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कोटौ कोटा नगर राजस्थान के पूर्वी दक्षिणी भाग में हाडोती के पठार पर २४°३०" उत्तर अक्षांश और ७५°४० पूर्वी देशान्तर पर स्थित है । यह नगर राजस्थान की प्रसिद्ध नदी चम्बल के दक्षिणी पूर्वी किनारे पर बसा हुआ है । यह नगर चौदहवीं शताब्दी में कोटिया भील के नाम से बसाया गया था। उस समय यहाँ भीलों का अधिकार था। प्राचीन लेखों के अनुसार यहाँ नागवंशी और मौर्यवंशी राजाओं का भी राज्य रहा है । इसके बाद वि० सं० १६८८ तदनुसार ई० स० १६३१ में यह चहुवान वंश के हाड़ा राजपूत राव रतनसिंह के कनिष्ठ पुत्र माधवसिंह के अधिकार में आ गया। तब से भारत के स्वतन्त्र होने के पूर्व तक यहां इसी वंश का राज्य रहा।
गिरनार यह बहुत प्राचीन स्थान है। काले पत्थर की पर्वत-श्रेणी जो लगभग १२ मील तक चली गई है । इसके मध्य भाग में एक बड़ा दुर्ग है । इसे ग्रहरिपु ने बनवाया था। इसकी सुन्दर घाटी के मुख पर नेमिनाथ का पवित्र पर्वत गिरनार खड़ा है, जहाँ कई जैन मंदिर हैं।
इसके मुख्य भाग पर ही प्राचीन नगर जूनागढ़ है। पहले यह सोरठ कहलाता था, वहाँ का स्वामी राव खंगार था। इस नगर के दरवाजे से ही यात्रियों के पद-चिन्हों से बनी हुई पगइंडी सोनरेखा नदी के किनारे-किनारे उसके उद्गम स्थान गिरनार के शिखर तक चली गई है, जहाँ समतल भू-भाग है। यहाँ पर जैन तीर्थंकरों के चैत्य बने हुए हैं। इस मैदान से गिरनार के शिखर तक चढ़ने का झाड़ियों में हो कर एक बीहड़ मार्ग अम्बादेवी के मन्दिर तक चला गया है। गिरनार पर्वत की छः अलग-अलग चोटियाँ हैं जिनमें सबसे ऊँची चोटी गोरखनाथ नाम से प्रसिद्ध है।
गोलकुण्डा
बहमनी सुलताना के समय में गोलकुण्डा तैलंगाना प्रदेश की राजधानी था । १५वीं शताब्दी में बारा मलिक कुल कुतुब-उल मुल्क (Barra Malick Kull Kutbul Mulk) जो सुलतान मुहम्मद बहमनी की मातहती में आया, जिसे गाजी का खिताब दिया गया और उसे तैलंगाना का शासक बना दिया। १५१० ई० में यह स्वतंत्र हो गया । उसके बाद १५७६ ई० में सम्राट अकबर ने राजा मानसिंह को भेज कर इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया । शाहजहाँ के सयम में इसके शासक पुन: स्वतंत्र हो गये थे । औरंगजेब ने गोलकुण्डा के नवाब को, जो शिया मुसलमान था, नष्ट कर के गोलकुण्डा को पुनः मुगल-साम्राज्य में विलीन कर दिया।
खेड़
यह प्राचीन नगर उत्तरी रेलवे की बाहड़मेर शाखा के बालोतरा स्टेशन से कुछ दूरी पर है। नगर उजड़ी दशा में अब तक मौजूद है। यहाँ के प्राचीन विष्णु और शिव-मन्दिर १२वीं शताब्दी के उत्कृष्ट नमूने हैं। उस समय यहाँ गुहिलों का अधिकार था। डाभी इनके मन्त्री थे। इनका परस्पर वमनस्य था। इस वैमनस्य से लाभ उठाने के लिये राव सीहाजी ने इस
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