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सूरजप्रकास
त्रिंहुवै धड़ 'अभमल' तणी, अर घड़ 'विलँद'' असाधि । जूटै जिम' वरणी' जिय' वीजळ* झाटा वाधि ॥ ८८७
___ छंद रोमकंदघड़ भूप 'प्रभा' र विलँद तणी घड़ रीठ झड़ ज्झड़ खाग रमै । दळ कंध कड़क्कड़ सीस दड़द्दड़ भीच लड़त्थड़ केक भ्रमै । धुन केक बड़ब्बड़ नत्त' धड़धड़ चंडि गड़ग्गड़ रत्त चड़े । 'अभमाल' विलँद तणा मुहागळ लौह इसी विध'' जोध' लड़े।८८८ "होय रिख हड़ाहड़ पावहथज्झड़े धूम त्रवध्धड़ मेछ घड़ा । तस रूप तड़तड़ नीझक नझड़ तूटत अंतड़ रोद तड़ां । फिफराळ फ़ड़प्फड़ कूद कळझड़ प्राय भड़भड़ मल्ल अड़े । 'अभमाल' 'विलँद' तणा मुह आगळ लोह इसी बिध१४ जोध लड़े।। ८८६
१. सं. दोहाँ। ग. दोहों। २ ख. बिलंद। ३ ख. अरणी। ४ग: जीये। ख. बीजळ। ६ ख. बांधि। ७ ख. विलंद । ८ ख. ग. नृत । ६ ख. बिलंद । १० ख..
*चिन्हांकित पत्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं। मुंह । ११ ख. ग. विधि। १२ ख. जोड। १३ ग. नझङ। १४ ग. विधि ।
८८७: त्रिहुंदै-तीनों। प्रभमल - महाराजा अभय सिंह । अर - अरि-शत्र अथवा और ।
असाधि - अंसाध्य, अपार। वीजळ - तलवार । झाटां-प्रहारों। वाधि-विशेष । ८८६. घड़ - सेना। प्रभा- अभयसिंह। झडझड़- कटाकट, मारकाट । कड़क्कड़
कटाकेटकी ध्वनि । बड़बड़- गेंदके समान ठुकराये जानेकी क्रिया या ध्वनि । भीच - योद्धा। लड़त्थड़ - लड़खड़ाते हैं। घुप्र - शिर । बड़बड़ -- बकझक, प्रलाप । नत - नृत्य, नाच । धड़धड़- बिना शिरका शरीर, अथवा बिना शिरपरका शरीरका मध्य भाग । चंडी- रणचंडी। गड़गड़- गटगट। रत्र - रक्त ।
चड़े- पान करती है। ५६. रिख- नारद ऋषि । हाहड़-हंसने की ध्वनि । पावहथज्झड़-पैर और हाथ
कट कर गिरते हैं । धूम- कोलाहल । अवघड़-तीनों ओरकी सेनासे । तसहाथ । तड़तडे - केटने की क्रिया या ध्वनि अथवा भूमि पर गिरनेकी ध्वनिः । नीझक-(?)। · नझड़-( ? )। अंतड़- प्रांतें। रोद - यवन । तड़ाक्ली। फिफराळ - फेंफड़ा। फड़पफड़-ध्वनि विशेष। कळझड़- कलेजा। भडभड़-प्रति भट अथवा ध्वनि विशेष मल्ल - योद्धा ।
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