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________________ [ ६३ ] नाहर खान यह बादशाह मुहम्मद शाह के विश्वासपात्र आदमियों में से था। फर्रुखसियर के समय में यह साधारण व्यक्ति था । किन्तु परिश्रम के बल से यह दीवानगी के पद तक पहुँच गया था। ई. स. १७२१ में यह सर्व प्रथम सांभर का फौजदार बना कर भेजा गया था। इसके बाद ई. स. १७२२ के अन्त में सांभर को फौजदारी के साथ ही अजमेर का दीवान नियुक्त कर दिया गया। भंडारी खींवसी इसको साथ लेकर अजमेर गया । नाहर खां के साथ इसका भाई रुहेल्ला खां भी था। इन्होंने अजमेर के निकट पहुँच कर राठौड़ों के डेरों के निकट ही अपना डेरा दिया। ये राठौड़ों को अपना मित्र समझते थे। दूसरे दिन ही राठौड़ों ने आक्रमण कर दोनों भाइयों को मार डाला और उनका बहुत-सा सामान लूट लिया। निकोसियर___ यह औरंगजेब का पौत्र और अकबर का पुत्र था और आगरे के किले में कैद था। रफीउद्दौला की मृत्यु के बाद महाराजा अजीतसिंह और सैयद भाइयों की सहायता से दिल्ली में मुहम्मद शाह बादशाह बना दिया गया। उस समय आगरे में सेन नामक नागर ब्राह्मण ने निकोसियर को कैद से निकाल कर महाराजा जयसिंह, राजा भीम हाडा, चूड़मन जाट, छबीले राम नागर आदि की सहायता से ई० सन् १७१६ में आगरे में बादशाह घोषित कर दिया और उसके नाम का सिक्का जारी किया। इसके कुछ दिन बाद हुसेनअली खां ने इसके विरुद्ध आगरे की तरफ प्रस्थान किया। वहाँ पहुँच कर उसने घेरा डाल कर मोर्चे लगाये और कुछ ही दिनों के बाद निकोसियर को पकड़ कर कैद कर लिया गया। निजामुल-मुल्क यह बादशाह मुहम्मद शाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में प्रमुख था। ई० सन् १७२० में बालापुर के निकट होने वाले युद्ध में इसने अपनी वीरता का अच्छा परिचय दिया था, इसीसे इसको निजामुलमुल्क की उपाधि मिली। उस समय सैयद भाइयों का पतन प्रारम्भ हो गया था और उनके स्थान पर निजामुलमुल्क की धाक स्थापित हो गयी थी। वह दक्षिण के ६ सूबों का शासक बना दिया गया । वह बड़ा ही चालाक तथा उच्चकोटि का कूटनीतिज्ञ था । यह मरहठों में फूट उत्पन्न करना चाहता था। ऐसे व्यक्ति की चालों को निष्फल बनाने की क्षमता बाजीराव पेशवा में ही थी। जब महीपतराव को चौथ वसूल करने से मना कर दिया तब बाजीराव ने नये मुगल सम्राट से चौथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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