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सूरजप्रकास का ऐतिहासिक महत्त्व
कवि ने ग्रंथारम्भ में सूर्य वंश के प्रारंभिक राजा इक्ष्वाकु से महाराजा अभयसिंह के वंशसम्बन्ध को पुष्ट करने के लिये लम्बी कुल तालिका दे दी है। इसके अन्तर्गत संक्षिप्त रामायण का वर्णन भी कर दिया है । तत्पश्चात् क्रम से चलते हुए आगे राजा पुंज के तेरह पुत्रों का वर्णन किया है और उसके बड़े पुत्र की चौथी पीढ़ी में कन्नौज नरेश जयचन्द राठौड़ का वर्णन किया है ।
उक्त कुल तालिका को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने से हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि कवि ने केवल पुराणों का आश्रय लेकर ही यह सब कुछ लिख डाला है । अत: यह वर्णन सत्य है अथवा असत्य इसका निर्णय करना उक्त घटनामों की पूर्ण ऐतिहासिक सामग्री के प्राप्त हुए बिना कठिन है । कवि ने कन्नौज के राजा जयचन्द राठौड़ का जो वर्णन किया है वह ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्रायः ठीक है । इसी जयचन्द राठौड़ का समकालीन पृथ्वीराज चौहान था । यहाँ पहले हमें ग्रन्थ में दी हुई तिथियों की सत्यता के बारे में विचार करना है, यद्यपि कवि ने तिथियों का उल्लेख बहुत कम किया है ।
सर्व प्रथम कवि ने राव जोधाजी द्वारा जोधपुर के किले के निर्माण की तिथि ( श्रावणादि) वि० सं० १५१५ की ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी (१२ मई १४५६ ई० ) का उल्लेख किया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक है ।
तत्पश्चात् कवि ने महाराजा अजीतसिंह के जीवन चरित्र के अन्तर्गत जालोर में ( श्रावणादि) वि० सं० १७५६ मार्गशीर्ष वदि १४ शनिवार ७ नवम्बर १७०२ ई०) को महाराजा अभयसिंह का जन्म होना लिखा है । यह तिथि भी सत्य है ।
अहमदाबाद- युद्ध के अन्तर्गत कवि ने एक स्थान पर केवल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी का उल्लेख किया है। इनके साथ मास एवं संवत् नहीं दिया है किंतु आगे युद्ध विजय करने की तिथि से इनका सही अनुमान लगाया जा सकता है । सर बुलन्द ने पहले तीन दिन तक गोलाबारी की, उसने चौथे दिन मैदान में श्र कर युद्ध किया और सायंकाल तक बहुत वीरता से लड़ा, फिर भी उसकी हार निश्चित हो गई । अतः वह युद्ध-स्थल छोड़ कर शहर की ओर चला गया । यह महाराजा की विजय का दिन था । इस तिथि को कवि ने स्पष्टतया ग्रंथ में अंकित किया है, यथा
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'सत्र से संमत सत्या सिये विर्ज दसमी सनि जीत '
सू. प्र. भाग ३, पृ. २७३
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