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[ १४ ] असतूत कर बह करि अरज, जोड़े हाथ जुहारियो । असपती मौहर प्राणं 'प्रभो' इण विध क्रोध उतारियो॥
सू.प्र. भाग २, पृ. १२६ महाराजा की भाषण-शक्ति :
सर बुलन्द पर आक्रमण करने के लिए महाराजा ने सरस्वती के किनारे अपने सुभटों के समक्ष बड़ा जोशीला भाषण दिया। उन्होंने बताया कि ऋषिमहात्माओं को अपेक्षा वीरों को सहज ही में मोक्ष मिल जाता है। अपने लम्बे भाषण में उन्होंने कई ज्ञान की बातें बताई और युद्ध में जीत की बाजी लगाने के लिए सरदारों को प्रोत्साहित किया। अतः कवि ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराजा भाषण-शक्ति में दक्ष होने के साथ साथ विद्वोन भी थे
इम रिख सिख हैं ताम उचारा । धुर सत्र मारग खांडा धारा। विधि सिख सुरिण रिज कहै करू विध। सूर जोड़ न हुवै तपसी सिध ॥
सू.प्र. भाग २,५.३३६
कळहणि सूर सांमरे कारण। ऽवै सुख तर्ज पलक मझि प्रारण । सूरां तेज इसौ दरसावै। इण विध तपसी जोड़ न पावै ।।
सू.प्र. भाग २, पृ. ३४०
इम सरी पति धरम इरादा। जोगेसरां सिधा हूँ जादा। लड़े नचित लोह नह लागे । जिको सूर तपसी सम जाग ।।
सू.प्र. भाग २, पृ. ३४३ शरणागतवत्सल और क्षमाशील :___ सर बुलन्द को परास्त करने में महाराजा के कई राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए, जिनका उन्हें बहुत शोक था, फिर भी सर बुलन्द महाराजा की शरण में आ गया तो उन्होंने क्षमा करके उसे छोड़ दिया और वह करारी हार से लज्जित होकर आगरा की ओर रवाना हो गया
पड़े पाय सिर विलंद, जाणं सरणाय सधारा । . म्हैं बंदा हुकम का, एम कहियो उण वारी ।
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