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________________ [ ५६ ] जालोर जोधपुर के जालोर परगने का मुख्य स्थान है और सूकड़ी नदी के किनारे पर बसा हुआ है। प्राचीन सुदृढ़ गढ के भग्नावशेष हैं। पहले इसे परमारों ने बसाया था। बाद में जालोर चौहानों की राजधानी रहा। शिलालेखों के अनुसार इसका नाम जाबालीपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता है । यहां की प्राचीन वस्तुओं में तोपखाना है, जो अलाउद्दीन खिलजी के समय में चौहानों से मुसलमानों के हाथ में चला गया। इसके उत्तरी द्वार पर फारसी में एक लेख है जिस में मुहम्मद तुगलक का नाम है । इस नगर से जैन तथा हिन्दुओं से सम्बन्ध रखने वाले कई लेख मिले हैं । एक वि० सं० ११७४ का बीसल की राणी मेलरदेवी द्वारा सिन्धु राजेश्वर के मंदिर पर सुवर्ण कलश चढ़ाये जाने का उल्लेख है। इस प्रकार इसकी प्राचीनता के अनेक शिलालेख मिले हैं। जैतारण यह प्राचीन स्थान जोधपुर के जैतारण तहसील का मुख्य स्थान है। यहाँ प्राचीन काल में सींधलों का अधिकार था । किन्तु सूजाजी के पांचवें पुत्र राव ऊदाजी ने वि० सं० १५३६ में सींधलों को हरा कर जैतारण पर अपना नया राज्य कायम किया था। जैतारण राव ऊदा को सूजाजी ने जागीर के रूप में नहीं दिया था वरन् अपने बल-विक्रम से नया राज्य कायम कर के ऊदावत शाखा का इतिहास प्रारम्भ किया। बाद में जैतारण खालसे हो गया और ऊदावतों को नींबाज मिल गया जो आज भी ऊदावतों का बड़ा ठिकाना है। जैतारण वि० सं० १६१४ में ऊदाजी के वंशजों के हाथ से निकल गया और उस पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। मुसलमानों से पुनः राठौड़ों ने जीत लिया। जैसलमेर यह नगर राजस्थान के पश्चिम में अन्तिम सीमा पर २६°५ उत्तर अक्षांश और ६६०३० पूर्व देशान्तर पर स्थित है । यह नगर इस राज्य की राजधानी है, जिसको चंद्रवंशी भाटी राजपूत रावल जैसल ने वि० सं० १२१२ में बसाया था। इसका प्राचीन नाम जैसल नगर, बल्लदेश और मांड भी मिलता है । ई० स० १२९४ में बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण कर इस नगर को वीरान कर दिया था। इसके बाद ई० स० १२६६ में रावल दूदा द्वारा यह पुनः प्राबाद किया गया, किन्तु रावल घड़सी के समय में नगर अधिक उन्नत हुआ। जोधपुर . यह मारवाड़ राज्य की राजधानी था । यह २४°३० व २७°४० उत्तर अक्षांश और ७० व ७५०२० पूर्व देशान्तर पर स्थित है। इस नगर को राव जोधाजी ने वि० सं० १५१५ तदनुसार ई. स. १४५८ में बसा कर पाबाद किया। इसके पूर्व राज्य की राजधानी मंडोवर थी जो जोधपुर नगर से ६ मील दूर है। यह नगर महाराजा यशवन्तसिंह की मृत्यु के बाद कुछ समय तक मुगलों के अधिकार में भी रहा । किन्तु महाराजा अजीतसिंह ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया, तब से इस पर उन्हीं के वंशजों का अधिन कार रहा। यह आबादी की दृष्टि से राजस्थान का दूसरा नगर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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