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________________ [ ५६ ) भाटी ने महाराणा को बादशाह से संधि करवाई । एक समय भाटी गोविंददास अजमेर में महाराजा सूरसिंहजी के साथ था जहाँ किशनसिंहजी ने अपने भतीजे गोपालदास का बदला लेने के लिए इसकी हवेली में घुस कर इसको मार डाला। गोरखदान (बारहठ गोरखदान) यह बारहठ केसरीसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद यह रूपावास में रहा। यह महाराजा अभयसिंह के कृपापात्रों में था और अहमदाबाद के युद्ध के समय महाराज के साथ था। इसको सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा अभयसिंह ने इसको पाली परगने का केरला गांव प्रदान किया। इसके एक हो पुत्र अमरसिंह था जो महान् प्रतिभासंपन्न व्यक्ति था। गोरधनसिंह (कूपावत राठौड़ गोरधनसिंह) . यह चंडावल ठाकुर चांदसिंह का पुत्र था। यह ठिकाना महाराजा सूरसिंह ने इसके पिता चांदसिंह को वि० सं० १६५२ में इनायत किया था। जिस समय महाराजा गजसिंह ने भोमसिंह सीसोदिया को युद्ध में मारा था उस समय यह महाराजा गजसिंह का प्रमुख योद्धा था । वि० सं० १७१४ में उज्जैन के पास फतियाबाद के मुकाम पर शाहजादा मुराद और औरंगजेब बादशाहत के लोभ से पा खड़े हुए। उस समय शाही सेना के सेनापति कासिम खां और महाराजा जसवन्तसिंह थे । कासिम खां बदल कर औरंगजेब के पक्ष में हो गया। इस पर भी महाराजा जसवन्तसिंह ने औरंगजेब के साथ घोर संग्राम किया जिससे शत्र ओं के नाकों दम हो गया। इस युद्ध में कपावत राठौड़ गोरधनसिंह चांदसिंहोत ने घोर संग्राम किया और कई शत्रुओं को मार गिराया और अपनी सेना को रक्षा की । अन्त में यह स्वयं भी इसी युद्ध में लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुआ। चाचा और मेरा ये दोनों भाई महाराणा खेता की पासवान एक खातण के गर्भ से पैदा हए थे। ये दोनों भाई बड़े वीर, पराक्रमी और रणकुशल योद्धा थे । एक बार महाराणा मोकल द्वारा किसी वृक्ष का नाम और गुण पूछने पर बहुत क्रोधित हो गये, और अवसर पाकर महाराणा मोकल को मार डाला। उस समय राव रणमल्ल मंडोवर में थे। मोकल के मारे जाने का समाचार सुनते ही राव ने पगड़ी उतार कर साफा बाँध लिया और प्रतिज्ञा की कि चाचा और मेरा को मार कर ही पगड़ी बांधूगा । इसके बाद ५०० सवारों के साथ पई के पहाड़ों पर आक्रमण किया किन्तु उनको काबू में नहीं ला सका । बाद में गमेती भील के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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