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________________ [ ७६ ] दिया । महाराजा अपने दल-बल सहित अहमदाबाद पहुँचा । घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सर बुलन्द ने अपनी पराजय का अनुमान लगा कर आत्मसमर्पण कर दिया और नागरे की ओर रवाना हो गया। गुजरात से जाने के साथ ही इसका जगत में नाम लुप्त हो गया । यह चुस्त और साहसी भी था किन्तु उसे हमेशा अपने में कमी महसूस होती थी । वह खर्चे के मामले में बहुत लापरवाह तथा अधिक खर्चीला था । इसीलिये दिल्ली पहुँचने पर इसे अपने कर्जदाताओं से बचने के लिये मकान की चहारदीवारी में ही बन्द रहना पड़ा । इसकी मृत्यु १९ जनवरी १७४७ को ६६ वर्ष की आयु में हो गई । सलावत खाँ यह बादशाह शाहजहाँ का प्रमुख दरबारी था और बादशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था । यह नागौर के राव अमरसिंह राठौड़ से द्वेष रखता था । इसने राव श्रमरसिंह को आम दरबार में 'गंवार' कहा था। अमरसिंह जैसे स्वाभिमानी और सत्यप्रिय राठौड़ को यह शब्द अप्रिय लगा जिससे उसने तत्क्षण ही 'सलावत' पर कटार का वार कर मार डाला । साहजहाँ (शाहजहाँ) - यह बादशाह जहांगीर के पुत्रों में सब से अधिक बुद्धिमान, चतुर और योग्य था । इसका पितामह सम्राट अकबर महान् इसको सब से अधिक प्यार करता था तथा सदा अपने पास रखता था । उत्तराधिकार के लिये इसको भी अपने भाइयों से संघर्ष करना पड़ा था । शाहजहां ६ फरवरी १६२= ई० में आगरे में अबुल मुजफ्फर शिहाबउद्दीन मुहम्मद साहिब-ए-किरान शाहजहां बादशाह गाजी के नाम से सिंहासनारूढ़ हुआ । इसके समय में पूर्ण शान्ति थी । कई इतिहासकार इसके समय को मुगल साम्राज्य का स्वर्णकाल मानते हैं। शाहजहाँ को इमारतें बनवाने का बहुत ही शौक था । इसने कई सुन्दर इमारतें बनवाईं जिनमें ताजमहल जगतविख्यात है । यह अपनी बेगम मुमताजमहल से बहुत प्रेम करता था और उसी की स्मृति में इसने ताजमहल बनवाया । शाहजहाँ को अपने अंतिम समय में बहुत कष्ट झेलना पड़ा। इसके पुत्रों में उत्तराधिकार के लिये संग्राम छिड़ गया । यह अपने बड़े पुत्र दारा को सम्राट बनाना चाहता था । दारा उस समय दिल्ली में ही था । इसका दूसरा पुत्र शूजा बंगाल का गवर्नर था, तीसरा औरंगजेब दक्षिण में और चौथा मुराद गुजरात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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