SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सञ्चालकीय वक्तव्य कविया करणीदानजी कृत "सूरजप्रकास" नामक महाकाव्य के प्रथम और द्वितीय भाग क्रमशः सन् १९६१ और १६६२ में राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के ५६वें एवं ५७वें ग्रन्थाङ्कों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं । प्रस्तुत प्रकाशन के रूप में "सूरजप्रकास" का तृतीय एवं अन्तिम भाग उत्सुक पाठकों के सम्मुख पहुँच रहा है । ___"सूरजप्रकास" के प्रस्तुत भाग में जोधपुर के महाराजा अभयसिंह और सरबुलन्दखां के मध्य हुए अहमदाबाद के युद्ध का विस्तृत और काव्यात्मक वर्णन है । सरबुलन्द ने युद्ध के प्रारम्भ में तीन दिन पर्यंत नगर में रहते हुए महाराजा की सेना पर भयंकर गोलाबारी की । तदुपरान्त चौथे दिन वह मैदान में आ कर महाराजा की सेना से लड़ा और उसी दिन अपनी पराजय जान कर पुन: नगर की ओर भाग गया। महाराजा ने तुरन्त ही सरबुलन्द का दमन कर अपनी विजय-घोषणा की । कवि ने युद्ध में भाग लेने वाले अनेक प्रमुख योद्धाओं का नामोल्लेख करते हुए उनकी वीरता का ओजस्वी वर्णन किया है जिससे काव्य का इतिहास की दृष्टि से भी महत्त्व हो गया है। ___"सूरजप्रकास" के निम्नलिखित छन्द से प्रकट होता है कि महाराजा अभयसिंह की अहमदाबाद-विजय संवत् १७८७ की विजयदशमी, शनिवार के दिन हुई थी और युद्ध में प्रत्यक्ष दर्शन एवं अनुभव के आधार पर महाकवि ने एक ही वर्ष में इस महाकाव्य को पूर्ण कर लिया था और ग्रन्थ का परिमाण साढ़े सात हजार अनुष्टुप् श्लोकात्मक है। सत्रेस समत सत्यासिय, विजेदसमी सनि जीत । यदि कातिक गुण वरणियो, दसमी वार प्रदीत ।। वणियौ गुण इक वरस विच, उकति प्ररथ अणपार । छद अनुस्टुप करिउ जन, सत पंच सात हजार ॥ 'प्रभा'तणी सुभ नजर अति, वधि छक सुकधि विधान । कुरव दान लहियो अधिक, कहियो करणीदान ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy