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________________ [ ५८ ] इतनी वीरता से लड़ा कि मुसलमानों का पलड़ा भारी दिखने लगा तथा महाराजा की सेना पीछे हटने लगी और सर बुलन्द खां की सेना उन्हें पीछे ढकेलती गई । परन्तु कुछ समय बाद महाराजा अभयसिंह की सेना आगे बढ़ने लगी और सेनापति जमाल खां के हाथी को घेर लिया, जहाँ वह लड़ता. लड़ता वीर गति को प्राप्त हुआ। जयसिंह (मिर्जा राजा) यह जयपुराधोश राजा मानसिंह का प्रपौत्र था। इसका जन्म ई० स० १६११ में हुआ था और ई० स० १६२१ में केवल १० वर्ष की अवस्था में राज्याभिषेक हुआ । ई० म० १६२८ में सम्राट शाहजहाँ ने इसका विशेष आदर किया। मुगल साम्राज्य की वृद्धि के लिये विविध स्थानों पर युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दिया। शाहजहाँ ने खुर्रम के विरुद्ध परवेज के साथ मिर्जा राजा जयसिंह को सेनापति बना कर भेजा था । यह बात स्वाभिमानी महाराजा गजसिंह को बुरी लगी । अतः वह एक अोर खड़े होकर युद्ध का परिणाम देखने लगे। जयसिंह की सेना भीम सीसोदिया के सामने टिक नहीं सकी और भाग गई। उस समय गजसिंह ने उसका मुकाबला करके भीम सीसोदिया को मार डाला। ई० स० १६६७ ई० में बुरहानपुर में इसकी मृत्यु हुई । जसिंह (महाराणा) इसका जन्म वि० सं० १७१० पौष वदि ११ को हुआ था। यह अपने पिता की मत्यू के बाद वि० सं० १७३७ में मेवाड़ का स्वामी हुआ। महाराणा राजसिंह की मत्यु के समय से मेवाड़ मुगल दल से घिरा हुआ था। महाराणा जयसिंह ने मारवाड़ के महाराजा अजीतसिंह से मिल कर भेद नोति का अनुसरण किया और शाहजादा मुअज्जम को अपनी ओर मिला लेना चाहा किन्तु सफलता नहीं मिली। इसके बाद इसने अकबर को अपनी ओर मिलाया। शाहजादा अकबर ने जब महाराणा से मिल कर अपने को बादशाह घोषित किया तब महाराणा ने मांडलगढ़ को पुनः अपने अधिकार में कर लिया। वि० सं० १७३८ में महाराणा ने बादशाह औरंगजेब से संधि कर ली। इसके बाद औरंगजेब दक्षिण में चला गया और लगातार २५ वर्ष मरहठों से लड़ता रहा । इसी बीच महाराणा जयसिंह और उनके पुत्र अमरसिंह द्वितीय में गृह-कलह हो गया। उस समय महाराजा अजीतसिंह ने बीच-बचाव कर के पितापुत्र में परस्पर मेल करवा दिया। ठीक इसी समय महाराणा जयसिंह ने अपने छोटे भाई गजसिंह को पुत्री का विवाह मारवाड़ के महाराजा अजीतसिंह से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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