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[ २३ ] ऐसे ही जोधाण तसे बगीचे। मंडोवर के बीच निवास ! जहां स्त्री महाराज के खड़ग जैतकारी, काळे गोरे महाबीरू भेरू का बास ।
ऐसे बगीचू का सिंगार सोभा का अथाग । यहां पर वृक्षों की सघनता के कारण सूर्य की किरणों का जमीन तक नहीं पहुँचना, उद्यानों की सुन्दरता आदि का वर्णन कर के कवि ने वास्तविकता को प्रकट करने का प्रयत्न किया है जो सराहनीय है। अतः यह स्पष्ट है कि कवि में बहुत सूझ-बूझ थी। यदि वह यथास्थान इस ओर बढ़ने का थोड़ा-सा यत्न
और करता तो इस दृष्टि से भी ग्रंथ महत्वपूर्ण हो सकता था । कवि का मुख्य विषय इतिहास लिखना व महाराजा का युद्ध-वर्णन करना था, किन्तु ग्रंथ में कई स्थान ऐसे भी हैं जहां परम्परागत शैली को न अपना कर स्वाभाविक चित्रण किया जा सकता था ।
शैली और भाषा कवि ने ग्रंथ में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है, क्योंकि उसका प्रधान लक्ष्य ही महाराजा अभयसिंह के पूर्वजों का इतिवृत्त लिखना और महाराजा द्वारा अहमदाबाद-विजय के युद्ध का वर्णन करना था। पात्रों के संवादों का समावेश कर के तथा विभिन्न प्रकार के छंदों व गद्यवत दवावैत का प्रयोग कर के ग्रंथ को रोचक बनाने का प्रयत्न किया है । ___ ग्रंथ में नादात्मक एवं संयुक्ताक्षर-शैली का प्रायः बहिष्कार हुआ है। भाषा में अलंकारों को लादने का प्रयास नहीं किया गया है। अलंकार स्वाभाविक रूप से काव्य-प्रवाह में आते गये हैं । अतः नीरसता नहीं आ पाई है। अोज गुण की प्रधानता के साथ प्रसाद और माधुर्य का भी आभास होता है । कवि ने पात्रों के अनुरूप भाषा का रूप बदलने का प्रयत्न किया है, जैसे मुगल बादशाह का वर्णन या उसके द्वारा कुछ संवाद कहलाना है तो उसमें फारसी, अरबी और तुर्की के शब्दों का प्रायः प्रयोग किया गया है जो प्रशंसनीय है। निम्न उदाहरण हैं
दसकत कर न मिळ दिवाणां, परजी फरज मतालब ऊपर ।
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रबिल पाल मीनां रहे।
मुनसफ खावी मुलक, उतन जावो सब रावत ।
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ईसफहां प्रासफो इलम फातमा उचारै। महमंद इमाम कहि कहि मुगळ ।
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