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________________ असुरांण सीस उपाड़ि, परसाद न सके पाड़ि। प्रासाद नव नवा प्रमेस, हिंदवाण सझे हमेस । प्रागै जु दियो छुडाय, जेजियो सुज मिट जाय । पर साह दरगह आइ, मह पूजहूँ महमाय । मिळ लाल कोट मझार, झालरां ह्र झणकार । परमळा धूप प्रकास, उदियात रवि अंब-खास । -सू.प्र भाग २, पृ. ८१, ८२ ___ xxx पा मिटण न दूं अनादि, मो थकां हिंदु प्रजादि । सुरिण कहै इम सयदाण, पर हुकम सरव प्रमाण । सझि एम तरह सलाह, दहुं गये 'सयद' दुबाह । - सू.प्र. भाग २, पृ. ८३ इसी प्रकार अपने पैतृक राज्य जोधपुर पर अधिकार करते ही उन्होंने उन मसजिदों को तुड़वा डाला जो मंदिरों के स्थान पर बनाई गई थीं और वहाँ पुनः मंदिर बनवा दिये। जब उन्होंने अजमेर पर अधिकार किया तो वहां पर गो-वध रोक दिया हिन्दू धर्मग्रन्थों के पाठ शुरू करवा दिये तथा मंदिरों में नियमित पूजा शुरू करवा दी। राजस्थान के तत्कालीन नरेशों के सहायक : बादशाह बहादुरशाह ने आमेर नरेश जयसिंह से राज्य छीन लिया था। महाराजा अजीतसिंह ने अपने पैतृक राज्य मारवाड़ पर अधिकार करते ही तुरन्त सांभर और डीडवाना को विजय करते हुए आमेर पर अधिकार कर लिया और जयसिंह को पुनः वहाँ का राजा बना दिया। ____ बादशाह मुहम्मदशाह के समय में आमेर नरेश जयसिंह ने ईरानी यवनों को प्रेरणा देकर आगरे में अपनी ओर से निकोशियर को बादशाह घोषित कर दिया था। इस पर सैयद बन्धु और महाराजा अजीतसिंह ने दिल्ली से प्रागरे जा कर ईरानी मुगलों को मार भगाया और निकोशियर को कैद कर लिया। सैयद बन्धु जयसिंह से बहुत नाराज थे। उन्होंने आमेर पर चढ़ाई करने की ठान ली। गढ लीध करि गज गाह, सुजि गहै नेकह साह। 'जैसाह' दिस जमराण, खळ चढे दळ खुरसाण ॥-सू.प्र. भाग २, पृ. ८५ राजा जयसिंह ने अपनी लज्जा बचाने के लिये महाराजा अजीतसिंह को पहले से ही पत्र लिख दिया सझि थाट कुरब सुथाळ, मो राखियो 'अजमाल' । वरियांम तीजी बार, अब नको अवर अधार ॥-सू.प्र. भाग २, पृ. ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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