SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [. ५४ ] महा घोर संग्राम हुआ जिसमें अनेक मुगल वोरों को मार कर बड़ी वीरता से लड़तो हुआ वह वीरगति को प्राप्त हुआ। केशरीसिंह पुरोहित___ यह जोधपुर राज्य के खेड़ापा का महापराक्रमी जागीरदार था। इसने अपनी योग्यता से ही यह जागीर प्राप्त की थी । इसके पूर्वज तिवरी के जागीरदार थे। यह पुरोहित दलपत का पौत्र था जो महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) के साथ धरमत (उज्जैन) के युद्ध में औरंगजेब के विरुद्ध लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ था। इसके पिता का नाम अखंसिंह था। पुरोहित केशरीसिंह गुजरात (अहमदाबाद) के युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था । अहमदाबाद नगर तथा भद्र के किले पर पांच मोर्चे लगाये गये। केसरीसिंह दूसरे मोर्चे पर था। सर बुलन्द खां ने ई० सं० १७३० ता० १० अक्टूबर को दूसरे मोर्चे पर आक्रमण किया। घमासान लड़ाई हुई जिसमें सर बुलन्द के ३०० आदमी और महाराजा की सेना के पुरोहित केसरीसिंह, हठीसिंह, भोमसिंह, करण, भगवान आदि वीर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। केशरीसिंह बारहठ __ यह गुरड़ाई का जागीरदार था। यह गांव इसको महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम द्वारा प्राप्त हुआ था। महाराजा जसवन्तसिंह को मृत्यु के बाद जब मारवाड़ पर मुगलों का आधिपत्य हो गया तब इसका गाँव भी मुगलों के अधिकार में चला गया । यह महाराजा अजीतसिंह के दल में शामिल हो गया तथा आजन्म महाराजा की सेवा करता रहा । जब जोधपुर पर महाराजा का अधिकार हो गया तब इसको अपना गाँव गुरड़ाई भी वापिस मिल गया। इसके गोरखदान और करणीदान दो पुत्र थे जो महाराजा अभयसिंह के साथ अहमदाबाद के युद्ध में शामिल हुए थे। खान दौरान यह बादशाह मुहम्मद शाह के समय में मीर बक्शी के उच्च पद पर आसीन था और महाराजा अभयसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। इसने दिल्ली में महाराजा का शानदार स्वागत किया था। इसी की सलाह से बाहशाह ने महाराजा को गुजरात का सूबेदार बनाया था। नादिरशाह के आक्रमण के समय खानदौरान अपनी सेना सहित कर्नाल के युद्ध में शरीक हुआ। भीषण संग्राम हुआ जिसमें मुगल सेना बुरी तरह पराजित हुई और यह अपने ८००० सैनिकों सहित वीरगति को प्राप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy