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महिरांण भागवत का पु. २४७
सांमत (सांमतसींघ) २३६ मान अनोप का पु. २४४
सांमत किसन का पु. २४४ मांनड़ कान्ह का पु. २४५
सांमत गोकुळदास का पु. २४१ मोहकम अमर का पु. २४४
सादूळसी २४२ रतन राम का पु. २४१
सालिम बहादुर का पु. २४० राजड़े (राजड़ो) किसन का पु. २४४ सालिमी सरदार का पु. २३६ लाल किसनेस का पु. २४५
सिंभूसिंघ २३८ विसनेस कछवाह अना का पु. २४६, २४७ सिवपति हठी का पु. २३८ वैरी भैरव का पु. २४३
सुरतेस सेर का पु. २३८ सकतौ विंदाधन का पु. २४५
सुरतेस अखमाल का पु. २४१ सगतेस गोकळ दास का पु. २४०
सेरसाह २४१ सत्रसाल इंद्रसिंध का पु. २३७
हरकिसन प्रभमल का पु. २४५ सरूप २४२
हिंदव बहादर का पु. २४३ सवाइय राजसी का पु. २४५
हिम्मतसिंघ राम का पु. २४४ सवाई सुरत का पु. २४०
हींदुव प्रखमल का पु. २४३ । __ ग्रंथ की भूमिका को समाप्त करने के पूर्व में राजस्थान प्राच्य-विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के सम्मान्य संचालक पद्मश्री जिन विजयजी मुनि, पुरातत्त्वाचार्य के प्रति आभार प्रदर्शित करता है कि उन्होंने साहित्य की इस अमूल्य निधि का जो ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, सम्पादन करने की सत्प्रेरणा दी।
ग्रंथ-सम्पादन में राजस्थान प्राच्य-विद्या-प्रतिष्ठान, जोधपुर के उप-संचालक श्री गोपाल नारायणजी बहरा, एम. ए. ने समय समय पर मार्ग-निर्देशन कर सहायक ग्रन्थों के अध्ययन में सहयोग देकर तथा ग्रंथ में कविराजा करणीदान व महाराजा अभयसिंह के चित्र प्राप्त करने में जो सहयोग दिया उसके लिये मैं पूर्ण कृतज्ञ हैं। साथ ही श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया को भी धन्यवाद देता है कि उन्होंने ग्रंथ के प्रूफ-संशोधन में सहयोग दिया।
~~सीताराम लालस
रोडला भवन जोधपुर श्रावणी तीज, सं० २०२०
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