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[ ४६ ] था। यह घुड़सवार सेना को एक टुकड़ी का सेनापति था। यह हाथी पर सवार हो कर अपने भाई जमाल खां के साथ युद्ध-भूमि में बड़ो वीरता से लड़ा। इसने युद्ध में ऐसी बहादुरी दिखाई कि मारवाड़ी सेना पीछे हटने लगी। किन्तु समय ने पलटा खाया और इन दोनों भाइयों को, जो एक ही हाथी पर सवार थे, घेर लिया गया और आबिद अली खां को मार डाला। इतमादुल्ल (इतमादुद्दौला)
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। रफीउद्दौला की मृत्यु के उपरान्त सैयद बन्धुओं की सहायता से रोशनअख्तर मुहम्मदशाह के नाम से ई.सं. १७१६ में दिल्ली का बादशाह बना। सिंहासन पर बैठते ही इसने सैयद भाइयों के चंगुल से निकलने का प्रयास आरंभ कर दिया और इतमादुद्दौला की मदद से षड़यन्त्रकारियों द्वारा हुसेनअली का वध करवा दिया व उसके भाई अब्दुल्ला को युद्ध में परास्त कर इसने बन्दी बना लिया। इसके बाद इसको बादशाह ने अपना वजीर बनाया । परन्तु वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहा और ई.सं. १७२२ में मृत्यु को प्राप्त हो गया। इरावतमंद खां
- इसका पूरा नाम शकुँद्दौला इरादतमंद खां था। यह बादशाह महम्मदशाह के विश्वासपात्र सेवकों में था। बादशाह ने इसको महाराजा अजीतसिंह पर चढ़ाई करने के लिये नियुक्त किया। इसको प्रसन्न करने के लिये इसका मनसब ७००० जात और ६००० सवार का कर दिया। ई.सं. १७२३ में इसको प्रस्थान की आज्ञा मिल गई और शाही खजाने से खर्च के लिये दो लाख रुपये दिये गये। ___ महाराजा जयसिंह, मुहम्मद खां बंगस, राजा गिरधारी आदि शाही अमीरों को भी इसके साथ शरीक होने की आज्ञा मिली । शाही सेना के आगमन से पूर्व ही महाराजा अजीतसिंह अजमेर से रवाना होकर सांभर होते हुए जोधपुर चले गये । जून सन् १७२३ में इरादतमंद खां ने अजमेर में प्रवेश किया। इन्द्रसिंह (राव इन्द्रसिंह, नागौर)___ इसका जन्म वि.सं. १७०७ की जेठ सुदि १२ को दक्षिण में बुरहानपुर में हुआ था। वि.सं. १७३३ में अपने पिता रायसिंह की मृत्यु के बाद यह नागौर का अधिकारी बना। बादशाह औरंगजेब ने इसको पाँच हजारी जात और दो हजार सवारों का मनसब दिया था। महाराजा जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद अपने पुराने बैर का बदला लेने के लिये राव इन्द्रसिंह को बादशाह ने राजा के खिताब
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