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________________ । ३१ ] की ओर से भी सैनिकों के लिये वेतन वगैरह नहीं पहुँच सका। उसके सिपाही उसे छोड़ कर जाने लगे। आमेर नरेश जयसिंह ने उसे अपने पास बुला लिया। कुछ दिनों बाद उसने अजमेर की सूबेदारी का फरमान बादशाह के पास लौटा कर स्वयं फकीर बन गया ।' ___ ग्रंथ में कवि ने महाराजकुमार अभयसिंह के भय से उसके भाग जाने का उल्लेख किया है। 'सूरजप्रकास' के साथ ही बने ग्रन्थ 'राजरूपक'' से भी इस कथन की पुष्टि होती है, किन्तु इस घटना के कुछ ही दिनों बाद महाराजा अजीतसिंह ने बादशाह के पास एक अर्जी भेजी जिसमें उन्होंने लिखा "मुजफ्फरअली खाँ मेरे पास पहुंचा ही नहीं, मैं उसे अजमेर सौंप देता तथा राजकुमार अभयसिंह को मेवातियों से झगड़ा हो जाने के कारण नारनौल आदि पर भेजा था" अतः स्पष्ट है कि मुजफ्फरअली खाँ अभयसिंह के भय से नहीं भागा था। महाराजा अजीतसिंह बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। अत: यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने बादशाह को खुश करने के लिए ही ऐसी अर्जी लिखी हो। मुजफ्फरअली खाँ के सामने धनाभाव की समस्या के साथ ही मुख्य कारण राठौड़ों का भय था। अत: 'सूरजप्रकास' और 'राजरूपक' पर अधिक विश्वास किया जा सकता है। तत्पश्चात् महाराजकुमार अभयसिंह द्वारा नारनौल और शाहजहाँपुर आदि लूटे जाने की घटनायें इतिहास-सम्मत हैं। महाराजकुमार अभयसिंह का दिल्ली जाना नाहर खाँ के मारे जाने पर वि०सं० १७८० (ई०स० १७२३) में बादशाह ने शरफुद्दौला इरादतमंद खाँ के साथ आमेर नरेश जयसिंह तथा अन्य कई अमीरों का एक बहुत बड़ा यवन-दल महाराजा के विरुद्ध भेजा। इसमें लगभग बाईस बड़े-बड़े अमीर और राजा थे। महाराजा अजमेर के किले की रक्षा का भार नीबाज ठाकुर ऊदावन अमरसिंह पर छोड़ कर स्वयं जोधपुर आ गये। अमरसिंह ने कई दिन तक सामना किया। बाद में आमेर नरेश सवाई जयसिंह ने महाराजा और शाही सेनाध्यक्ष के बीच संधि करवा दी जिसमें महाराजकुमार १ डॉ. गोरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित 'राजपूताने का इतिहास', भाग २, पृष्ठ ५६३ २ 'राजरूपक' पृष्ठ ५३४ 3 डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा लिखित 'राजपूताने का इतिहास', भाग २, पृष्ठ ५६४-५६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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