों को दण्ड देते हुए सिरोही आये। सिरोही के राव उम्मेदसिंह देवड़ा ने महाराजा की अधीनता स्वीकार नहीं की थी, अतः महाराजा मे सिरोही को लूटने की आज्ञा दे दी। अन्त में राव उम्मेद ने अपनी पुत्री का डोला भेज कर संधि की। वहाँ से महाराजा सेना सहित पालनपुर आये। वहाँ का अधिकारी करीमदाद खां इनसे मिल गया। ये सब घटनायें इतिहाससम्मत हैं ।
महाराजा का सर बुलन्द के पास पत्र भेजना पालनपुर से महाराजा ने सर बुलन्द को एक पत्र लिखा जिसमें उसे समझाया कि बादशाह ने अहमदाबाद के सूबे पर मुझे नियुक्त किया है। अत: तुम शाही आज्ञा के अनुसार मुझसे मिलो, सारी शाही सम्पत्ति मेरे हवाले करो और किले तथा शहर से अपने डेरे उठा लो, यथा
'बादशाह ने महाराजा को सेना के व्यय स्वरूप कितना रुपया दिया इसकी विवेचना हम
प्रागे सेना के आंकड़ों के अन्तर्गत करेंगे। . राजरूपक, पृष्ठ ६५९ से ६६४ । 3 पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३३६ ।
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