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प्राकृत रचना सौरभ
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
2010_03
Page #2
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प्राकृत रचना सौरभ
डॉ. कमलचन्द सोगारणी (सेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र) सुखाड़िया विश्वविद्यालय
उदयपुर
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
2010_03
Page #3
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________________
। प्रकाशक
अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, श्रीमहावीरजी-322220 (राजस्थान)
0 प्राप्ति स्थान
1. जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी . 2. अपभ्रंश साहित्य अकादमी
दिगम्बर जैन नसियां भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-302004
0 प्रथम बार, 1994, 1100
0 मूल्य
पुस्तकालय संस्करण 75.00 विद्यार्थी संस्करण 50.00
0 मुद्रक
मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस 6-7, गीता भवन, प्रादर्श नगर, जयपुर-302004
2010_03
Page #4
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स्वर्गीय डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये,
स्वर्गीय डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री
एवं
स्वर्गीय पण्डित बेचरदास दोशी
2010_03
को
सादर समर्पित
Page #5
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________________
2010_03
Page #6
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________________
पाठ सं.
पाठ 1
पाठ 2
पाठ 3
पाठ 4
पाठ 5
पाठ 6
पाठ 7
पाठ 8
पाठ 9
पाठ 10
पाठ 11
पाठ 12
प्राकृत रचना सौरभ ]
अनुक्रमणिका
विषय
प्रारंभिक
प्रकाशकीय
प्रारंभिक
सर्वनाम
उत्तम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
2010_03
अन्य पुरुष एकवचन
सर्वनाम - एकवचन
प्राकारान्त श्रादि क्रियाएं
सर्वनाम
उत्तम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष बहुवचन
सर्वनाम - बहुवचन
आकारान्त श्रादि क्रियाएं
सर्वनाम
उत्तम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष एकवचन
सर्वनाम - एकवचन आकारान्त आदि क्रियाएं
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
विधि एवं श्राज्ञा
विधि एवं श्राज्ञा
विधि एवं श्राज्ञा
विधि एवं श्राज्ञा
पृ.सं.
1
2
3
5
7
9
11
13
16
18
20
22
Page #7
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________________
पाठ सं.
पाठ 13
पाठ 14
पाठ 15
पाठ 16
पाठ 17
पाठ 18
पाठ 19
पाठ 20
पाठ 21
पाठ 22
पाठ 23
पाठ 24
पाठ 25
पाठ 26
विषय
सर्वनाम
उत्तम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष बहुवचन
सर्वनाम-बहुवचन श्राकारान्त श्रादि क्रियाएं
सर्वनाम - एकवचन व बहुवचन
उत्तम पुरुष
२ मध्यम पुरुष
अन्य पुरुष
सर्वनाम - एकवचन व बहुवचन श्राकारान्त श्रादि क्रियाएं
सर्वनाम
उत्तम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष एकवचन
सर्वनाम - एकवचन आकारान्त आदि क्रियाएं
सर्वनाम
उत्तम पुरुष बहुवचन
सर्वनाम
मध्यम पुरुष एकवचन
सर्वनाम
अन्य पुरुष बहुवचन
सर्वनाम - बहुवचन आकारान्त श्रादि क्रियाएं
2010_03
विधि एवं प्राज्ञा
विधि एवं प्राज्ञा
विधि एवं श्राज्ञा
विधि एवं प्राज्ञा
भूतकाल
भूतकाल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल
पू. सं.
24
4.
25
27
29
32
34
36
38
40
42
44
46
182
48
50
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
विषय
पृ. सं.
पाठ 27
53
अभ्यास अकर्मक क्रियाएं
पाठ 28
56
पाठ 29
59
पाठ 30
पुल्लिग
सम्बन्धक भूत कृदन्त हेत्वर्थक कृदन्त प्रकारान्त संज्ञा शब्द अकर्मक क्रियाएं अकारान्त संज्ञा प्रथमा एकवचन अकारान्त संज्ञा प्रथमा बहुवचन
पाठ 31
पुल्लिग
पाठ 32
पुल्लिग
पाठ 33
अभ्यास
67
पाठ 34
नपुंसकलिंग
69
अकारान्त संज्ञा शब्द अकर्मक क्रियाएं अकारान्त संज्ञा प्रथमा एकवचन
पाठ 35
नपुंसकलिंग
पाठ 36
नपुंसकलिंग
अकारान्त संज्ञा प्रथमा बहुवचन
76
पाठ 37
अभ्यास
पाठ 38
स्त्रीलिंग
पाठ 39
79
स्त्रीलिंग
पाठ 40
स्त्रीलिंग
प्राकारान्त संज्ञा शब्द अकर्मक क्रियाएं आकारान्त संज्ञा प्रथमा एकवचन प्राकारान्त संज्ञा प्रथमा बहुवचन अभ्यास भूतकालिक कृदन्त वर्तमान कृदन्त अभ्यास
84
पाठ 41
पाठ 42
कर्तृवाच्य
पाठ 43
पाठ 44
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
पाठ 45
पाठ 46
पाठ 47
पाठ 48
पाठ 49
पाठ 50
पाठ 51
पाठ 52
पाठ 53
पाठ 54
पाठ 55
पाठ 56
पाठ 57
पाठ 58
पाठ 59
पाठ 60
पाठ 61
विषय
भूतकालिक कृदन्त
श्रभ्यास
अकर्मक क्रियाएं
श्रभ्यास
विधि कृदन्त
श्रभ्यास
संज्ञा
द्वितीया एकवचन
सर्वनाम
द्वितीया एकवचन्द
संज्ञा
द्वितीया बहुवचन
सर्वनाम
द्वितीया बहुवचन
सकर्मक क्रियाएं
2010_03
अभ्यास
सकर्मक क्रियाएं
इकारान्त संज्ञा शब्द
उकारान्त संज्ञा शब्द
सकर्मक क्रियाएं
अभ्यास
भूतकालिक कृदन्त
अभ्यास
इकारान्त संज्ञा शब्द
उकारान्त संज्ञा शब्द
सकर्मक क्रियाएं
विविध संज्ञाएं
प्रथमा, तृतीया एकवचन, बहुवचन
भाववाच्य
भावबाच्य
भाववीच्य
पुं., नपुं., स्त्री.
पुं., नपुं., स्त्री.
कर्तृवाच्य
कर्मवाच्य
पुल्लिंग
पुल्लिंग
कर्मवाच्य
पुं., नपुं., स्त्री.
पुं., नपुं., स्त्री
पृ. सं.
96
99
100
107
108
112
113
116
119
121
127
129
130
133
134
136
137
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ सं.
विषय
पृ.सं.
विधिकृदन्त
कर्मवाच्य .
140
पाठ 62
144
पाठ 63
अभ्यास
145
पाठ 64
विविध कृदन्त द्वितीया सहित
149
पाठ 65
अभ्यास
150
पाठ 66
153
पाठ 67
155
पाठ 68
158
पाठ 69
159
पाठ70
पाठ71
160
पुं., नपुं., स्त्री.
संज्ञा, सर्वनाम चतुर्थी-षष्ठी एकवचन संज्ञा चतुर्थी-षष्ठी एकवचन संज्ञा-सर्वनाम चतुर्थी-षष्ठी बहुवचन संज्ञा चतुर्थी-षष्ठी बहुवचन अभ्यास संज्ञा-सर्वनाम पंचमी एकवचन संज्ञा पंचमी एकवचन संज्ञा पंचमी बहुवचन संज्ञा पंचमी बहुवचन सर्वनाम पंचमी बहुवचन संज्ञा सप्तमी एकवचन सर्वनाम सप्तमी एकवचन
पाठ 72
163
पुं., नपुं., स्त्री.
164
पाठ 73
पुं., नपुं.
स्त्रीलिग
166
पाठ 74
पं., नपुं., स्त्री.
168
पाठ75
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
Page #11
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________________
पाठ सं.
विषय
पृ.सं.
पाठ76
170
पुं., नपुं., स्त्री.
4377
पुं.. नपुं., स्त्री.
171
संज्ञा सप्तमी बहुवचन सर्वनाम सप्तमी वहुवचन संज्ञा सम्बोधन एक-बहुवचन अभ्यास प्रेरणार्थक प्रत्यय स्वाथिक प्रत्यय विविध सर्वनाम अभ्यास
पाठ78
173
पाठ79
178
पाठ 80
179
180
पाठ 81
प्रव्यय क्रिया-रूप व उनके प्रत्यय
181
पाठ 82
पाठ 83
क्रिया-रूप व उनके प्रत्यय
183
पाठ 84
विविध संज्ञा-रूप विविध सर्वनाम-रूप संख्यावाची रूप संज्ञा-रूपों के प्रत्यय संज्ञा-कोश
पुं., नपुं., स्त्री. पुं., नपुं , स्त्री. पुं., नपुं , स्त्री. पुं., नपुं.,
184 191 205
पाठ 85
209
224
परिशिष्ट-1 परिशिष्ट-2 शुद्धि पत्र
क्रिया-कोश
240
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #12
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________________
आरम्भिक
'प्राकृत रचना सौरभ' पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजनों के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया। भाषा संप्रेषण का सबल माध्यम होती है । उसका जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। जीवन के उच्चतम मूल्यों को जनभाषा में प्रस्तुत करना प्रजातान्त्रिक दृष्टि है ।
जनभाषा प्रवाहशील होती है । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश भाषा के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। यह निर्विवाद है कि अपभ्रंश के अध्ययन अध्यापन को सशक्त करने के लिए प्राकत का अध्ययन-अध्यापन अत्यन्त आवश्यक है। इसी बात को ध्यान में रखकर डॉ. सोगाणी ने 'प्राकृत रचना सौरभ' अपभ्रंश रचना सौरभ के पैटर्न पर लिखी है। उनकी 'अपभ्रंश रचना सौरभ' का सर्वत्र स्वागत हुआ है। पाता है 'प्राकृत रचना सौरभ' के प्रकाशन से प्राकृत भाषा के ज्ञान के साथ-साथ प्राकृतअपभ्रंश भाषा का तुलनात्मक ज्ञान भी हो सकेगा।
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई । हमें यह लिखते हुए गर्व है कि प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी के सतत सहयोग से डॉ. सोगाणी ने नियमित कक्षाओं एवं पत्राचार की स्वनिर्मित योजना के माध्यम से अपभ्रंश व प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन के द्वार खोलने का एक अनूठा कार्य किया है। अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम में 'अपभ्रंश' का अध्यापन किया जाता है और अपभ्रंश डिप्लोमा में अपभ्रंश की आधारभूत भाषा 'प्राकृत' का । 'प्राकृत रचना सौरभ' जहां अपभ्रंश के अध्ययनाथियों के लिए उपयोगी है वहाँ प्राकृत को स्वतन्त्र रूप से सीखने के लिए भी प्रयोग की जा सकती है।
किसी भी भाषा को सीखने, जानने, समझने के लिए उसकी व्याकरण व रचनाप्रक्रिया का ज्ञान आवश्यक है । 'प्राकृत रचना सौरभ' इसी क्रम का एक प्रकाशन है। इसकी शैली प्रणाली एवं प्रस्तुतिकरण अत्यन्त सरल एवं अाधुनिक है, जो विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा । शिक्षक के अभाव में स्वयं पढ़कर मी विद्यार्थी इससे लाभान्वित हो
प्राकृत रचना सौरभ ।
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सकते हैं । इस अर्थ में यह ( प्राकृत रचना सौरभ ) प्राकृत-शिक्षक सिद्ध होगी । इसके लिए हम डॉ. सोगाणी के अत्यन्त आभारी हैं । पुस्तक प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैंड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाईं हैं।
कपूरचन्द पाटनी
मंत्री
ii]
2010_03
प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
नरेशकुमार सेठी
अध्यक्ष
[ प्राकृत रचना सौरभ
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प्रकाशकीय
प्राकृत भाषा भारतीय आर्य भाषा परिवार की एक सुसमृद्ध लोक भाषा रही है । वैदिक काल से ही यह लोक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है । इसका प्रकाशित अप्रकाशित एवं लुप्त साहित्य इसकी गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है । भारतीय लोक-जीवन के बहुआयामी पक्ष, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएँ प्राकृत साहित्य में निहित हैं । महावीरयुग और उसके बाद विभिन्न प्राकृतों का विकास हुआ, जिनमें से तीन प्रकार की प्राकृतों के नाम साहित्य क्षेत्र में गौरव के साथ लिये जाते हैं । वे हैं-अर्धमागधी, शौरसेनी और महाराष्ट्री। जैन प्राग मसाहित्य एवं काव्य-साहित्य इन्हीं तीन प्राकृतों में गुम्फित है। महावीर की दार्शनिक-आध्यात्मिक परम्परा अर्धमागधी एवं शौरसेनी प्राकृत में रचित है और काव्यों की भाषा सामान्यतः महाराष्ट्री कही गई है। इन्हीं तीनों प्राकृतों का भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है। अतः इनका सीखना-सिखाना बहुत ही महत्वपूर्ण है । इसी बात को ध्यान में रखकर 'प्राकृत रचना सौरम' पुस्तक की रचना की गई है ।
इस पुस्तक में तीनों प्रकार की प्राकृतों के प्रत्ययों को सिखाने का प्रयास किया गया है । हेमचन्द्राचार्य की व्याकरण के अनुसार महाराष्ट्री और शौरसेनी के प्रत्ययों का पाठों के लिखने में प्रयोग किया गया है । अर्धमागधी के प्रत्ययों का यदि कहीं भेद है तो उसे पादटिप्पण में स्पष्ट कर दिया गया है। इस तरह से पाठक तीनों प्राकृतों के प्रत्ययों को समझ सकेगा।
पुस्तक के पाठों को एक ऐसे क्रम में रखा गया है जिससे पाठक सहज-सुचारु रूप से प्राकृत भाषा के व्याकरण को सीख सकेंगे और प्राकृत में रचना करने का अभ्यास भी कर सकेंगे। प्राकृत में वाक्य-रचना करने से ही प्राकृत व्याकरण सिखाने का प्रयास किया गया है । पाठ लिखने की जो पद्धति अपभ्रंश रचना सौरभ (प्रकाशित) में अपनाई गई है वही प्राकृत रचना सौरभ में प्रयोग की गई है।
शौरसेनी और महाराष्ट्री प्राकृत के लिए हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत-व्याकरण के सूत्रों का आधार प्रस्तुत पुस्तक के पाठों में लिया गया है। अर्धमागधी प्राकृत के लिए घाटगे की "Introduction to Ardha-Magadhi' एवं पिशल की 'प्राकृत भाषाओं का व्याकरण' पुस्तकों का आधार लिया गया है। इनके सन्दर्भो को पाद-टिप्पण में दे दिया गया है । इन सभी का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
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पुस्तक के प्रकाशन की व्यवस्था के लिए जैनविद्या संस्थान समिति का प्रामारी हैं अकादमी के कार्यकर्ताओं, जिनका इस पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग रहा, के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ।
मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कमलादेवी सोगाणी ने इस पुस्तक को लिखने में जो सहयोग दिया उसके लिए मैं आभारी हूँ।
मुद्रण हेतु 'मदरलैण्ड प्रिन्टिग प्रेस' भी धन्यवादाहं है।
दीपावली वीर निर्वाण दिवस वीर निर्वाण संवत् 2521
कमलचन्द सोगाणी
संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति
[ प्राकृत रचना सौरभ
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प्रारम्भिक
प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में निम्नलिखित सामान्य जानकारी आवश्यक है
प्राकृत को वर्णमाला
स्वर---अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, प्रो ।
व्यंजन-क, ख, ग, घ, ङ ।
च, छ, ज, झ, ञ। ट, ठ, ड, ढ, ण। त, थ, द, ध, न। प, फ, ब, भ, म।
य, र, ल, व।
hd
___ यहां ध्यान देने योग्य है कि असंयुक्त अवस्था में ङ ओर आ का प्रयोग प्राकृत में नहीं पाया जाता है । हेमचन्द्र कृत अपभ्रंश व्याकरण में ङ और ञ का संयुक्त प्रयोग उपलब्ध है । न का भी असंयुक्त और संयुक्त अवस्था में प्रयोग देखा जाता है । ङ, अ, न के स्थान पर संयुक्त अवस्था में अनुस्वार भी विकल्प से होता है । शब्द के अन्त में स्वररहित व्यंजन नहीं होते हैं।
वचन
प्राकृत भाषा में दो ही वधन होते हैं-एकवचन और बहुवचन ।
लिग
प्राकृत भाषा में तीन लिंग होते हैं-पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग।
पुरुष
प्राकृत भाषा में तीन पुरुष होते हैं-उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य पुरुष ।
प्राकृत रचना सौरम ]
2010_03
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________________
कारक
प्राकृत भाषा में पाठ कारक होते हैंविभक्ति
कारक कारक चिह्न (हिन्दी के प्राधार से) 1. प्रथमा
कर्ता 2. द्वितीया
कर्म 3. तृतीया
करण
से, द्वारा आदि 4. चतुर्थी
संप्रदान के लिए 5. पंचमी
अपादान 6. षष्ठी
सम्बन्ध
का, के, की 7. सप्तमी
अधिकरण में, पर 8. सम्बोधन
सम्बोधन हे, अरे, भो प्राकृत में चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति के लिए समान प्रत्यय हैं ।
क्रिया
प्राकृत भाषा में दो प्रकार की क्रियाएं होती हैं-अकर्मक और सकर्मक ।
काल
प्राकृत भाषा में सामान्यत: चार प्रकार के काल वरिणत हैं1. वर्तमानकाल
2. भूतकाल 3. भविष्यत्काल . 4. विधि एवं आज्ञा
प्राकृत भाषा में भूतकाल को व्यक्त करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग बहुलता से किया गया है।
शब्द
प्राकृत में चार प्रकार के शब्द पाए जाते हैं-- 1. अकारान्त ___2. आकारान्त 3. इकारान्त (इ, ई) 4. उकारान्त (उ, ऊ)
vi]
[ प्राकृत रचना सौरभ
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________________
पाठ 1
महं/हं/अम्मि =मैं क्रियाएं
हस-हँसना, रूस रूसना, जीव-जीना
सय=सोना, लुक्क-छिपना,
णच्च-नाचना जग्ग-जागना
वर्तमानकाल
हसमि/हसामि/हसेमि
= मैं हँसता हूँ/हंसती हूँ।
अम्मि
गच्चमि/णच्चामि/गच्चेमि
= मैं नाचता हूँ/नाचती हूँ।
अम्मि
हं अम्मि
लुक्कमि/लुक्कामि/लुक्केमि
= मैं छिपता हूँ/छिपती हूँ।
1. अहं/ह/अम्मि=मैं, उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। 2. वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में 'मि' प्रत्यय क्रिया में लगता है। "मि' प्रत्यय
लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'पा' और 'ए' भी हो जाता है । 3. कभी-कभी हसमि, हसामि आदि के स्थान पर हसं, गच्चं आदि रूप भी बनते हैं,
(हे. प्रा. व्या. 3-141)। 4. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं। अकर्मक क्रिया वह होती है जिसका कोई कर्म नहीं
होता और जिसका प्रभाव कर्ता पर ही पड़ता है। 'मैं हँसता हूँ'- इसमें हँसने का प्रभाव मैं' पर ही पड़ता है, अतः हँसने की क्रिया का कोई कर्म नहीं है। उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता अहं/ह/मम्मि के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और वचन हैं । यहाँ अहं/ह/अम्मि उत्तम पुरुष एकवचन है तो क्रियाएँ भी उत्तम पुरुष एकवचन में हैं ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
Page #19
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________________
पाठ 2
तुमं/तुं/तुह-तुम क्रियाएँ
हस-हँसना, रूस-रूसना, जीव-जीना
सय=सोना, लुक्क छिपना,
रगच्च =नाचना जग्ग-जागना
वर्तमानकाल
हससि/हससे/हसेसि
= तुम हँसते हो/हँसती हो ।
गच्चसि/गच्चसे णच्चेसि
= तुम नाचते हो/नाचती हो ।
लुक्कसि लुक्कसे/लुक्केसि
= तुम छिपते हो/छिपती हो ।
1. (i) तुमं/तुं/तुह=तुम, मध्यम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
___ (i) अर्धमागधी में तुम, तुं, तुमे का प्रयोग होता है, (पिशल प्रा.भा.व्या. पृष्ठ 617)। 2. (i) वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में 'सि', 'से' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं ।
___ 'सि' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'न' का 'ए' भी हो जाता है ।
(ii) यदि क्रिया के अन्त में 'प्र' नहीं हो तो 'से' प्रत्यय नहीं लगता है, (देखें पाठ 4)। 3. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं। 4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तवाच्य में हैं। इनमें कर्ता तुम/तुं/तुह के अनुसार क्रियाओं के
पुरुष और वचन हैं । यहाँ तुम/तुं/तुह मध्यम पुरुष एकवचन है तो क्रियाएं भी मध्यम पुरुष ------- * .
2
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
__ 2010_03
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
सो वह ( पुरुष ), सा वह (स्त्री)
क्रियाएँ
1.
2.
हस हँसना,
रूस
रूसना,
जीव = जीना
सो
सा
सो
सा
सो
सा
पाठ 3
= सोना,
सय
लुक्क = छिपना,
वर्तमानकाल
हसइ / हसाए / हसदि / हसदे /ह से इ/ह से दि
= वह हँसता है ।
हसइ / हस ए / सदि / हसदे / हसेइ / हसे दि
= वह हँसती है ।
गच्चइ / णच्चए / णच्चदि / णच्चदे / णच्चेइ / णच्चेदि
== वह नाचता है |
णच्चइ / णच्चए / णच्चदि / णच्चदे / णच्चेइ / गच्चेदि = वह नाचती है ।
लुक्कइ / लुक्कए/लुक्कदि/लुक्कदे/लुक्केइ/लुक्के दि
= वह छिपता है |
लुक्कइ/लुक्कए/लुक्क दि/लुक्कदे/लुक्केइ/लुक्के दि
= वह छिपती है ।
रगच्च नाचना
जग्ग= जागना
(i) सो= वह ( पुरुष ), सा - वह (स्त्री), अन्य पुरुष एकवचन ( पुरुषवाचक सर्वनाम ) |
(ii) स= वह ( पुरुष ) का भी प्रयोग होता है ।
(iii) श्रर्द्धमागधी में 'से' वह ( पुरुष ) का भी प्रयोग होता है, (पिशल, पृष्ठ 622 ) ।
=
2010_03
(i) वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में इ, ए, दि और दे प्रत्यय क्रिया में लगते हैं । 'इ' और 'दि' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है।
(ii) 'ए' और 'दे' प्रत्यय वर्तमानकाल की प्रकाशन्त क्रियाओं में ही लगते हैं । आकारान्त, प्रकारान्त, उकारान्त श्रादि क्रियाओं में 'ए' और 'दे' प्रत्यय नहीं
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 3
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
(iii) वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में 'ति' प्रत्यय का प्रयोग भी पाया जाता है - हसति / हसेति / गच्चति/रगच्चेति/लुक्कति / लुक्केति ।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
3.
लगते हैं । जैसे, ठा ठहरना, हो-होना, हु = होना, आदि क्रियाओं में ए और दे प्रत्यय नहीं लगेंगे (देखें पाठ - 4 ) ।
4 ]
2010_03
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 4
सो=वह (पुरुष) सा-वह (स्त्री)
अहं/हं/अम्मि =मैं, तुमं/तुं/तुह-तुम क्रियाएँ
ठा-ठहरना,
हो-होना
व्हानहाना,
वर्तमानकाल
ठामि
-मैं ठहरता हूँ/ठहरती हूँ।
अम्मि
होमि
=मैं होता हूँ/होती हूँ।
ठासि
=तुम ठहरते हो/ठहरती हो ।
होसि
=तुम होते हो/होती हो।
ठाइ/ठादि
ठाइ/ठादि होइ/होदि होइ/होदि
=वह ठहरता है। =वह ठहरती है। =वह होता है। =वह होती है।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
5
2010_03
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
अहं/हं/अम्मि=मैं, उत्तम पुरुष एकवचन । तुम/तुं/तुह=तुम, मध्यम पुरुष एकवचन सो=वह (पुरुष) ।
अन्य पुरुष एकवचन सा=वह (स्त्री)
पुरुषवाचक सर्वनाम एकवचन ।
2. (i) प्राकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन
में केवल 'सि' प्रत्यय ही लगता है, 'से' नहीं।
(ii) इसी प्रकार अन्य पुरुष एकवचन में केवल 'इ' व 'दि' प्रत्यय ही लगते हैं, 'ए'
और 'दे' प्रत्यय नहीं।
3. उयर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उयर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
6
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 5
अम्हे/वयं= हम दोनों/हम सब
क्रियाएं
हस-हंसना,
सय-सोना,
गच्च-नाचना
रूस-रूसना,
लुक्क छिपना,
जग्ग-जागना
जीव-जीना
वर्तमानकाल
हसमो/हसामो/हसिमो/हसेमो हसमुहसामु/हसिमुहसेमु हसम/हसाम/हसिम/हसेम
हम दोनों हंसते हैं/हँसती हैं । हम सब हंसते हैं/हँसती हैं ।
--
णच्चमो/णच्चामो/णच्चिमो/णच्चेमो णच्चमु/णच्चामु/गच्चिमुणच्चेमु णच्चमणच्चामणच्चिमणच्चेम
हम दोनों नाचते हैं/नाचती हैं । हम सब नाचते हैं नाचती हैं ।
--
लुक्कमो लुक्कामो/लुक्किमो/लुक्केमो लुक्कमु/लुक्कामु/लुक्किमु/लुक्केमु लुक्कम/लुक्काम/लुक्किम/लुक्केम
हम दोनों छिपते हैं छिपती हैं । =
हम सब छिपते हैं/छिपती हैं ।
1.
अम्हे/वयं = हम दोनों/हम सब, उत्तम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)।
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'मो, मु, म' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं । 'मो, मु, म' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'मा', 'इ' और 'ए' भी हो जाता है।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । यहाँ कर्ता उत्तम पुरुष बहुवचन में है । अत
क्रिया भी उत्तम पुरुष बहुवचन की ही लगी है ।
8
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 6
तुब्भे/तुम्हे/तुझे तुम दोनों/तुम सब
क्रियाएँ
सय=सोना,
रगच्च-नाचना
हस=हँसना, रूस रूसना, जीव=जीना
लुक्क-छिपना,
जग्ग=जागना
वर्तमानकाल
हसह/हसित्था/हसध हसेह/हसेइत्था/हसेघ
तुम दोनों हँसते हो/हँसती हो । तुम सब हँसते हो/हंसती हो।
ਰੂਮਲੇ
तुमे
णच्चह/च्चित्था/गच्चध | णच्चेह/णच्चेइत्था/णच्चेध
___ तुम दोनों नाचते हो/नाचती हो।
तुम सब नाचते हो/नाचती हो ।
EMEE
| लुक्कह/लुक्कित्था/लुक्कध
तुम दोनों छिपते हो/छिपती हो । तुम सब छिपते हो/छिपती हो ।
! लुक्केह/लुक्के इत्था/लुक्केध
तुझे
1. तुम्मे/तुम्हे/तुझे =. तुम दोनों/तुम सब, मध्यम पुरुष बहुवचन (पुरुष वाचक
सर्वनाम)।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
9
2010_03
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में है, इत्था और ध प्रत्यय क्रिया में लगते हैं और इनके लगने पर अन्त्य 'प्र' का 'ए' भी हो जाता है ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । यहाँ कर्ता मध्यम पुरुष बहुवचन में है अतः क्रिया भी मध्यम पुरुष बहुवचन की लगी है ।
10 1
2010_03
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 7
से वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता/तानो/ताउ=वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) क्रियाएं हस हंसना,
सय=सोना, रूस-रूसना,
लुषक=छिपना, जीव-जीव
गच्च-नाचना
जग्ग-जागना
वर्तमानकाल
हसन्ति/हसन्ते/हसिरे/हसेन्ति
वे दोनों हँसते हैं। वे सब हँसते हैं।
ता/तानो/ताउ
हसन्ति/हसन्ते/हसिरे/हसेन्ति
वे दोनों हंसती हैं। वे सब हँसती हैं।
20
णच्चन्ति/णच्चन्ते/णच्चिरे/णच्चेन्ति =
वे दोनों नाचते हैं। वे सब नाचते हैं।
ता/तानो/ताउ णच्चन्ति/णच्चन्ते/णच्चिरे/रणच्चेन्ति
=
वे दोनों नाचती हैं। वे सब नाचती हैं।
ते
लुक्कन्ति/लुक्कन्ते/लुक्किरे/लुक्केन्ति
=
वे दोनों छिपते हैं। वे सब छिपते हैं।
ता/तानो/ताउ लुक्कन्ति/लुक्कन्ते/लुक्किरे/लुक्केन्ति
=
वे दोनों छिपती हैं। वे सब छिपती हैं।
1. ते वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ___ता/तानो/ताउवे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ)
] अन्य पुरुष बहुवचन
(पुरुष वाचक सर्वनाम) ।
प्राकृत रचना सौरम ]
[
।
2010_03
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में 'न्ति', 'न्ते', 'इरे' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं। 'न्ति' प्रत्यय लगने पर अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । यहाँ कर्ता अन्य पुरुष बहुवचन में है अतः क्रिया
भी अन्य पुरुष बहुवचन की ही लगी है ।
12
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
अम्हे / वयं =
= हम दोनों / हम सब
तुम्भे / तुम्हे / तुज्के = तुम दोनों / तुम सब
क्रियाए
ठा ठहरना,
हे
वयं
म्हे
वयं
तुभे
तुम्हे
तुज्
तुभे
तुम्हे
तुझे
}
}
मोठा / ठाम
होमो / होम / होम
ठाह /ठा इत्था /ठाध
हो/होइत्था / हो
पाठ 8
प्राकृत रचना सौरभ ]
ते = वे दोनों ( पुरुष ) / वे सब ( पुरुष )
ता/ ताओ / ताउ = वे दोनों (स्त्रियां) / वे सब (स्त्रियाँ)
2010_03
व्हा=
नहाना,
वर्तमानकाल
=
-
हो = होना
हम दोनों ठहरते हैं / ठहरती हैं ।
हम सब ठहरते हैं / ठहरती हैं ।
हम दोनों होते हैं / होती हैं ।
हम सब होते हैं/ होती हैं ।
तुम दोनों ठहरते हो / ठहरती हो ।
तुम सब ठहरते हो / ठहरती हो ।
ठान्तिठन्ति / ठान्ते ठन्ते / ठाइरे = वे दोनों ठहरते हैं / वे सब ठहरते हैं । (नियम चार देखें)
तुम दोनों होते हो / होती हो ।
तुम सब होते हो / होती हो ।
ता/ ताश्रो / ताउ ठान्तिठन्ति / ठान्ते ठन्ते / ठाइरे = वे दोनों ठहरती हैं। वे सब ठहरती हैं ।
-
[ 13
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
होन्ति/होन्ते/होइरे
=वे दोनों होते हैं वे सब होते हैं ।
ता/तामो/ताउ होन्ति/होन्ते/होइरे
=वे दोनों होती हैं/वे सब होती हैं ।
!
1. अम्हे वयं
=हम दोनों/हम सब
उत्तम पुरुष बहुवचन
पुरुषवाचक
सर्वनाम
बहुवचन
तुम्भे
=तुम दोनों तुम सब मध्यम पुरुष बहुवचन तुझे ते =वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ]
अन्य पुरुष ता/तामो/ताउ =वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) | बहुवचन
2. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इनमें कर्ता के अनुसार क्रियाओं के पुरुष और
वचन हैं।
4. संयुक्ताक्षर के पहले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है, जैसे-ठान्ति-»ठन्ति ।
प्राकृत में अ, इ, उ, ए और प्रो स्वर ह्रस्व होते हैं और श्रा, ई, ऊ दीर्घ ।
5. वर्तमानकाल के प्रत्यय (पाठ 1 से 8 तक)
एकवचन
मि
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष अन्य पुरुष
सि, से इ, ए, दि, दे
बहुवचन मो, मु म है, इत्था , ध न्ति, न्ते, इरे
6. (i) वर्तमानकाल में अकारान्त क्रियाओं में तीनों पुरुषों (उत्तम, मध्यम, अन्य) के दोनों
वचनों (एकवचन व बहुवचन) में 'ज्ज', 'ज्जा' प्रत्यय भी लगाये जाते हैं। "ज्ज', 'ज्जा' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है जैसे--- हस+ज्ज-हसेज्ज, हस+ज्जा=हसेज्जा ।
14 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
अहं/ह/अम्मि अम्हे/वयं
=मैं हंसता हूँ/हँसती हूँ। =हम हंसते हैं/हंसती हैं।
तुमं/तुं/तुह तुमे/तुम्हे/तुझे
=तुम हँसते हो/हँसती हो । तुम सब हँसते हो/हँसती हो ।
हसेज्ज/हसेज्जा
=वह हंसता है। =वह हंसती है।
=वे (सब) हँसते हैं । =वे (सब) हँसती हैं।
ता/तामो/ताउ
(ii) आकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियाओं में भी वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों के दोनों
वचनों में ज्ज, ज्जा प्रत्यय लगाये जाते हैंहो+ज्ज, ज्जा होज्ज/होज्जा पहा-+ज्ज,ज्जा =ण्हाज्ज/हाज्जा ठा+ज्ज, ज्जा=ठाज्ज/ठाज्जा
(iii) प्राकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में 'प्र' विकरण जोड़कर भी ज्ज, ज्जा प्रत्यय
जोड़े जाते हैं । इनके जोड़ने पर वर्तमानकाल में अन्त्य 'म' का 'ए' हो जाता हैठा+अठा-ठाएज्ज/ठाएज्जा हो+अ=होहोएज्ज/होएज्जा पहा+अ=ण्हाअ→ण्हाएज्ज/हाएज्जा
प्राकृत रचना सौरभ 1
[
15
2010_03
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 9
अहं/हं/अम्मि
=मैं
णच्च-नाचना
क्रियाएँ
हस हँसना, रूस= रूसना, जीव जीना
सय सोना, लुक्क छिपना,
जग्ग=जागना
विधि एवं प्राज्ञा
हं
हसमुहसामु/हसिमु/हसेमु
==मैं हंसू।
हं
ण च्चमु/णच्चामु/णच्चिमु/रणच्चेमु
=मैं नाचूं ।
हं
लुक्कमु लुक्कामु/लुक्किमु/लुक्केमु
=मैं छिपूं ।
अम्मि
1.
अहं/ह/अम्मि= मैं
उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
2. जब किसी कार्य के लिए प्रार्थना की जाती है अथवा आज्ञा एवं उपदेश दिया जाता है
तो इन भावों को प्रकट करने के लिए विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय क्रिया में लगाये जाते हैं।
16 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
3.
(i) विधि एवं प्रज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन में 'भु' प्रत्यय क्रिया में लगता है। मु' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ', 'इ' और 'ए' भी हो जाता है ।
(ii) श्रर्द्धमागधी में विधि के उत्तम पुरुष एकवचन के लिए 'एज्जा' और 'एज्जामि' प्रत्यय लगाकर 'हंस' के रूप बनेंगे 'हसेज्जा' 'हसेज्जामि' (पिशल, पृष्ठ 680 ) ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
[ 17
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 10
तुम/तुं/तुह-तुम
क्रियाएँ
हस-हँसना, रूस रूसना, जीव-जीना
सय=सोना, लुक्क छिपना,
गच्च-नाचना जग्ग=जागना
विधि एवं प्राज्ञा ] हसहि/हससु/हसधि/हस
हसेहि/हसेसु/हसेधि j हसेज्जसु/हसेज्जहि/हसेज्जे
= तुम हँसो।
1 णच्चहि/गच्चसु/रणच्चधि/णच्च
णच्चेहि णच्चेसुणच्चेधि jणच्चेज्जसु/णच्चेज्जहि/णच्चेज्जे
= तुम नाचो।
] लुक्कहि/लुक्कसु/लुक्कघि/लुक्क
लुक्केहि/लुक्केसु/लुक्केधि Jलुक्केज्जसु/लुक्केज्जहि/लुक्केज्जे
= तुम छिपो।
1. (i) तुम/तुं/तुह-तुम, मध्यम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
(ii) अर्द्धमागधी में तुम, तं, तुमे का प्रयोग होता है, (पिशल, प्रा.भा.व्या. पृष्ठ 617)। 2. (i) विधि एवं प्राज्ञा के मध्यम पुरुष एकवचन में हि, सु, ०, इज्जसु, इज्जहि, इज्जे
तथा धि प्रत्यय क्रिया में लगते हैं और हि, सु, और धि प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है । इज्जसु, इज्जहि तथा इज्जे प्रत्यय लगने पर प्र+इ=ए हो जाता है ।
(ii) शून्य प्रत्यय (०) तथा इज्जसु, इज्जहि, इज्जे प्रत्यय प्रकारान्त क्रियाओं में ही
लगते हैं । आकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियाओं में उपर्युक्त प्रत्यय नहीं लगते।
18 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
(iii) अर्द्धमागधी में विधि के मध्यम पुरुष एकवचन के लिए एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि
प्रत्यय लगकर 'हस' के रूप बनेंगे-हसेज्जा, हसेज्जासि, हसेज्जाहि (पिशल, पृष्ठ
681,682)। 3. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
प्राकृत रचना सौरम 1
[ 19
____ 2010_03
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 11
सो-वह (पुरुष), सा=वह (स्त्री)
क्रियाएँ
गच्च-नाचना
हस=हँसना, रूस रूसना, जीव-जीना
सय=सोना, लुक्क=छिपना,
जग्ग-जागना
विधि एवं प्राज्ञा
=वह हंसे ।
वह हँसे ।
=वह नाचे ।
सो हसउ/हसेउ/हसदु/हसेदु
हसउ/हसेउ/हसदु/हसेदु णच्चउ/णञ्चेउ/णच्चदु/पञ्चेदु
णच्चउ/णच्चेउ/गच्चदु/णच्चेदु ____ लुक्कउ/लुक्केउ/लुक्कदु/लुक्केदु सा लुक्कउ/लुक्केउ/लुक्कदु/लुक्केदु
=वह नाचे ।
वह छिपे ।
=वह छिपे।
1.
(i) मो= वह (पुरुष), सा=बह (स्त्री), अन्य पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक
सर्वनाम)।
(ii) स=वह (पुरुष) का भी प्रयोग होता है ।
(iii) अर्द्धमागधी में 'से' =वह ( पुरुष ) का भी प्रयोग होता है, (पिशल, पृष्ठ
622) ।
2. (i) विधि एवं प्राज्ञा के अन्य पुरुष एकवचन में 'उ' और 'दु' प्रत्यय क्रिया में
लगते हैं ।
20
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
__ 2010_03
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ii) अर्धमागधी में विधि के अन्य पुरुष एकवचन के लिए 'ए', 'एज्जा' प्रत्यय
लगाकर 'हस' के रूप में बनेंगे-हसे, हसेज्जा (पिशल, पृष्ठ 683-684)।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
प्राकृत रचना सौरम ]
[
21
___ 2010_03
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 12
सो वह (पुरुष), सा-वह (स्त्री)
अहं/हं/अम्मि =मैं, तुमं/तुं/तुह=तुम क्रियाएँ
ठाठहरना,
हो होना
हा=नहाना, विधि एवं प्राज्ञा
हं
ठामु
-मैं ठहरूं।
हं
होमु
=मैं होऊँ।
/ठासु/ठाधि
==तुम ठहरो।
होहि/होसु/होधि
-तुम होवो।
ठाउ/ठादु
ठाउ/ठादु होउ/होदु होउ/होदु
=वह ठहरे (पुरुष)। -वह ठहरे (स्त्री)। =वह होवे । =वह होवे ।
22 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
अहं/हं/अम्मि =मैं, उत्तम पुरुष एकवचन तुमं/तुं/तुह=तुम, मध्यम पुरुष एकवचन सो-वह (पुरुष) ।
पुरुषवाचक सर्वनाम एकवचन ।
सा=वह (स्त्री)
अन्य पुरुष एकवचन
2. (i) अर्द्धमागधी में विधि के रूप होंगे
उत्तम पुरुष एकवचन ठाएज्जा, ठाएज्जामि, होज्जा, होज्जामि मध्यम पुरुष एकवचन ठाएज्जा, ठाएज्जासि, ठाएज्जाहि, होज्जा,
होज्जासि, होज्जा अन्य पुरुष एकवचन ठाएज्जा, होज्जा
(ii) अर्द्धमागधी में प्राकारान्त क्रिया में एज्जा आदि प्रत्यय लगते हैं, परन्तु ओकारान्त,
एकारान्त क्रियाओं में एज्जा का 'ए' हटा दिया जाता है (घाटे, पृष्ठ 129)।
(iii) आकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियाओं के मध्यम पुरुष एकवचन में केवल 'हि,
सु, घि' प्रत्यय ही लगते हैं, इज्जसु, इज्जहि, इज्जे नहीं।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
प्राकृत रचना सौरभ
[ 23
2010_03
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 13
अम्हे/वयं हम दोनों/हम सब क्रियाएँ
हस हंसना, रूस-रूसना, जीव-जीना
सय=सोना, लुक्क छिपना,
गच्च=नाचना जग्ग-जागना
विधि एवं प्राज्ञा
अम्हे ) . । हसमो/हसामो/हसेमो
ca-
हम दोनों हंसें। हम सब हंसें।
-
अम्हे )
। णच्चमो/णच्चामो/णच्चेमो
हम दोनों नाचें । हम सब नाचें ।
वयं
।
अम्हे ।
लुक्कमो/लुक्कामो/लुक्केमो
हम दोनों छिपें । हम सब छिपें ।
वयं
।
-
1. अम्हे/वयं आदि हम दोनों/हम सब, उत्तम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम)। 2. (i) विधि एवं प्राज्ञा के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'मो' प्रत्यय क्रिया में लगता है ।
'मो' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'प्रा' और 'ए' भी हो
जाता है। (ii) प्रर्द्धमागधी में विधि के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'इज्जाम' प्रत्यय लगाकर 'हस' का
रूप बनेगा 'हसेज्जाम' (घाटे, पृष्ठ 129) । 3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं । 4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
24 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुम्भे / तुम्हे / तुझे = तुम दोनों / तुम सब
क्रियाएँ
1.
हस हँसना,
==
रूस = रूसना,
जीवजीना
तुब्भे
तुम्हे
तुझे
तुभे
तुम्हे
तुझे
तुब्भे
तुम्हे
तुझे
हसह / हसघ / हसे ह / हसेध
तुम्भे / तुम्हे / तुज् सर्वनाम ) |
पाठ 14
गच्चह / गच्चघ / णच्चेह / णच्चेध
प्राकृत रचना सौरभ ]
सय = सोना,
लुक्क = छिपना,
लुक्कह/ लुक्कध / लुक्केह / लुक्केध
2010_03
विधि एवं प्राज्ञा
=
तुम दोनों / तुम सब
=
=
गच्च == नाचना
जग्ग= जागना
तुम दोनों हँसो ।
तुम सब हँसो ।
तुम दोनों नाचो |
तुम सब नाचो |
तुम दोनों छिपो ।
तुम सब छिपो ।
मध्यम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक
[ 25
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
2.
(ii) अर्द्धमागधी में विधि के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'एज्जाह' प्रत्यय लगाकर 'हस' का रूप बनेगा – 'हसेज्जाह' (घाटे, पृष्ठ 129 ) ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
4.
(i) विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष बहुवचन में 'ह' और ' प्रत्यय क्रिया में लगते हैं । 'ह' और 'घ' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है ।
26 ]
2010_03
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 15
से वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता/तानो/ताउ=वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ) क्रियाएं हस-हँसना,
सय=सोना, रूस=रूसना,
लुक्क छिपना, जीव-जीव
गच्च-नाचना
जग्ग-जागना
विधि एवं प्राज्ञा
हसन्तु/हसेन्तु
वे दोनों हँसें वे सब हँसें।
ता/तामोताउ हसन्तु/हसेन्तु
वे दोनों हँसें/ वे सब हँसें ।
ते
णच्चन्तु/णच्चेन्तु
वे दोनों नाचें बे सब नाचें।
ता/तानो/ताउ णचन्तु/गच्चन्तु
वे दोनों नाचें। वे सब नाचें।
ते
ते
सुमन्तु उसकेन्तु
लुक्कन्तु/लुक्केन्तु
वे दोनों छिपें। वे सब छिपें ।
ता/तामो/ताउ लुक्कन्तु लुक्केन्तु
वे दोनों छिपें। वे सब छिपें ।
1. तेवे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष)
7 अन्य पुरुष बहुवचन ता/तानो/ताउ=वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियां) - (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
! 27
2010_03
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
2. (i) विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष बहुवचन में 'न्तु' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'न्तु'
प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'म' का 'ए' भी हो जाता है ।
(ii) अर्द्धमागधी में विधि के अन्य पुरुष बहुवचन में एज्जा प्रत्यय लगाकर हस का रूप
बनेगा--हसेज्जा (घाटे, पृष्ठ 129) ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी बास्य कर्तृवाच्य में हैं ।
28 ]
प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
अम्हे / वयं = हम दोनों / हम सब
तुम्भे / तुम्हे / तुज्के = तुम दोनों / तुम सब
क्रियाएँ
ठा ठहरना,
हे
वयं
हे वयं
意念
तुझे
तुम्हे तुझे
ते
ठामो
होमो
ठाह /ठाघ
हो हो
ठान्तु ठन्तु
ता/ ताओ / ताउ ठान्तु ठन्तु
→
होन्तु
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
पाठ 16
ते = वे दोनों ( पुरुष ) / वे सब ( पुरुष )
ता/ ताओ / ताउ = वे दोनों (स्त्रियाँ ) / वे सब (स्त्रियाँ)
पहा = नहाना,
विधि एवं श्राज्ञा
=
=
—
हम दोनों ठहरें ।
हम सब ठहरें |
=
हम दोनों होवें !
हम सब होवें ।
तुम दोनों ठहरो ।
तुम सब ठहरो ।
तुम दोनों होवो |
तुम सब होवो |
वे दोनों ठहरें / वे सब ठहरें ।
वे दोनों ठहरें / वे सब ठहरें ।
= वे दोनों होवें / वे सब होवें ।
हो होना
[ 29
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
ता/तानो/ताउ
होन्तु
=वे दोनों होवें वे सब होवें ।
1. अम्हे
=हम दोनों/हम सब
उत्तम पुरुष बहुवचन
वयं
पुरुषवाचक
।
तुम्भे तुम्हे
सर्वनाम
=तुम दोनों/तुम सब
मध्यम पुरुष बहुवचन
तुझे
बहुवचन
]
ते =वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता/तानो/ताउ =वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ)
अन्य पुरुष बहुवचन
)
2. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ प्रकर्म क हैं ।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
4. संयुक्ताक्षर के पहले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है, जैसे-ठान्तु+ठन्तु । प्राकृत में श्रा, ई और ऊ दीर्घ स्वर होते हैं और अ, इ, उ, ए, पो ह्रस्व स्वर होते हैं ।
बहुवचन
5. विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय (पाठ 9 से 16 तक)
एकवचन उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष
हि, सु, धि, ०
इज्जसु, इज्जहि, इज्जे अन्य पुरुष
उ, दु 6. (i) अर्धमागधी विधि के प्रत्यय
एकवचन उत्तम पुरुष
एज्जा, एज्जामि मध्यम पुरुष
एज्जा, एज्जासि, एज्जाहि अन्य पुरुष
ए, एज्जा
बहुवचन एज्जाम एज्जाह एज्जा (घाटे, पृष्ठ 129) (पिशल, पृष्ठ 675)
30
1
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
6. (ii) अर्द्धमागधी में ( विधि में )
उत्तम पुरुष बहुषचन
मध्यम पुरुष बहुवचन
अन्य पुरुष बहुवचन
श्राकारान्त क्रिया में 'एज्जाम' आदि लगते हैं किन्तु श्रोकारान्त, एकारान्त क्रियानों में 'ए' हटा दिया जाता है ( घाटे, पृष्ठ 129 ) ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
ठाएज्जाम, होज्जाम ठाएज्जाह, होज्जाह
एज्जा, होज्जा
2010_03
[ 31
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 17
बहुवचन अम्हे वयं हम दोनों/हम सब । तुभे/तुम्हे तुझे तुम दोनों/तुम सब ते=वे दोनों/वे सब (पुरुष) ते/तानो/ताउ-वे दोनों/वे सब (स्त्रियाँ)
एकवचन अहं/ह अम्मि -मैं, तुमं/तुं/तुह-तुम, सो-वह (पुरुष), सा-वह (स्त्री), क्रियाएँ
हस हंसना, रूस रूसना, जीव-जीना
सय =सोना, लुक्क-छिपना,
णच्च-नाचना जग्ग=जागना
भूतकाल
हं
हसीन
==मैं हँसा।
हसीन
= तुम हँसे ।
=वह हंसा ।
हसीन हसीन
=वह हँसी।
ra
हसीन
-हम दोनों हम सब हँसे ।
हसीन
=तुम दोनों/तुम सब हँसे ।
32 }
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
हसीन
= वे दोनों हँसे/वे सब हँसे ।
तानो
हसीन
=वे दोनों हँसी/वे सब हँसी ।
ताउ
1.
भूतकाल के उत्तम पुरुष एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'ई' प्रत्यय प्रकारान्त क्रिया में लगता है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
4. अर्द्धमागधी में अकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियानों में सभी पुरुषों और सभी वचनों में
'इत्था' और 'इंसु' प्रत्यय जोड़कर भूतकाल बनाया जाता है। जैसे—हसित्था/हसिंसु, णच्चित्था/पच्चिसु, (पिशल, पृष्ठ 752-53), (घाटे, पृष्ठ 112)।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 33
2010_03
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 18
एकवचन अहं/हं/अम्मि =मैं, तुम/तुं/तुह =तुम, सो=वह (पुरुष), सा=वह (स्त्री),
बहुवचन अम्हे/वयं= हम दोनों/हम सब तुब्भे/तुम्हे/तुझे तुम दोनों/तुम सब ते वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता/तायो/ताउ=वे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ)
क्रियाएँ
ठा-ठहरना,
व्हानहाना,
हो होना
भूतकाल
ठासी/ठाही/ठाहीन होसी/होही होहीम
= मैं ठहरा। == मैं हुआ ।
अम्मि
ठासी/ठाही/ठाहीन होसी होही/होहीम
= तुम ठहरे। = तुम हुए।
ठासी/ठाही/ठाहीन
=वह ठहरा।
ठासी/ठाही/ठाहीन
= वह ठहरी।
होसी/होही/होहीम
= वह हुआ।
होसी/होही/होहीम
=वह हुई।
1 ठासी/ठाही/ठाहीन । होसी/होही/होहीम
= हम दोनों ठहरे हम सब ठहरे । = हम दोनों हुए हम सब हुए।
34 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
ठासी/ठाही/ठाहीन होसी/होही/होहीन
==तुम दोनों ठहरे/तुम सब ठहरे । =तुम दोनों हुए/तुम सब हुए।
.. तुझे
ठासी/ठाही/ठाहीन
= वे दोनों ठहरे/वे सब ठहरे ।
20
होसी/होही/होहीम
= वे दोनों हुए/वे सब हुए।
ता
तामो
। ठासी/ठाही/ठाहीन । होसी/होही/होहीम
=वे दोनों ठहरी/वे सब ठहरी । =वे दोनों हुई/वे सब हुई।
ताउ
भूतकाल के उत्तम पुरुष एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन तथा अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में प्राकारान्त, प्रोकारान्त प्रादि क्रियाओं में सी, ही, होम प्रत्यय लगते हैं।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । ___ (i) अर्द्धमागधी में अकारान्त, प्राकारान्त, प्रोकारान्त क्रियाओं में सभी पुरुषों और
सभी वचनों में इत्था और इंसु प्रत्यय जोड़कर भूतकाल बनाया जाता है, जैसे-ठाइत्था/ठाइंसु, होइत्था/होइंसु, (पिशल, पृष्ठ 752-753; घाटे,
पृष्ठ 112)। (ii) इनके अतिरिक्त होत्था हुआ, प्राइंसु कहा, का प्रयोग भी मिलता है,
(पिशल, पृष्ठ 755)।
कुछ अन्य रूप
उत्तम पुरुष एकवचन प्रकरिस्सं=किया
अन्य पुरुष एकवचन प्रकासी-किया (अन्य रूपों के लिए देखें पिशल, पृष्ठ 751-753) ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 35
___ 2010_03
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 19
अहं/हं/अम्मि=मैं
एगच्च-नाचना
क्रियाएँ
हस हँसना, रूस रूसना, जीव=जीना
सय=सोना, लुक्क छिपना,
जग्ग=जागना
भविष्यत्काल
अहं
। हसिहिमि/हसिस्सामि/हसिहामि हसिस्सिमि
हसेहिमि/हसेस्सामि/हसेहामि , हसिस्सं हसेस्सं
=मैं हँसूंगा/हसूंगी।
अम्मि
। णच्चिहिमि/णच्चिस्सामि/णच्चिहामिणच्चिस्सिमि । णच्चेहिमि/गच्चेस्सामिणच्चेहामि णच्चिस्स/णच्चेस्सं
=मैं नाचूंगा नाचूंगी।
है अम्मि
। लुक्किहिमि/लुक्किस्सामि/लुक्किहामि लुक्किस्सिमि लुक्केहिमि/लुक्केस्सामि/लुक्केहामि
= मैं छिपूंगा/छिपूंगी। - लुक्किस्सं लुक्केस्
1.
अहं/हं/अम्मि=मैं उत्तम पुरुष एकवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
2. (i) भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष एकवचन में हि, स्सा, हा, सिस, स्सं प्रत्यय क्रिया में
जोड़े जाते हैं । हि, स्सा, सि, हा प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का प्रत्यय 'मि' भी जोड़ दिया जाता है। 'स' प्रत्यय के साथ 'मि' नहीं जोड़ा जाता ।
36 1
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ii) हि, स्सा, स्सं और हा प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ'
और 'ए' हो जाता है।
(iii) 'सि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है (हे. प्रा. व्या ,
4-275) ।
3. (i) सोच्छ=सुनना,
मोच्छ-छोड़ना, वेच्छ-जानना, भोच्छ खाना
रोच्छ=रोना, वोच्छ= कहना, दच्छ-देखना,
गच्छ=जाना छेच्छ=छेदना भेच्छ= भेदना
उपर्युक्त क्रियाओं में उत्तम पुरुष एकवचन के रूप बनते हैंसोच्छं = (मैं) सुनूँगा, मोच्छं = (मैं) छोडूंगा, वोच्छ=(मैं) कहूँगा गच्छं= (मैं) जाऊँगा, वेच्छं=(मैं) जानूंगा, छेच्छं= (मैं) छेदूंगा भोच्छं=(मैं) खाऊँगा, दच्छं =(मैं) देखूगा, भेच्छं=(मैं) भेदूंगा रोच्छ = (मैं) रोऊँगा।
(ii) सोच्छ, गच्छ प्रादि क्रियाओं में भविष्यत्काल के हि: प्रत्यय का लोप करके
केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं, अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है। सोच्छ+ मि=सोच्छिमि/सोच्छेमि= मैं सुनूंगा । कभी-कभी सोच्छिहिमि आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या., 3-172) ।
(iii) भविष्यकाल में उत्तम पुरुष एकवचन में काहं = (मैं) करूँगा, दाह= (मैं) दूंगा,
प्रयोग भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त 'का' और 'दा' के रूप उपर्युक्त प्रकार से भी बनते हैं - काहिमि/दाहिमि आदि ।
अर्द्धमागधी में सोच्छ, गच्छ रोच्छ आदि उययुक्त क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'मि प्रत्यय जोड़ देने से भविष्यत्काल के रूप बनते हैं—सोच्छाभि=सुनूंगा, वोच्छामि= कहूँगा, रोच्छामि=रोऊँगा आदि । इनके अतिरिक्त भोक्खामि= (मैं) खाऊँगा, होक्खामि होऊँगा, पेक्खामि देखूगा आदि रूप भी अर्द्धमागधी में बनते हैं (घाटे, पृष्ठ 121)।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
37
2010 03
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुमं / तुं / तुह = तुम
क्रियाएँ
1.
हँस हँसना,
रूस
रूसना, जीव = जीना
तुमं
तुं
तुह
2.
तुमं
तुं
तुह
तुम
तुं
तुह
पाठ 20
सय= सोना,
लुक्क = छिपना,
38 ]
भविष्यत्काल
हसि हिसि / हमिहि हरिस्ससि / हसिस्स से हसिसिसि / हसिस्सिसे
चिहिसि / राच्चिहिसे च्चिस सि/च्चिस्स से पच्चिस्सिसि / पच्चिस्सिसे
लुक्क हिसि / लुक्कि हिसे लुक्रिससि / लुकिकस्स से लुक्कस्सिसि / लुक्किस्सिसे
2010_03
=
=
=
गच्च नाचना जग्ग= जागना
तुम हँसोगे / हँसोगी।
(i) तुमं / तुं / तुह = तुम, मध्यम पुरुष एकवचन ( पुरुषवाचक सर्वनाम ) |
(ii) अर्द्धमागधी में तुमं, तुं तुमे का प्रयोग होता है, (पिशल, प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 617 ) ।
तुम नाचोगे / नाचोगी ।
(i) भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष एकवचन में हि', 'स्स' और प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं । इनको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के प्रत्यय 'सि' और 'से' भी जोड़ें जाते हैं ।
तुम छिपोगे / छिपोगी ।
(ii) 'हि' और 'स्स' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य '' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । ऊपर केवल 'इ' के उदाहरण ही दिये गए हैं, 'ए' के उदाहरण इस प्रकार होंगे -- हसे हिसि / हसे हिसे, हसेस्स सि / हसेस्स से |
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
(iii) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है ।
(iv) बेचरदास जी ने 'प्राकृत मार्गोपदेशिका' में मध्यम पुरुष एकवचन आदि में 'स्स'
प्रत्यय भी माना है (पृष्ठ 249)। पिशल ने भी 'स्स' प्रत्यय दिया है - गमिस्ससि (पृष्ठ 761) ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. (i) मोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप
करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है । जैसे—सोच्छिसि/सोच्छेसि= (तुम) सुनोगे । सोच्छिहिसि आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या., 3-172)।
(ii) अर्द्धमागधी में सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का
'सि' प्रत्यय जोड़ देने से भविष्यत्काल के रूप बन जाते हैं, जैसे—सोच्छसि, रोच्छसि, वोच्छसि आदि (घाटे, पृष्ठ 121)।
प्राकृत रचना सौरभ 1
[
39
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Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 21
सो-वह (पुरुष), सा=वह (स्त्री)
क्रियाएँ
हस-हँसना, रूस-रूसना, जीव-जोना
सय= सोना, लुक्क छिपना.
गच्च-नाचना जग्ग-जागना
भविष्यत्काल
हसिहिइ/हसिहिए/हसिहिदि/हसि हिदे । हसिस्सइ/हसिस्सए/हसिस्सदि/हसिस्सदे । हसिस्सिदि/हसिस्सिदे
-वह हंसेगा ।
हसिहिइ/हसिहिए/हसिहिदि/हसिहिदे हसिस्स इ/हसिस्सए/हसिस्सदि/हसिस्सदे ह सिस्सिदि/हसिस्सिदे
-वह हंसेगी।
णच्चिहिइ/पच्चिहिएणच्चिहिदि/णच्चिहिदे णच्चिस्स इणच्चिस्सिएणच्चिस्सदि/पच्चिस्सदे =वह नाचेगा । णच्चिस्सिदि/णच्चिस्सिदे
सा
णच्चिहिइणच्चिहिए णच्चिहिदि/णच्चिहिदे णच्चिस्सइणच्चिस्सए/णच्चिस्सदि/णच्चिस्सदे पच्चिस्सिदि/णच्चिस्सिदे
=वह नाचेगी।
1.
(i) सो=वह (पुरुष), सा=वह (स्त्री),
(पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
अन्य पुरुष एकवचन
40 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
(ii) स=वह (पुरुष) का भी प्रयोग होता है ।
(iii) अर्द्धमागधी में से वह (पुरुष) का भी प्रयोग होता है, (पिशल, पृष्ठ 625) ।
2. (i) भविष्यकाल में अन्य पुरुष एकवचन में हि, स्स, स्सि प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते
हैं । इनको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के प्रत्यय इ, ए, दि दे जोड़े जाते हैं।
(ii) कभी-कभी भविष्यत्काल के प्रत्यय हि, स्स, स जोड़ने के पश्चात् "दि' प्रत्यय
भी जोड़ दिया जाता है ।
(iii) हि, स्स प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए'
हो जाता है। ऊपर केवल 'इ' के रूप ही दिए गए हैं।
(vi) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर 'दि' और 'दे' प्रत्यय ही जोड़े जाते हैं और
क्रिया के अन्त्य 'अ' का इ' ही होता है ।
(v) बेचरदास जी ने 'प्राकृत मार्गोपदेशिका' में अन्य पुरुष एकवचन में 'स्स' प्रत्यय भी
माना है (पृ. 245) । पिशल ने भी 'स्स' प्रत्यय दिया है (भविस्सदि, पृष्ठ 755; मरिस्सइ पृष्ठ 760)।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. (i) सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप
करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है । जैसे-सोच्छिइ/सोच्छेइ आदि=वह सुनेगा । सोच्छिहिइ आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या. 3-172) ।
(ii) अर्द्धमागधी में सोच्छ, गच्छ, रोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'इ' प्रत्यय
जोड़ देने से भविष्यत्काल का रूप बन जाता है जैसे - सोच्छइ/रोच्छइ आदि ।
प्राकृत रचना सौरभ ।
[ 41
__ 2010_03
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 22
अहं/हं/अम्मि =मैं तुमं/तुं/तुह=तुम
सो=वह (पुरुष) सा=वह (स्त्री)
क्रियाएँ
ठा-ठहरना,
ण्हा=नहाना,
हो होना
भविष्यत्काल
हं
ठाहिमि/ठास्सामि/ठाहामि/ठास्सिमि/ठारसं = मैं ठहरूंगा/ठहरूँगी।
अम्मि
होहिमि/होस्सामि/होहामि/होस्सिमि/होस्सं =मैं होऊंगा/होऊँगी ।
अम्मि
ठाहिसि ठास्सिसि/ठास्ससि
=तुम ठहरोगे/ठहरोगी।
होहिसि/होस्सिसि होस्ससि
=तुम होयोगे/होमोगी।
ठाहिइ/ठाहिदि/ठास्सइ/ठास्सदि/ठास्सिदि =वह ठहरेगा।
ठाहिइ/ठाहिदि/ठास्सइ/ठास्सदि/ठास्सिदि =वह ठहरेगी।
होहिइ/होहिदि/होस्सइ/होस्सदि/होस्सिदि =वह होवेगा। होहिइ/होहिदि/होस्सइ/होस्सदि/होस्सिदि = वह होवेगी।
42 ]
[ प्राकृत रचना सौरम
___ 2010_03
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
अहं/ह/अम्मि=मैं, उत्तम पुरुष एकवचन तुमं/तुं/तुह=तुम, मध्यम पुरुष एकवचन सो=वह (पुरुष) ) सा=वह (स्त्री) अन्य पुरुष एकवचन
पुरुषवाचक सर्वनाम एकवचन ।
2. (i) अकारान्त क्रियाओं को छोड़कर आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के मध्यम
पुरुष एकवचन में 'से' प्रत्यय नहीं लगता है।
(ii) इसी प्रकार अन्य पुरुष एकवचन में 'ए' और 'दे' प्रत्यय नहीं लगते। ये प्रत्यय
(से, ए, दे) केवल भविष्यत्काल की प्राकारान्त क्रियाओं में ही लगते हैं ।
(iii) भविष्यत्काल के अन्य पुरुष एकवचन में 'स्सि' प्रत्यय के साथ केवल 'दि' प्रत्यय
ही लगेगा।
(iv) मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष में 'स्स' प्रत्यय पिशल (प्रा. भा. व्या., पृष्ठ 760)
और पं. बेचरदास जी ने (प्राकृत मार्गोपदेशिका, पृष्ठ 249) स्वीकार किया है।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं । 4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
प्राकृत रचना सौरभ 1
143
___ 2010_03
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 23
अम्हे/वयं हम दोनों/हम सब
गच्च =नाचना
क्रियाएँ
हस हंसना, रूस= रूसना, जीवजीना
सय=सोना, लुक्क-छिपना,
जग्ग=जागना
भविष्यत्काल । हसिहिमो/हसिहिमु/हसिहिम
हसिस्सामो/हसिस्सामु/हसिस्साम हसिस्सिमो/हसिस्सिमु/हसिस्सिम j हसिहामो/हसिहामु/हसिहाम
| हम दोनों हँसेंगे हंसेंगी।
हम सब हँसेंगे/हसेंगी।
। णच्चिहिमो/णच्चिहिमुणच्चिहिम
गाच्चिस्सामो/णच्चिस्सामु/णच्चिस्साम ! हम दोनों नाचेंगे/नाचेंगी। णच्चिस्सिमो/णच्चिस्सिमुणच्चिस्सिम
__ हम सब नाचेंगे/नाचेंगी। णच्चिहामो/णच्चिहामुणच्चिहाम ।
|
] लुक्किहिमो/लुक्किहिमु/लुक्किहिम ! लुक्किस्सामो लुक्किस्सामु लुक्किस्साम
लुक्किस्सिमो/लुक्किस्मिमु/लुक्किस्सिम । | लुक्किहामो लुक्किहामु/लुक्किहाम
हम दोनों छिपेंगे/छिपेंगी। हम सब छिपेंगे/छिपेंगी।
1.
अम्हे वयं हम दोनों/हम सब उत्तम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
2.
(i) भविष्यत्काल के उत्तम पुरुष बहुवचन में 'हा', 'हि', 'स्सा', 'सि' प्रत्यय क्रिया में
जोड़े जाते हैं । इनको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन के
प्रत्यय मो, मु, म भी जोड़ दिये जाते हैं । (i) हा, हि, स्सा प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और
'ए' हो जाता है । (ऊपर केवल 'इ' के ही रूप दिए गए हैं)।
44 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
(iii) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है । (iv) 'हिस्सा' और 'हित्था' स्वतन्त्र रूप से जोड़े जाते हैं-हसिहिस्सा और हसिहित्था।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप करके
केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है- सोच्छिमो/सोच्छिमुसोच्छिम, सोच्छेमो/सोच्छेमु/सोच्छेम । सोच्छिहिमो आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या., 3-172)।
अर्धमागधी में रोच्छ, सोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का मो प्रत्यय जोड़ देने से भविष्यत्काल का रूप बन जाता है, जैसे-वोच्छामो, सोच्छामो आदि (घाटे, पृष्ठ 121)।
प्राकृत रचना सौरभ
[ 45
___ 2010_03
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 24 तुम्भे तुम्हे तुज्झ=तुम दोनों/तुम सब
रगच्च-नाचना
क्रियाएँ
हस-हँसना, रूस= रूसना, जीव-जीना
सय=सोना, लुक्क छिपना,
- जग्ग=जागना
भविष्यत्काल । हसिहिह/हसिहिध/हसिहित्था
हसिस्सह हसिस्सध/हसिस्स इत्था ___हसिस्सिह/हसिस्सिध/हसिस्सिइत्था
=तुम दोनों हँसोगे। है सोगी। =तुम सब हंसोगे हँसोगी।
तुभे तुम्हे
) णच्चिहिह/णच्चिहिध/णच्चिहित्था
___=तुम दोनों नाचोगे/नाचोगी णच्चिस्सह/णच्चिस्सध/णच्चिस्सइत्था
=तुम सब नाचोगे/नाचोगी ___jणच्चिस्सिह/णच्चिस्सिध/णच्चिस्सिइत्था
तुम्मे
तुम्हे
, लुक्किहिह लुक्किहिध/लुक्किहिइत्था
____ =तुम दोनों छिपोगे/छिपोगी। लुक्किस्सह/लुक्किस्सघ लुक्किस्सइत्था ।
=तुम सब छिपोगे/छिपोगी। लुक्किस्सिह/लुक्किस्सिध/लुक्किस्सिइत्था
1. तुब्भे/तुम्हे तुझे तुम दोनों/तुम सब मध्यम पुरुष बहुवचन (पुरुषवाचक सर्वनाम) ।
2. (i) भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष बहुवचन में हि, स्स, स्सि प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते
हैं । इनको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के प्रत्यय ह, ध, इत्था भी जोड़ दिये जाते हैं ।
(ii) हि, स्स प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का इ और ए हो जाता
है (ऊपर केवल 'इ' के रूप ही दिए गए हैं)।
46 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
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________________
(iii) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है ।
(iv) पिशल ने 'स्स' प्रत्यय का विधान किया है--भणिस्सह, भरिणस्सध (प्रा.मा.व्या.,
पृष्ठ 772) । बेचरदास जी ने प्राकृत मार्गोपदेशिका में मध्यम पुरुष बहुवचन में 'स्स' प्रत्यय माना है (पृष्ठ 249) ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियानों में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप करके
केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है-सोच्छिह सोच्छिध/सोच्छेह/सोच्छेध । सोच्छिहिह आदि रूप भी बनते हैं।
अर्द्धमागधी में सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'ह' प्रत्यय क्रिया में जोड़ देने से भविष्यत्काल का रूप बन जाता है, जैसे-वोच्छह, सोच्छह आदि (घाटे, पृष्ठ 121)।
प्राकृत रचना सौरभ
[
47
2010_03
Page #65
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________________
पाठ 25 ते वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता/तानो/ताउवे दोनों (स्त्रियाँ)/वे सब (स्त्रियाँ)
क्रियाएँ
हस हँसना, रूस=रूसना, जीव जीना
सय=सोना, लुक्क छिपना,
- णच्च-नाचना जग्ग=जागना
भविष्यत्काल । हसिहिन्ति/हसि हिन्ते हसिहिइरे
हसिस्सन्ति/हसिस्सन्ते हसिस्सइरे j हसिस्सिन्ति हसिस्सिन्ते/हसिस्सिइरे
=वे दोनों हंसेंगे।
ते
=वे सब हँसेंगे।
ता
तामो
। हसि हिन्ति/हसिहिन्ते।हसिहिइरे हसिस्सन्ति/हसिस्सन्ते/हसिस्सइरे हसिस्सिन्ति/हसिस्सिन्ते/हसिस्सिइरे
=वे दोनों हँसेंगी। =वे सब हँसेंगी।
ताउ
1 णच्चिहिन्ति/पच्चिहिन्ते णच्चिहिइरे
पच्चिस्सन्ति णच्चिस्सन्ते णच्चिस्स इरे
=वे दोनों नाचेंगी।
=वे सब नाचेंगी।
jणच्चिस्सिन्ति/णचिस्सिन्ते णच्चिस्सिइरे
=वे दोनों नाचेंगी।
ता ) णच्चिहिन्ति/णच्चिहिन्ते णच्चिहिइरे ताप्रोणच्चिस्सन्ति/पच्चिस्सन्ते णच्चिसइरे ताउणच्चिस्सिन्ति रणच्चिस्सिन्ते णच्चिस्सिइरे
=वे सब नाचेंगी।
1.
ते वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) ता/ताप्रो/ताउ=वे दोनों (स्त्रियाँ) वे सब (स्त्रियाँ)
। अन्य पुरुष बहुवचन
(पुरुषवाचक सर्वनाम)
48
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
__ 2010_03
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________________
2. (i) भविष्यकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में हि, स्स, स्सि प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं
इनको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के प्रत्यय न्ति, न्ते,
इरे भी जोड़ दिये जाते हैं । ___ (ii) हि, स्स प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो
जाता है (ऊपर केवल 'इ' के रूप ही दिये गये हैं) । (iii) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है। (iv) पिशल ने 'स्त' प्रत्यय का विध न किया है-करिस्सन्ति (प्रा मा व्या., पृष्ठ
770)। बेचरदास जी ने प्राकृत मार्गोपदेशिका में अन्य पुरुष बहुवचन में 'स्स' प्रत्यय माना है (पृष्ठ 249)।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. सोच्छ, वोच्छ, रोच्छ आदि क्रियानों में भविष्यत्काल के हि' प्रत्यय का लोप
करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अन्त्य अ' का 'इ' या 'ए' हो जाता है -- सोच्छिन्ति/सोच्छिन्ते/सोच्छिइरे, सोच्छन्ति/सोच्छन्ते/सोच्छेइरे । सोच्छिहिन्ति आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या., 2-172)।
अर्द्धमागधी में सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'न्ति' प्रत्यय जोड़ देने से भविष्यत्काल का रूप बन जाता है । जैसे वोच्छन्ति, रोच्छन्ति, सोच्छन्ति (घाटे, पृष्ठ 121)।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
49
2010_03
Page #67
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________________
पाठ 26
अम्हे/वयं =हम दोनों/हम सब ते वे दोनों (पुरुष)/वे सब (पुरुष) तुब्भे/तुम्हे/तुज्झे तुम दोनों/तुम सब ता/तानो/ताउ=वे दोनों (स्त्रियां)/वे सब (स्त्रियां)
क्रियाएँ
ठा-ठहरना,
व्हानहाना,
हो-होना
भविष्यत्काल
अम्हे
1 ठाहिमो/ठाहिमु/ठाहिम ! ठास्सामो/ठास्सामु/ठास्साम
ठास्सिमो/ठास्सिमु/ठास्सिम Jठाहामो/ठाहामु/ठाहाम
हम दोनों ठहरेंगे/ठहरेंगी। हम सब ठहरेंगे/ठहरेंगी।
वयं
अम्हे
1 होहिमो/होहिमु/होहिम ! होस्सामो/होस्सामु/होस्साम
होस्सिमो/होस्सिमु/होस्सिम होहामो/होहामु/होहाम
हम दोनों होंगे/होंगी। हम सब होंगे/होंगी।
वयं
!
तुम्भे तुम्हे
ठाहिह/ठाहिध/ठाहित्था ठास्सह/ठास्सध/ठास्स इत्था | ठास्सिह/ठास्सिध/ठास्सि इत्था
तुम दोनों ठहरोगे/ठहरोगी। तुम सब ठहरोगे/ठहरोगी।
तुझे
तुब्भे तुम्हे तुझे
होहिह/होहिध/होहित्था होस्सह/होस्सघ/होस्सइत्था होस्सिह/होस्सिघ/होस्सिइत्था
तुम दोनों होवोगे/होवोगी। तुम सब होवोगे/होवोगी। .
50
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #68
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________________
Ac
ता/ ताम्रो / ताउ
ता/ ताओ / ताउ
1. हे
वयं
तुन्भे
तुम्हे
तुज्भे
हिन्ति / ठाहिन्ते / ठाहिरे या ठाहिइरे
ठासन्ति / ठास्सन्ते / ठास्सिइरे ठारिसन्ति / ठारिसन्ते / ठास्सिइरे
हो हिन्ति / होहिते / हो हिरे या होहिइरे
हो सन्ति / होस्सन्ते / होस्सइरे होस्सिन्ति / होस्सिन्ते / होस्सिइरे
= हम दोनों / हम सब
उत्तम पुरुष
= तुम दोनों / तुम सब
2. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
4. भविष्यत्काल के प्रत्यय
= वे दोनों (पुरुष) / वे सब ( पुरुष )
ता/ ताश्रो / ताउ = वे दोनों (स्त्रियाँ) / वे सब (स्त्रियाँ)
2010_03
उत्तम पुरुष बहुवचन
मध्यम पुरुष बहुवचन
=
( पाठ 19 से 26 तक )
वे दोनों (पुरुष) ठहरेंगे । वे सब ( पुरुष ) ठहरेंगे ।
दोनों (स्त्रियाँ) ठहरेंगी । वे सब (स्त्रियाँ) ठहरेंगी ।
वे दोनों (पुरुष) होंगे ।
वे सब ( पुरुष ) होंगे । वे दोनों (स्त्रियाँ) होंगी । वे सब (स्त्रियाँ) होंगी ।
अन्य पुरुष बहुवचन
एकवचन हि, स्सा, सि, हा,
स्सं (पूर्ण प्रत्यय)
मध्यम पुरुष
हि स्स, सि
हि, स्स, सि
"
अन्य पुरुष हिस्स, सि नोट - मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष में पृष्ठ 770 ) तथा पं बेचरदासजी ने भी इसे स्वीकार किया है (प्राकृत मार्गोपदेशिका, पृष्ठ 249), 'स्सि' (हे. प्रा. व्या., 4-275 ) ।
'स प्रत्यय को
पिशल ने माना है (पिशल,
प्राकृत रचना सौरभ ]
पुरुषवाचक
सर्वनाम
बहुवचन
बहुवचन हि, स्सा, सि, हा
हिस्सा, हित्था (पूर्ण प्रत्यय)
हि स्स, सि
[ 51
Page #69
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________________
5.
(i) भविष्यकाल में तीनों पुरुषों (उत्तम, मध्यम, अन्य) के दोनों वचनों (एकवचन,
बहुवचन) में जज, ज्जा प्रत्यय भी प्रकारान्त क्रियानों में लगाये जाते हैं। ज्ज, ज्जा प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' या इ' हो जाता है (हे. प्रा. व्या , 3-157, 3-177)। हसेज्ज/हसेज्जा
मैं हँसूगा/हम हँसेंगे।
तुम हँसोगे/तुम सब हँसोगे। हसिज्ज/हसिज्जा
वह हंसेगा/हंसेगी, वे हंसेंगे/हंसेंगी ।
(ji) आकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियाओं में भी ज्ज, ज्जा प्रत्यय भविष्यत्काल के तीनों पुरुषों के दोनों वचनों में लगाये जाते हैं
होज्ज/होज्जा
(iii) आकारान्त, प्रोकारान्त आदि क्रियाओं में 'म' विकरण जोड़कर भी ज्ज, ज्जा
प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं । इनके जोड़ने पर भविष्यत्काल में अन्त्य 'अ' का 'ए' और इ' हो जाता है। ठा-+ठान→ठाएज्ज/ठाएज्जा/ठाइज्ज ठइज्जा हो+ होनहोएज्ज/होएज्जा/होइज्ज/होइज्जा ण्हा+प्र=ण्हाअ→हाएज्ज/हाएज्जा, हाइज्ज/व्हा इज्जा
52 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
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________________
पाठ 27
1. निम्नलिखित अकर्मक क्रियाओं को कर्तृवाच्य में प्रयोग कीजिए। यह प्रयोग वर्तमान
काल, विधि एवं प्राज्ञा, भूतकाल और भविष्यत्काल में करें। कर्ता के रूप में पुरुषवाचक सर्वनाम को रखें---
लज्ज=शरमाना रूव-रोना डर-डरना कलह-कलह झगड़ा करना थक्क=थकना अच्छ=बैठना पडपड़ना/गिरना उ8= उठना तडफड= छटपटाना घुम-भटकना
उच्छल-उछलना उज्जम-प्रयास करना उल्लसखुश होना कंप= काँपना मर=मरना खेलखेलना कुल्ल= कूदना जुज्झ=लड़ना मुच्छ मूच्छित होना
2. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(1) हम छिपते हैं छिपेंगे । (2) वह डरा/डरता है । (3) तुम उठो/उठोगे । (4) वे सब उठेगे/उठते हैं । (5) मैं खेला/खेलूंगा। (6) वह खुश होती है/होगी। (7) वे खुश हों। (8) वह जागा/जागेगा/जागता है। (9) तुम सब जीवो/जीवोगे । (10) मैं थकता हूँ । (11) वह ठहरा ठहरेगा/ठहरता है। (12) तुम नहावो नहावोगे । (13) हम मूच्छित होते हैं । (14) वह पड़े पड़ा/पड़ेगा । (15) वे शरमायेंगी/ शरमाती हैं । (16) तुम प्रयास करो। (17) वह मरेगी/मरती है । (18) वह रोता है/रोयेगा। (19) तुम बैठो। (20) वे लड़े/लड़ेंगे। (21) हम खेलेंगे खेले । (22) मैं उठता हूँ/उलूंगा/उठा । (23) वह भटकता है/भटकेगा/भटके/भटका ।
3. निम्नलिखित वर्तमानकालिक वाक्यों को दो प्रकार से शुद्ध कीजिए----
(i) सर्वनाम के अनुरूप क्रिया का शुद्ध रूप लिखिए(ii) क्रिया के अनुरूप सर्वनाम का शुद्ध रूप लिखिए--- (1) अहं लुक्कसि । (2) तुमं णच्चमि । (3) सो हसेसि । (4) अम्हे हसदि । (5) तुम्हे थक्कन्ति । (6) ते लज्जमो। (7) ता पडघ । (8) तुब्भे घुमन्ति ।
प्राकृत रचना सौरम ]
[ 53
2010_03
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
4.
5.
6.
54
(9) वयं ठाइ । (10) ते मरइ । (11) सो खेलन्ति । ( 12 ) तुह पडित्था । (13) तुज्झे उच्छलदे । ( 14 ) हं कंपिता । ( 15 ) अम्मि कुल्लन्ति । ( 16 ) तुह मुच्छेइ । ( 17 ) तुम्हे ण्हामु । ( 18 ) ग्रम्हे होसि । ( 19 ) ता उट्ठइ 1 (20) तुहु मरन्ते ।
निम्नलिखित विधि एवं आज्ञावाचक वाक्यों को दो प्रकार से शुद्ध कीजिए(i) सर्वनाम के अनुरूप क्रिया का शुद्ध रूप लगाइए
(ii) क्रिया के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनाम का शुद्ध रूप लगाइए —
(1) हं पडउ । ( 2 ) तुह रुवमो । ( 3 ) सो धक्कधि | ( 4 ) अम्हे डरन्तु । ( 5 ) तुम्हे कंप | ( 6 ) तुं मुच्छदु । ( 7 ) सा कुल्लह । ( 8 ) ग्रहं जुज्न्तु । ( 9 ) तुब्भे डरामो । (10) हं तडफड । (11) ते अच्छउ । ( 12 ) सो उट्टह । ( 13 ) ता खेलध । ( 14 ) हं हाधि | ( 15 ) तुमं कुल्लदु । ( 16 ) ते रुवउ । ( 17 ) अम्मि उल्लस । ( 18 ) सो कलहसु । (19) तुब्भे अच्छेज्जसु । ( 20 ) अम्मि लज्जेसे |
निम्नलिखित भविष्यत्कालिक वाक्यों को दो प्रकार से शुद्ध कीजिए (i) सर्वनाम के अनुरूप क्रिया का शुद्ध रूप लगाइए—
(ii) क्रिया के अनुरूप पुरुषवाचक सर्वनाम का शुद्ध रूप लगाइये -
(1) तुहुं उट्ठस्सं । ( 2 ) हं पडिहिसि । ( 3 ) सा कपि हिमि । ( 5 ) तुं हसिहि । ( 6 ) तुम्हे डरिहिमु ( 7 ) अम्हे खेलिस्सघ । ( 9 ) ता हाहिदि । ( 10 ) तुह मरिहिम । ( 11 ) जुभिस्सइत्था । ( 13 ) हं खेलिहिह । ( 14 ) ताओ ( 16 ) वयं जग्गसिह । ( 17 ) सो रूसिस्सिइरे । मुच्छिहिन्ति । ( 20 ) हं घुमिस्सिमु ।
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ( पुरुषवाचक सर्वनाम लिखिए ) -
( 1 )
(3)
(5)
(7)
(9)
( 11 )
(13)
1
'थक्कमि ।
"पड
'कलह से 1
'अच्छध ।
""पडमु ।
"जुज्झदु ।
कंपसि ।
2010_03
(2)
(4)
(
4 ) अहं लज्जिस्सिमो ।
( 8 ) तुब्भे मुच्छिस्सदे । तुं कुल्लिस्सिमो । ( 12 ) अम्मि हाहिघ 1 ( 15 ) ताउ उज्जमिहिध | ( 18 ) ते व्हाहिमि । ( 19 ) तुज्भं
(6)
(8)
(10)
(12)
(14)
"डरमो ।
"उट्ठ |
"घुमह ।
"मुच्छहि ।
'कुल्लउ ।
'उज्जमन्तु ।
"उल्लसेइ ।
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
7.
(15)
(17)
(19)
'उच्छलए ।
'लज्जीअ ।
"मरिहिमि ।
“जुज्झिस्सिदे । "जग्गस्सध |
ठाहिघ ।
(27)
उल्लस ।
( 29 ) जग्ग हि ।
(21)
(23)
( 25 )
( 1 )
हं
(2)
अम्हे
( 3 )
तुम्हे"
(4)
अहं
(5) तुब्भे
(6) तुझे
(7) सा
( 8 )
(9) अहं (10) ते."
अम्मि
प्राकृत रचना सौरभ 1
(16)
(18)
(20)
(22)
(24)
(26)
(28)
(30)
निम्नलिखित वाक्यों में निर्देशानुसार रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
( कुल्ल - वर्तमानकाल में ) ।
( खेल - भविष्यत्काल में ) ।
( उट्ठ - विधि एवं प्राज्ञा में ) ।
2010_03
हादि ।
"व्हाही ।
(प्रच्छ - भूतकाल में ) । ( रूव - विधि एवं प्रज्ञा में ) ।
' (मुच्छ - - भविष्यत्काल में ) । (लज्ज - भविष्यत्काल में ) । ( डर - भूतकाल में ) । (उल्लस - वर्तमानकाल में ) । (जुज्झ - भविष्यत्काल में ) ।
'खेलिस्सिसि ।
"उट्ठहिमो ।
"मुच्छिहिन्ति ।
'लज्जिस्स इत्था ।
"उज्जमेज्जसु ।
.....सयन्तु ।
[ 55
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 28
सम्बन्धक भूत कृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया)
क्रियाएँ
हस-हंसना,
णच्च-नाचना
रगच्च
सम्बन्धक भूत कृदन्त के प्रत्यय
णच्चिऊण णच्चिऊणं-नाचकर
ऊरण/ऊरण दूरण दूरणं
हसिऊण/हसिऊणं =हँसकर हसिदूण/हसिदूणं =हंसकर हसिग्रहसिय =हँसकर हसिउं - =हंसकर हसित्ता =हँसकर
रणच्चिदूण/णच्चिदूणं =नाचकर णच्चिमणच्चिय =नाचकर णच्चिउ
नाचकर
त्ता
णच्चित्ता
=नाचकर
वाक्यों में प्रयोग
। हसिऊण हसिगुण/हसिन
जीवमि/जीवामि/जीवेमि-मैं
जीवमि/जीवा मि/जीवेमि = मैं हँसकर जीता हूँ ।
अम्मि
। हसिऊणं।हसिणं हसिय। ।
जीवहि/जीवसु आदि =तुम हँसकर जीवो । । हसिउं/हसित्ता
हसिऊण/हसिदूण/हसिय/ ।
जीविहिइ/जीविहिए -वह हंसकर जीयेगा/ साहसिउं/हसित्ता
जीयेगी।
56
]
[ प्राकृत रचना सौरभ .
2010_03
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
निम्नलिखित वाक्यों में सम्बन्धक भूत कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए
(1) वह रोकर सोता है। (2) तुम सब थककर बैठो। (3) वे थककर बैठते हैं । (4) हम हँसकर जीयेंगे। (5) वे नाचकर छिपी। (7) तुम सब गिरकर उठते हो । (7) वे डरकर कांपते हैं। (8) हम उठकर खुश होंगे। (9) मैं प्रयास करके खुश होता हूँ। (10) तुम लड़कर मरते हो ।
1. क्रिया के अन्त में प्रत्यय लगने पर जो विशेषण या अव्यय बनता है वह कृदन्त
कहलाता है।
2.
हंसकर, सोकर, जागकर आदि भावों को प्रकट करने के लिए प्राकृत में उपर्युक्त प्रत्यय काम में लिये जाते हैं। उन प्रत्ययों के लगने के पश्चात् जो शब्द बनता है वह सम्बन्धक भूत कृदन्त कहलाता है। जब कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरा कार्य करता है तो पहिले किए गए कार्य के लिए 'सम्बन्धक भूत कृदन्त' का प्रयोग किया किया जाता है। वे शब्द अव्यय होते हैं। इसलिए इनका वाक्य-प्रयोग में रूप-परिवर्तन नहीं होता है।
3.
(i) क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय ऊरण/दूरण आदि जोड़ने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य
'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । हसिऊरण हसेऊग हसिदूण/हसे दूरण (यहाँ केवल 'इ' के रूप ही दिये गये हैं)।
(1) प्राकारान्त व अोकारान्त क्रियाओं जैसे ठा व हो में प्रत्यय जोड़ने पर उनके रूप
निम्न प्रकार बनते हैंठाऊरण/ठादूण, होऊण/होदूरण
4. उपर्युक्त सभी प्रत्यय अकर्मक क्रियाओं में लगाए गए हैं ।
5. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
. अर्द्धमागधी में सम्बन्धक भूतकृदन्त के लिए (i) ताणताणं, (ii) आय, (iii) पाए
(iv) यारण/याणं (५) तु प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं ।
(i) ताण ताणं जोड़ने पर अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हा जाता है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 57
2010_03
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
हसित्ताण/हसित्ताण
(i) ताण/ताणं
हसेत्ताण/हसेत्ताणं
हंसकर
(ii) पाय-हसाय=हंसकर
(iii) प्राए-हसाए=हँसकर (iv) याण/याणं- हसियाण/हसियाणं हंसकर, अन्त्य अ का इ (v) तु-हसित्तु/हसेत्तु हँसकर, अन्त्य प्र का इ और ए (घाटगे, पृष्ठ 131)।
58 ]
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
हेत्वर्थक कृदन्त
क्रियाएँ
हस हँसना,
त्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय
वाक्यों में प्रयोग
श्रहं
हं
श्रम्मि
तुमं
तुह
सो
सा
हस
पाठ 29
पच्च-नाचना
हसिउं - हँसने के लिए
हसिदु = हँसने के लिए
2010_03
हसि / हसितुं जीवहि / जीवसु आदि
हसिउं / ह सिदुं जीवमि / जीवामि आदि = मैं हँसने के लिए जीता हूँ ।
णच्च
णच्चिरं = नाचने के लिए
च्चिदु = नाचने के लिए
= तुम हँसने के लिए जीवो ।
}
हसिउं / ह सिदुं जीविहिइ / जीविहिए = वह हँसने के लिए जीवेगा / जीवेगी |
निम्नलिखित वाक्यों में हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए -
(1) वह थकने के लिए नाचता है । (3) वे लड़ने के लिए छिपते हैं ।
(5) वे सोने के लिए थर्के । (7) वे नाचने के लिए उठेंगे । ( 9 ) तुम खुश होने के लिए खेलोगे ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
( 2 ) वह बैठने के लिए गिरती है ।
( 4 ) तुम सब उठने के लिए प्रयास करो । ( 6 ) वह जागने के लिए प्रयास करे ।
( 8 ) मैं कूदने के लिए उठा । ( 10 ) वह सोने के लिए रोया ।
[ 59
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
5.
क्रिया के अन्त में प्रत्यय लगने पर जो विशेषरण या कहलाता है ।
हँसने के लिए, नाचने के लिए, जीने के लिए, श्रादि भावों को प्रकट करने के लिए प्राकृत में उपर्युक्त प्रत्यय काम में लिये जाते हैं । इन प्रत्ययों के लगने के पश्चात् जो शब्द बनते हैं वे हेत्वर्थक कृदन्त कहलाते हैं, ये शब्द ग्रव्ययं होते हैं इसलिए वाक्यप्रयोग में इनका रूप - परिवर्तन नहीं होता है । क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय उं / दुं प्रादि जोड़ने पर अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है - हसिउ हसिदु, हसेउं / हसेदुं ।
हो और ठा में प्रत्यय जोड़ने पर होउं / होढुं ठाउं / ठादुं रूप बनते हैं ।
उपर्युक्त सभी प्रत्यय अकर्मक क्रियाओं में लगाए गए हैं।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
श्रर्द्धमागधी में 'त्तए' प्रत्यय क्रिया में जोड़ा जाता है । प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'प्र' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। आकारान्त, प्रकारान्त आदि क्रियानों में यह परिवर्तन नहीं होता और केवल प्रत्यय जोड़ दिया जाता है—
हस + तए - हसित्तए / हसेत्तए
=
हो + तए =
60 1
- होत्तए
अव्यय शब्द बनता है वह कृदन्त
2010_03
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
- पाठ 30
1. अकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिग)
करह
कुक्कुर
गंथ
वायस पत्त पोत
घर
माउल
पितामह
ससुर दिनरं
=ऊँट, =कुत्ता , =पुस्तक, =कौमा, =पुत्र, =पोता, =मकान, =मामा, =दादा, =ससुर, ==देवर, =मनुष्य, =परमेश्वर, =राम, =व्रत, =शास्त्र, = सांप, =संसार, = कुंप्रा. =मेघ, -हाथ,
रयण -रत्न सायर =समुद्र राय
नरेश, राजा नरिद =राजा बालम
बालक प्रवयस =अपयश हणुवन्त =हनुमान गव्व
=गर्व हुप्रवह =अग्नि मारुप =पवन
-वस्त्र कयंत ___ =मृत्यु दिवायर . =सूर्य रक्खस -राक्षस सोह =सिंह दुक्ख मित्त =मित्र
दु:ख बप्प =पिता सलिल
=पानी गाम
-गांव
णर
परमेसर रहुगन्दरग वय
प्रागम
सप्प
भव
2 क्रियाएँ
B
णिज्झर
सोह
F
kSA
-गलना, = नष्ट होना == जलना, =लुढकना, =होना, =होना,
सुक्ख पसर
=झरना = शोभना =सूखना =फैलना =डोलना, हिलना -दुखना
Emance
दुक्ख
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
6।
2010_03
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
उपज्ज
पला
वल
चिट्ठ
=पैदा होना, =मुड़ना, =बूढ़ा होना, =गरजना, = उगना, उदय होना, =उड़ना, =नष्ट होना,
=भाग जाना =बैठना =भोंकना =टूटना =रोना प्रसन्न होना
गज्ज
तुट्ट
उग
हरिस
नस्स
1., उपर्यक्त सभी संज्ञा शब्द प्रकारान्त पुल्लिग हैं ।
2. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
62 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
बाल-बालक
पाठ 31 संज्ञा शब्द प्रकारान्त पुल्लिग।
- नरिद=राजा, क्रियाएँ
हस हँसना, प्रथमा (एकवचन) वर्तमानकाल एकवचन नरिंदो हसइ/हसेइ/हसए
हसदि/हसेदि/हसदे
जग्ग-जागना
= राजा हंसता है।
बालो
जग्गइ/जग्गेइ/जग्गए जग्गदि/जग्गेदि/जग्गदे
= बालक जागता है।
प्रथमा (एकवचन) विधि एवं प्राज्ञा (एकवचन) नरिंदो
हसउ/हसेउ/हसदु/हसेदु
= राजा हंसे।
बालग्रो
जग्गउ/जग्गेउ/जग्गदु/जग्गेदु
= बालक जागे ।
भूतकाल (एकवचन)
प्रथमा (एकवचन) नरिंदो
हसीन
= राजा हंसा ।
बालो
जग्गी
= बालक जागा।
प्रथमा (एकवचन) भविष्यत्काल (एकवचन)
हसिहिइ/हसिहिए|हसिहिदि/हसिहिदे नरिंदो हसिस्सइ/हसिस्सए/हसिस्सदि/हसिस्सदे
हसिस्सिदि/हसिस्सिदे
= राजा हंसेगा ।
बालो
जग्गिहिइ/जग्गिहिए/जग्गिहिदि/जम्गिहिदे जग्गिस्सइ जग्गिस्सए/जग्गिस्सदि/जग्गिस्सदे जग्गिस्सिदि/जग्गिस्सिदे
= बालक जागेगा।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 63
2010_03
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
1. नरिंदो प्रथमा एकवचन (प्रकारान्त पुल्लिग)।
2. अकारान्त पुल्लिग शब्द नरिंद में श्री प्रत्यय प्रथमा के एकवचन में लगता है ।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्त्ता- (व्यक्ति, वस्तु आदि) में
प्रथमा होती है ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
5.
उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष एकवचन' का
6. कर्तवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ अन्य पुरुष सर्वनाम की क्रिया काम में आती है।
यहाँ संज्ञा एकवचन में है, अतः क्रिया भी एकवचन की ही लगी है।
7. अर्द्धमागधी में अकारान्त पुल्लिग शब्दों में 'ए' प्रत्यय भी प्रथमा के एकवचन में लगता
है- नरिंद-नरिदे ।
64 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 32
संज्ञा शब्द प्रकारान्त पुल्लिग
नरिंद=राजा,
बाल-बालक
क्रियाएँ
हस हंसना,
जग्ग=जागना
प्रथमा (बहुवचन) वर्तमानकाल (बहुवचन) नरिंदा हसन्ति/हसेन्ति/हसन्ते/हसिरे
=राजा हंसते हैं।
बाला
जग्गन्ति/जग्गेन्ति जग्गन्ते/जग्गिरे
बालक जागता है।
प्रथमा (बहुवचन) विधि एवं प्राज्ञा (बहुवचन) नरिंदा , हसन्तु/हसेन्तु
=राजा हँसें ।
बाला
जग्गन्तु/जग्गेन्तु
=बालक जागें।
प्रथमा (बहुवचन) भूतकाल (बहुवचन) नरिंदा हसीन
=राजा हँसे ।
बाला
जग्गी
=बालक जागे।
नरिंदा
=राजा हँसेंगे ।
प्रथमा (बहुवचन) भविष्यत्काल (बहुवचन)
7 हसिहिन्ति/हसिहिन्ते हसिहिइरे
हसिस्सन्ति/हसिस्सन्ते हसिस्सइरे j हसिस्सिन्ति/हसिस्सिन्ते हसिस्सिइरे 1 जग्गिहिन्ति/जग्गिहिन्ते/जग्गिहिइरे
जग्गिस्सन्ति/जग्गिस्सन्ते/जग्गिस्सइरे
बाला
बालक जागेंगे।
जग्गिस्सिन्ति जग्गिस्सिन्ते जग्गिस्सिहरे
प्राकृत रचना सौरम ]
|
65
2010_03
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
नरिदा=प्रथमा बहुवचन (अकारान्त पुल्लिग)।
2. अकारान्त पुल्लिग शब्द 'नरिंद' के प्रथमा बहुवचन में 0→पा प्रत्यय लगा है ।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु, अादि) में
प्रथमा होती है।
4. उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में पाया है वह 'अन्य पुरुष बहुवचन' का
5. कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है।
यहाँ संज्ञा बहुवचन में है, अतः क्रिया भी बहुवचन की ही लगी है ।
6. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
66 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 33 1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) मेघ गरजते हैं । (2) वस्त्र सूखता है । (3) रत्न शोभता है । (4) अपयश फैलता है । (5) अग्नि जलती है। (6) पिता उठता है। (7) पुस्तक नष्ट होती है। (8) मित्र प्रयास करता है । (9) रघुनन्दन प्रसन्न होता है । (10) कुत्ता भौंकता है। (11) पुत्र काँपता है। (12) घर गिरता है । (13) मनुष्य बूढ़े होते हैं । (14) गर्व गलता है। (15) दादा थकता है। (16) व्रत शोभते हैं । (17) ऊँट नाचते हैं । (18) सूर्य उगता है । (19) राक्षस डरते हैं । (20) सिंह बैठते हैं । (21) हाथ दुखता है । (22) कौमा उड़ता है ।
(ख) (1) मामा उठे/उठा। (2) पोता उछले/उछला। (3) गर्व नष्ट हो । (4) बालक खेलें । (5) राक्षस मरें/मरे । (6) दुक्ख गलें। (7) शास्त्र शोभे । (8) मित्र खुश हो/खुश हुआ। (9) समुद्र फैले/फैला। (10) पुत्र जीवे । (11) पिता नहाया। (ग) (1) अग्नि जलेगी। (2) शास्त्र नष्ट होंगे । (3) सर्प उड़ेंगे। (4) रघुनन्दन प्रसन्न होंगे । (5) संसार नष्ट होगा। (6) राक्षस मूछित होंगे । (7) बालक रूसेगा ।
(8) मनुष्य प्रयास करेंगे। (9) मकान गिरेंगे । (10) कुप्रा सूखेगा। 2. निम्नलिखित वर्तमानकालिक वाक्यों को दो प्रकार से शुद्ध कीजिए -
(i) कर्ता के अनुसार क्रिया का शुद्ध रूप लगाइये - (i) क्रिया के अनुसार कर्ता का शुद्ध रूप लगाइये(1) कुक्करो बुक्कन्ति । (2) गंथो नस्सन्ते । (3) णरो कंदन्ति । (4) दुक्खो तुट्टन्ति । (5) करहो थक्कन्ति । (6) माउलो थक्किरे ।
3. निम्नलिखित विधि एवं आज्ञावाचक वाक्यों को दो प्रकार से शुद्ध कीजिए
(i) कर्ता के अनुसार क्रिया का शुद्ध रूप लगाइए(ii) क्रिया के अनुसार कर्ता का शुद्ध रूप लगाइए(1) ससुरो उद्वन्तु । (2) दिप्ररो गच्चन्तु । (3) परमेसरो हरिसेन्तु । (4) हणुवन्तो
चिट्ठन्तु । (5) सीहो पलान्तु । (6) कयंतो होन्तु । 4. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की निर्देशानुसार पूर्ति कीजिए (कर्ता के अनुसार क्रिया
लगाइए)
प्राकृत रचना सौरभ
[ 67
2010_03
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
(1) मेहा............ (पसर- भविष्यत्काल में)। (2) कूवा............."(सुक्क- भविष्यत्काल में)। (3) दुहो............."(रणस्स-विधि एवं प्राज्ञा में)। (4) पुत्तो..............."(जग्ग-वर्तमानकाल में)। (5) घरो.............""(पड-भूतकाल में) । (6) हुअवो ........."(जल-भविष्यत्काल में)। (7) आगमा...........(सोह-वर्तमानकाल में)। (8) भवो............"(खय-भविष्यत्काल में)। (9) बप्पो............ (उज्जम-विधि एवं आज्ञा में)। (10) रक्खण"""""""""(जुज्झ-भविष्यत्काल में)।
5. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) कुत्ता डरकर रोता है/रोया । (2) पिता हँसकर जीता है। (3) राजा प्रसन्न होकर उठते हैं/उठे। (4) सर्प डरकर भागते हैं। (5) ससुर रूसकर भिड़ता है । (6) रत्न पड़कर टूटता है/टूटा । (7) पिता जागकर बैठता है।
(ख) (1) पिता हंसने के लिए जीवे । (2) पोता नाचने के लिए उठे। (3) अग्नि नष्ट होने के लिए जले। (4) दादा घूमने के लिए उठे । (5) पानी सूखने के लिए झरे । (6) मित्र प्रसन्न होने के लिए खेले खेला। (7) सूर्य शोभने के लिए उगे ।
(ग) (1) पुत्र कलह करके शरमायेगा। (2) मित्र प्रसन्न होने के लिए जीवेगा । (3) ऊँट थकने के लिए नाचेगा। (4) घर गिरकर नष्ट होगा। (5) व्रत टूटकर गलेगा । (6) राक्षस मरने के लिए कूदेंगे। (१) पानी फैलकर सूखेगा।
68 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #86
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________________
पाठ 34 1. अकारान्त संज्ञा शब्द (नपुंसकलिंग)
विमाण
मज्ज
-मद्य
पत्त
पुष्फ
=व्यसन
सासग सोक्ख
वसण जूम प्रसरण तिरण वरण वत्थ
पोट्टल
णह
सील
गायर खीर छिक्क
भोयण
घय
=विमान, -कागज, =शासन, =सुख. =राज्य, =गठरी, -आकाश, =सदाचार, =नागरिक, =दूध, =छींक, =लकड़ी, =जल, = गीत, -भय, =वैराग्य, =सत्य, =रक्त, =मरण, = खेत, =धान, -धन,
सिर
लक्कुड उदग गारण भय वेरम्ग सच्च
सुत्त सुह रिग बोध जीवण
==जुमा =भोजन =घास -जंगल
वस्त्र =काठ =भोजन =घी =मस्तक =धागा =सुख =कर्ज =बीज -जीवन -रूप =कर्म =यौवन -ज्ञान =चित्त, मन
रूव
मरण
खेत
कम्म जोव्वरण णाण मरण
धन्न
धरण
2. क्रियाएँ
॥
वड्ढ
चेट्ट
विस
1
लोट्ट
॥
बढ़ना, =खिलना, =सोना, लोटना, टपकना, -कूदना,
=प्रयत्न करना गुंज =गूंजना सिज्झ =सिद्ध होना फुल्ल =खिलना जम्म जन्म लेना
चन
कुद्द
13
प्राकृत रचना सौरभ
[
69
2010_03
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
जागर खिज्ज
=जागना, =अफसोस करना, =होना, == उत्साहित होना, =कीलना, =तपना, =प्रकट होना।
उच्छह
विज्ज =उपस्थित होना छुट्ट छूटना रम =रमना चुक्क =भूल करना चिराव -देर करना बस -वसना
कील
=
तव फुर
1. उपर्युक्त सभी संज्ञा शब्द अकारान्त नपुंसकलिंग हैं ।
2. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
701
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 35
संज्ञा शब्द अकारान्त नपुंसकलिंग
कमल =कमल का फूल,
धण=धन
क्रियाएँ विग्रस-खिलना,
वड्ढ-बढ़ना प्रथमा (एकवचन) वर्तमानकाल (एकवचन)
! विप्रसइ/विअसेइ/विप्रसए कमलं
विप्रसदि/विप्रसेदि/विप्रसदे
--कमल खिलता है।
धणं
! वड्ढइ/वड्ढेइ/वड्ढए
वड्ढदि/वड्ढेदि/वड्ढदे
=धन बढ़ता है।
प्रथमा (एकवचन) विधि एवं प्राज्ञा (एकवचन)
] विप्रसउ/विअसेउ कमलं
विग्रसदु/विअसेदु
-कमल खिले ।
धणं
र वड्ढउ/वड्ढेउ
वड्ढदु/वड्ढेदु
=धन बढ़े।
भूतकाल (एकवचन)
प्रथमा (एकवचन) कमलं
विअसीम
=कमल खिला।
धणं
वड्ढी
-धन बढ़ा।
प्रथमा (एकवचन) भविष्यत्काल (एकवचन)
। विसिहिइ/विप्रसिहिए/विसिहिदि/विप्रसिहिदे कमलं विअसिस्सइ/विअसिस्सए/विअसिस्सदि/विप्रसिस्सदे
। विप्रसिस्सिदि/विप्रसिस्सिदे
=कमल खिलेगा।
प्राकृत सचना सौरभ ]
[ 71
___JainEducation International 2010_03
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
घणं
वड्ढिहिइ/वड्ढिहिए/वड्ढिहिदि/वड्ढिहिदे वड्ढिस्सइ/वड्ढिस्सए/वड्ढिस्सदि/वड्ढिस्सदे वढिस्सिदि/वड्ढिस्सिदे
=धन बढ़ेगा।
1. कमलं =प्रथमा एकवचन (अकारान्त नपुंसकलिंग)। 2. अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द कमल के प्रथमा एकवचन में - प्रत्यय लगता है ।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा होती है ।
उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
__उपर्युक्त क्रियाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में आया है वह अन्य पुरुष एकवचन का
6. कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ अन्य पुरुष सर्वनाम की क्रिया काम में आती है ।
यहाँ संज्ञा एकवचन में है, अतः क्रिया भी एकवचन की ही लगाई गई है।
72 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 36
संज्ञा शब्द प्रकारान्त नपुंसकलिंग
- कमल-कमल का फूल,
धरण-घन
क्रियाएँ
विस=खिलना,
वड्ढ= बढ़ना
प्रथमा (बहुवचन)
वर्तमानकाल (बहुवचन)
कमलाई कमलाई कमलाणि
विग्रसन्ति/विग्रसेन्ति/विअसन्ते/विप्रसिरे
-कमल खिलते हैं।
धणाई
धणाई
वड्ढन्ति/वड्ढेन्ति/वड्ढन्ते/वड्ढिरे
=धन बढ़ते हैं।
धणाणि
प्रथमा (बहुवचन)
विधि एवं प्राज्ञा (बहुवचन)
कमलाई कमलाई कमलाणि
विअसन्तु/विग्रसेन्तु
=कमल खिलें।
धरणाई घणाई घणाणि
वड्ढन्तु/वड्ढेन्तु
=धन बढ़ें।
प्राकृत रचना सौरम ]
[
73
2010_03
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा (बहुवचन)
भूतकाल (बहुवचन)
कमलाई कमलाई कमलाणि
विसीम
=कमल खिले ।
घणाई धरणाई धणाणि
वड्ढीम
=धन बढ़े।
प्रथमा (बहुवचन)
भविष्यत्काल (बहुवचन)
कमलाई कमलाई कमलाणि
। विप्रसिहिन्ति/विप्रसिहिन्ते/विप्रसिहिइरे विअसिस्सन्ति/विअसिस्सन्ते/विअसिस्सइरे विप्रसिस्सिन्ति/विप्रसिस्सिन्ते/विप्रसिस्सिइरे विप्रसिस्सिन्ति/वि
=कमल खिलेंगे।
घणाई धणाई धणाणि
वड्ढिहिन्ति/वड्ढिहिन्ते/वड्ढिहिइरे वढिस्सन्ति/वढिस्सन्ते वढिस्सइरे वढिस्सिन्ति/वड्ढिस्सिन्ते/वड्ढिस्सिइरे
=धन बढ़ेंगे।
1. कमलाइं/कमलाई/कमलारिण-प्रथमा बहुवचन (अकारान्त नपुंसकलिंग)।
2. अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द 'कमल' आदि में प्रथमा के बहुवचन में इ→ाई, इं→पाई,
रिण→आणि लगते हैं।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु आदि) में
प्रथमा होती है ।
74 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ .
___ 2010_03
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
5. उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में पाया है वह 'अन्य पुरुष बहुवचन' का
6. कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ अन्य पुरुष सर्वनाम की क्रिया काम में आती है ।
यहाँ संज्ञा बहुवचन में है अतः क्रिया भी बहुवचन की ही लगी है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
75
2010_03
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 37
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) सुख बढ़ता है। (2) दूध टपकता है। (3) नागरिक प्रयत्न करते हैं । (4) गठरी लुढ़कती है। (5) यौवन खिलता है। (6) राज्य भूल करता है । (7) आकाश गूंजता है । (8) सदाचार प्रकट होता है । (9) घास जलता है ।
(ख) (1) वैराग्य बढ़े । (2) राज्य प्रयत्न करे । (3) ज्ञान सिद्ध हो । (4) शासन डरे । (5) सदाचार शोभे । (6) धन बढ़े । (7) पोटली लुढ़के । (8) सत्य खिले । (9) पानी टपके ।
(ग) (1) नागरिक सोयेंगे। (2) रूप खिलेगा । (3) शासन प्रयत्न करेगा। (4) बीज उगेंगे । (5) लकड़ी जलेगी। (6) राज्य उत्साहित होगा। (7) कर्म नष्ट होंगे। (8) दुःख फैलेगा । (9) विमान उड़ेंगे । (10) सत्य शोभेगा।
(घ) (1) सिर दुःखा । (2) नागरिक ठहरा। (3) धागा टूटा । (4) काठ नष्ट हुप्रा । (5) भय नष्ट हुा । (6)सुख प्रकट हुआ ।(7) ज्ञान सिद्ध हुप्रा । (8) विमान उड़ा । (9) वस्त्र जला ।
2. निम्नलिखित वाक्यों को दो प्रकार से शुद्ध कीजिए
(i) कर्ता के अनुसार क्रिया लगाइये(ii) क्रिया के अनुसार कर्ता लगाइए---- (1) सिरं दुखन्ति । (2) लक्कुड जलन्ते । (3) विमारणाई उड्डुदि । (4) उदगं चुइहिन्ति । (5) शायराणि पलाइ । (6) जीवणं तपन्तु । (7) मणाइँ उच्छहदु । (8) धन्नं उप्पज्जिस्सिन्ति । (9) सच्चं छुट्टिरे । (10) वेरग्गाणि सोहइ ।
76
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
1. प्राकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग)
परिक्खा == परीक्षा,
= पुत्री,
= माता,
=आज्ञा,
= दया,
- बुढ़ापा,
= नर्मदा,
= यमुना,
=श्रद्धा,
= सायंकाल,
सुया
माया
श्रारणा
करुणा
जरा
णम्मया
जउरगा
सद्धा
संभा
तिसा
निसा
कलसिया
कुंपडा
पट्ठा
सिक्खा
मइरा
इच्छा
धूश्रा
महिला
2. क्रियाएँ
छज्ज
उवरम
प्यास,
=रात्रि,
छोटा घड़ा,
= झोंपड़ी,
= प्रतिष्ठा,
=शिक्षा,
= मदिरा,
अभिलाषा,
= बेटी,
= स्त्री,
= शोभना,
= विरत होना,
=
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
पाठ 38
सोया
ससा
वाया
कमला
गंगा
तरगया
कहा
जाया
मेहा
भुक्खा
तहा
कण्णा
गुहा
रणद्दा
पसंसा
सोहा
सरिश्रा
गड्डा
नणन्दा
पण्णा
छब्भ
ु
गडयड
== सीता
- बहिन
= वाणी
= लक्ष्मी
गंगा
= पुत्री
कथा
-स्त्री
= बुद्धि
= भूख
=तृष्णा
== कन्या
= गुफा
= नींद
= प्रशंसा
=शोभा
नदी
== खड्डा
= ननद
प्रज्ञा
= क्षुब्ध होना / व्याकुल होना
= गिड़गिड़ाना
[ 77
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
बिह
थंभ
खर
जोह
उस्सस
खंज fre
78 1
== डरना,
= रुकना,
= नष्ट होना,
==लड़ना,
- सांस लेना,
= लँगड़ाना,
= खिसकना,
2010_03
उवसम
किलिस
जंभा
खास
उवषिस
गिज्झ
खेड
=== शान्त होना
= दुःखी होना
= जँभाइ लेना
= खाँसना
= बैठना
= आसक्त होना -क्रीड़ा करना
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 39
संज्ञा शब्द प्राकारान्त स्त्रीलिंग __ससा=बहिन,
माया-माता
क्रियाएँ
हस=हेंसना,
जग्ग=जागना
प्रथमा (एकवचन) वर्तमानकाल (एकवचन)
हसइ/हसेइ/हसए हसदि/हसेदि/हसदे
ससा
=बहिन हंसती है।
सपा हा
माया .
जग्गइ/जग्गेइ/जग्गए जग्गदि/जग्गेदि/जग्गदे
=माता जागती है।
प्रथमा (एकवचन) विधि एवं प्राज्ञा (एकवचन)
हसउ/हसेउ/हसदु/हसेदु
ससा
=बहिन हंसे ।
माया
जग्गउ/जग्गेउ/जग्गदु/जग्गेदु
=माता जागे।
प्रथमा (एकवचन) भूतकाल (एकवचन)
हसीन
ससा
=बहिन हंसी।
माया
जग्गीय
=माता जागी ।
प्रथमा (एकवचन) भविष्यत्काल (एकवचन)
हसिहिइ/हसिहिए/हसिहिदि/हसिहिदे
हसिस्सइ/हसिस्सए/हसिस्सदि/हसिस्सदे | हसिस्सिदि/हसिस्सिदे
ससा
=बहिन हंसेगी।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
79
___ 2010_03
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
1.
2.
3.
4.
माया
6.
जगह / जग्गहिए / जग्गहिदि / जग्गहिदे जग्गसइ / जग्गस्सए/ जग्गस्सदि / जग्गस्स दे जग्गस्सिदि / जग्गस्सिदे
ससा = प्रथमा एकवचन ( आकारान्त स्त्रीलिंग ) ।
आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द ससा आदि में '0' प्रत्यय प्रथमा के एकवचन में लगता है ।
उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं ।
5. उपर्युक्त संज्ञानों के साथ जो क्रिया-रूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष एकवचन ' का है ।
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु प्रादि) में प्रथमा होती है ।
80 ]
= माता जागेगी ।
-
कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञानों के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है । यहाँ संज्ञा एकवचन में है, अतः क्रिया भी एकवचन की ही लगी है ।
2010_03
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #98
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पाठ 40
संज्ञा शब्द प्राकारान्त स्त्रीलिंग
ससा=बहिन,
माया-माता
क्रियाएँ
हस हँसना,
जग्ग-जागना
प्रथमा (बहुवचन)
वर्तमानकाल (बहुवचन)
ससा
ससानो
हसन्ति/हसे न्ति/हसन्ते/हसिरे
=बहिनें हंसती हैं।
ससाउ
माया
मायाग्रो
जग्गन्ति/जग्गेन्ति/जग्गन्ते जग्गिरे
=माताएं जागती हैं।
मायाउ
प्रथमा (बहुवचन) विधि एवं प्राज्ञा (बहुवचन) ससा । ससानो हसन्तु/हसेन्तु
ससा
= बहिनें हंसें।
ससाउ
माया
मायानो
जग्गन्तु/जग्गेन्तु
=माताएँ जागें।
मायाउ
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 81
2010_03
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प्रथमा (बहुवचन)
भूतकाल (बहुवचन)
ससा
ससानो
हसीन
=बहिनें हँसी।
ससाउ
माया
मायाप्रो
जग्गीय
=माताएँ जागीं।
मायाउ
प्रथमा (बहुवचन)
भविष्यत्काल (बहुवचन)
ससा । हसिहिन्ति/हप्सिहिन्ते/हसिहिइरे ससानो हसिस्सन्ति/हसिस्सन्ते/हसिस्सइरे ससाउ । हसिस्सिन्ति/हसिस्सिन्ते/हसिस्सिइरे
=बहिनें हँसेंगी।
माया
। जग्गिहिन्ति/जग्गिहिन्ते/जग्गिहिइरे मायामो जग्गिस्सन्ति जग्गिस्सन्ते जग्गिस्सइरे मायाउ । जग्गिस्सिन्ति/जग्गिस्सिन्ते/जग्गिस्सिइरे
=माताएँ जागेंगी।
1. ससा/ससानो/ससाउ=प्रथमा बहुवचन (आकारान्त स्त्रीलिंग)।
2.
आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द ससा आदि में 'o', 'उ', 'ओ' प्रत्यय प्रथमा के बहुवचन में लगते हैं।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। कर्तृवाच्य में कर्ता (व्यक्ति, वस्तु आदि) में
प्रथमा होती है।
82 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #100
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4.
3.
4.
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
उपर्युक्त संज्ञाओं के साथ जो क्रिया-रूप काम में आया है वह 'अन्य पुरुष बहुवचन' का है ।
कर्तृवाच्य में प्रयुक्त संज्ञाओं के साथ 'अन्य पुरुष सर्वनाम' की क्रिया काम में आती है । यहाँ संज्ञा बहुवचन में है प्रतः क्रिया भी बहुवचन की ही लगी है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
[83
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पाठ 41
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) सीता शोभती है। (2) बहिन क्षुब्ध होती है । (3) माता प्रसन्न होती है । (4) वारणी थकती है। (5) आज्ञा प्रकट होती है। (6) लक्ष्मी बढ़ती है । (7) दया शोभती है। (8) गंगा फैलती है । (9) बुढ़ापा बढ़ता है । (10) सायंकाल होता है । (11) कन्यायें रुकती हैं। (12) झोंपड़ियाँ जलती हैं। (13) छोटे घड़े टूटते हैं । (14) पुत्रियाँ खाँसती हैं । (15) अभिलाषाएँ बढ़ती हैं। (16) परीक्षाएँ होती हैं । (17) सायंकाल शोभता है । (18) वारिणयाँ सिद्ध होती हैं । (19) नदियाँ सूखती हैं । (20) महिलाएँ प्रयत्न करती हैं ।
(ख) (1) श्रद्धा बढ़े। (2) भूख शान्त होवे । (3) मदिरा घटे (4) बेटी प्रसन्न हो । (5) स्त्रियाँ तप करें। (6) प्रज्ञा सिद्ध हो। (7) वाणियाँ प्रकट हों। (8) महिलाएं उत्साहित हों।
(ग) (1) शिक्षा फैलेगी। (2) अभिलाषाएँ शान्त हों। (3) नदियाँ सूखेंगी। (4) प्यास बढ़ती है । (5) लक्ष्मी कम होगी। (6) परीक्षाएं होंगी। (7) वाणी गूंजेगी । (8) गुफाएं नष्ट होंगी। (9) कन्याएँ देर करेंगी। (10) बहिनें ठहरेंगी।
(घ) (1) पुत्री विरत हुई। (2) बहिन ने जंभाइ ली। (3) ननद लंगडाती है। (4) माता खाँसी।
84 1
प्राकृत रचना सौरभ
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पाठ 42 भूतकालिक कृदन्त (कर्तृवाच्य में प्रयोग)
प्राकृत में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग किया जाता है । क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बनाये जाते हैं । भूतकालिक कृदन्त शब्द विशेषण का भी कार्य करते हैं । जब अकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता है, तो भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग कर्तृवाच्य में किया जा सकता है। इन शब्दों के रूप कर्ता के अनुसार चलेंगे । कर्ता पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा इनके रूप भी उसी के अनुसार बनेंगे। इन कृदन्तों के पुल्लिग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे। भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है। स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'पा' प्रत्यय जोड़ा जाता है ।
(क) क्रियाएँ
हस=हँसना,
गच्च-नाचना,
जग्ग-जागना,
भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय
हस
गच्च
जग्ग
होम/
=नाचा
=जागा
हुआ
हसिय
सस
हसिग्र/_... णच्चि
जग्गि / =हँसा णच्चिय
जग्गिय हसित =हंसा णच्चित =नाचा जग्गित =जागा
हसिद =हँसा णच्चिद=नाचा जग्गिद =जागा नोट - क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता हैं ।
होत =हुआ होद =हुना
(i) वाक्यों में प्रयोग
(कर्ता पुल्लिग) (एकवचन) नरिंदो हसियो/हसितो/हसिदो नरिदो होयो होतो/होदो
(कर्तृवाच्य) = राजा हँसा ।
= राजा हुआ।
प्राकृत रचना सौरभ
[ 85
2010_03
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नोट-अर्द्धमागधी में नरिद→नरिदे भी होता है अतः वाक्य होगा-नरिंदे हसिए/हसिते ।
(ii) वाक्यों में प्रयोग (कर्ता पुल्लिग) (बहुवचन)
हसिया/हसिया
(कर्तृवाच्य)
नरिंदा
हसिता/हसिदा
=राजा हँसे ।
नरिदा । होना होया
=राजा हुए।
होता/होदा
(ख) क्रियाएँ
वड्ढ-बढ़ना,
विप्रस-खिलना,
हो=होना
भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय
वड्ढ
विग्रस
वड्ढिअ/वड्ढिय=बढ़ा विप्रसिप्र/विप्रसिय=खिला होन/होय हुआ वढित
विप्रसित =खिला होत =हुआ वड्ढिद =बढ़ा विप्रसिद =खिला होद . =हुआ
=बढ़ा
ब
नोट-क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है।
(i) वाक्यों में प्रयोग (कर्ता नपुंसकलिंग) (एकवचन) कमल
विप्रसिध/विप्रसियं/वियसितं/विप्रसिदं
(कर्तृवाच्य) =कमल खिला।
कमलं
हो/होयं/होतं/होदं
=कमल हुआ।
86 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
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(ii) वाक्यों में प्रयोग
( कर्ता नपुंसकलिंग )
कमलाई
कमलाई
कमलाणि
(ग) क्रियाएँ
कमलाई
कमलाई
कमलाणि
भूतकालिक
कृदन्त के
प्रत्यय
अ/य
त
द
( बहुवचन )
विअसिग्राइं/ विप्रसिश्राई / विश्वसिप्राणि
विसिताइं / विश्वसिताई / विसितापि विसिदाई / विसिदाइँ / विप्रसिदारिण
उट्ठ उठना,
होम / होमाई / होत्राणि
> होताई / होता हूँ / होताखि
होदा इं/ होदाइँ / होदाणि
ससा
उट्ठ
उट्टि / उट्ठिय उठा
=
प्राकृत रचना सौरभ ]
=उठा
उट्ठद
नोट-क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है ।
(i) वाक्यों में प्रयोग
( कर्ता. स्त्रीलिंग)
ससा
2010_03
सय = सोना,
== उठा
( एकवचन )
उ/उडिया / उता / उट्टिदा
ठामा /ठाया /ठाता / ठादा
सय
सयिन / सयिय == सोया
सयित
= सोया
सदि
= सोया
(कर्तृवाच्य )
= कमल खिले 4
= कमल हुए ।
ठा = ठहरना
ठा / ठाय ठहरा
= ठहरा
= ठहरा
ठात
역
ठाद
( कर्तृवाच्य )
= बहिन उठी ।
बहिन ठहरी ।
[ 87
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________________
꾸
(ii) वाक्यों में प्रयोग
( कर्ता स्त्रीलिंग)
ससा
ससा
ससाउ
ससा
ससान
ससाउ
( बहुवचन )
उट्टा/उट्ठिया/उट्टिता / उट्टिदा
> उट्ठा / उट्टियाओ / उद्विता / उट्टिदा
उाउ / उट्टियाउ / उट्टिताउ / उट्टिदाउ
88 ]
ठा /ठाया /ठाता / ठाढा
ठाओ /ठाया /ठाताओ / ठादाओ
ठााउ / ठायाउ / ठाताउ / ठादाउ
2010_03
(कर्तृवाच्य)
नोट - स्त्रीलिंग में प्रयोग करने से पहिले भूतकालिक कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना जरूरी है । '' प्रत्यय जोड़ने से भूतकालिक कृदन्त शब्द स्त्रीलिंग बन जाते हैं ।
जैसे - उट्टिउट्ठा, उट्ठिद उट्टिदा, उट्ठित उट्ठिता । इनके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे ।
= बहिनें उठीं ।
- बहिनें ठहरीं ।
[ प्राकृत रचना सौरभ
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________________
पाठ 43
वर्तमान कृदन्त
- प्राकृत में 'हँसता हुआ', 'सोता हुआ', 'नाचता हुआ' आदि भावों को प्रकट करने के लिए वर्तमान-कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर वर्तमान कृदन्त बनाये जाते हैं। वर्तमान कृदन्त-शब्द विशेषण का कार्य करते हैं । अतः इनके लिंग (पुल्लिग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग), वचन (एक, बहु) और कारक (कर्ता, कर्म आदि) विशेष्य के अनुसार होंगे । इनके रूप पुल्लिग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे । वर्तमान कृदन्त अकारान्त होता है । स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'पा' प्रत्यय जोड़ा जाता है तो वह शब्द आकारान्त स्त्रीलिंग बन जाता है।
(क) क्रियाएँ
णच्च-नाचना,
जग्ग-जागना, .
वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय
हस
गच्च
जग्ग
न्त
हसन्त =हंसता हुआ
णच्चन्त =नाचता हुआ
जग्गन्त =जागता हुआ
माण
हसमाण हंसता हुआ णच्चमाण=नाचता हुआ
जग्गमाण जागता हुआ
(i) वाक्यों में प्रयोग
विशेष्य : पुल्लिग, एकवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक)
__(वर्तमान कृदन्त) (सभी कालों में) नरिदो हसन्तो/हसमारणो उट्ठइ/आदि
=राजा हंसता हुआ उठता है ।
(वर्तमानकाल)
नरिंदो
हसन्तो/हसमाणो उट्ठउ/आदि
=राजा हंसता हुमा उठे।
(विधि एवं आज्ञा)
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 89
2010_03
Page #107
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________________
नरदो
नरिंदो
नरिदा
नरिंदा
हसतो / समाणो (i) उट्ठीघ्र
नोट - ( 1 ) यहां वर्तमान कृदन्त के रूप विशेष्य 'नरिद' की तरह चले हैं। यहां नरिद प्रथमा विभक्ति में है तो कृदन्त भी प्रथमा विभक्ति में है । यदि 'नरिंद' द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी आदि विभक्तियों में हो, तो वर्तमान कृदन्त भी उन्हीं विभक्तियों में होगा । जैसे - हँसते हुए राजा को, हँसते हुए राजा के द्वारा, हँसते हुए राजा के लिए आदि । इन विभक्तियों को आगे समझाया जायेगा ।
(ii) वाक्यों में प्रयोग
विशेष्य : पुल्लिंग, बहुवचन प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक )
( वर्तमानकृदन्त)
(सभी कालों में)
हसन्ता / हमारा
उद्धन्ति / प्रादि
नरिंदा
( 2 ) अर्द्धमागधी में प्रथमा एकवचन में नारद नरिंदे भी होता है, तो वर्तमान कृदन्त का रूप होगा - हसन्ते, हसमाणे । अतः वाक्य होगा
उदुइ / आदि (वर्तमान काल ) । अन्य कालों में भी इसी प्रकार
नरदे हसन्ते / हसमा बनाया जा सकता है ।
नारदा
हसन्तो / हसमाणो उट्ठहिइ /आदि
90 1
(ii) उट्ठओ / उट्टिदो / श्रादि = राजा हँसता हुआ उठा । ( भूतकालिक कृदन्त ) 3
हन्ता / हमारा उट्ठन्तु / आदि
हसन्ता / हसमाणा (i) उट्ठीप्र
(ii) उट्टिश्रा
= राजा हँसता हुआ उठा । ( भूतकाल )
हसन्ता / हसमाणा उट्टिहिन्ति / प्रदि
2010_03
= राजा हँसता हुआ उठेगा । ( भविष्यत्काल )
= राजा हँसते हुए उठते हैं । (वर्तमान काल )
= राजा हँसते हुए उठें । ( विधि एवं प्रज्ञा )
= राजा हँसते हुए उठे । ( भूतकाल )
= राजा हँसते हुए उठे । (भूतकालिक कृदन्त ) 3
= राजा हँसते हुए उठेंगे । ( भविष्यत्काल )
[ प्राकृत रचना सौरभ
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________________
(ख) क्रियाएँ
वड्ढ = बढ़ना,
वर्तमान कृदन्त के
प्रत्यय
न्त
मारण
कमलं
कमलं
कमलं
कमलं
वड्ढ
(i) वाक्यों में प्रयोग
विशेष्य : नपुंसकलिंग, एकवचन प्रथमा विभक्ति ( कर्ता कारक )
वड्ढन्त = बढ़ता हुआ
वड्ढमारण = बढ़ता हुआ
कमलाई
कमलाई
कमलाणि
( वर्तमानकृदन्त ) विप्रसन्तं / विश्रमाणं
विसन्तं / विश्रमाणं
विसन्तं / विश्रसमाणं
विसन्तं / विप्रमाणं
विश्रस = खिलना,
प्राकृत रचना सौरभ ]
( सभी कालों में ) सोहइ / आदि
2010_03
विवसताइं / विप्रसंताइँ
विश्रसंताणि
सोह / आदि
सोहिहि / आदि
विस
विप्रसन्त = खिलता हुआ विप्रसमाण = खिलता हुआ
== कमल खिलता हुआ शोभता है । (वर्तमानकाल )
= कमल खिलता हुआ शोभे । ( विधि एवं प्रज्ञा )
(i) सोहीअ
(ii) सोहि / आदि कमल खिलता हुआ शोभा । (भूतकालिक कृदन्त )
(ii) वाक्यों में प्रयोग
विशेष्य : नपुंसकलिंग, बहुवचन प्रथमा विभक्ति ( कर्ता कारक )
(वर्तमान कृदन्त)
(सभी कालों में )
= कमल खिलता हुआ शोभा । (भूतकाल )
= कमल खिलता हुआ शोभेगा । (भविष्यत्काल)
> सोहन्ति / प्रादि = कमल खिलते हुए शोभते हैं । ( वर्तमानकाल )
[ 91
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________________
कमलाई
कमलाई
कमलाणि
कमलाई
कमलाई
कमलाणि ।
कमलाई
कमलाइँ
कमलाणि
(ग) क्रियाएँ
92
वर्तमान
कृदन्त के
प्रत्यय
न्त
मारण
विश्रसंताई / विताइँ
विप्रसंताणि
रगच्च नाचना
1
विप्रसंताई / विप्रसंताई |
विप्रसंताणि
विसंता इं/ विताई
विप्रसंताणि
. एच्च
णच्चन्त = नाचता हुआ
गच्चमाण = नाचता हुआ
सोहन्तु / प्रादि
] (i) सोहीअ
2010_03
> सोहिहिन्ति / प्रादि
=सांना,
(ii) सोहिश्राइं / सोहिश्राई/ सोहारिण
सय=
= कमल खिलते हुए ( विधि एवं प्राज्ञा )
सयन्त
= कमल खिलते हुए शोभे । ( भूतकाल )
| = कमल खिलते हुए (भूतकालिक कृदन्त )
शोभें ।
= सोता हुआ
सयमाण==== = सोता हुआ
= कमल खिलते हुए शोभेंगे । (भविष्यत्काल )
सय
(i) वाक्यों में प्रयोग
नोट - सर्वप्रथम कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना चाहिए । 'श्री' प्रत्यय जोड़ें -- णच्चन्ता, सयन्ता, णच्चमाणा, सयमाणा, अब इनके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे । (स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' प्रत्यय भी जोड़ा जा सकता है—णच्चन्ती, सयन्ती, णच्चमाणी, सारणी, तब इसके रूप 'लच्छी' की तरह चलेंगे । )
शोभे ।
-
[ प्राकृत रचना सौरभ
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________________
ससा
विशेष्य : स्त्रीलिंग, एकवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक)
(वर्तमान कृदन्त) (सभी कालों में) गच्चन्ता/णच्चमाणा थक्कई/आदि
=बहिन नाचती हुई थकती है।
(वर्तमानकाल) ससा णच्चन्ताणच्चमाणा थक्कउ/ग्रादि
=बहिन नाचती हुई थके ।
(विधि एवं प्राज्ञा) ससा पाच्चन्ता/णच्चमारणा (i) थक्की
=बहिन नाचती हुई थकी।
(भूतकाल) (ii) थक्किया थक्किदा =बहिन नाचती हुई थकी।
(भूतकालिक कृदन्त) ससाणचन्ता/गच्चमाणा थक्किहिइ/ग्रादि =बहिन नाचती हुई थकेगी।
(भविष्यत्काल)
(ii) वाक्यों में प्रयोग लोट ----सर्वप्रथम वर्तमान कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना चाहिए । 'या' प्रत्यय जोड़ें-णच्चन्तों,
सयन्ता. गच्चमाणा सयमाणा, अब इनके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे। (स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' प्रत्यय भी जोड़ा जा सकता है---णच्चन्ती, सयन्ती, णच्चमाणी, सयमाणी, तब इनके रूप लच्छी की तरह चलेंमे) !
विशेष्य · स्त्रीलिंग, बहुवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक)
(वर्तमान कृदन्त) (सभी कालों में)
ससा
रगच्चन्ता/णच्चमाणा ससाम्रोणच्चन्तायो/णच्चमाणाप्रो धक्कन्ति/ग्रादि-बहिनें नाचती हई थकती हैं। ससाउ णचन्ताउणच्चमाणाउ
(वर्तमानकाल)
ससा
रगच्चन्ता/णच्चमाणा ससाप्रोणचन्तामो/णच्चमाणानो थैक्कन्तु/आदि =बहिनें नाचती हुई थकें । ससाउ णच्चन्ताउ/णच्चमाणाउ
(विधि एवं प्राज्ञा)
प्राकृत रचना सौरभ ।
[
93
2010_03
Page #111
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ससाणच्चन्ता/णच्चमाणा (i) थक्की बहिनें नाचती हुईं थकीं ।
(भूतकाल) ससानो णच्चन्तायो/णच्चमाणाम्रो
_ (ii) थक्किया थक्कि ग्रामो =बहिनें नाचती हुई णच्चन्ताउणच्चमारगाउ
थक्किग्राउ
थकी। (भूतकालिक कृदन्त)
ससाउ
ससा ससानो
णच्चन्ता/णच्चमाणा णच्चन्तायो/णच्चमाणाम्रो थक्किहिन्ति प्रादि = बहिनें नाचती हुई थकेंगी।
(भविष्यत्काल) णच्चन्ताउ/णच्चमाणाउ
ससाउ
1. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
2. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
3.
भूतकाल के भाव को प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग किया जाता
94 1
प्राकृत रचना सौरभ
____ 2010_03
Page #112
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________________
1.
निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए (भूतकाल के लिए भूतकालिक क्रिया और भूतकालिक कृदन्त दोनों का प्रयोग कीजिए ) -
( क ) ( 1 ) पुत्र शरमाता हुआ बैठता है । ( 2 ) कुत्ता भोंकता हुआ भागता है । ( 3 ) दादा दुःखी होता हुआ सोया । ( 4 ) मित्र प्रयत्न करता हुआ प्रसन्न हुआ । (5) बालक डरता हुआ रोता है | ( 6 ) वस्त्र जलता हुआ नष्ट हो जायेगा । (7) राक्षस काँपते हुए बैठते हैं । ( 8 ) समुद्र फैलते हुए सूखेंगे । ( 9 ) पोते लड़ते हुए काँपे | (10) ऊँट नाचते हुए थकते हैं । ( 11 ) पुत्र गिड़गिड़ाता हुआ बैठा । ( 12 ) मनुष्य हँसता हुआ जीवे । ( 13 ) पिता खुश होता हुआ प्रयास करे । ( 14 ) राक्षस छटपटाता हुआ मरा । ( 15 ) पानी टपकता हुआ सूखा ।
पाठ 44
( ख ) ( 1 ) लकड़ी जलती हुई नष्ट होती है । (2) नागरिक प्रयास करता हुआ जिया । (3) वैराग्य बढ़ता हुआ शोभता है । ( 4 ) विमान उड़ता हुआ गिरा । (5) राज्य लड़ते हुए नष्ट होते हैं । (6) सदाचार बढ़ता हुआ खिलता है । ( 7 ) शासन भूल करता हुआ डरता है | ( 8 ) सत्य सिद्ध होता हुआ शोभेगा । ( 9 ) कर्म गलते हुए छूटते हैं । (10) गठरियाँ लुढ़कती हुई पड़ीं ।
जल जलना
।
(ग) (1) पुत्री प्रसन्न होती हुई उठी । (2) श्रद्धा बढ़ती हुई शोभती है । अफसोस करती हुई सोती है । (4) माता उत्साहित होती हुई बैठती है फैलती हुई सूखी । ( 6 ) झोंपड़ियाँ जलती हुई नष्ट हुईं। शोभती है । (8) महिलाएं अफसोस करती हुई घूमती हैं । सिद्ध हुई । ( 10 ) घास जलता हुआ नष्ट हुआ
(7) प्रतिष्ठा बढ़ती हुई
(
9 ) वाणी प्रकट होती हुई
प्राकृत रचना सौरभ 1
2010_03
(3) पत्नी
( 5 ) नर्मदा
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पाठ 45
भूतकालिक कृदन्त (भाववाच्य में प्रयोग)
संज्ञाएं,
सवनाम
अकारान्त पुल्लिग
नरिंद
अकारान्त नपुंसकलिंग कमल
अम्ह→प्रह/हं/अभिम (पुरुषवाचक सर्वनाम,
उत्तम पुरुष, प्रथमा एकवचन) तुम्ह-→तुम/तुं/तुह (पुरुषवाचक सर्वनाम,
मध्यम पुरुष, प्रथमा एकवचन) त→सो (पुरुष) (पुरुषवाचक सर्वनाम,
अन्य पुरुष, प्रथमा एकवचन) ता→सा (स्त्री) (पुरुषवाचक सर्वनाम,
अन्य पुरुष, प्रथमा एकवचन)
आकारान्त स्त्रीलिंग
ससा
क्रियाएँ
हस-हँसना, विप्रस-खिलना,
जग्गजागना
वड्ढ=बढ़ना
(i) तृतीया एकवचन
नरिदेगा/नरिदेणं
=राजा के द्वारा हंसा गया ।
. नपुंसकलिंग एकवचन हसिग्रं/हसिदं/हसियं/हसितं विअसिग्रं/विग्रसिदं/विअसियं विग्रसितं
कमलेण/कमलेणं
=कमल के द्वारा खिला गया।
ससाए/ससाइ/ससाग्र
जग्गिअं/जग्गिदं/जग्गियं जग्गितं
=बहिन के द्वारा जागा गया ।
मइ/मए/मे/ममए हसिधे हसिदं/हसियं हसितं ___=मेरे द्वारा हँसा गया। तइ/तए। तुमे/तुमए हसिग्रं/ हसिदं/हसियं हसितं =तुम्हारे द्वारा हँसा गया । तेण तेणं
हसिय/हसिद/हसियं/हसितं = उसके द्वारा हंसा गया। ताए/तीए हसि हसिदं/हसियं/हसितं =उस (स्त्री) के द्वारा हंसा गया।
96 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #114
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(ii) तृतीया बहुवचन नपुंसकलिंग एकवचन नरिंदेहि नरिंदेहि/नरिंदेहि हसिनं/हसिदं/हसियं/हसितं =राजाओं द्वारा हँसा गया । कमलेहि/कमलेहि कमलेहिं विग्रसिअं/विप्रसिदं/विग्रसियं/ == कमलों द्वारा खिला गया ।
विग्रसितं ससाहि/ससाहि/ससाहिँ जग्गिग्रं/जग्गिदं जग्गिय/जग्गितं=बहिनों द्वारा जागा गया । अम्हेहि/अम्हाहिं हसिग्रं/हसिदं/हसियं/हसितं =हमारे द्वारा हंसा गया । तुब्भेहिं तुम्हेहिं तुझेहि हसिग्रं/हसिदं/हसियं/हसितं =तुम्हारे द्वारा हँसा गया। तेहि तेहि
हसिग्रं/हसिदं हसियं/हसितं =उनके द्वारा हँसा गया । ताहि/ताहि तीहिं हसिन हसिदं/हसियं/हसितं =उन (स्त्रियों) के द्वारा हंसा
गया।
1. (क) नरिदेण/नरिदेणं (अकारान्त पुल्लिग-तृतीया एकवचन)
कमलेण/कमलेणं (अकारान्त नपुंसकलिंग-तृतीया एकवचन) ससाए/ससाइ/ससा (आकारान्त स्त्रीलिंग-तृतीया एकवचन) मइ/मए/मे/ममए [उत्तम पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन (पुल्लिग
स्त्रीलिंग)] तइ/तए। तुमे तुमए (मध्यम पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन (पुल्लिग
स्त्रीलिंग)] तेण तेणं
[अन्य पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन (पुल्लिग)] ताए/तीए
[अन्य पुरुष सर्वनाम-तृतीया एकवचन (स्त्रीलिंग)]
तृतीया एकवचन बनाने के लिए अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों में 'रण' और 'रणं' प्रत्यय जोड़े जाते हैं, ण और णं जोड़ने पर अन्त्य 'प्र' का 'ए'हो जाता है-नरिंदेण, नरिंदेणं, कमलेण, कमलेणं । आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के एकवचन में 'ए', 'इ' और 'अ' प्रत्यय जोड़े जाते हैं-ससाए, ससाइ, ससाय । अन्य पुरुष सर्वनाम के लिए भी यही नियम समझ लेना चाहिए। बाकी उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष सर्वनाम को इसी प्रकार याद कर लेना चाहिए।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 97
2010_03
Page #115
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(ख) नरिंदेहि/नरिंदेहि/नरिंदेहिं (अकारान्त पुल्लिग-तृतीया बहुवचन)
कमलेहि कमलेहिं/कमलेहिँ (अकारान्त नपुंसकलिंग-तृतीया बहुवचन) ससाहि/ससाहिं/ससाहिं (आकारान्त स्त्रीलिंग- तृतीया बहुवचन) अम्हेहि अम्हाहि [उत्तम पुरुष सर्वनाम - तृतीया बहुवचन (पुल्लिग
__ स्त्रीलिंग)] तुब्भेहिं/तुम्हेहिं/तुज्झेहिं [मध्यम पुरुष सर्वनाम-तृतीया बहुवचन (पुल्लिग
स्त्रीलिंग)] तेहिं तेहि
[अन्य पुरुष सर्वनाम-तृतीया बहुवचन (पुल्लिग)] ताहि/ताहि/तीहिं __ [अन्य पुरुष सर्वनाम- तृतीया बहुवचन (स्त्रीलिंग)]
तृतीया बहुवचन बनाने के लिए अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दो में तथा प्राकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में हि, हिं, हिँ प्रत्यय जोड़े जाते हैं, इनके जोड़ने पर प्रकारान्त शब्दों का अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है- नरिंदेहि, नरिंदेहि, नरिंदेहिँ तथा प्राकारान्त में कोई परिवर्तन नहीं होता- ससाहि, ससाहि, ससाहिं।
उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के सर्वनामों के तृतीया बहुवचन को उपर्युक्त प्रकार से याद कर लेना चाहिए।
(ग) अर्द्धमागधी में उत्तम पुरुष तृतीया बहुवचन के लिए अम्हेहि काम में प्राता है
(पिशल पृष्ठ, 614)।
2. यदि क्रिया अकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त भाववाच्य में भी प्रयुक्त होता है ।
भूतकालिक कृदन्त से भाववाच्य बनाने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचने अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव 'नपुंसकलिंग एकवचन' ही रहेगा ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं तथा सभी वाक्य भाववाच्य के हैं ।
98 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
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Page #116
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पाठ 46
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
- (1) पानी द्वारा झरा गया । (2) बादलों द्वारा गरजा गया। (3) मित्र द्वारा प्रसन्न हुआ गया । (4) अपयश द्वारा फैला गया । (5) समुद्रों द्वारा सूखा गया । (6) अग्नि द्वारा जला गया। (7) मृत्यु द्वारा नष्ट हुअा गया । (8) हमारे द्वारा काँपा गया । (9) तुम्हारे द्वारा घूमा गया। (10) उसके द्वारा खेला गया। (11) विमान द्वारा उड़ा गया । (12) गठरी द्वारा लुढ़का गया। (13) लकड़ियों द्वारा जला गया । (14) सूर्य द्वारा उगा गया । (15) मनुष्य द्वारा जन्म लिया गया। (16) कुत्तों द्वारा भोंका गया । (17) कुनों द्वारा सूखा गया । (18) राक्षस द्वारा मरा गया । (19) रत्नों द्वारा शोभा गया । (20) सिंहों द्वारा गरजा गया। (21) परीक्षा द्वारा हुपा गया । (22) कन्याओं द्वारा छिपा गया ।(23) महिलाओं द्वारा शान्त हुअा गया । (24) बेटी द्वारा खाँसा गया । (25) प्रतिष्ठा द्वारा कम हुअा गया । (26) बुढ़ापे द्वारा बढ़ा गया । (27) सुख द्वारा गला गया । (28) धान द्वारा पैदा हुया गया। (29) भूख द्वारा शान्त हुपा गया। (30) राज्यों द्वारा लड़ा गया । (31) उनके द्वारा थका गया। (32) तुम्हारे द्वारा डरा गया । (33) उन (स्त्रियों) द्वारा खेला गया । (34) तुम दोनों के द्वारा नहाया गया। (35) उस (स्त्री) के द्वारा खुश हुअा गया।
प्राकृत रचना सौरभ
[ 99
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पाठ 47 क्रियाएँ और उनका भाववाच्य में प्रयोग संज्ञाएँ
सर्वनाम अकारान्त पुल्लिग नरिंद अम्ह→प्रहं हं अम्मि (पुरुषवाचक सर्वनाम,
उत्तम पुरुष, प्रथमा एकवचन) अकारान्त नपुंसकलिंग कमल तुम्ह-तुम तु/तुह (पुरुषवाचक सर्वनाम,
__ मध्यम पुरुष, प्रथमा एकवचन) आकारान्त स्त्रीलिंग ससा त→सो (पुरुष) । (पुरुषवाचक सर्वनाम,
तासा (स्त्री) 5 अन्य पुरुष, प्रथमा एकवचन)
क्रियाएँ
हस-हंसना, वड्ढ=बढ़ना,
जग्ग=जागना विप्रस=खिलना
उपर्युक्त क्रियाएँ अकर्मक हैं। अकर्मक क्रियाएँ कर्तृवाच्य और भाववाच्य में प्रयुक्त होती हैं । अकर्मक क्रियाओं का कर्तृवाच्य में प्रयोग बताया जा चुका है। अकर्मक क्रिया से भाववाच्य बनाने के लिए 'इज्ज', 'ईप्र/ईय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं । भाववाच्य में कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) हो जाता है और क्रिया में भाववाच्य के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् 'अन्य पुरुष एकवचन' (अ.पु.ए.) के प्रत्यय (इ/ए/दिदे) लगा दिए जाते हैं। भाववाच्य वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि एवं प्राज्ञा में बनाया जाता है । भविष्यत्काल भाववाच्य में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य का रूप ही रहता है, उसमें 'इज्ज' आदि प्रत्यय नहीं लगते । भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग भाववाच्य में किया जा सकता हैं ।
भाववाच्य के प्रत्यय
हस
वर्तमानकाल (अ.पु.ए.)
भूतकाल (अ.पु.ए.)
विधि एवं प्राज्ञा (अ.पु ए.)
इज्ज
हसिज्ज
हसिज्जइ
हसिज्जई हसिज्जदि ) आदि (हसिज्जी)) हसीअइ/हसीअदि हसीआईअ (हसीईअ)
हसिज्जउ । हसिज्जदु। हसीअउ हसीअदु
ईग्र/ईय हसीग्र/हसीय
100
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
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तृतीया एकवचन (संज्ञा)
वर्तमानकाल हसिज्जइ/आदि हसीअइ/आदि
नरिदेण/नरिदेणं
__ =राजा के द्वारा हंसा जाता है ।
कमलेण/कमलेणं
विप्रसिज्जइ/आदि विप्रसीअइ/आदि
=कमल द्वारा खिला जाता है ।
ससाए/ससाइ/ससा
जग्गिज्जइ/ग्रादि जग्गीअइ/ग्रादि
___ =बहिन के द्वारा जागा जाता है।
तृतीया एकवचन (सर्वनाम)
हसिज्जइ/आदि मइ/मए/मे/ममए
हसीअइ/आदि
=मेरे द्वारा हंसा जाता है।
तइतए/
तुमे/तुमए
हसिज्जइ/आदि हसीअइ आदि
=तुम्हारे द्वारा हंसा जाता है ।
तेण/तेणं
हसिज्ज इ/आदि हसीआइ/आदि
=उस (पुरुष) के द्वारा हंसा जाता है ।
ताए तीए
हसिज्जइ/ग्रादि हसीअइ/आदि
___ =उस , स्त्री) के द्वारा हँसा जाता है ।
तृतीया एकवचन (संज्ञा) विधि एवं प्राज्ञा
हसिज्जउ/हसिज्जदु नरिदेण/नरिदेणं
___=राजा के द्वारा हंसा जाए । हसीअउ/हसीअदु
कमलेण कमलेणं
विप्रसिज्जउ/विअसिज्जदु विप्रसीअउ/विप्रसीअदु
-कमल द्वारा खिला जाए।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 101
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Page #119
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ससाए/ससाइ/ससान
जग्गिज्जउ जग्गिज्जदू
____=बहिन द्वारा जागा जाए। जग्गीअउ जगर्ग अदु
तृलोया एकवचन (सर्वनाम)
हसिज्जउ/हसिज्जदु मइ/मए/मे/ममए
हसीअउ/हसीअदु
=मेरे द्वारा हंसा जाए।
हसिज्जउ/हसिज्जदु तइतए/ 'तुमे तुमए
हसीअउ/हसीअदु
=तुम्हारे द्वारा हंसा जाए।
तेण/तेणं
हसिज्जउ/हसिज्जदु हसीअउ/हसीअदु
=उस (पुरुष) के द्वारा हंसा जाए।
ताए/तीए
हसिज्जउ/हसिज्जदु हसीअउ/हसीअदु
= उस (स्त्री) के द्वारा हंसा जाए।
तृतीया एकवचन (संज्ञा) भूतकाल
हसिज्जईअ (हसिज्जीप्र) नरिदेण/नरिदेणं
हसीअईअ (हसीईअ)
=राजा के द्वारा हंसा गया ।
कमलेण/कमलेणं
विअसिज्जई (विअसिज्जी)
=कमल द्वारा खिला गया। विअसीमईअ (विप्रसीईअ)
ससाए/ससाइ/ससाय
जग्गिज्जी जग्गीमई
-बहिन द्वारा जागा गया ।
तृतीया एकवचन (सर्वनाम)
मइ/मए/मे/ममए हसिज्जीन/हसीअईअ
=मेरे द्वारा हँसा गया ।
102 ]
प्राकृत रचना सौरभ
___JainEducation International 2010_03
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तइतए। तुमे/तुमए हसिज्जी/हसीआईअ =तुम्हारे द्वारा हँसा गया । तेण तेणं हसिज्जी हसीअई ___=उस (पुरुष) के द्वारा हँसा गया । ताए तीए हसिज्जी/हसीअईअ =उस (स्त्री) के द्वारा हँसा गया ।
नोट-(i) भाववाच्य में भूत काल के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग किया जाता है ।
[इसके लिए देखें पाठ-45 (ii)] । (i) ठा आदि क्रियाओं के रूप होंगे-ठाइज्जसी/ठाईअसी, ठाइज्जही/ठाईअही,
ठाइज्जहीग्र/ठाईअहीन ।
तृतीया एकवचन (संज्ञा)
नरिंदेरण/नरिंदेणं
भविष्यत्काल हसिहिइ/आदि
=राजा के द्वारा हँसा जायेगा ।
नोट-इसी प्रकार अन्य वाक्य बना लेने चाहिए। हसिहिइ कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है । भविष्यत्काल के भाववाच्य में यही रूप काम में आता है । इसमें 'इज्ज' आदि प्रत्यय नहीं जुड़ते।
तृतीया बहुवचन (संज्ञा)
वर्तमानकाल हसिज्जइ/आदि हसीअइ/आदि
नरिदेहि/नरिंदेहि/नरिदेहिँ
राजाओं के द्वारा हंसा जाता है।
कमा हि/कमलेहिं/कमलेहि
विअसिज्जइ/प्रादि विअसीअइ/आदि
=कमलों द्वारा खिला जाता है ।
ससाहि/ससाहिं। ससाहिँ
जग्गिज्जइ/आदि जग्गीअइ/ग्रादि
=बहिनों द्वारा जागा जाता है।
तृतीया बहुवचन (सर्वनाम)
अम्हेहि अम्हाहि
हसिज्जइ/पादि हसीअइ/आदि
-हमारे द्वारा हंसा जाता हैं।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
103
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Page #121
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________________
तुब्भेहिं/तुम्हेहि/तुझेहि
हसिज्जइ/आदि हसीअइ/आदि
___=तुम्हारे द्वारा हंसा जाता है ।
हसिज्जइ/आदि
तेहिं/तेहि
= उन (पुरुषों) के द्वारा हंसा जाता
हसिअइ/आदि
ताहि/ताहि/तीहिं
हसिज्जइ/आदि हसीअइ/अादि
=उन (स्त्रियों) के द्वारा हंसा जाता
तृतीया बहुवचन (संज्ञा) विधि एवं प्राज्ञा नरिदेहि/नरिदेहि/नरिदेहि
- हसिज्जउ/हसिज्जदु हसीअउ/हसीअदु
=राजाओं के द्वारा हंसा जाए।
विअसिज्जउ/विप्रसिज्जदु। कमलेहि/कमलेहिं/कमलेहिँ ...
-कमलों द्वारा खिला जाए। विप्रसीअउ/विप्रसीप्रदु
ससाहि/ससाहिं/ससाहिँ
जग्गिज्जउ/जग्गिज्जदू जग्गीअउ/जग्गीप्रदु
=बहिनों द्वारा जागा जाए।
तृतीया बहुवचन (सर्वनाम)
हसिज्जउ/हसिज्जदु अम्हेहि/अम्हाहि
हसीअउ/हसीअदु
___
हमारे द्वारा हँसा जाए ।
तुब्भेहि/तुम्हेहिं तुज्झेहि
हसिज्ज उ/हसिज्जदु हसीअउ/हसीअदु
=तुम्हारे द्वारा हँसा जाए।
तेहिं/तेहि
हसिज्जउ/हसिज्जदु हसीअउ/हसीअदु
=उन (पुरुषों) के द्वारा हंसा जाए।
104 ]
.
प्राकृत रचना सौरभ
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Page #122
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ताहिताहितीहिं
हसिज्जउ/हसिज्जदु
____=उन (स्त्रियों के द्वारा हँसा जाए । हसीअउ/हसीअदु
तृतीया-बहुवचन (संज्ञा)
भूतकाल
हसिज्जईअ (हसिज्जी) नरिदेहि/नरिंदेहिं नरिदेहिँ
हसीअईअ (हसीईअ)
=राजाओं द्वारा हँसा गया।
इसी प्रकार अन्य वाक्य बनेंगे ।
तृतीया बहुवचन (सर्वनाम)
हसिज्जईअ (हसिज्जी) अम्हेहि/अम्हाहि
हसीआईअ (हसीईअ)
=हमारे द्वारा हँसा गया।
इसी प्रकार अन्य वाक्य बनेंगे ।
नोट- (i) भाववाच्य में भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग किया जाता है ।
[इसके लिए देखें पाठ-45 (ii) ।]
(ii) 'ठा' आदि क्रियाओं के रूप होंगे --ठाइज्जसी/ठाईअसी, ठाइज्जही/ठाईग्रही,
ठाइज्जहीग्र/ठाईअही।
तृतीया बहुवचन (संज्ञा) भविष्यत्काल
नरिदेहि नरिंदेहि/नरिंदेहिँ हसिहिइ/पादि
=राजाओं के द्वारा हँसा जायेगा।
इसी प्रकार अन्य वाक्य बनेंगे ।
तृतीया बहुवचन (सर्वनाम)
अम्हेहि/अम्हाहिं
-हसिहिइ/आदि
=हमारे द्वारा हंसा जायेगा ।
इसी प्रकार अन्य वाक्य बनेंगे ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 105
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Page #123
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नोट - भविष्यत्काल के भाववाच्य में ये ही रूप काम में आते हैं । इनमें इज्ज / ईश्र आदि प्रत्यय नहीं लगते ।
पाठ-45 का पाद टिप्पण 1 ( क ) देखें |
2. पाठ-45 का पाद टिप्पण 1 ( ख ) देखें |
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं तथा वाक्य भाववाच्य के हैं ।
1.
106
]
2010_03
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #124
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पाठ 48
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(1) विमान द्वारा उड़ा जाता है। (2) पानी द्वारा झरा जाता है। (3) मित्र द्वारा प्रसन्न हुआ जाता है । (4) समुद्रों द्वारा सूखा जाता है। (5) लकड़ी द्वारा जला जाता है । (6) हमारे द्वारा कांपा जाता है। (7) उनके द्वारा खेला जाता है । (8) गठरी द्वारा लुढ़का जाता है । (9) सिंहों द्वारा गरजा जाता है । (10) कन्याओं द्वारा छिपा जाता है ।
(11) उनके द्वारा खेला जाए । (12) मनुष्यों द्वारा जन्म लिया जाए । (13) महिलाओं द्वारा शान्त हुआ जाए। (14) राज्यों द्वारा लड़ा जाए। (15) पुत्रियों द्वारा थका जाए । (16) माता द्वारा खुश हुअा जाए। (17) शिक्षा द्वारा फैला जाए । (18) श्रद्धा द्वारा बढ़ा जाए। (19) परीक्षा द्वारा हुआ जाए। (20) उन ( स्त्रियों) के द्वारा शरमाया जाए ।
(21) विमान द्वारा उड़ा जायेगा । (22) राज्यों के द्वारा लड़ा जायेगा । (23) उनके द्वारा उछला जायेगा । (24) कुत्तों द्वारा भोंका जायेगा। (25) बीजों द्वारा उगा जायेगा।
(26) राज्य द्वारा लड़ा गया । (27) मनुष्यों द्वारा भागा गया । (28) माता द्वारा प्रसन्न हुना गया । (29) उनके द्वारा खाँसा गया । ( 30) कुत्ते द्वारा भोंका गया ।
प्राकृत रचना सौरमं ]
[
107
2010_03
Page #125
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विधि कृदन्त (भाववाच्य में प्रयोग )
प्राकृत में 'हँसा जाना चाहिए', 'जागा जाना चाहिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय लगाकर विधि कृदन्त बनाये जाते हैं । विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया ( एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन ही रहेगा । विधि कृदन्त का यह रूप 'कमल' (नपुंसकलिंग) शब्द की तरह चलेगा । विधि कृदन्त कर्तृवाच्य में प्रयुक्त नहीं होता है ।
क्रियाएँ
अकारान्त पुल्लिंग
अकारान्त नपुंसकलिंग कमल
आकारान्त स्त्रीलिंग ससा
विधि कृदन्त
के प्रत्यय 1
हस हँसना,
संज्ञाएँ
श्रव्व / यव्व
तव्व
दव्व
गीय
नरिंद
हसिनव्व / हसियव्व ) सेव्व / हसेव्व J
हसितव्व / हसेतव्व
हसिदव्व / हसे दव्व
हसरणीय
(अकारान्त क्रियाओं में लगता है)
108 ]
हस
2010_03
पाठ 49
सर्वनाम
म्ह श्रहं / हं / अम्मि ( पुरुषवाचक सर्वनाम, उत्तम पुरुष, एकवचन )
तुम्ह तुमं / तुं / तुह ( पुरुषवाचक सर्वनाम,
तसो (पुरुष) तासा (स्त्री)
जग्ग जागना,
जग्ग
1. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 811, 812 ।
जग्गिश्रव्व / जग्गियव्व जग्गेव्व / जग्गेयव्व
जग्गतव्व / जग्गेतव्व
जग्गिदव्व / जग्गेदव्व
जग्गणी
मध्यम पुरुष, एकवचन ) (पुरुषवाचक सर्वनाम,
अन्य पुरुष एकवचन )
विश्वस खिलना
विअस
विससिश्रव्व वियसियव्व विसेव्व / विश्व से यव्व
विग्रसितव्व / विश्र से तव्व विप्रसिदव्व विश्र से दव्व विप्रसणीय
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #126
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________________
(i) तृतीया एकवचन (संज्ञा)
नपुंसकलिंग एकवचन हसिअव्वं/हसियव्वं/हसितव्वं हसिदव्वं/हसणीयं हसेअव्वं/हसेयव्वं हसेतव्वं हसेदव्वं
नरिदेण/नरिंदेणं
= राजा के द्वारा हंसा जाना चाहिए।
कमलेण/कमलेणं
विसिव्वं विप्रसियव्वं/विअसितवं | विप्रसिदध्वं/विअसणीयं
=कमल द्वारा खिला विअसेअव्वं/विअसेयव्वं/वियसेतव्वं जाना चाहिए । विअसेदव्वं
ससाए/ससाइ/ससान
जग्गिअव्वं/जग्गियव्बं/जग्गितन्वं/ जग्गिदव्वं जग्गरणीयं जग्गेअव्वं/जग्गेयव्वं जग्गेतव्वं जग्गेदव्वं
=बहिन द्वारा जागा जाना चाहिए।
तृतीया एकवचन (सर्वनाम)
हसिव्वं हसियव्वं हसितव्ये । हसिदव्वं/हसणीयं हसेअव्वं/हसेयव्व हसेतव्वं
मइ/मए/मे/ममए
=मेरे द्वारा हंसा जाना चाहिए।
हसेदव्वं
तइतए/
तुमे/तुमए
हसिअव्वं/हसियध्वं/हमितव्वं । हसिदव्वं/हसणीय हसेअव्वं/हसेयवं हमेतव्व। हसेदव्वं
-तुम्हारे द्वारा हंसा जाना चाहिए।
तेण/तेणं
हसिप्रव्वं/हसियध्वं हसितव्वं हसिदव्वं हसणीयं हसे अव्वं/हसेयध्वं/हसेतन्वं/ हसेदवं
=उस (पुरुष) के द्वारा हंसा जाना चाहिए।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 109
2010_03
Page #127
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ताए / तीए
(ii) तृतीया बहुवचन (संज्ञा )
नारदेहि / नरदेहि/रिदेहिं
कमले हि/कमले हि / कमलेहिँ
ससाए / ससाइ / ससान
तृतीया बहुवचन (सर्वनाम )
हि हाह
तुम्भेहि / तुम्हे हि/तुज्झेहि
110 ]
2010_03
हसिनव्वं /हसि यव्वं /हसितव्वं / हमिदव्वं /हसरणीयं हसे अव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं / हसेदव्वं
नपुंसकलिंग एकवचन
हसिव्वं / हसियव्वं /हसितव्वं / हसिदव्वं / हसणीयं ह से प्रव्वं /ह से यव्वं /ह सेतव्वं / हसेदव्वं
विसिप्रभ्वं /विसियव्वं /विश्रसितव्वं / विसिदव्वं /विसरणीयं विश्रसेव्वं /विसे यव्वं / विप्रसेतव्वं विप्रसेदव्वं
जग्गव्वं /जग्गियव्वं /जग्गितव्वं / जग्गिदव्वं/ जग्गणीयं
जग्गेव्वं / जग्गे यव्वं / जग्गेतव्वं / जग्गेदव्वं
नपुंसकलिंग एकवचन
हसिव्वं /हसि यव्वं /हसितव्वं / हसिदव्वं /हसरणीयं हसे अव्वं /ह से यव्वं /ह से तव्वं / हसेदव्वं
हसव्वं /हसियव्वं /हसितव्वं / हसिदव्वं /हसरणीयं हसेव्वं /ह से यव्वं /ह सेतव्वं / हसेदव्वं
= उस (स्त्री) के द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
= राजाओं द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
= कमलों द्वारा खिला जाना चाहिए ।
बहिनों द्वारा जागा जाना चाहिए ।
= हमारे द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
=== तुम्हारे द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #128
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________________
1.
2.
3.
4.
5.
तेहि ह
ताहि / ताहितीह
हसिव्वं /हसियव्वं / हसितव्वं / हसदव्वं / हसणीयं ह से अव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं / हसेदव्वं
पाठ-45 का पादटिप्पण 1 (क) देखें |
पाठ-45 का पादटिप्पण 1 ( ख ) देखें ।
हसिव्वं / हसियव्वं /हसितव्वं /
हसिदव्वं / हसणीयं हसेव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं /
हसे दव्वं
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं तथा वाक्य भाववाच्य में हैं ।
अव्व / यव्व / तव्व / दव्व प्रत्यय लगने के पश्चात् 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । आकारान्त आदि क्रियानों में भी ये ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं—ठायव्व, ठादव्व, ठातव्व, होयव्व, होदव्व, नेयव्व, नेदव्व श्रादि ।
= उन (पुरुषों) के द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
अर्द्धमागधी में विधि कृदन्त के लिए रिगज्ज प्रत्यय भी अकारान्त क्रियाओं में जोड़ा जाता है ---हसरिगज्ज, जग्गरिगज्ज आदि । ( घाटगे, पृष्ठ 144; पिशल, पृष्ठ 812 ) 1
=
= उन (स्त्रियों) के द्वारा हँसा जाना चाहिए ।
111
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पाठ 50
___ निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए-.
(1) राज्य द्वारा लड़ा जाना चाहिए । (2) श्रद्धा द्वारा बढ़ा जाना चाहिए । (3) उनके द्वारा खेला जाना चाहिए। (4) माता द्वारा खुश हुया जाना चाहिए। (5) मनुष्यों द्वारा जन्म लिया जाना चाहिए। (6) उन (स्त्रियों) द्वारा शरमाया जाना चाहिए । (7) कुत्ते द्वारा भोंका जाना चाहिए। (8) स्त्रियों द्वारा नाचा जाना चाहिए । (9) कन्याओं द्वारा छिपा जाना चाहिए। (10) मित्रों द्वारा प्रसन्न हुया जाना चाहिए। (11) लकड़ी द्वारा जला जाना चाहिए । (12) सूर्य द्वारा उमा जाना चाहिए ।(13) सिंह द्वारा गरजा जाना चाहिए ।(14) उसके द्वारा खेला जाना चाहिए। (15) मेरे द्वारा कूदा जाना चाहिए। (16) तुम दोनों के द्वारा उत्साहित हुआ जाना चाहिए । (17) हमारे द्वारा डरा जाना चाहिए। (18) राक्षस द्वारा मरा जाना चाहिए। (19) बीजों द्वारा उगा जाना चाहिए। (20) विमान द्वारा उड़ा जाना चाहिए।
1121
[ प्राकृत रचना सौरम
___ 2010_03
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पाठ 51
संज्ञा शब्द द्वितीया एकवचन
संज्ञाएं
द्वितीया एकवचन
प्रकारान्त पुल्लिग
नरिदं
नरिंद =राजा करह =ऊँट परमेसर =परमेश्वर
करहं परमेसरं
प्रकारान्त नपुंसकलिंग
भोयणं
भोयण = भोजन तिरण = घास रज्ज =राज्य
तिणं
रज्जं
मायं
प्राकारान्त स्त्रीलिंग माया =माता
कहा =कथा सिक्ख =शिक्षा
कह
सिक्खं
क्रियाएँ
रवख-रक्षा करना,
पाल-पालना
सुरण = सुनना जाण=जानना, समझना
चर-चरना,
पणम=प्रणाम करना,
खा-खाना
वर्तमानकाल
(i) अकारान्त पुल्लिग
(द्वितीया एकवचन)
रिदो
परमेसरं पणमइ/परणमदि/आदि
=राजा परमेश्वर को प्रणाम करता है ।
नरिदं
रक्खइ/रक्ख दि/आदि
राजा राज्य की रक्षा करता है ।
माया
नरिदं
पणमइ/पणमदि/आदि =माता राजा को प्रणाम करती है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 113
2010_03
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(ii) अकारान्त नपुंसकलिंग ( द्वितीया एकवचन )
करहो
तिणं
नरिंदो रज्जं
माया भोयणं
(iii) प्राकारान्त स्त्रीलिंग
(द्वितीया एकवचन)
मायं
सिक्खं
कहं
1.
नरदो
रज्जं
माया
(iv) पुरुषवाचक सर्वनाम
( द्वितीया एकवचन )
श्रहं / हं/श्रम्मि
तुमं / तुं / तुह
सो
सा
114
तुमं / तु
ममं / मं / म
तं
तं
चरइ / चरदि/प्रादि
रक्खइ / रक्खदि / आदि
खाइ / खादि / आदि
1
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल
2010_03
परमइ / परणमदि / आदि
जाइ / जादि / आदि
सुरण / सुरदि / आदि
पणमामि / श्रादि
पालसि / आदि
जाणइ / जारण दि/आदि
जार इ/ जादि / प्रदि
रक्खइ / रक्खदि / आदि
ऊंट घास चरता है
=
= राजा राज्य की रक्षा करता है ।
= माता भोजन खाती है ।
= राजा माता को प्रणाम करता है । = राज्य शिक्षा को समझता है । = माता कथा सुनती है ।
(i) प्रकारान्त पुल्लिंग नपुंसकलिंग शब्दों से द्वितीया एकवचन बनाने के लिए '' (अनुस्वार) जोड़ा जाता है। जैसे-नरिद नरिदं रज्ज - रज्जं ।
= मैं तुमको प्रणाम करता हूँ ।
= तुम मुझको पालते हो ।
= वह उस (पुरुष) को जानता है ।
=
= वह उस (स्त्री) को जानती है ।
= वह उस ( राज्य ) की रक्षा करता है ।
(ii) आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों से द्वितीया एकवचन बनाने के (अनुस्वार) जोड़ा जाता है, किन्तु अनुस्वार ( - ) जाता है, अर्थात् दीर्घ शब्द ह्रस्व हो जाता है । कहाकहं ।
(iii) उत्तम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया एकवचन - ममं / मं / म मध्यम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया एकवचन - - तुम / तु
अन्य पुरुष ( पुल्लिंग, स्त्री, नपुं. ) सर्वनाम का द्वितीया एकवचन-तं
लिए भी ' जोड़ने पर श्राश्र हो जैसे - माया मायं,
[ प्राकृत रचना सौरभ
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2. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं । सकर्मक क्रिया वह होती है का प्रभाव कर्म पर पड़ता है । जैसे— 'माता कथा सुनती है, क्रिया 'सुनना ' है । इसका प्रभाव 'कथा' पर पड़ता है, अतः 'सुनना' क्रिया का कर्म 'कथा' है ।
3.
4.
उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं। इसमें कर्ता के अनुसार क्रियानों के पुरुष और वचन होते हैं । संज्ञा वाक्यों में कर्ता अन्य पुरुष एकवचन में है, अतः क्रियाएँ भी अन्य पुरुष एकवचन की ही लगी हैं । सर्वनाम वाक्यों में क्रिया उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा अन्य पुरुष बहुवचन के अनुरूप लगी है ।
जिसमें कर्ता की क्रिया इसमें कर्ता 'माता' की क्योंकि 'कथा' सुनी जाती है ।
ऊपर वर्तमानकाल के वाक्य दिए गए हैं । द्वितीया एकवचन का प्रयोग करते हुए भविष्यत्काल, भूतकाल तथा विधि एवं प्रज्ञा के वाक्य भी बना लेने चाहिए | कर्ता एकवचन के स्थान पर कर्ता बहुवचन का प्रयोग करके भी सभी कालों में वाक्य बना लेने चाहिए ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
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पाठ 52
संज्ञा शब्द द्वितीया बहुवचन
अकारान्त पुल्लिग
सज्ञाएँ नरिंद =राजा करह =ॐट परमेसर-परमेश्वर
द्वितीया बहुवचन नरिंदा/नरिंदे करहा/करहे परमेसरा/परमेसरे
अकारान्त नपुंसकलिंग
भोयरण =भोजन तिरण =घास रज्ज =राज्य
भोयणाइं/भोयण।इँ/भोयणाणि तिणाइ/तिणाइँ/तिणाणि रज्जाइं/रज्जाइँ/रज्जाणि
प्राकारान्त स्त्रीलिग
माया माता कहा कथा सिक्खा =शिक्षा
माया/मायाउ/मायामो कहा/कहाउ/कहाअो सिक्खा/सिक्खाउ/सिवखाओ
क्रियाएँ
रक्ख-रक्षा करना, चर-चरना, खा-खाना
पाल-पालना परगम-प्रणाम करना,
मुरग=सुनना जार=जानना, समझना
प्रकार
वर्तमानकाल (द्वितीया बहुवचन) नरिंदो परमेसरा/परमेसरे पणमइ/पणमदि/अादि= राजा परमेश्वरों (सिद्धों) को प्रणाम
करता है। रज्जं नरिंदा/नरिदे रक्ख इ/रक्खदि/प्रादि = राज्य राजाओं की रक्षा करता है ।
नरिंदा/नरिंदे पणमइ/पणमदि/आदिमाता राजानों को प्रणाम करती है ।
माया
(ii) अकारान्त नपुंसकलिंग वर्तमानकाल
(द्वितीया बहुवचन) करहो तिणाई/तिणाइँ/तिणाणि चरइ/चरदि/आदि =ऊँट (विभिन्न प्रकार के)
घास चरता है।
116 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
For Private
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नरिदो रज्जाइं/रज्जाइँ/रज्जाणि रक्खइ/रक्ख दि/आदि राजा राज्यों की रक्षा
करता है। माया भोयणाई/मोयणाई/भोयणाणि खाइ/खादि/आदि =माता (विभिन्न प्रकार) के
भोजन खाती है।
(iii) प्राकारान्त स्त्रीलिंग वर्तमानकाल
(द्वितीया बहुवचन) रिदो माया/मायाउ/प्रायानो पणम इ/पणमदि/आदि=राजा माताओं को प्रणाम
करता है। रज्जं सिक्ख/सिक्खाउ/सिक्खाओ जाणइ/जाणदि/आदि =राज्य शिक्षाओं को
समझता हैं। माया कहा कहाउ कहानो सुणइ/सुणदि/प्रादि =माता कथानों को सुनती है । (iv) पुरुष वाचक सर्वनाम वर्तमानकाल
(द्वितीया बहुवचन) अहं हं/अम्मि तुम्हे तुज्झ/तुब्भे/भे पणमामि/आदि == मैं तुम (सब को) प्रणाम करता हूँ।
करती हूँ। तुमं/तुं/तुह अम्हे/अम्हणे पालसि/आदि =तुम हम (तब को) पालते हो/पालती
हो। ते ता
जाण इ/आदि =वह उन (पुरुषों) को जानता है । सा ता/ताउ/ताप्रो जाणइ/आदि = वह उन (स्त्रियों) को जानती है ।
ताइं/ताइ/ताणि रक्ख इ/आदि =वह उन (राज्यों) की रक्षा करती है।
1. (i) अकारान्त पुल्लिग संज्ञा शब्दों से द्वितीया बहुवचन बनाने के लिए 'o' प्रत्यय
जोड़ा जाता है, '०' प्रत्यय जोड़ने पर अ का प्रा और ए हो जाता है । नरिंद→नरिंदा, नरिंदे ।
(ii) अकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों से द्वितीया बहुवचन बनाने के लिए इं, इँ और
णि प्रत्यय जोड़े जाते हैं तथा इनके जोड़ने पर प्र का प्रा हो जाता है ।
रज्ज→रज्जाइं, रज्जाइ, रज्जाणि । (iii) आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में द्वितीया बहुवचन बनाने के लिए 0, उ, प्रो
प्रत्यय जोड़े जाते हैं । जैसे-माया, मायाउ, मायाप्रो ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
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(iv) उत्तम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया बहुवचन-अम्हे/अम्ह/रणे __ मध्यम पुरुष सर्वनाम का द्वितीया बहुवचन-तुम्हे/तुझे/तुम्भे मे अन्य पुरुष सर्वनाम का द्वितीया बहुवचन--(पुल्लिग)- ते/ता
(नपुंसकलिंग) - ताइं/ताई/तारिख (स्त्रीलिंग)-ता/ताउ, ताम्रो
2. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं।
3. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
4. ऊपर वर्तमानकाल के वाक्य दिए गए हैं। द्वितीया बहुवचन का प्रयोग करते हुए
भूतकाल, भविष्यत्काल तथा विधि एवं आज्ञा के वाक्य बना लेने चाहिए । कर्ता एकवचन के स्थान पर कर्ता बहुवचन का प्रयोग करके भी सभी कालों में वाक्य बना लेने चाहिए।
118 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
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पाठ 53
1. निम्नलिखित सकर्मक क्रियाओं को कर्तृवाच्य में प्रयोग कीजिए । यह प्रयोग वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यत्काल तथा विधि एवं आज्ञा में हो ।
2.
अच्च
रोक्क = रोकना,
उग्घाड = खोलना, प्रकट करना,
उवयर = उपकार करना,
उप्पाड = उपाड़ना, उन्मूलन करना,
कट्ट
==काटना,
कलंक = कलंकित करना,
= पूजा करना,
कोक्क = बुलाना,
= खोदना,
खण
छोड
= छोड़ना,
छोल = छीलना,
जिम
=जीमना,
ढक्क
= ढकना,
तोड = तोड़ना,
गरह = निन्दा करना
-
गवेस
= खोज करना
चक्ख
= चखना
चिण
= इकट्ठा करना
चोप्पड = स्निग्ध करना
= छोड़ना
छड
छल
छुव
देवख
धोन
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पोस
पुक्कर
फाड
कुट्ट
=
ठगना
- स्पर्श करना
= देखना
= धोना
= पीसना
=
=
पुकारना
= फाड़ना
= कूटना
निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
करता है । (2) (4) देवर वस्त्र
(
( क ) ( 1 ) पिता पुत्र की निन्दा (3) परमेश्वर संसार को देखता है। छोड़े । ( 6 ) मित्र उसको पुकारे । 7 ) राम परमेश्वर की पूजा करे । ( 8 ) कुत्ता राक्षस को रोकता है । (9) राजा रत्नों की खोज करता है । ( 10 ) मनुष्य व्रतों को छोड़ते हैं । ( 11 ) वह बालक को ठगता है । ( 12 ) तुम सिंह को देखते हो । ( 13 ) मैं उसको स्पर्श करता हूँ । ( 14 ) वे उनको कलंकित करते हैं । ( 15 ) वह वस्त्रों को फाड़ता है । ( 16 ) दुःख सुख को रोकता है । ( 17 ) मित्र सिंहों को देखता है । ( 18 ) मामा शास्त्रों को स्पर्श करता है । ( 19 ) हनुमान उसका उपकार करता है । ( 20 ) हम सूर्य को ढकते हैं ।
( ख ) ( 1 ) वह खेत खोदेगा । (2) तुम भोजन जीमोगे । ( 3 ) वह लकड़ी छीले । ( 4 ) वह व्यसन छोड़े । ( 5 ) तुम दूध चखा । ( 6 ) वे गठरी काटेंगे । (7) हम धान कुटेंगे । ( 8 ) वे जंगल काटते हैं । (9) वह बीजों को पीसता है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
दादा पोते को बुलाता है । धोता है । (5) राजा गर्व को
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(ग) (1) राम सीता को बुलाता है। (2) मैं कन्या को पुकारता हूँ। (3) महिला गड्ढा खोदती है। (4) बहिन पुत्रियों को देखती है। (5) कन्या छोटे घड़े को उघाड़ती है। (6) पत्नी गड्ढे को ढकती है। (7) हम गंगा की पूजा करते हैं । (8) भूख प्यास को रोकती है। (9) तृष्णा निद्रा को काटती है । (10) वह मदिरा छोड़े।
(घ) (1) उसने खेत खोदा । (2) तुमने कन्या को पुकारा । (3) उसने वस्त्र धाया। (4) उन्होंने गठरी काटी। (5) हमने धान कूटा ।
1201
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
.
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पाठ 54 क्रियाएँ और उनका कर्मवाच्य में प्रयोग क्रियाएँ
कोक्क=बुलाना, परमप्रणाम करना,
सुण=सुनना, रक्ख= रक्षा करना,
देख-देखना पाल=पालना
उपर्युक्त क्रियाएँ सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाएँ कर्तवाच्य और कर्मवाच्य में प्रयुक्त होती हैं । सकर्मक क्रिया से कर्मवाच्य बनाने के लिए वे ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं जो भाववाच्य बनाने के लिए जोड़े गए थे (पाठ-47, इज्ज, ईअ/ईय)। कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) हो जाता है, कर्म में द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) के स्थान पर प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा क्रिया में कर्मवाच्य के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार पुरुष और वचन के प्रत्यय काल के अनुरूप जोड़ दिए जाते हैं। कर्मवाच्य सकर्मक क्रिया से वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि एवं आज्ञा में बनाया जाता है। भविष्यत्काल के कर्मवाच्य में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य का रूप ही रहता है, उसमें इज्ज, ईम/ईय प्रत्यय नहीं लगाए जाते हैं । भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। आगे कर्मवाच्य बनाने के लिए केवल तृतीया एकवचन के प्रयोग दिए गए हैं । तृतीया बहुवचन के प्रयोग भी कर लेने चाहिए। पिछले अध्यायों में अकारान्त पुल्लिग व नपुंसकलिंग तथा आकारान्त स्त्रीलिंग के प्रथमा, द्वितीया एवं तृतीया में रूप समझाये जा चुके हैं । यहाँ इकारान्त व उकारान्त पुल्लिंग के रूप प्रथमा एकवचन व तृतीया एकवचन में दिए गए हैं।
संज्ञा शब्द
प्रथमा एकवचन
तृतीया एकवचन
इकारान्त पुल्लिग
संज्ञाएँ हरिहरि सामि=मालिक कई=कवि
हरी सामी कई
हरिणा सामिणा कइणा
उकारान्त पुल्लिग
साहु-साधु जंतु=प्राणी सत्त=शत्रु
साहुणा जंतुणा सत्तुणा
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 121
2010_03
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कर्तृवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
कर्ता-प्रथमा कर्म-द्वितीया क्रिया-कर्ता के अनुसार नरिंदो ममं/मंमि कोक्कइ/प्रादि =राजा मुझको बुलाता है ।
नरिंदो
___तुमंतुं
कोक्कइ/आदि
-राजा तुमको बुलाता है ।
रिदो
A.
कोक्कइ/आदि ___=राजा उस (पुरुष) को बुलाता है ।
नरिंदो
नरिदो
कोक्कइ/आदि
=राजा उस (स्त्री) को बुलाता है ।
त तं
नरिंदो
नरिदो
रक्खइ/आदि
=राजा उस (राज्य) की रक्षा करता है।
नरिदो
कहं
सुरणइ/ग्रादि
-राजा कथा सुनता है।
अहं/हं/अम्मि तुमंतुं.
देक्खमि/ग्रादि
=मैं तुमको देखता हूँ।
तुमंतुं/तुह
तं
देक्खसि/अादि
तुम उसको देखते हो।
मम मंमि
देवखइ/प्रादि
वह मुझको देखता है।
सा
मममिनि
देक्खइ/आदि
___
वह मुझको देखती है।
माया
पालइ/आदि
____-माता मुझको पालती है।
माया
तुम/तं
पालइ/ग्रादि
=माता तुमको पालती है।
122 ]
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #140
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कर्मवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
कहा
कर्ता-तृतीया कर्म-प्रथमा क्रिया-परिवर्तित कर्म के अनुसार नरिदेण नरिदेणं ग्रह/ह/ अम्मि कोक्किज्जमि/कोक्कोअमि/= राजा के द्वारा मैं बुलाया
पादि
जाता हूँ। नरिदेण/नरिदेणं तुम/तुं/तुह कोक्किज्जसि/कोक्कीअसि/= राजा के द्वारा तुम बुलाये
प्रादि
__ जाते हो। नरिदेण/नरिदेणं
कोक्किज्जइ/कोक्कीअड/ =राजा के द्वारा वह बुलाया प्रादि
जाता है। नरिंदेण/नरिदेणं
कोक्किज्जइ/कोक्कीअइ/ =राजा के द्वारा वह बुलाई प्रादि
जाती है। दरिदेण/नरिदेणं
रक्खिज्जइ रक्खीअइ/ =राजा के द्वारा वह (राज्य) प्रादि
रक्षा किया जाता है । नरिदेण/नरिदेणं
सुणिज्जइ/सुणीअइ/आदि =राजा के द्वारा कथा सुनी
जाती है। मइ/मए/मे ममए तुम/तुं/तुह । देखिज्जसि/देक्खीप्रसि/ =मेरे द्वारा तुम देखे जाते
आदि
हो। तइ/तए/तुमे/तुमए सो/सा
देक्खिज्जइ/देक्खीअइ/ =तुम्हारे द्वारा वह देखा आदि
जाता है/देखी जाती है। तेण/तेणं
अहं हं/अम्मि देक्खिज्जमि/देक्खीअमि| =उस (पुरुष) के द्वारा मैं पादि
देखा जाता हूँ। ताए/तीए अह/हं/अम्मि देक्खिज्जमि/देक्खीअमि/ =उस (स्त्री) के द्वारा मैं
आदि
देखा जाता हूँ। मायाए/मायाइ/मायाअ अहं/हं/अम्मि पालिज्जमि/पालीअमि/ =माता के द्वारा मैं पाला
जाता हूँ। मायाए/मायाइ/माया तुमं/तुं/तुह पालिज्जसि/पालीप्रसि/ =माता के द्वारा तम पाले
प्रादि ।
जाते हो।
आदि
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 123
2010_03
Page #141
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कर्तृवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
-
-
कर्ता-प्रथमा कर्म-द्वितीया
क्रिया-कर्ता के अनुसार
पालइ/आदि =माता उसको पाल
माया
मम/मंमि
पणमइ/अादि
=हरि मुझको प्रणाम करता है ।
तुम/तुं
पणमइ/आदि
=हरि तुमको प्रणाम करता है ।
पणमइ/ग्रादि
=हरि उसको प्रणाम करता है ।
मम/मंमि
कोक्कइ/आदि ___=साधु मुझको बुलाता है ।
तुमंतुं
कोक्कइ/आदि ____=साधु तुमको बुलाता है ।
कोक्कइ/आदि
=साधु उसको बुलाता है ।
सुणइ/आदि
=साधु कथा सुनता है ।
वर्तमानकाल बहुवचन कोक्कइ/आदि =राजा हमको बुलाता है ।
नरिदो
अम्हे/अम्हाणे
नरिदो
तुम्हे/तुज्झे/तुब्भे/भे कोक्कइ/आदि
=राजा तुम (सब) को बूलाता है ।
नारिंदो
ते/ता
कोक्कइ/आदि ___ =राजा उनको बुलाता है ।
नरिंदो
ता/ताप्रो/ताउ
कोक्कइ/आदि
=राजा उन (स्त्रियों)को बुलाता है।
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[ प्राकृत रचना सौरभ
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कर्मवाच्य वर्तमानकाल एकवचन
क्रर्ता-तृतीया कर्म-प्रथमा क्रिया-परिवर्तित कर्म के अनुसार मायाए/मायाइ। सो/सा पालिज्ज इ/पालीअइ/ =माता के द्वारा वह पाला जाता मायाम
पादि
है/पाली जाती है। हरिणा यह/हं/अम्मि पणमिज्जमि/पण मीममि/=हरि के द्वारा मैं प्रणाम किया
आदि
जाता हूँ। हरिणा तुमं/तुं/तुह पण मिज्जसि/पणमीअसि/ हरि के द्वारा तुम प्रणाम
आदि
किये जाते हो। हरिणा सो/सा पणमिज्जइ/पणमीअइ/ =हरि के द्वारा वह प्रणाम
प्रादि
किया जाता है/की जाती है । साहुणा . अहं/हं/अम्मि कोक्किज्जमि/कोक्कीअमि=साधु के द्वारा मैं बुलाया पादि
जाता हूँ। साहुणा तुम/तुं/तुह कोक्किज्जसि/कोक्कीमसि/= साधु के द्वारा तुम बुलाये
मादि
जाते हो। साहुणा सो/सा कोक्किज्जइ/कोक्कीइ/ =साधु के द्वारा वह बुलाया
मादि
जाता है/बुलाई जाती है । साहुणा कहा कहा सुरिणज्जइ/सुणीमइ/अादि =साधु के द्वारा कथा सुनी
जाती है।
नरिदेण
नरिदेण
वर्तमानकाल बहुवचन अम्हे/वयं
कोक्किज्जमो/कोक्कीसमो/= राजा के द्वारा हम बुलाये प्रादि
___ जाते हैं। तुम्हे/तुझे/तुब्भे कोक्किज्जह/कोक्कीमह/ =राजा के द्वारा तुम (सब) आदि
धुलाये जाते हो। ते कोक्किन्जन्ति/कोक्कीमन्ति/=राजा के द्वारा चे बुलाए ग्रादि
जाते हैं। ता/तायो/ताउ कोक्किज्जन्ति/कोक्कीमन्ति/=राजा के द्वारा वे बुलाई मादि
जाती हैं।
नरिदेण
रिदेण
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 125
____ 2010_03
Page #143
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नोट-(i) इसी प्रकार कर्तृवाच्य में कर्म में द्वितीया बहुवचन को दूसरे वाक्यों में प्रयोग कर
लेना चाहिए।
(ii) भूतकाल/विधि एवं प्राज्ञा में कर्मवाच्य बनाने के लिए क्रिया में कर्मवाच्य का
प्रत्यय लगाने के पश्चात् भूतकाल/विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाये जाते हैं (तीनों पुरुषों और दोनों वचनों में)।
उपर्युक्त वाक्यों में इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग शब्दों का भी प्रथमा एकवचन और तृतीया एकवचन में प्रयोग किया गया है।
(i) इकारान्त पुल्लिग शब्दों से प्रथमा एकवचन बनाने के लिए '0' प्रत्यय जोड़ने पर
दीर्घ (o→दीर्घ, इ-ई) हो जाता है, जैसे हरिहरी। तृतीया एकवचन बनाने के लिए 'णा' प्रत्यय जोड़ा जाता है, हरि-हरिणा ।
(ii) उकारान्त पुल्लिग शब्दों से प्रथमा एकवचन बनाने के लिए 'o' प्रत्यय जोड़ने पर
दीर्घ (o→दीर्घ, उ→ऊ) हो जाता है, जैसे साहु→साहू । तृतीया एकवचन बनाने के लिए 'णा' प्रत्यय जोड़ा जाता है, साहु→साहुणा ।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं ।
3.
इकारान्त और उकारान्त शब्दों के प्रथमा बहुवचन व तृतीया बहुवचन के रूप इस प्रकार होंगेप्रथमा बहुवचन -हरि-हरी हरउ/हरो/हरिणो (o→ई, अउ, अयो, णो) . साहु→साहू/साहउ/साहनो/साहवो/साहुणो (o→ऊ, अज, अग्रो,
__ अवो, णो) तृतीया बहुवचन-हरि-हरीहि/हरीहिं/हरीहिं (हि/हिं/हिं प्रत्यय जोड़ने के पश्चात्
साहु→साहूहि/साहि/साहूहिँ (हि/हिं/हिँ प्रत्यय जोड़ने के पश्चात्
उ→ऊ)
126 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #144
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________________
पाठ 55
1. इकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिग)
ससि
सामि =मालिक, करि हाथी, जोगि योगी,
चन्द्रमा, पाणि -प्राणी, मंति मंत्री, गिरि =पर्वत, जइ -यति, नरवइ =राजा, अरि शत्रु,
BEEEEEEEE
कई
=कवि
-मुनि पह =पति हत्वि हाथी रवि =सूर्य केसरि =सिंह रिसि =मुनि तवस्सि =साधु/मुनि/तपस्वी सेरणावइ =सेनापति विहि विधि
2. उकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिग)
=भाई
बिंदु
=बूंद
=शत्रु
=पुत्र
जंतु प्राणी, मच्चु =मृत्यु, रिउ दुश्मन, गुरु गुरु,
=धनुष,
-तेज, सिसु -बालक/पुत्र, मेरु पर्वत विशेष, पाउ =वायु.
धण
=पेड़
करेणु
थहु
फरसु
=हाथी =प्रभु =कुल्हाड़ी =साधु
साहु
पुले
3. क्रियाएँ
बोल्ल =बोलना, पढ पढ़ना, भरण कहना,
वक्खाण व्याख्यान करना सुमर स्मरण करना रंग रंगना
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 127
2010_03
Page #145
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________________
कह
मुरण
नम
जेम
खा
पिब
इच्छ
धार
पेच्छ
पेस
लिह
चुन
वरण
सेव
वृद्धाव
= कहना,
== जानना,
128 1
===नमस्कार करना
- जीमना,
= खाना,
==== पीना,
= इच्छा करना,
=धारण करन
==देखना,
= भेजना,
== लिखना,
हरण
पीड
कर
= करना,
चव
= बोलना,
रिगसुण = सुनना,
== मारना,
- पीड़ा देना,
===त्याग करना,
- वर्णन करना,
= सेवा करना,
= बधाई देना.
2010_03
चूर चोराव
श्रोणंद
ले
वह
विगा
मइल
दा
सिंच
बंध
शृण
चित
मग्ग
जग
हिंस
अस
मार
गह
डंस
= टुकड़ा टुकड़ा करना
=चुराना
= अभिनन्दन करना
= लेना / ग्रहण करन
धारण करना
जानना
= मैला करना.
= देना
= सींचना
= बांधना
= स्तुति करना
- चिंता करना
माँगना
==
= उत्पन्न करना
= हिंसा करना
= खाना
=मारना
= गाना
= डसना
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #146
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________________
पाठ 56
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए---
(क) (1) स्वामी के द्वारा भोजन खाया जाता है। (2) कवि के द्वारा व्रत पाला जाता है । (3) हाथी के द्वारा जल पिया जाता है । (4) दुश्मन के द्वारा तुम ठगे जाते हो । (5) प्रभु के द्वारा हम देखे जाते हैं । (6) मुनि के द्वारा तुम (सब) भेजे जाते हो । (7) माता के द्वारा वह स्तुति किया जाता है । (8) गुरु के द्वारा मैं स्मरण किया जाता हूँ। (9) मित्र के द्वारा हम बधाई दिए जाते हैं । (10) उसके द्वारा धन मांगा जाता है।
(ख) (1) भाई के द्वारा मैं पुकारा जाऊँ। (2) उसके द्वारा लकड़ी रंगी जाए। (3) कवि के द्वारा गीत गाया जाए । (4) मेरे द्वारा पत्र लिखा जाए। (5) पिता के द्वारा हम भेजे जाएं । (6) बहिन के द्वारा तुम नमस्कार किए जावो । (7) साधु तुम सब की सेवा करे। (8) मेरे द्वारा वे देखे जाएं । (9) तुम्हारे द्वारा वह स्तुति किया जाए। (10) तुम्हारे द्वारा मैं बाँधा जाऊँ । (ग) (1) शत्रुओं के द्वारा मैं मारा जाता हूँ। (2) हमारे द्वारा दुःख जाना जाए । (3) महिलाओं द्वारा परमेश्वर की स्तुति की जाए। (4) शिशु द्वारा भोजन खाया जाएगा। (5) कवियों द्वारा गीत गाया जाए। (6) योगियों द्वारा शास्त्र सुने जाएंगे । (7) साधु द्वारा तुम बुलाए जाओगे। (8) तपस्वी द्वारा हम स्मरण किए जाएंगे । (9) उसके द्वारा व्रत धारे जाएंगे। (10) मन्त्री उसको नमस्कार करे। (घ) (1) शत्रु के द्वारा वह मारा गया। (2) हमारे द्वारा दुःख जाना गया । (3)शिशुओं द्वारा भोजन खाया गया । (4) मुनि के द्वारा तुम भेजे गये । (5) महिला द्वारा परमेश्वर की स्तुति की गई।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
129
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Page #147
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________________
पाठ 57
भूतकालिक कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग)
प्राकृत में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बना लिया जाता है (देखें पाठ-42) । भूतकालिक कृदन्त विशेषण का भी कार्य करते हैं । जब सकर्मक क्रियाओं में इस कृदन्त के प्रत्यय लगाये जाते हैं तो इसका प्रयोग कर्मवाच्य में ही किया जाता है । कर्मवाच्य बनाने के लिए कर्ता तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में रखा जाता है। कर्म जो द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) में होता है, उसको प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) में परिवर्तित किया जाता है तथा भूतकालिक कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार चलते हैं। पुल्लिग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार इनके रूप चलेंगे । भूतकालिक कृदन्त अकारान्त होता है । स्त्रीलिंग बनाने के लिए कृदन्त में 'मा' प्रत्यय जोड़ा जाता है तो वह आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द बन जाता है ।
क्रियाएँ
देक्ख-देखना
कोक्क=बुलाना, पणम=प्रणाम करना, अच्च पूजा करना,
सुण=सुनना, रक्ख= रक्षा करना, इच्छ= इच्छा करना
पाल=पालना
पुल्लिग
नरिंदेगा/नरिदेणं
कई
कोक्कियो/कोक्किदो/ =राजा के द्वारा कवि कोक्कितो
बुलाया गया।
नरिदेण/नरिदेणं
कई कइउ/ कोक्किया/कोक्किदा/ कइयो/कइणो कोक्किता
राजा के द्वारा कवि बुलाए गए।
नरिदेहि/नरिदेहिं/ नरिंदेहि
कई/कइउ/ कोक्किया/कोक्किदा/ =राजाओं के द्वारा कवि कइयो/कइणो कोक्किता
बुलाए गए।
हरिणा
दिवायरो
अच्चियो/अच्चिदो/ अच्चितो
हरि के द्वारा सूर्य पूजा गया।
130
]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #148
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________________
मायाए मायाअ/मायाइ साहू
देक्खियो/देखिदो/ देक्खितो
=माता के द्वारा साधु देखा गया ।
साहूहि/साहूहि/साहूहिँ वयो
पालियो/पालिदो/ पालितो
साधुओं के द्वारा व्रत पाला गया।
(i)
नपुंसकलिंग
नरिदेण/नरिदेणं
धणं
इच्छिअं/इच्छिदं/इच्छितं = राजा के द्वारा धन
चाहा गया।
रगाणं
जोगीहि/जोगीहिं/ जोगीहिँ
पण मिश्र/पणमिदं/ पणमितं
=योगियों द्वारा ज्ञान प्रणाम किया गया।
रज्जेण/रज्जेणं
सासणं
रक्खि/रक्खिदं/ रक्खितं
= राज्य के द्वारा शासन रक्षा किया गया ।
सूणूहि/सूहि/सूणूहिँ सोक्खाइं/सोक्खाइँ/ इच्छिाइं/इच्छिाई/=पुत्रों द्वारा सुख चाहे सोक्खाणि
इच्छिमाणि
गये।
(iii)
स्त्रीलिंग
नरिदेण/नरिंदेणं
पसंसा
सुणिया/सुणिदा/सुणिता= राजा के द्वारा प्रशसा
सुनी गई।
सेरणावइरणा
सरिया
देक्खिा /देखिदा/ देक्खिता
=सेनापति के द्वारा नदी देखी गई।
बंधुणा
गंगा
पणमित्रा/परणमिदा/ =भाई के द्वारा गंगा परमिता
प्रणाम की गई। .
मायाए/मायाइ/मायाअ कहा/कहाउ/ सुणिया/सुरिणाउ/ =माता के द्वारा कथाएँ
कहानो सुणिमाओ/आदि सुनी गई।
1. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्मवाच्य में हैं। इनमें कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा और क्रिया
कर्म के लिंग और वचन के अनुसार होती है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 131
2010_03
Page #149
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________________
2. भूतकालिक कृदन्त को स्त्रीलिंग में प्रयोग करने से पहले उसका स्त्रीलिंग बनाना
चाहिए । 'मा' प्रत्यय जोड़ने से भूतकालिक कृदन्त शब्द स्त्रीलिंग बन जाते हैं । जैसेसुरिणअ-सुणिमा, देक्खिन-देक्खिा आदि ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं । 4. (i) इकारान्त पुल्लिग प्रथमा बहुवचन-कइ→कई/कइउ/कइयो/कइयो ।
(ii) उकारान्त पुल्लिग प्रथमा बहुवचन-साहु-साहू/साहउ/साहनो/साहुणो । (iii) इकारान्त पुल्लिग तृतीया बहुवचन-जोगिन्जोगीहि/जोगीहिं/जोगीहि । (iv) उकारान्त पुल्लिग तृतीया बहुवचन-सूण-सूणूहि/सूणूहि/सूणहिँ ।
132 1
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #150
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________________
पाठ 58
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) मेरे द्वारा ग्रन्थ पढ़ा गया। (2) उसके द्वारा मित्र बुलाया गया। (3) दादा के द्वारा पुत्र भेजा गया। (4) कन्या के द्वारा गर्व धारण किया गया । (5) हमारे द्वारा पानी पिया गया। (6) उनके द्वारा कूए खोदे गए। (7) राम के द्वारा राक्षस मारे गए । (8) बालक द्वारा वस्त्र फाड़े गए। (9) शत्रु द्वारा सेनापति मारा गया । (10) गुरु द्वारा मुनि की स्तुति की गई ।
(ख) (1) नागरिक द्वारा भोजन खाया गया । (2) भाइयों द्वारा दूध पिया गया । (3) प्राणियों द्वारा कर्म बाँधे गए । (4) कवि द्वारा गाने गाये गये। (5) मेरे द्वारा विमान देखे गये । (6) उसके द्वारा वैराग्य चाहा गया । (7) मेरे द्वारा लकड़ियाँ जलाई गईं। (8) तुम्हारे द्वारा व्यसनों का वर्णन किया गया। (9) भाई द्वारा कागज लिखे गये। (10) स्वामी द्वारा धागा काटा गया।
(ग) (1) उसके द्वारा आज्ञा पाली गई। (2) राम के द्वारा कथा सुनी गई । (3) यति के द्वारा शिक्षा धारी गई । (4) पुत्री के द्वारा लक्ष्मी चाही गई । (5) उसके द्वारा दया उत्पन्न की गई। (6) स्वामी द्वारा प्रतिष्ठा सुनी गई । (7) योगी द्वारा श्रद्धा की गई । (8) मन्त्री द्वारा झोंपड़ी देखी गई। (9) ऋषियों द्वारा प्रज्ञा जानी गई । (10) यतियों द्वारा दया की गई ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
।
133
____ 2010_03
Page #151
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________________
पाठ 59
(1) इकारान्त संज्ञा शब्द (नपुंसकलिंग)
दहि =दही, अच्छि आँख, अट्टि =हड्डी,
वारि जल सालि . =चावल सप्पि . =धी
(2) उकारान्त संज्ञा शब्द (नपुंसकलिग)
महु अंसु वस्थ
मधु, =आँसू, =पदार्थ,
जाणु प्राउ
घुटना =पायु लकड़ी
दारु
(3) इकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग)
भत्ति
उप्पत्ति
गइ
=भक्ति , मरिण =रत्न, तत्ति =तृप्ति/संतोष, रत्ति =रात, धिइ धैर्य, थुइ =स्तुति, लद्धि प्राप्ति, प्रोहि/अवहि समय की सीमा,
T E
रिद्धि नुवइ सत्ति प्रागिइ जाइ मइ
=जन्म =गति =वैभव -युवती =बल =आकार -जन्म/जाति =मति
(4) ईकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग)
परमेसरी ऐश्वर्य-सम्पन्न स्त्री, सामिणी =मालिकिन, बहिणी =बहिन, पिनामही =दादी, समणी =श्रमणी, साडी साड़ी/वस्त्र/कपड़ा धत्ती =दाई,
गारी इत्थी
गई =नदी गागरी नगर में रहने वाली पुत्ती =पुत्री
=नारी
स्त्री लच्छी लक्ष्मी पुढवी =पृथ्वी
134 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #152
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________________
( 5 ) उकारान्त, ऊकारान्त संज्ञा शब्द (स्त्रीलिंग)
धे
चचु
रज्जु
कडच्छु
तणु
= गाय,
= चोंच,
= रस्सी,
= ठोढी,
= कर्धी, चमची,
= शरीर,
प्राकृत रचना सौरभ ]
कण्डू
खज्जू
जंबू
सस्सू
( 6 ) ईकारान्त एवं ऊकारान्त संज्ञा शब्द (पुल्लिंग)
गाँव का मुखिया,
सयंभू
गामणी खलपू
= खलियान को साफ करनेवाला
2010_03
बहू
चमू
खाज
= खुजली
- जामुन का पेड़
==सास
= बहू
- सैन्य
====स्वयंभू
t 135
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 60
क्रियाएँ
लिह
गण
खंड
कीरण
गच्छ =जाना, या =जाना, धाव =दौड़ना, झा =ध्यान करना, खम =क्षमा करना, धिक्कार =धिक्कारना, रय
बनाना, गुंध =गूंथना/गठना,
=जलाना, सिक्ख -सीखना, बुज्झ =समझना, जिघ =सूंघना, चक्ख =चखना, पाव -पाना, णिरक्ख =देखना, भुंज =खाना,
वच्च =जाना प्रागच्छ =ग्राना
=चाटना गान =गाना
=गिनना खिव =फेंकना
=टुकड़ा करना
=खरीदना लभ -प्राप्त करना वद =प्रणाम करना
-निन्दा करना जोन =प्रकाशित करना मारण -सम्मान करना रक्ख = रक्षण करना/पालन करना
-जानना त्याग करना
दह
खिस
मुग
चुन
136 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #154
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________________
इकारान्त पुल्लिंग
प्रथमा
तृतीया
ईकारान्त पुल्लिंग
एकवचन
सामी
सामिणा
प्रथमा
तृतीया
उकारान्त पुल्लिंग
प्रथमा
तृतीया
एकवचन
गामणी
गामणिणा
प्रथमा
तृतीया
ऊकारान्त पुल्लिंग
प्रथमा
तृतीया
एकवचन
पहू
पहुणा
प्रथमा
तृतीया
इकारान्त नपुंसकलिंग
एकवचन
वारि
वारिणा
एकवचन
सयंभू
सयंभुरा
उकारान्त नपुंसकलिंग
एकवचन
वत्युं
वत्थूणा
प्राकृत रचना सौरम
1
2010_03
पाठ 61
बहुवचन
सामी / सामउ / सामश्रो / सामिणो
सामीहि / सामीहि / सामीहिं
बहुवचन
पहू / पहउ / पहलो / पहवो / पहुणो
पहूहि / पहूह / पहूहिँ
सामि
गामरणी = गाँव का मुखिया
बहुवचन
गामणी / गामउ / गामण / गामणिरणो
गामणीहि / गामणी हि / गामणीहिं
बहुवचन
वारीइं / वारी हूँ / वारीणि
वारीहि / वारीहि / वारीहिं
बहुवचन
वत्थूइं / वत्थूइँ / वत्थूणि
थूह / वह / वत्थू
स्वामी
बहुवचन
सयंभू / सभउ / सयंभो / सयंभवो / सयंभुगो
भूहि / सहि/सयंभू हिं
पहु = प्रभु
सयंभू = स्वयंभू
वारि:
=जल
वत्थु = पदार्थ
[ 137
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
इकारान्त स्त्रीलिंग
जुवइ-युवती एकवचन
बहुवचन जुवई
जुवई/जुवईउ/जुवईयो तृतीया जुवई/जुवईए/जुवईइ/जुवईमा जुवईहि/जुवईहिं/जुवईहिँ ईकारान्त स्त्रीलिंग
लच्छी-लक्ष्मी एकवचन
बहुवचन प्रथमा लच्छी/लच्छीआ
लच्छी/लच्छीउ/लच्छीरो/लच्छीमा लच्छीम/लच्छीए/लच्छीइ/ लच्छीहि/लच्छीहिं/लच्छीहिँ लच्छीमा
तृतीया
प्रथमा
उकारान्त स्त्रीलिंग
तणु शरीर एकवचन
बहुवचन प्रथमा तणू
तणू/तणूउ/तणूत्रो तृतीया तणूम/तणूए/तणूया/तणूइ तणूहि/तणूहिं/तणूहिँ ऊकारान्त स्त्रीलिंग
चमू=सेना एकवचन
बहुवचन चमू
चमू/चमूउ/चमूम्रो तृतीया चमून/चमूए/चमूइ/चमूया चमूहि/चमूहि/चमूहि नोट-पिछले पाठों में अकारान्त पुल्लिग, अकारान्त नपुंसकलिंग तथा आकारान्त स्त्रीलिंग
समझाए गए हैं। प्रकारान्त पुल्लिग
नरिंद-राजा एकवचन प्रथमा नरिंदो
नरिंदा
(पाठ 31) तृतीया नरिदेग/नरिदेणं
नरिंदेहि/नरिंदेहि/नरिदेहिं (पाठ 45) अकारान्त नपुंसकलिंग
कमल-कमल का फूल एकवचन
बहुवचन प्रथमा कमलं
कमलाई/कमलाई/कमलाणि (पाठ 35, 36) तृतीया कमलेण/कमलेणं कमलेहि/कमलेहि/कमलेहिं (पाठ 45)
बहुवचन
138
]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #156
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________________
ससा=बहिन
(पाठ 39, 40)
(पाठ 45)
-तृतीया
प्राकारान्त स्त्रीलिंग एकवचन
बहुवचन प्रथमा ससा
ससा/ससानो/ससाउ ससाए/ससाइ/ससान ससाहि/ससाहि/ससाहिँ
पुरुषवाचक सर्वनाम उत्तम पुरुष एकवचन
बहुवचन प्रथमा अहं/हं/अम्मि
अम्हे/वयं तृतीया मइ/मए/मे/ममए
अम्हेहि/अम्हाहि
अम्ह=मैं
(पाठ 1, 5)
(पाठ 45)
मध्यम पुरुष
तुम्ह-तुम
एकवचन
प्रथमा तृतीया .
तुमं/तुं/तुह तइतए। ./तुमे/तुमए
बहुवचन तुब्भे तुम्हे/तुझे तुब्भेहिं/तुम्हेहिं तुज्झेहिं
(पाठ 2, 6) (पाठ 45)
अन्य पुरुष
एकवचन
प्रथमा
सो
त=वह (पुरुष), ता=वह (स्त्री) बहुवचन
(पाठ 3,7) ता/ताओ/ताउ तेहिं/तेहि
(पाठ 45) ताहिं/ताहि/तीहिं
सा
तृतीया
तेण/तेणं ताए/तीए
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 139
2010_03
Page #157
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________________
पाठ 62
विधि कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग)
प्राकृत में प्राप्त किया जाना चाहिए', 'रक्षा किया जाना चाहिए' आदि भावों का प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । क्रिया में प्रत्यय [पाठ 49 में दिए गए हैं-अव्वयव्व, तव्व, दव, णीय (जो अकारान्त क्रियाओं में लगता है)। ] लगाकर विधि कृदन्त बनाये जाते हैं । विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन), कर्म में प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे । पुल्लिग में 'देव' के अनुसार, नपुंसकलिंग में 'कमल' के अनुसार तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे । सकर्मक क्रियानों से निर्मित विधि कृदन्त ही कर्मवाच्य में प्रयुक्त किए जाते हैं ।
क्रियाएँ
कोण =खरीदना, झाप्र=ध्यान करना, गरण गिनना, पेस भेजना,
रक्ख=रक्षा करना, खम क्षमा करना, पेच्छ=देखना, बंध=बाँधना
लभप्राप्त करना पिन (पिब)=पीना धार धारण करना
(i)
पुल्लिग
सामिरणा
हत्थी
कीरिणअव्वो कीणिदव्वो/ ]
स्वामी द्वारा कीणितव्वो कीणणीयो/
= हाथी खरीदा कीणेअव्वो/कीरोदव्वो
जाना चाहिए। कीणेतव्वो
| पाणी/पाणउ/
मुणीहि/ मुणीहिं/ मुणीहि
रक्खि अव्वा/रक्खिदव्वा/ रक्खितव्वा/रक्खणीयो/ रक्खेअन्वा/आदि
मुनियों द्वारा = प्राणी रक्षा किए जाने चाहिए।
पाणो/पाणिणो
साहुणा
तेउ
तेउ
लभिअव्वो/लमिदव्वो/ लभितव्वो/लभणीयो लभेअव्वो आदि
साधु द्वारा तेज = प्राप्त किया जाना चाहिए।
140 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #158
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________________
साहूहि! साहूहि साहूहिँ
तेउ
। लभिअव्वो/लभिदव्वो/ लभितव्वो/लभणीयो/ लभेन्वो आदि
साधुओं द्वारा तेज = प्राप्त किया जाना चाहिए।
।
रिसिणा
। झाइअव्वो/झाइदव्वो/
झा इतव्वो/झापणीयो/ झाएअन्वो आदि
ऋषि द्वारा प्रभु = ध्याया जाना ___ चाहिए।
मइ/ मए/
सत्तू/सत्तउ/ सत्तनो
। खमिअव्वा/खमिदव्वा खमणीया/खमेव्वा / आदि
मेरे द्वारा साधु = क्षमा किए जाने चाहिए ।
ममए
सत्तवो/सत्तुणो
नपुंसकलिंग
सामिणा
वारि
पिबिअव्वं/पिबिदव्वं! पिबितव्वं पिबणीयं पिबेअव्वं/आदि
स्वामी द्वारा जल = पिया जाना
चाहिए।
।
मइ मए।
अच्छीई/
गणिअव्वाइं/गणिअव्वाई) । । गणि प्रवाणि |
मेरे द्वारा अाँखें
अच्छीई
गणिदव्वाइं/गणिदव्वाई।
= गिनी जानी चाहिए ।
ममए
अच्छी णि
गरिणदव्वाणि |आदि
।
साहूहि/
पेच्छिमव्वं/पेच्छिदव्वं/
साहूहि।
वत्)
पेच्छितव्वं/पेच्छणीयं पेच्छेअव्वं/आदि
= वस्तु देखी जानी
चाहिए।
साहूहिं
प्राकृत रचना सौरम ]
[ 141
2010_03
Page #159
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________________
वत्थूइं/
साहुणा
वत्थूइँ/
] पेच्छिमव्वाइं/पेच्छिअव्वाई/} साधु द्वारा वस्तुएं पेच्छिवाणि
= देखी जानी पेच्छितब्वाइं/पेच्छितव्वाईं। jपेच्छितव्वाणि/आदि
चाहिए।
वत्थूणि
(iii)
स्त्रीलिंग
पुत्तीहि/
पुत्तीहिं/
लच्छी/ लच्छीउ/ । लच्छीरो/
लभिअव्वा/ लभिप्रव्वानो/ लमिअब्वाउ/आदि
पुत्रियों द्वारा = लक्ष्मियाँ प्राप्त
की जानी चाहिए।
पुत्तीहिँ
j लच्छीया
til L
पुत्तीए। पुत्तीइ/ पुत्तीस पुत्तीमा
| कीरिणअव्वा/ कीणिदव्वा
साडी/साडीमा
पुत्री द्वारा साड़ी = खरीदी जानी ___चाहिए।
कीणितव्वा/आदि
जुवईए/
जुवईइ/ जुवई
घिई .
धारिअव्वा/ धारिदव्वा/ धारितव्वा प्रादि
युवती द्वारा धर्य धारण किया जाना चाहिए।
जुवईया
जुवईहि
।
जुवईहिं/ जुवईहि
युवतियों द्वारा ! पेसिअव्वा/पेसिअव्वानो/ ! मणी/मणउ/मणो.
= रत्न भेजे जाने पेसिव्वाउप्रादि
।
चाहिए।
चमूए/
चमूइ/
बंधिअव्वा/बंघिदव्वा/ बंधितव्वा/बंधणीया/ बंधेअब्वा/आदि
सेना द्वारा शरीर = बाँधा जाना
तरण
चमूग्र/
___ चाहिए। ।
चमूना
142 1
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
.
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________________
!
चमूहि/ चमूहिं! चमूहि
तणतणूउ/तणूनो
! बंधिसव्वा/बंधिअव्वाउ . बंधिवाप्रो आदि
सेनाओं द्वारा = शरीर बांधे जाने __ चाहिए।
1.
उपर्युक्त सभी क्रियाएं सकर्मक हैं। .
2. विधि कृदन्त का प्रयोग भाववाच्य और कर्मवाच्य में होता है। इसका कर्तवाच्य में
प्रयोग नहीं होता हैं। भाववाच्य के प्रयोग बताए जा चुके हैं (पाठ 49) । उपर्युक्त
प्रयोग कर्मवाच्य के हैं। 3. · अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य बनाये जाते हैं (पाठ 49) और सकर्मक क्रियाओं से
कर्मवाच्य बनाये जाते हैं।
प्राकृत रचना सौरभ 1
[ 143
___ 2010_03
Page #161
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________________
पाठ 63
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) भाई के द्वारा पेड़ सींचा जाना चाहिए। (2) रघु के द्वारा साधु बुलाए जाने चाहिए । (3) कवियों के द्वारा गीत गाये जाने चाहिए। (4) हाथी द्वारा सिंह मारा जाना चाहिए। (5) ऋषि द्वारा सूर्य की वन्दना की जानी चाहिये ।
(ख) (1) मेरे द्वारा दही खाया जाना चाहिए । (2) हमारे द्वारा जल पिया जाना चाहिए। (3) उनके द्वारा हड्डियाँ देखी जानी चाहिए। (4) तुम्हारे द्वारा पदार्थ वर्णन किए जाने चाहिए । (5) उसके द्वारा आयु देखी जानी चाहिए । (ग) (1) तुम्हारे द्वारा वैभव प्राप्त किया जाना चाहिए। (2) उसके द्वारा तृप्ति मांगी जानी चाहिए । (3) पृथ्वी द्वारा रत्न धारण किए जाने चाहिए । (4) युवती द्वारा भक्ति की जानी चाहिए । (5) मौसी द्वारा साड़ियाँ खरीदी जानी चाहिए । (6) तुम्हारे द्वारा रस्सी गूंथी जानी चाहिए। (7) उमके द्वारा गाएं पाली जानी चाहिए । (8) हमारे द्वारा जामुन का पेड़ सींचा जाना गहिए । (9) सासुरनों द्वारा बहुएँ क्षमा की जानी चाहिए । (10) तुम्हारे द्वारा घास जलाई जानी चाहिए ।
1441
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
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________________
पाठ 64
वर्तमान कृदन्त हेत्वर्थक कृदन्त
द्वितीया सहित
सबंधक भूत कृदन्त
(पूर्वकालिक क्रिया)
प्राकृत में (i) भोजन खाता हुआ, गाँव जाता हुआ आदि भावों को प्रकट करने के लिए द्वितीया-सहित वर्तमान कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । (ii) 'भोजन खाने के लिए', 'गांव जाने के लिए' आदि भावों को प्रकट करने के लिए द्वितीया-सहित हेत्वर्थक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। (iii) 'भोजन करके', 'गाँव जाकर' आदि भावों को प्रकट करने के लिए द्वितीया सहित संबंधक भूत कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। ये तीनों कृदन्त क्रियाओं से बनाए जाते हैं। वर्तमान कृदन्त शब्द विशेषण का कार्य करते हैं तथा अन्तिम दोनों (हे.कृ. और सं.कृ.) अव्यय का काम करते हैं । इतना होने पर भी अपने मूल स्वरूप 'क्रिया' को नहीं छोड़ते हैं । अत: सकर्मक क्रियाओं से बनने पर कर्म को साथ लिए रहते हैं । कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है । अतः इनके साथ कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है । इनके प्रत्ययों के लिए देखें पाठ 28, 29, 43 ।
इ, ईकारान्त पुल्लिग
एकवचन
द्वितीया
जइं
द्वितीया
गामणि
उ, ऊकारान्त पुल्लिग
एकवचन द्वितीया द्वितीया खलपुं
जइ यति, गामणी=गाँव का मुखिया बहुवचन जई/जइणो
गामणी/गामणिणो तरु=पेड़, खलपू=खलियान को साफ करनेवाला
बहुवचन तरू/तरुणो खलपू/खलपुणो
वारि=जल, वत्थु वस्तु बहुवचन वारीई/वारीई/वारीणि वत्थूइं/वत्थूइँ/वत्थूणि
इ, उकारान्त नपुंसकलिंग
एकवचन द्वितीया वारि द्वितीया
प्राकृत रचना सौरभ ]
145
2010_03
Page #163
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________________
इ, ईकारान्त स्त्रीलिंग
एकवचन द्वितीया तत्ति द्वितीया च्छि
तत्ति तृप्ति, लच्छी लक्ष्मी बहुवचन तत्ती तत्तीउ/तत्तीग्रो लच्छी/लच्छी उ/लच्छीमो लच्छीमा
अम्मि
उ, ऊकारान्त स्त्रीलिंग
- तणु =शरीर, चमू सेना एकवचन
बहुवचन द्वितीया तणुं
तणू/तणूउ/तणूप्रो द्वितीया चमुं
चमू/चमूउ/चमूनो वाक्यों में प्रयोग
पुल्लिग जइ कोक्कन्तो/ हरिसामि/ =मैं यति को बुलाता हुआ
कोक्कमाणो आदि प्रसन्न होता हूँ। गामणि पणमन्तो/ ___ अच्छइ/ =वह गाँव के मुखिया को
पणममाणो आदि प्रणाम करता हुआ बैठता है। ____ तरु सिंचन्ता/ थक्कइ/अादि वह पेड़ को सींचती हुई सिंचमारणा
थकती है। खल' कोक्किऊण हरिसइ/प्रादि वह खलियान को साफ करनेपादि
वाले को बुलाकर प्रसन्न
होता है। नपुंसकलिंग वारि पिबिउं/पिबि, उट्ठसि/आदि =तुम जल पीने के लिए उठते
हो । सो
वत्, किणिउं/ उज्जम इ/आदि=वह वस्तु खरीदने के लिए किणिदुं
प्रयत्न करता है। स्त्रीलिंग अहं/हं/अम्मि लच्छि चुइऊण/आदि उल्लसामि! =मैं लक्ष्मी को त्यागकर खुश
आदि होता हूँ। रक्खि / उज्जमन्ति/ वे शरीर को रक्षा करने के रक्खिदु अादि लिए प्रयत्न करते हैं ।
तुमं तु (तुह
तण
146 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
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________________
अम्हे/वयं
च
दक्खिऊण आदि डरमो/प्रादि =हम सेना को देखकर डरते
तुम/तुं तुह
तत्ति
लभिऊण/आदि णच्चहि/आदि=तुम तृप्ति प्राप्त करके
नाचते हो।
नोट-इसी प्रकार द्वितीया बहुवचन का प्रयोग करके वाक्य बना लेने चाहिए ।
1. अकारान्त पुल्लिग-नपुंसकलिंग व आकारान्त स्त्रीलिंग पिछले पाठों में समझाया जा
चुका है।
नरिंदराजा
प्रकारान्त पुल्लिग
एकवचन द्वितीया
नरिंदं
बहुवचन नरिंदा
रज्ज-राज्य
अकारान्त नपुंसकलिंग
एकवचन द्वितीया
रज्ज
बहुवचन रज्जाई/रज्जाई/रज्जाणि
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
कहा-कथा
एकवचन
बहुवचन कहा/कहाउ/कहानो
द्वितीया
कहं
पुरुषवाचक सर्वनाम
(द्वितीया)
प्रम्ह = मैं, तुम्ह=तुम,
त=वह (पुरुष) ता=वह (स्त्री)
एकवचन उत्तम पुरुष मम/मं/मि मध्यम पुरुष तुम/तुं
बहुवचन अम्हे/अम्हणे तुम्हे/तुज्झे/तुभे/भे
प्राकृत रचना सौरभ ]
147
___ 2010_03
Page #165
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________________
A
अन्य पुरुष
2.
ते/ता (पुल्लिग) ताई/ताई/तारिग (नपुंसकलिंग) ता/ताउ/तायो (स्त्रीलिंग)
4.
2. द्वितीया एकवचन बनाने के लिए संज्ञा शब्दों में अनुस्वार (--) जोड़ा जाता है ।
अनुस्वार जोड़ने पर अन्त्य दीर्घ स्वर-ह्रस्व हो जाता है-गामणी→गामणि आदि ।
3. द्वितीया बहुवचन के प्रत्ययों को प्रत्यय चार्ट से समझा जा सकता है।
148 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
s
Page #166
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________________
पाठ 65
- 1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
.- (क) (1) स्वामी रघुपति को नमन करते हुए उठता है । (2) कवि गुरु को प्रणाम
करता हुआ बैठता है । (3) भाई उसको धिक्कारते हुए शरमाता है । (4) सिंह हाथी को मारते हुए डरता है । (5) वह मुनियो को सुनते हुए शोमता है । (6) वह दही खाते हुए सोता है । (7) तुम जल पीते हुए नाचते हो । (8) हम आँख देखते हुए मुड़ते हैं। (9) वह गांव के मुखिया की सेवा करते हुए थकता है। (10) वह मधु को चखता हुआ खुश होता है ।
(ख) (1) वह भक्ति करने के लिए उठता है । (2) तुम तृप्ति प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हो । (3) वह पुत्री को कहने के लिए उत्साहित होता है। (4) हम रस्सी बाँधने के लिए प्रयत्न करते हैं । (5) वे गायों को देखने के लिए उठते हैं ।
(ग) (1) स्वामी रघु को नमन करके प्रसन्न होता है । (2) कवि गुरु को प्रणाम करके बैठता है । (3) वह भक्ति करके जीता है । (4) तुम तृप्ति प्राप्त करके खुश होते हो। (5) वे गायों को देखकर उठते हैं ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 149
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________________
पाठ 66
संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी एकवचन
संज्ञाएँ प्रकारान्त पुल्लिग नरिद= राजा
चतुर्थी व षष्ठी एकवचन नरिंदस्स/नरिंदाय
प्रकारान्त नपुंसकलिंग रज्ज = राज्य
रज्जस्स/रज्जाय
आकारान्त स्त्रीलिंग
माया =माता
मायाग्र/मायाइ/मायाए
इकारान्त स्त्रीलिंग
ईकारान्त स्त्रीलिंग उकारान्त स्त्रीलिंग
जुवइ = युवती पुत्ती =पुत्री धेणु =गाय
जुवई/जुवईया/जुवईइ/जुवईए पुत्तीप्र/पुत्तीग्रा/पुत्तीइ/पुत्तीए घेणूम/घेणूग्रा/घेणूइ/धेशूए जंबून/जंबूना/जंबूइ/जंबूए
ऊकारान्त स्त्रीलिंग · जंबू =जामुन का पेड़
सर्वनाम
मम/महं/मझ तुज्झ/तुम्ह/तुह तास/तस्स/से तिस्सा/तास/से/तान ताइ/ताए
=मेरा/मेरे लिए =तेरा/तेरे लिए =उसका/उसके लिए (पु. व नपुं.) =उसका/उसके लिए (स्त्रीलिंग)
अकर्मक क्रियाएँ हस =हंसना, जग्ग =जागना, वड्ढ =बढ़ना, रिणज्झरझरना,
सकर्मक कियाएँ रक्ख =रक्षा करना इच्छ =चाहना गच्छ =जाना कोक्क= बुलाना
षष्ठी एकवचन नरिंदस्स/नरिंदाय पुत्तो
हसइ/ग्रादि
=राजा का पुत्र हँसता है ।
रज्जस्स/रज्जाय सासणं तं
रक्ख इ/आदि
=राज्य का शासन उसकी रक्षा करता है।
150
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
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________________
मायाम
मायाइ
ससा
जग्गइ/ग्रादि
=माता की बहन जागती है।
मायाए
जुवई जुवईया जुवईइ जुवईए
माया
जग्गइ/प्रादि
युवती की माता जागती है।
पुत्तीय
धणं
वड्ढ इ/आदि
=पुत्री का धन बढ़ता है ।
पुत्तीया पुत्तीइ पुत्तीए
घेणून धेणूमा धेणूइ धेणूए
खीरं
रिणज्झरइ/आदि
=गाय का दूध झरता है ।
जंबून जंबूपा जंबूइ
पाऊ
वड्ढइ/आदि
=जामुन के पेड़ की आयु बढ़ती है ।
व
___
मम
पुत्तो सोक्खं इच्छइ/प्रादि
=मेरा पुत्र सुख चाहता है ।
मझ
तुम्हं
पोत्तो घरं
गच्छद/आदि
=तुम्हारा पोता घर जाता है ।
तुज्झ
प्राकृत रचना सौरभ ।
[
151
2010_03
Page #169
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________________
तास
तस्स
पुत्तो अम्ह कोक्कइ/आदि =उस (पुरुष) का पुत्र मुझको बुलाता है ।
तिस्सा तास
पुत्तो तुमं कोक्कइ/अादि =उस (स्त्री) का पुत्र तुमको बुलाता है ।
तान ताइ ताए
चतुर्थी एकवचन
सो
नरिंदस्य ]
गंथं
कीणइ/आदि
=वह राजा के लिए ग्रन्थ खरीदता है ।
नरिंदाय
तुमं
परिक्खा परिक्खाइ परिक्खाए ।
गंथं
पठसि/आदि
=तुम परीक्षा के लिए पुस्तक पढ़ते हो।
नोट : इसी प्रकार चतुर्थी के अन्य वाक्य बना लेने चाहिए।
152 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #170
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________________
पाठ 67
संजा शब्द चतुर्थी व षष्ठी विभक्ति एकवचन
संज्ञाएं सामि स्वामी
चतुर्थी व षष्ठी एकवचन सामिणो/सामिस्स
इकारान्त पुल्लिग ईकारान्त पुल्लिग
गामणी गाँव का मुखिया
गामणिणो/गामणिस्स
साहु साधु
साहुणो साहुस्स
उकारान्त पुल्लिग ऊकारान्त पुल्लिग
सयंभू स्वयंभू
सयंमुणो/सयंभुस्स
इकारान्त नपुंसकलिंग
वारिजल
वारिणो/वारिस्स
उकारान्त नपुंसकलिंग
वत्थु पदार्थ
वत्थुणो/वत्थुस्स
अकर्मक क्रियाएँ
सकर्मक क्रियाएँ
गल-गलना,
फुरप्रकट होना
कर:-करना
चुधटपकना,
जग्ग=जागना
पढ=पढ़ना
षष्ठी एकवचन सामिणो/सामिस्स
गब्बो गलइ /आदि
=स्वामी का गर्व गलता है ।
गमणिणो/गमणिस्स
पुत्तो गंथं पढइ आदि
= गांव के मुखिया का पुत्र ग्रन्थ पढ़ता है ।
साहुणो/साहुस्स
तेऊ फुरइ/आदि
=साधु का तेज प्रकट होता है ।
सयंभुणो सयंभुस्स
पुत्तो जग्गइ/प्रादि ___=स्वयंभू का पुत्र जागता है ।
वारिणो/वारिस्स
बिन्दू चुअइ /ग्रादि
=जल की बूंद टपकती है ।
सो वत्थुणो/वत्थुस्स
गाणं करइ /आदि
=वह पदार्थ का ज्ञान करता है ।
त्राकृत रचना सौरभ ।
[
153
___ 2010_03
Page #171
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________________
चतुर्थी एकवचन अहं सामिणो/सामिस्स जागरमि ।
=मैं स्वामी के लिए जागता हूँ।
तुमं साहुणो/साहुस्स भोयणं इच्छसि
=तुम साधु के लिए भोजन चाहते हो।
सो गामणिणो/गामणिस्स गामं गच्छइ/प्रादि वह गांव के मुखिया के लिए गांव जाता है ।
नोट : इसी प्रकार दूसरे वाक्य बना लेने चाहिए।
154 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #172
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________________
संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन
संज्ञाएँ
नरिद= राजा
अकारान्त पुल्लिंग
अकारान्त नपुंसकलिंग
आकारान्त स्त्रीलिंग
इकारान्त स्त्रीलिंग
ईकारान्त स्त्रीलिंग
उकारान्त स्त्रीलिंग
ऊकारान्त स्त्रीलिंग
सर्वनाम
अकर्मक क्रियाएँ
इस =
- हँसना,
जग्ग= जागना,
बड्ढ = बढ़ना,
णिज्भर = भरना,
पाठ 68
जुवइ = युवती
पुत्ती = पुत्री
धेषु = गाय
जंबू = जामुन का पेड़
अम्हाण / अम्हाणं / ममाण / ममाणं / मज्झाण / मज्झाणं
षष्ठी बहुवचन नरिदार / नरिदाण
रज्ज = राज्य
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
माया = माता
तुमाण / तुहाण / तुम्हाणं / तुज्झाण / तुज्झाणं तेसिं/ ताण / ताणं
तेसि / ताण / ताणं
पुत्ता हसन्ति/प्रादि
चतुर्थी व षष्ठी वहुवचन नरिदाण / नरिदाणं
रज्जाण / रज्जाणं
मायाण / मायाणं
जुवईण / जुवईणं
पुतीण / पुत्तीर्ण
/i
जंबूण / जंबू
= हमारे लिए / हमारा
= तुम सबके लिए / तुम सबका
= उन (पुरुषों) के लिए / उनका
= उन (स्त्रियों) के लिए / उनका
सकर्मक क्रियाएं
रक्ख= रक्षा करना
इच्छ= चाहना
गच्छ = जाना कोबक बुलाना
-
= राजानों के पुत्र हँसते है ।
[ 155
Page #173
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________________
रज्जाण/रज्जाणं
सासणा तं रक्खन्ति/ग्रादि
=राज्यों के शासन उसकी रक्षा करते हैं।
मायारण/मायाणं
ससा जग्गइ/आदि
=माताओं की बहिन जागती है ।
माया जग्गइ/आदि
=युवतियों की माता जागती है ।
जुवईण/जुवईणं पुत्तीण/पुत्तीणं धेणूण/घेणूणं
धणं वड्ढइ/आदि
=पुत्रियों का धन बढ़ता है ।
खीरं णिज्झरइ/आदि
=गायों का दूध झरता है ।
जंबूण/जंबूणं
आउं वड्ढइ/ग्रादि
=जामुनों के पेड़ की आयु बढ़ती है ।
अम्हाणं अम्हाण ममारण ममाणं मझारण मज्झाणं
क्खं इच्छइ/आदि
=हमारा पुत्र सुख चाहता है ।
तुज्झाण
तुज्झाणं तुम्हाणं
पोत्तो घरं गच्छइ/आदि
=तुम दोनों का पोता घर जाता है ।
तुमाण तुहाण
तेसिं
पुत्ता ममं कोक्कन्ति/आदि
=उन (पुरुषों) के पुत्र मुझे बुलाते हैं ।
ताण ताणं
तेसि
तारण
कोक्कन्ति/मादि
=उन (स्त्रियों) के पुत्र तुमको बुलाते हैं।
ताणं
156
]
प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #174
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________________
चतुर्थी बहुवचन
सो नरिदार / नरिदाणं गंथं कीरणइ / आदि
तुमं परिक्खाण / परिक्खाणं गंथं पढसि / श्रादि
तुमं ग्रम्हाण गच्चहि / आदि
नोट - इसी प्रकार चतुर्थी के अन्य वाक्य बना लेने चाहिए ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
= वह राजाओं के लिए ग्रन्थ खरीदता है ।
= तुम परीक्षाओ के लिए ग्रन्थ पढ़ते हो ।
= तुम हमारे लिए नाचते हो ।
[ 157
Page #175
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________________
पाठ 69
संज्ञा शब्द चतुर्थी व षष्ठी विभक्ति बहुवचन
संज्ञाएँ सामि=स्वामी
चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन सामीण/सामीणं
गामणी= गाँव का मुखिया
गामरणीण/गामणीणं
इकारान्त पुल्लिग ईकारान्त पुल्लिग उकारान्त पुल्लिग ऊकारान्त पुल्लिग
साहु=साधु
साहूण/साहूणं
सयंभू स्वयंभू
सयंभूरण/सयंभूणं
इकारान्त नपुंसकलिंग
वारिजल
वारीण/वारीणं
वत्थूण/वत्थूणं
उकारान्त नपुंसकलिंग वत्य पदार्थ
अकर्मक क्रियाएँ गल =गलना, चुन टपकना, फुर =प्रकट होना,
जग्ग =जागना चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन सामीण/सामीणं गव्वो गलइ /आदि
सकर्मक क्रियाएँ कर =करना, पढ =पढ़ना, इच्छ =इच्छा करना
= स्वामियों का गर्व
साहूण साहूणं
तेऊ फुरइ/प्रादि
=साधुनों का तेज प्रकट होता है ।
सो वत्थूण/वत्थूणं णाणं करइ /आदि
=वह पदार्थों का ज्ञान करता है ।
अहं सामीण/सामीणं जागरमि/प्रादि
= मैं स्वामियों के लिए जागता हूँ ।
तुमं साहूण/साहूणं भोयणं इच्छसि/आदि
=तुम साधुओं के लिए भोजन चाहते हो ।
158 ]
प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #176
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________________
पाठ 70
1. निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(क) (1) राजा का पुत्र राम को प्रणाम करता है|करे करेगा।
(2) मामा की बहिन गर्व करती है/करे/करेगी। (3) राज्य का शासन उसकी रक्षा करता है/करे/करेगा । (4) राम का सुख मेरा सुख है/हो/होगा। (5) सीता की माता कथा सुनती है/सुने/सुनेगी। (6) मैं गंगा की कथा सुनता हूँ/सुनूं/सुनूंगा। (7) मेरा पुत्र सुख चाहता है/चाहे/चाहेगा। (8) उसका पूत्र घर जाता है/जावे/जायेगा। (9) वह नर्मदा का पानी पीता है/पीवे/पीयेगा। (10) उसकी माता तुमको पालती है/पाले/पालेगी।
(ख) (1) राजा का पुत्र राम के लिए गठरी मांगता है/माँगे/माँगेगा।
(2) वह उसकी पुस्तक परीक्षा के लिए पढ़ता है/पढ़े/पढ़ेगा। (3) मेरा पुत्र सुख के लिए हंसता है/हंसे/हँसेगा । (4) वह शरीर के लिए नर्मदा का पानी पीता है/पीवे/पीयेगा। (5) राम का सुख सबके लिए सुख है/हो/होगा ।
(ग) (1) स्वामियों के भाई उसको नमस्कार करते हैं ।
(2) कवियों के गुरु हमको देखते हैं । (3) राजाओं के दुश्मन युद्ध का विचार करते हैं । (4) हमारे गुरु भोजन जीमते हैं । (5) मेरी मौसियां साड़ी खरीदती हैं ।
प्राकृत रचना सौरभ 1
[ 159
2010_03
Page #177
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________________
पाठ 71
संज्ञा शब्द पंचमी एकवचन
संज्ञाएँ
प्रकारान्त पुल्लिग
नरिद
राजा
पंचमी एकवचन नरिदत्तो/नरिंदामो/ नरिंदाउ/नरिंदाहि। नरिंदाहिन्तो/नरिंदा
प्रकारान्त नपुंसकलिंग
रज्ज
राज्य
रज्जत्तो/रज्जायो/ रज्जाउ/रज्जाहि/ रज्जा हिन्तो/रज्जा
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
माया माता
मायान/मायाइ/ मायाए/मायाहिन्तो/ मायत्तो/मायाउ। मायाप्रो
इकारान्त स्त्रीलिंग
जुवइ =युवती
जुवई/जुवईया/ जुवईइ/जुवईए जुवइत्तो/जुवईप्रो/ जुवईउ/जुवईहिन्तो
ईकारान्त स्त्रीलिंग
पुत्ती =पुत्री
पुत्तीग्र/पुत्तीमा पुत्तीइ/पुत्तीए। पुत्तित्तो/पुत्तीग्रो पुत्तीहिन्तो/पुत्तीउ
उकारान्त स्त्रीलिंग
घेणु
गाय
धेणूम/धेणूमा/ घेणूइ/घेणूए/ धेणुत्तो/घेणूत्रो/ घेणूउ/ घेणूहिन्तो
160 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #178
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________________
अकारान्त स्त्रीलिंग
सर्वनाम
सो
पुत्तो
माया
कर्मक क्रियाएँ
मइत्तो / ममाश्र / मज्झाप्रो / ममाहिन्तो = मेरे से
तुम्हा हिन्तो / तुवत्तो / तुहाओ / तुमाओ
= तेरे से
ताओ / ताउ / ताहिन्तो
= उससे (पु.)
ता/ ताइ / ताए / ततो
= उससे (स्त्री.)
डर = डरना,
उपज्ज = पैदा होना,
पंचमी एकवचन
रित्तो / नरिंदा
/
नरिदार / नरिदा हि /
नरदा हिन्तो / नरिदा
जबू
पुती / पुतीमा / पुत्ती /
पुत्तीए / पुत्तित्तो/पुत्ती प्रो /
पुत्ती हिन्तो / पुत्ती उ
=
- जामुन का पेड़
2010_03
पड = गिरना रगीसर = निकलना
า
जंबू / जंबू / जंबूइ / जंबू ए / जंबूत्तो / जंबूप्रो ias / जंबू हितो
माया / मायाइ / मायाए /
मायाहिन्तो / मायत्तो / मायाउ / > डरइ / आदि = पुत्र माता से डरता है ।
मायाओ
सकर्मक क्रियाएँ
धाव = - दौड़ना
श्रागच्छ ==प्राना
|
> डरइ / आदि = वह राजा से डरता है ।
गंथं पढइ / आदि = माता पुत्री से ग्रन्थ पढ़ती है ।
अभ्यास
(1) बालक सर्व 'डरता है । ( 2 ) खेत से अन्न उत्पन्न होता है । ( 3 ) वह गाय से डरता है । (4) जामुन के पेड़ से पत्ता गिरता है । ( 5 ) खेत से कुत्ता दौड़ता है । ( 6 ) मनुष्य हिंसा
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 161
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से डरे । (7) मकान की छत से बालक गिरता है । (8) पवत से गंगा निकलती है । (9) वह मुझसे डरता है । (10) वह तुझसे पुस्तक पढ़ता है । (11) बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है । (12) पुत्र पिता से छिपता है ।
1. निम्नलिखित में पंचमी विभक्ति होती है
(i) जिस वस्तु से किसी को हटाया जाए उसमें, जैसे- पेड़ से पत्ता गिरता है । (ii) जिससे छिपना चाहता है उसमें, जैसे-पिता से छिपता है। (iii) भय के कारण में पंचमी होती है, जैसे सर्प से डरता है । (iv) जिससे नियमपूर्वक विद्या पढ़ी जाए, जैसे-मैं तुझसे पुस्तक पढ़ता हूँ। (v) जिससे उत्पन्न होता है उसमें पंचमी होती है, जैसे-बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है ।
162 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #180
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पाठ 72 संज्ञा शब्द पंचमी एकवचन
संज्ञाएँ इकारान्त पुल्लिग सामि-स्वामी
उकारान्त पुल्लिग
साहु =साधु
पंचमी एकवचन सामिणो/सामित्तो/ सामीप्रो/सामीउ सामीहिन्तो साहुणो/साहुत्तो/ साहूरो/साहूउ साहूहिन्तो वारियो/वारित्तो। वारीओ/वारीउ वारीहिन्ता वत्थुणो/वत्थुत्तो/ वत्थूप्रो/वत्थूउ/ वत्थूहिन्तो
इकारान्त नपुंसकलिंग
वारि=जल
उकारान्त नपुंसकलिंग
वत्थु -पदार्थ
सामिणो/सामित्तो। सो सामीप्रो/सामीउ/
सामीहिन्तो
डरइ/ग्रादि
वह स्वामी से डरता है।
साहुणो साहुत्तो/ सो साहूप्रो/साहूउ/
साहूहिन्तो
पढइ /ग्रादि
वह साधु से पढ़ता है ।
बारिणो/वारित्तो/ वारीग्रो वारीउपत्त उपज्जइ/प्रादि वारीहिन्तो
जल से पत्ता उत्पन्न होता है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 163
2010_03
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पाठ 73
संज्ञा शब्द पंचमी बहुवचन
संज्ञाएँ नरिद =राजा
प्रकारान्त पुल्लिग
पंचमी बहुवचन नरिंदत्तो/नरिंदायो। नरिंदाउ/नरिंदाहि/ नरिंदाहिन्तो/नरिंदासुन्तो/ नरिंदेहि/नरिंदेहिन्तो/ नरिंदेसुन्तो
इकारान्त पुल्लिग
सामि =स्वामी
सामित्तो/सामीप्रो/ सामीउ/सामीहिन्तो/ सामीसुन्तो
उकारान्त पुल्लिग
साहु =साधु
साहुत्तो/साहूयो/साहूउ साहूहिन्तो/साहूसुन्तो
प्रकारान्त नपुंसकलिंग
रज्ज =राज्य
रज्जत्तो/रज्जासो/ रज्जाउ/रज्जाहि/ रज्जाहिन्तो/रज्जासुन्तो/ रज्जेहि/रज्जेहिन्तो/ रज्जेसुन्तो
इकारान्त नपुंसकलिंग
वारि
जल
उकारान्त नपुंसकलिंग
वारित्तो/वारीयो/वारीउ/ वारीहिन्तो/वारोसुन्तो वत्थुत्तो/वत्थूप्रो वत्थूउ/वत्थूहिन्तो/ वत्थूसुन्तो
वत्थ
पदार्थ
नरिदत्तो/नरिंदानो/ नरिंदाउ/नरिंदाहि/ नरिंदाहिन्तो/नरिंदासुन्तो ।
डरइ/प्रादि नरिंदेहि/नरिंदेहिन्तो/ नरिंदेसुन्तो
वह राजाओं से डरता है।
164 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #182
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सामित्तो / सामी प्रो /
तुमं सामीउ / सामी हिन्तो / - सामी सुन्तो
साहुत्तो /साहू/
अहं साहूउ / साहू हिन्तो / साहू सुन्तो
प्राकृत रचना सौरभ ]
डरह / आदि
नोट - इसी प्रकार अन्य वाक्य बना लेने चाहिए ।
2010_03
पढमि
= तुम स्वामियों से डरों ।
= मैं साधुनों से पढ़ता हूँ ।
[ 165
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________________
संज्ञा शब्द पंचमी बहुवचन
आकारान्त स्त्रीलिंग
ईकारान्त स्त्रीलिंग
ईकारान्त स्त्रीलिंग
उकारान्त स्त्रीलिंग
अकारान्त स्त्रीलिंग
166
संज्ञाएँ
पाठ 74
माया =माता
2010_03
जुवइ = युवती
पुती = पुत्री
घेणु = गाय
जंबू
सर्वनाम ममाहिन्तो / ममा सुन्तो / हाम्रो / हे हि / महिन्तो
ताहिन्तो / तासुन्तो/तेहिन्तो
ती प्रो / ती हिन्तो / ती सुन्तो
= जामुन का पेड़
तुम्भासुन्तो / तुम्हा हिन्तो / तुम्हासुन्तो / तुझा / तुम्हसो
} }
पंचमी बहुवचन
मायत्तो / मायाश्रो /
मायाउ / मायाहिन्तो /
मायासुन्तो
जुवईत्तो / जुवई प्रो / जुवईउ / जुवईहिन्तो / जुवईसुन्तो
पुत्तित्तो/पुत्ती प्रो / पुत्तीउ / पुत्ती हिन्तो / पुत्ती सुन्तो
तो /
प्रो /
Page / हिन्तो / सुन्तो
जंबुत्तो / जंबूप्रो / जंबू / जंबू हिन्तो /
जंबू
== हम (सब) से
= तुम (सब) से
- उनसे (पुल्लिंग, नपुंसकलिंग )
= उनसे (स्त्रीलिंग)
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #184
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________________
मायत्तो/मायानो/ . वयं मायाउ/मायाहिन्तो।
मायासुन्तो
डरमो/आदि
=हम सब माताओं से डरते हैं ।
ते
जुवइत्तो/जुवईप्रो/ जुवईउ/जुवईहिन्तो/ जुवईसुन्तो
लुक्कन्ति आदि =वे सब युवतियों से छिपते हैं ।
प्राकृत रचना सौरम ]
[
167
2010_03
Page #185
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________________
पाठ 75
संज्ञा शब्द सप्तमी एकवचन
संज्ञाएँ नरिद =राजा
सप्तमी एकवचन नरिद/नरिदम्मि
प्रकारान्त पुल्लिग
अकारान्त नपुंसकलिंग
रज्ज =राज्य
रज्जे/रज्जम्मि
इकारान्त पुल्लिग
सामि =स्वामी
सामिम्मि
ईकारान्त पुल्लिग
गामणी गाँव का मुखिया
गामरिणम्मि
साहुम्मि
उकारान्त पुल्लिग ऊकारान्त पुल्लिग इकारान्त नपुंसकलिंग उकारान्त नपुंसकलिंग
साहु =साधु सयंभू =स्वयंभू वारि =जल
सयंभुम्मि
वारिम्मि
वस्थ =पदार्थ
वत्थुम्मि
प्राकारान्त स्त्रीलिंग
माया =माता
मायाअ/मायाइ/मायाए
इकारान्त स्त्रीलिंग
जुवइ =युवती
जुवई/जुवईया। जुवईइ/जुवईए
ईकारान्त स्त्रीलिंग
पुत्ती =पुत्री
पुत्तीग्र/पुत्तीया/ पुत्तीइ/पुत्तीए
उकारान्त स्त्रीलिंग
घेणु =गाय
घेणूम/धेणूया घेणूइ/घेणूए
ऊकारान्त स्त्रीलिंग
जंबू
-जामुन का पेड़
जंबून/जंबूया/ जंबूइ/जंबूए
168 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #186
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________________
सर्वनाम
अहम्मि / मे / महम्मि
तुमए / तुहम्म/ तुमम्मि
तमि/तस्सि / तह
ताअ / ताइ/ताए
प्राकृत रचना सौरभ ]
मुझ में/मुझ पर
= तुम में / तुम पर
= उनमें / उन पर ( पु. व नपुं. )
= उनमें / उन पर (स्त्रीलिंग)
( 3 ) वह परीक्षा में
(1) वह घर में नाचता है | (2) आकाश में बादल गरजते हैं । मूच्छित होता है । (4) नर्मदा में पानी सूखता है । ( 5 ) सीता घर में कथा सुनती है । (6) वह पोटली पर बैठता है । (7) बुढापे में वाणी थकती है । राम के राज्य में लक्ष्मी बढ़ती है । ( 9 ) उसकी माता घर में पुत्र को पालती है । में नाचते हो ।
( 8 )
( 10 ) तुम हँसकर घर
2010_03
अभ्यास
[ 169
Page #187
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________________
पाठ 76
संज्ञा शब्द सप्तमी बहुवचन
संज्ञाएँ
सप्तमी बहुवचन प्रकारान्त पुल्लिग नरिद =राजा
नरिदेसु/नरिंदेसुं अकारान्त नपुंसकलिंग रज्ज =राज्य
रज्जेसु/रज्जेसं इकारान्त पुल्लिग सामि =स्वामी
सामीसु/सामीसु ईकारान्त पुल्लिग गामणी गाँव का मुखिया गामणीसु/गामणीसुं उकारान्त पुल्लिग साहु =साधु
साहूसु/साहूसु ऊकारान्त पुल्लिग सयंभू स्वयंभू
सयंभूसु/सयंभूसुं इकारान्त नपुंसकलिंग वारि = जल
वारीसु/वारीसुं उकारान्त नपुंसकलिंग वत्थु =पदार्थ
वत्थूसु/वत्थूमुं प्राकारान्त स्त्रीलिंग माया = माता
माय सु मायासुं इकारान्त स्त्रीलिंग नुवइ = युवती जुवईसु/जुवईसुं ईकारान्त स्त्रीलिंग पुत्ती =पुत्री
पुत्तीसु/पुत्ती उकारान्त स्त्रीलिंग घेणु =गाय
घेणूसु/घेणूसुं ऊकारान्त स्त्रीलिंग . जंबू =जामुन का पेड़ जंबूसु/जंबूसुं सर्वनाम अम्हेसु/ममेसु/मज्भेसु -हमारे में
तुसुतुमेसु/तुम्हेसु =तुम्हारे में तेसु/तेसं
=उनमें (पु. व नपुं.) तीसु/तीसुं
=उनमें (स्त्रीलिंग)
170 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #188
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________________
पाठ 77
संज्ञा शब्द सम्बोधन एकवचन व बहुवचन
संज्ञाएँ
सम्बोधन
बहुवचन
देव
एकवचन देवो, देवा, देव
देवा
हरि
हरी, हरि
हरी, हरप्रो, हरिणो, हरउ
गामणी
गामणि
गामणी, गामणो, गामणिगो, गामरणउ
साहु
साहू. साहु
सयंभू
सयंमु
साहू, साहसो, साहुणो, साहउ, साहवो सयंभू, सयंभयो, सयंभुणो, सयंभउ, सयंभवो माला, मालाउ, मालामो मई, मईउ, मईओ
माला
माले, माला
मई, मइ
लच्छी
लच्छि
धेणू, घेणु
लच्छी, लच्छीमा, लच्छीरो, लच्छीउ घेण, घेणूउ, घेणूमो बहू, बहूउ, बहूओ कमलाई, कमलाई, कमलाणि
बहु
कमल
कमल
वारि
वारि
वारीइं, वारी' वारीरिण
मह
महु
महूइं, महूई, महरिण
अभ्यास 1. हे स्वामी ! आप हमारी रक्षा करें। 2. हे राजा ! आपके राज्य में सुख नहीं है।
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 171
___ 2010_03
Page #189
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________________
3. हे मित्र ! तुम मेरे घर पर प्रायो। 4. हे माता ! तुम बालकों को पालो । 5. हे सीता ! जंगल में बहुत दुःख हैं। 6. हे पुत्र ! सत्य बोलो । 7. हे युवती ! तुम हँसो।
8. बालको ! तुम सब पुस्तकें पढ़ो । 9. मित्रो! आप सब राज्य से डरो। 10. साधुप्रो ! संयम पालो ।
1. सम्बोधन में किसी को पुकारना या बुलाना प्रकट होता है। इसके लिए चिह्न हैं
अरे ! ओह ! आदि ।
172 1
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #190
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पाठ 78 प्रेरणार्थक रूप (क) सामान्य क्रियाओं के प्रेरणार्थक प्रत्यय
प्रत्यय
अ, ए, प्राव, आवे
क्रियाएँ
त्रा
प्राव
प्रावे
हस हँसना
हस-+-पाव -हसाव
हस+आवे =हसावे
हस+ = हास हस+ए-हासे (हँसाना) (उपान्त्य 'अ' (उपान्त्य 'अ' का का 'या' हो 'आ' हो जाता है) जाता है) बिह+अ=बेह बिह+ए=बेहे
(डराना) (उपान्त्य 'इ' (उपान्त्य 'इ' का का 'ए' हो 'ए' हो जाता है) जाता है)
बिह=डरना
बिह+आव
=बेहाव (उपान्त्य 'इ'
का 'ए' हो जाता है)
बिह+प्रावे
=बेहावे (उपान्त्य 'इ' का 'ए' हो जाता है)
दुह=दुहना
दुह+ दोह दुहन-ए=दोहे (दुहाना) (उपान्त्य 'उ' (उपान्त्य 'उ' का का 'प्रो' हो 'नो' हो जाता है) जाता है)
दुह+प्राव
=दोहाव (उपान्त्य 'उ' का 'ओ' हो जाता है)
दुह+आवे
=दोहावे (उपान्त्य 'उ' का 'ओ' हो जाता है)
रूस=रूसना
रूस+ए= रूसे
रूस+प्राव -रूसाव
रूस+प्रावे -रूसावे
रूस+ = रूस (रूसाना) (दीर्घ 'ऊ' में कोई परिवर्तन नहीं होता है) जीव+ जीव (जीवाना) (दीर्घ 'ई' में कोई परिवर्तन नहीं होता है)
जीव=जीना
जीव+ए=जीवे जीव+आव
=जीवाव
जीव+आवे =जीवावे
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
173
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Page #191
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ठा-ठहरना
ठा+एठाए
ठा+अठाअ (ठहराना)
ठा-पाव -ठाव
ठा+पावे =ठावे
णच्च-ए=णच्चे णच्च-पाव
=णच्चाव
णच्च+आवे =णच्चावे
रगच्च-नाचना णच्च अ=
णाच्च-→णच्च (नचाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' होता है पर सयुक्ताक्षर आगे होने पर 'अ' ही रहता है)
नोट-1. क्रियाओं में प्रेरणार्थक के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न
कालों के प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसे-हासइ हंसाता है, हासहि हंसाते
हो, हासमि=हँसाता हूँ। 2 उपघा में गुरु या दीर्घ स्वर हो तो इन प्रत्ययों के अतिरिक्त 'अवि' प्रत्यय भी
लगता है । जैसे-रूसविइ । (वेचरदास दोशी, प्राकृत मार्गोपदेशिका, पृष्ठ 320) । 3. आर्ष प्राकृत में कहीं-कहीं प्रेरणासूचक 'अवे' प्रत्यय का प्रयोग भी उपलब्ध होता है । 'अवे' प्रत्यय परे होने पर धातु के उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है।
जैसे-कर+प्रवे=कारवे । (ख) कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रेरणार्थक प्रत्यय
प्रावि, 0 क्रियाएँ
प्रत्यय
प्रावि हस हँसना हस+प्रावि =हसावि
हस-10 =हास
(उपान्त्य 'अ' का 'या' हो जाता है) कर=करना कर+प्रावि =करावि
कर+0 =कार दुह=दुहना दुह+प्रावि =दुहावि
दुह+० =दुह रूस रूसना रूस+प्रावि = रूसावि
रूस+o =रूस ठा=ठहरना ठा+प्रावि =ठापावि
ठा+0 =ठा
नोट-क्रियाओं में प्रेरणार्थक के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कर्मवाच्य-भाववाच्य के प्रत्यय
जोड़े जाते हैं ।
174 ]
प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #192
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________________
करावि+इज्ज/ ईम रूसावि+इज्ज/ई कार+इज्ज/ई "रूस+इज्ज/ई
ठा+इज्ज/ई
=कराविज्ज करावी = रूमाविज्ज/रूसावी प्र =कारिज्ज/कारी =रूसिज्ज/रूसीय =ठाइज्ज/ठाई
इसके पश्चात् कालबोधक प्रत्यय लगाए जाते हैं । जैसे-कराविज्जइ, करावीअइ, कराविज्जहि, करावीअहि, कराविज्जमि, करावीअमि आदि ।
(ग) कृदन्तों के प्रेरणार्थक प्रत्यय
प्रावि, ०
क्रियाएँ
प्रत्यय
प्रावि
हस हंसना ।
हस+प्रावि=हसावि कर---प्रावि=करावि
हस+o=हास कर+o=कार
कर%Dकरना
प्रेरणार्थक भूतकालिक कृदन्त हसावि+अ =हसाविन हसावि+त =हसावित हसावि---द =हसाविद हास+
=हासिम हास+त
-हासित हास+द
=हासिद
-हँसाया गया =हंसाया गया =हँसाया गया =हंसाया गया =हंसाया गया =हंसाया गया
प्रेरणार्थक वर्तमान कृदन्त करावि+अ+न्त =करावंतो, करावेतो करावि+अ+माण =करावमाणो, करावेमारणो कारन्त कारंतो, कारेंतो कार+माग =कारमाणो, कारेमाणो
=कराता हुआ =कराता हुआ =कराता हुआ =कराता हुआ
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 175
___ 2010_03
Page #193
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________________
प्रेरणार्थक विधि कृदन्त
करावि-अव्व
=कराविअव्व
करावि+तव्व =करावितव्व करावि+दव्व =कराविदव्व करावि+अणिज्ज =करावणिज्ज करावि+अणीय =करावणीय
= कराया जाना चाहिए =कराया जाना चाहिए =कराया जाना चाहिए =कराया जाना चाहिए =कराया जाना चाहिए
प्रेरणार्थक सम्बन्धक भूत कृदन्त हसावि+तुं उं
=हसावितुं हसावेतुं हसाविउं/हसावेउं -हँसाकर हसावि+तूण/तूणं =हसावितूण/हसावितूणं
=हंसाकर हसावि+उपाण/तुप्राण =हसाविउमाण हसावितुप्राण =हंसाकर हसावि+अ =हसावित्र/हसावे
=हंसाकर हसावि+इत्ता =हसावित्ता
=हँसाकर हसावि+इत्ताण =हसावित्ताण
=हँसाकर हसावि+ऊण/ऊणं =हसाविऊण हसाविऊणं
=हँसाकर कार---तुं/उं
=कारितुं कारेतुं/कारिउं/कारेउं =कराकर कार+तूण/तूणं =कारितूण/कारेतूण/कारितूणं/कारेतूणं =कराकर कार+उपाण/उपाणं =कारिउपाण/कारे उपाण/ =कराकर
कारिउआणं/कारेउआणं कार+तुआण/तुपाणं =कारितुपाण/कारेतुमाण/
=कराकर कारितुप्राणं/कारेतुआणं कार+
-कारित्र/कारे कार-+-इत्ता =कारिता
कराकर कार+इत्ताण =कारित्ताण
=कराकर कार+ऊरण/ऊणं
-कारिऊण/कारेऊण/कारिऊणं/कारेऊणं-कराकर
=कराकर
प्रेरणार्थक हेत्वर्थक कृदन्त हसावि+तुं हसावि+ उं
=हसावितुं =हसावित्रं
=हंसाने के लिए =हँसाने के लिए -
176 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
___JainEducation International 2010_03
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
हसावि+दु हसावि+त्तए
=हसावितुं =हसावित्तए
=हंसाने के लिए =हँसाने के लिए
कार+तुं कार+उं कार+दूं कार+त्तए
=कारितुं/कारेतुं =कारिउ/कारेउ =कारिदुं/कारे, =कारित्तए
=कराने के लिए =कराने के लिए =कराने के लिए =कराने के लिए
प्राकृत रचना सौरभ ।
[ 177
2010_03
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वार्थिक प्रत्यय
संज्ञाओं में स्वार्थिक प्रत्यय जोड़ने पर उनके मूल अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।
स्वार्थिक प्रत्यय-श्र, इल्ल, उल्ल
जैसे
हिश्रय + अ
चद+श्र
पल्लव + इल्ल पिन + उल्ल
178 1
2010_03
= हिश्रयश्र
- चंदन
पाठ 79
= पल्लविल्ल = पिउल्ल
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 80
विभिन्न सर्वनामों का प्रयोग "ज (पु., नपुं.) =जो, जा (स्त्री.) =जो क (पु., नपुं.) =कौन, का (स्त्री) =कौन,
एत (पु, नपुं.) एता (स्त्री) इम (पु., नपुं.) इमा (स्त्री.)
=यह =यह =यह = यह
ho ho
उपर्युक्त सर्वनामों के रूप शब्द-रूपों में देखकर निम्नलिखित वाक्यों की प्राकृत में रचना कीजिए
(1) जो मनुष्य थकता है, वह सोता है। (2) जो गुस्सा करता है, वह छिपता है। (3) जिसके द्वारा सोया जाता है, उसके द्वारा हंसा जाता है। (4) जिसका शरीर थका हुया है, उसका बुढ़ापा बढ़ा हुआ है । (5) मैं जिसको बुलाता हूँ, वह तुम हो । (6) जिस लकड़ी पर तुम बैठे हो, वह मेरी है। (7) तुम जिससे डरते हो, उससे मैं डरता हूँ।
(1) यह मनुष्य हंसता है। (2) ये मनुष्य हंसते हैं । (3) वह यह ग्रन्थ पढ़ता है । (4) वे ये ग्रन्थ पढ़ते हैं । (5) इस मनुष्य के द्वारा हंसा जाता है । (6) इन मनुष्यों के द्वारा ग्रन्थ पढ़े जाते हैं। (7) मै इसके लिए जीता हूँ। (8) वह इसके लिए जीती है। (9) मैं यह व्रत पालता हूँ। (10) इस मनुष्य में ज्ञान है ।
(1) तुम क्या करते हो ? (2) तुम किन कार्यों को करते हो। (3) वह किससे पानी पीता है। (4) वह किसका पुत्र है ? (5) वह किससे डरता है ? (6) तुम किसके लिए जीते हो ? (१) किस में तुम्हारी भक्ति है ? (घ)(1) कौन नाचता है। (2) वह कौनसा व्रत पालता है। (3) किसके द्वारा पानी पिया गया ? (4) किसके लिए तुम उठते हो ? (5) वह किसका पुत्र है ? (6) यह किसकी पुस्तक है ? (7) किस राज्य की तुम रक्षा करते हो ? (8) किस घर में वह रहता है ?
प्राकृत रचना सौरभ ) :
[ 179
___ 2010_03
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 81
अव्यय
जाव =जब तक, ताव -तब तक, जत्थ ___=जहाँ, तहिं/तत्थ =वहाँ, जहेव -जिस प्रकार से, तहेव =उसी तरह, केत्य/कहिं =कहां, एत्थ =यहाँ, मा
नहीं
जई जहा तहा तह एवमेव
-यदि जैसे वैसे =उस तरह -इस तरह =इसलिए =बिना =भी =तो
विरणा
पि
ता
प्रन्यास
(1) जब तक तुम जागते हो, तब तक मैं चित्र देखता हूँ। (2) जहाँ तुम्हारा गांव है, वहाँ मेरा घर है । (3) जिस प्रकार वह सुख चाहता है, उसी प्रकार मैं सुख चाहता हूँ। (4) तुम कहाँ रहते हो ? (5) मैं यहाँ रहता हूँ। (6) तुम नहीं हँसो। (7) राम नहीं उठता है । (8) यदि तुम कहते हो, तो मैं यह काम करता हूँ।
1.
"ऐसे शब्द जिनके रूप में कोई विकार/परिवर्तन उत्पन्न न हो और जो सदा एक से, सभी विभक्ति, सभी वचन और सभी लिंगो में एक समान रहें, अव्यय कहलाते हैं।" [लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में घटती-बढ़ती न हो, वह अव्यय है।] (अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 213)
180
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 82
क्रियारूप
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष अन्य पुरुष
(i) वर्तमानकाल के प्रत्यय एकवचन
बहुवचन मि
मो, मु, म सि, से
ह, इत्था, ध इ, ए, दि, दे
न्ति, न्ते, इरे हस हंसना एकवचन
बहुवचन हसमि, हसामि. हसेमि हसमो, हसमु, हसम (अन्य रूपों के
लिए देखें पाठ 5) हससि, हससे, हसेसि हसह, हसित्था, हसघ हसइ, हसए, हसदि, हसदे हसन्ति, हसन्ते, हसिरे
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष अन्य पुरुष
नोट-वर्तमान काल के लिए पाठ 1 से 8 तक देखें । आकारान्त क्रियाओं के रूप
पाठ 4 व 8 में देखें।
(ii) प्राज्ञा एवं विधि के प्रत्यय एकवचन
बहुवचन
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष
हि, सु, धि, 0, इज्जसु, इज्जहि, इज्जे
अन्य पुरुष
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष
हस हंसना एकवचन हसमु, हसामु, हसिमु, हसेमु हसहि. हससु. हसघि, हस, हसेज्जसु, हसेज्जहि, हसेज्जे हसउ, हसे उ, हसदु, हसेदु
बहुवचन हसमो, हसामो, हसेमो हसह, हसेह, हसध, हसेध हसन्तु, हसेन्तु
अन्य पुरुष
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 181
___ 2010_03
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
नोट - आज्ञा एवं विधि के लिए पाठ 9 से 16 तक देखें । आकारान्त क्रियाओं के रूप
पाठ 12 एवं 16 में देखें।
बहुवचन
(iii) भविष्यत्काल के प्रत्यय एकवचन हि, हा, स्सि, स्सा,
हि, हा, स्सि, स्सा, स्सं (पूर्ण प्रत्यय)
हिस्सा, हित्था (पूर्ण प्रत्यय)
उत्तम पुरुष
मध्यम पुरुष
हि, स्स, स्सि
हि, स्स सि
अन्य पहष
हि, स्स, स्सि
हि, स्स, स्सि
हस हँसना
एकवचन
उत्तम पुरुष
हसिहिमि, हसिहामि, हसिस्सिमि, हसिस्सामि, हसे हिमि, हसे हामि, हसेस्तामि, हसिस्सं, हसेस्सं
बहुवचन हसि हिमो, हसिस्सामो, हसिस्सिमो, हसिहामो (अन्य रूपों के लिए देखें पाठ 23)
मध्यम पुरुष
हसिहिसि, हसिहिसे, हसिस्ससि, हसिस्ससे, हसिस्सिसि, हसिस्सिसे
हसिहिह, हसि हिध, हसिहित्था (अन्य रूप पाठ 24 में देखें)
अन्य पुरुष
हसिहिइ, हसिहिए, हसिहिदि, हसिहिन्ति, हसि हिन्ते, हसिहि रे हसिहिदे (अन्य रूप पाठ 21 में देखें) (अन्य रूप पाठ 25 में देखें)
नोट-भविष्यत्काल के लिए पाठ 19 से 26 तक देखें। प्राकारान्त क्रियाओं के रूप
पाठ 22 और 26 में देखें।
1821
[ प्राकृत रचना मौरम
2010_03
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 83
क्रियारूप
मस होना
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष
वर्तमानकाल एकवचन अस्थि, म्हि अत्थि, सि अत्थि
बहुवचन अस्थि, म्हो, म्ह अस्थि प्रथि
अन्य पुरुष
भूतकाल एकवचन आसि प्रासि मासि
बहुवचन आसि
उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष अन्य पुरुष
प्रासि मासि
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 183
2010_03
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 84
संज्ञा शब्द
प्रथमा
देवो
देवं
द्वितीया तृतीया चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
अकारान्त पुल्लिग-देव एकवचन
बहुवचन देवा
देवा, देवे देवेण, देवेणं
देवेहि, देवेहि, देवेहि देवस्स, देवाय
देवाण, देवाणं देवत्तो, देवाओ, देवाउ
देवत्तो, देवासो, देवाउ देवाहि, देवाहिन्तो, देवा
देवाहि, देवाहिन्तो, देवासुन्तो
देवेहि, देवेहिन्तो, देवेसुन्तो देवस्स
देवाण, देवाण देवे, देवम्मि
देवेसु, देवेसुं देवो, देव, देवा
देवा इकारान्त पुल्लिग-हरि एकवचन
बहुवचन हरी
हरउ, हरो, हरिणो, हरी
हरी, हरिणो हरिणा
हरीहि, हरीहि, हरीहिं हरिगो, हरिस्स
हरीण, हरीणं हरिणो, हरित्तो, हरीमो, हरीउ, हरित्तो, हरीओ, हरीउ, हरीहिन्तो
हरीहिन्तो, हरीसुन्तो हरिणो, हरिस्स
हरीण, हरीणं हरिम्मि
हरीसु, हरीसुं हरी, हरि
हरउ, हरो, हरिणो, हरी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी सम्बोधन
184 ]
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया चतुर्थों पंचमी
ईकारान्त पुल्लिग - गामणी एकवचन
बहुवचन गामणी
गामरणउ, गामणो
गामरिणणो गामणी गामणि
गामणी, गामणिणो गामणिणा
गामणीहि, गामणीहि, गामणीहि गामरिगणो, गामणिस्स
गामणीण, गामणीणं गामणिणो, गामणित्तो, गामणीग्रो, गामणित्तो, गामणीनो, गामणीउ, गामणीउ, गामणीहिन्तो
गामणीहिन्तो, गामणीसुन्तो गामणिणो, गामरिणस्स
गामणीण, गामणीणं गामणिम्मि
गामणीसु, गामणीसु गामणि
गामणउ, गामणो, गामणिणो, गामणी
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
उकारान्त पुल्लिग-साहु एकवचन
बहुवचन साहू
साहउ, साहो, साहवो, साहुणो,
साहू साहुं
साहू, साहुणो साहुणा
साहूहि, साहूहि, साहूहिं साहुणो, साहुस्स
साहूण, साहूणं साहुणो, साहुत्तो, साहूयो, साहूउ, साहुत्तो, साहूओ, साहूउ, साहूहिन्तो
साहूहिन्तो, साहूसुन्तो साहुणो, साहुस्स
साहूण, साहूणं साहुम्मि -
साहूसु, साहूसुं साहू, साहु
साहउ, साहो, साहवो, साहुणो, साहु
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 185
2010_03
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी
ऊकारान्त पुल्लिग-सयंभू एकवचन
बहुवचन सयंभू
सयंभउ, सयंभो , सयंमवो,
सयंभुणो, सयंभू सयंभु
सयंभू, सयंभुणो सयंभुरणा
सयंभूहि, सयंभूहिँ, सयंभूहि सयंमुणो, सयंमुस्स
सयंभूण, सयंभूणं सयंभुणो, सयंभुत्तो, सयंभूप्रो, सयंभुत्तो, सयंभूप्रो, सयंभूउ, सयंभूउ, सयंभूहिन्तो
सयंभूहिन्तो, सयंभूसुन्तो सयंभूणो, सयंभुस्स
सयंभूण, सयंभूणं सयंभुम्मि
सयंभूसु, सयंभूसुं सयंभउ, सयंभो , सयंभवो, सयंभुणो, सयंभू
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
सयंभु
प्रथमा
प्रकारान्त नपुंसकलिंग-कमल एकवचन
बहुवचन कमलं
कमला', कमलाई कमलाणि कमलं
कमलाई, कमलाई, कमलाणि कमलेण, कमलेणं
कमलेहि, कमलेहि, कमलेहि
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
कमलस्स, कमलाय
कमलाण, कमलाणं
पंचमी
कमलत्तो, कमलाओ, कमलाउ, । कमलाहि, कमलाहिन्तो, कमला ।
कमलत्तो, कमलाओ, कमलाउ, कमलाहि, कमलाहिन्तो, कमलासुन्तो, कमलेहि, कमलेहिन्तो, कमलेसुन्तो
षष्ठी
कमलस्स
कमलाण, कमलाणं
सप्तमी
कमले, कमलम्मि
कमलेसु, कमलेसुं कमलाई, कमलाई, कमलाणि
सम्बोधन
कमल
-
186 ]
प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकवचन
इकारान्त नपुंसकलिंग–वारि
बहुवचन वारीई, वारीइं, वारीणि
प्रथमा
वारि
द्वितीया
वारि
वारीई, वारीइं, वारीणि
तृतीया
वारिणा
वारीहि, वारीहि, वारीहिँ
चतुर्थी
वारिणो, वारिस्स
वारीण, वारीणं
पचमी
वारिणो वारिनो वारीओ. वारीउ, वारीहिन्तो
वारित्तो, वारिसो, वारीउ, वारिहिन्तो, वारीसुन्तो
षष्ठी
वारिणो, वारिस्स
वारीण, वारीणं
सप्तमी
वारिम्मि
वारीसु, वारीसुं
सम्बोधन
वारि
वारीइँ, वारीइं, वारीणि
उकारान्त नपुंसकलिंग-महु एकवचन
बहुवचन महुं
महूई, महूई, महूणि
प्रथमा
द्वितीया
महुं
तृतीया
महुणा
महूईं, महूई, महूणि महूहि, महूहि, महूहिँ महूण, महूणं
चतुर्थी
महुणो, महुस्स
पंचमी
महुत्तो, महूओ, महूउ, महूहिन्तो, महसुन्तो
षष्ठी
महुणो, महुत्तो, महूओ, महूउ, महूहिन्तो महुणो, महुस्स महुम्मि
षष्ठी
महूण, महूणं
सप्तमी
महूसु, महूसुं महूई, महूई, महूणि
सम्बोधन
महु .
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 187
2010_03
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
आकारान्त स्त्रीलिंग-कहा
एकवचन
बहुवचन
प्रथमा
कहा
द्वितीया
कह
कहाउ, कहाओ, कहा कहाउ, कहानो कहा कहाहि, कहाहिँ , कहाहिं
तृतीया
कहाअ, कहाइ, कहाए
चतुर्थी
कहान, कहा इ कहाए
कहाण, कहाणं
पंचमी
कहत्तो, कहाओ, कहाउ, कहाहिन्तो, कहासुन्तो
षष्ठी
कहान, कहाइ, कहाए, कहत्तो, कहाओ, कहाउ, कहाहिन्तो कहान कहाइ, कहाए कहान, कहाइ, कहाए कहे, कहा
कहाण, कहाणं
सप्तमी
कहासु, कहासं
सम्बोधन
कहाउ, कहानो, कहा
प्रथमा
द्वितीया
मई
तृतीया
चतुर्थी
इकारान्त स्त्रीलिंग-मइ एकवचन
बहुवचन मई
मईउ, मईओ, मई
मईउ, मईओ, मई मईश्र, मईआ, मईइ, मईए मईहि, मईहिं, मईहिं मईअ, मईआ, मईइ, मईए मईण, मईणं मई, मईया, मईइ, मईए, मईत्तो, मईओ, मईउ, मईहिन्तो, मइत्तो, मईयो, मईउ, मईहिन्तो। मईसुन्तो मईअ, मईया, मईइ, मईए मईण, मईणं मई, मईआ, मईइ, मईए मईसु, मईसु मई, मइ
मईउ, मईयो, मई
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
188 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
इकारान्त स्त्रीलिंग लच्छी एकवचन
बहुवचन लच्छी, लच्छीमा
लच्छीउ, लच्छीरो, लच्छीमा, लच्छी लच्छि
लच्छीउ, लच्छीओ, लच्छीमा, लच्छी लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ लच्छीहि, लच्छीहिँ, लच्छीहि लच्छीए लच्छीअ, लच्छीपा, लच्छीइ, लच्छीण, लच्छीणं लच्छीए लच्छीअ, लच्छीपा, लच्छीइ, लच्छित्तो, लच्छीमो, लच्छीउ, लच्छोए, लच्छित्तो, लच्छीरो, लच्छी हिन्तो, लच्छीसुन्तो लच्छीउ, लच्छीहिन्तो लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीण, लच्छीणं लच्छीए लच्छीग्र, लच्छीया, लच्छीइ, लच्छीसु, लच्छीसुं लच्छीए लच्छि
लच्छीउ, लच्छीग्रो, लच्छीमा, लच्छी
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
एकवचन
प्रथमा
घेणू धेj
द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी
उकारान्त स्त्रोलिंग-धेणु
बहुवचन घेणूउ घेणूो, घेणू
धेणूउ, घेणूयो, घेणू घेणग्र, घेणूप्रा, घेणूइ, घेणूए घेणूहि, धेहि, धेहि घेणूप्र, घेणूमा, धेणूइ, धेणूए घेणूण, घेणूणं घेणूग्र, घेणूपा, घेणूइ, धेणए घेणुत्तो, घेणो, घेणूउ, घेणूहिन्तो, घेणुत्तो, घेणो, घेणू उ, घेणूहिन्तो धेणूसुन्तो घेणूअ, घेणूया, घेणूइ, घेणूए घेणूण, घेणं घेणूअ, घेणूपा, घेणूइ, घेणूए घेणूसु, घेणूसुं
घेणूउ, घेणूया, घेण
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
प्राकृत रचना सौरम ]
[
189
2010_03
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
बहू
द्वितीया
बहुं
तृतीया चतुर्थी
ऊकारान्त स्त्रीलिंग बहू एकवचन
बहुवचन बहूउ बहूप्रो, बहू
बहूउ. बहूओ, बहू बहूम, बहूमा बहूइ बहूए बहूहि, बहूहिँ, बहूहि बहूअ, बहूया, बहूइ. बहूए बहूण, बहूणं बहू अ, बहूपा, बहूइ, बहूए, बहुत्तो, बहूप्रो, बहूउ बहूहिन्तो, बहुत्तो बहूओ, बहुउ, बहूहिन्तो बहूसुन्तो बहूअ. बहूमा, बहूइ, बहूए बहूण, बहूणं
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
बहू, बहूया. बहूइ, बहूए
बहूसु, बहूसुं बहू उ, बहूप्रो, बहू
सम्बोधन
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया चतुर्थी पंचमी
प्रात्मन्→प्रात्म→अप्प या प्रत्त एकवचन
बहुवचन अप्पा
अप्पा, अप्पाणो अप्पं
अप्पा, अप्पाणो अप्पणा, अप्पाणिया, अप्पणइया । अप्पेहि, अप्पेहि, अप्पेहि अप्पणो
अप्पाण, अप्पाणं अप्पागो
अप्पत्तो, अप्पाओ, अप्पाउ, अप्पाहिं, अप्पाहिन्तो, अप्पासुन्तो, अप्पेहि,
अप्पेहिन्तो, अप्पेसुन्तो अप्पणो
अप्पाण, अप्पाणं अप्पम्मि, अप्पे
अप्पेसु, अप्पेसुं अप्पा, अप्प
अप्पा, अप्पाणो
षष्ठी
सप्तमी
सम्बोधन
नोट-(i) अप्प के रूप देव की तरह भी चलेंगे ।
(ii) अप्पारण या अत्तारण के रूप भी देव की तरह चलेंगे ।
190
]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
राजन→राज→राम्र-राय एकवचन
बहुवचन राया
राया, सयाणो, राइणो राइणं
राया, रायाणो, राइणो राइणा, रणरण
राईहि, राईहि, राईहि राइणो, रायगो. रण्णो राइणं, राईण, राईणं राइणो, रायणो, रस्मो राइत्तो, राईप्रो, राई उ, राईहिन्तो,
राईसुन्तो राइणो, रायणो, रण्रपये
राइणं, राईण, राईणं राइम्मि
राईसु, राईसु राया, राय
राया, रायाणो, राइणो
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी सम्बोधन
नोट- (i) राम या राय के रूप देव की तरह भी चलेंगे ।
. (ii) रायारण या रामारण के रूप भी देव की तरह चलेंगे।
सर्वनाम शब्द
प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी
पुल्लिग--सव्व एकवचन
बहुवचन सव्यो
सव्वे सच्वं
सब्वे, सव्वा सव्वेण, सव्वेणं
सम्वेहि, सम्वेहि. सव्वेहि सव्वाय, सव्वस्स
सव्वेसि, सध्वाण, सव्वाणं सच्वत्तो, सव्वानो, सव्वाउ. सव्वत्तो, सध्वानो, सव्वाउ, सव्वाहि, सव्वाहि, सव्वाहिन्तो, सव्वा । सव्वाहिन्तो, सवासुन्तो, सव्वेहिन्तो,
सव्वेसुन्तो सवस्स
सव्वेसि, सव्वाण, सव्वाणं सवहि, सम्वम्मि, सवस्सि सव्वेसु, सव्वेसुं सब्व, सम्वो
सव्वे
षष्ठी
सप्तमी सम्बोधन
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
191
2010_03
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
सव्वं
सव्वं
द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी
नपुंसकलिंग-सव्व एकवचन
बहुवचन सव्वाइं, सव्वाईं, सव्वाणि
सव्वाइं, सव्वाई, सव्वाणि सव्वेण, सव्वेणं
सव्वेहि, सव्वेहि, सव्वेहि सव्वाय, सव्वस्स
सव्वेसि, सव्वाण, सव्वाणं सव्वत्तो, सव्वानो, सव्वाउ, सव्वत्तो, सव्वानो, सव्वाउ, सव्वाहि, सव्वाहि, सव्वाहिन्तो, सव्वा सव्वाहिन्तो, सव्वासुन्तो, सव्वेहिन्तो,
सव्वेसुन्तो सव्वाय, सव्वस्स
सव्वेसि, सव्वाण, सव्वाणं सवहिं, सवस्सि, सव्वम्मि, सव्वेसु, सव्वेसुं सव्वत्थ सव्व
सव्वाई, सव्वाइँ, सव्वारिण
षष्ठी सप्तमी
सम्बोधन
प्रथमा
द्वितीया
स्त्रीलिंग-सव्वा एकवचन
बहुवचन सव्वा ।
सव्वानो, सव्वाउ, सव्वा सव्वं
सव्वानो, सव्वाउ. सव्वा . सव्वाश्र, सव्वाइ, सव्वाए सव्वाहि, सव्वाहिँ, सव्वाहि सव्वाअ, सव्वाइ, सव्वाए
सव्वेसि, सव्वाण, सव्वाणं सव्वा, सव्वाइ, सव्वाए, सव्वत्तो, सव्वाग्रो, सव्वाउ, सव्वत्तो, सव्वाश्रो, सव्वाउ, सवाहिन्तो, सव्वासुन्तो सव्वाहिन्तो
तृतीया
चतुर्थी पंचमी
षष्ठी
सव्वेसि, सव्वाण, सव्वाणं
सप्तमी
सव्वान, सव्वाइ, सव्वाए सव्वा, सव्वाइ, सव्वाए सव्वे, सव्वा
सव्वासु, सव्वासु सव्वाओ, सव्वाउ, सव्वा
सम्बोधन
192 |
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुल्लिग रण, त
बहुवचन
एकवचन सो, ण
प्रथमा
तं, णं
द्वितीया तृतीया
ते, णे ते, ता, णे, णा तेहि, तेहि, तेहि, रोहि, रोहिं, रोहिँ
तिणा, तेण, तेणं, णिणा, रणेण, गेणं
चतुर्थी
तास, तस्स, स
तास, तेसि, सि, ताण, ताणं
पंचमी
तो, तम्हा, तत्तो, ताप्रो, ताउ, ताहि, ताहिन्तो, ता
तत्तो, तारो, ताउ, ताहि ताहिन्तो, तासुन्तो, तेहि, तेसुन्तो, तेहिन्तो
षष्ठी
तास, तस्स, से
तास, तेसिं, सिं, ताण, ताणं तेसु, तेसुं.
सप्तमी .
ताहे, ताला, तइया, तहि, तम्मि, तस्सि, तत्थ
प्रथमा
तं, णं
द्वितीया
तृतीया
नपुंसकलिंग-त (वह) एकवचन
बहुवचन
ताइं, ताईं, ताणि, पाइं, णाई, णाणि तं, णं
ताई, ताई, ताणि, णाई, णा', णाणि तिणा, तेण, तेणं,
तेहि, तेहिं, तेहिं, गिरणा, रणेण, णेणं
णेहि, णेहि, णेहि तास तस्स, से
तास, तेसिं सिं, ताण, ताणं तो तम्हा, तत्तो तारो, ताउ, तत्तो, तापो, ताउ, ताहि, ताहिन्तो, ताहि, ताहिन्तो, ता
तासुन्तो, तेहि, तेहिन्तो, तेसुन्तो तास तस्स, ते
तास, तेसि, सिं, ताण, ताणं
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
तेसु, तेसुं
ताहे. ताला, तइया, तहिं, तम्मि, तस्सि, तत्थ
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
193
2010_03
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथपा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
स्त्रीलिंग-ता (वह) एकवचन
बहुवचन सा, णा
तीनो, तीपा, तीउ ती,
तामो, ताउ, ता तं, णं
तीनो, तीमा, तीउ, ती, तारो, ता तीन, तीया, तीइ, तीए, ताप, तीहि, तीहि, तीहिँ, ताहि, ताहि, ताइ, ताए णाम, गाइ, णाए ताहि, रणाहि. गाहिं, गाहिं तिस्सा, तीसे, तीअ, तीआ, तीइ, सि, तेसिं, ताण, ताणं, तास तास, से, ताप, ताइ, ताए तीन, तामा, तीइ, तीए, तित्तो, तित्तो, तीओ, तीउ, तीहिन्तो, तीनो, तीउ, तीहिन्तो, ताप, ताइ, तिसुन्तो, तत्तो, ताउ, ताहिन्तो, ताए, तो, तम्हा, तनो, तारो, तासुन्तो ताउ, ताहिन्तो तिस्सा, तीसे, तीन तीया, तीड, .. : सि, तेसिं, ताण, ताणं, तास तीए, तास, से, तान, ताइ, ताए तीअ, तीपा, तीइ, तीए तीसु. तीसुं, तासु, तासु तान, ताइ, ताए
पंचमी .
षष्ठी
सप्तमी
पुल्लिग-ज 'जो)
एकवचन.
बहुवचन
प्रथमा
द्वितीया
ज, जा
तृतीया
जिणा, जेण, जेणं
जेहि, जेहिं जेहि
चतुर्थी
जास, जस्स
पंचमी
जम्हा, जत्तो, जामो, जाउ, जाहि, जाहिन्तो, जा
जेसि, जाण, जाणं जत्तो, जागो, जाउ, जाहि. जाहिती, जासुन्तो, जेहि, जेहिन्तो, जेसुन्तो
षष्ठी
जास, जस्स
जेसि, जाण, जाणं
सप्तमी
जेसु, जेसुं
जाहे जाला, जइमा, जहिं, जम्मि, जस्सि, जत्थ
1941
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
.
प्रथमा
.
द्वितीया
तृतीया चतुर्थी पंचमी
नपुंसकलिंग-ज (जो) एकवचन
बहुवचन जाई, जाई, जाणि
जाई, जाई, जाणि जिरणा, जेण, जेणं
जेहि, जेहिँ, जेहि जास. जस्स
जेसिं, जाण, जाणं जम्हा जत्तो, जागो, जाउ, जत्तो, जागो, जाउ, जाहि, जाहि, जाहिन्तो, जा
जाहिन्तो, जासुन्तो, जेहि, जेहिन्तो,
जेसुन्तो जास, जस्स
जेसि, जाण, जाणं जाहे, जाला, जइया, जहिं.
जेसु, जेसुं जम्मि, जस्सि, जत्थ
षष्ठी
सप्तमी
प्रथमा
जा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
स्त्रीलिंग-जा (जो) एकवचन
बहुवचन जीमो, जीपा, जीउ, जी, जाओ, जाउ, जा जीरो, जीपा, जीउ, जी, जानो,
जाउ, जा जीन, जीपा, जीइ, जीए, जाय, जीहि, जीहिं, जीहि जाइ, जाए
जाहि, जाहिं, जाहिँ जिस्सा, जीसे, जी, जीआ, जीइ, जेसि, जाण, जाणं जीए, जान, जाइ, जाए जीन जीना जीइ, जीए, जित्तो, जत्तो, जामो, जाउ, जाहिन्तो, जीप्रो, जीउ, जीहिन्तो, जा, जासुन्तो जाइ, जाए, जम्हा, जत्तो, जामो, जाउ, जाहिन्तो जिस्सा. जीसे, जी, जीए, जेसि, जाण, जाणं जान, जाए जीप, जीए, जान, जाह, जाए जीसु, जीसु, जासु, जासुं
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 195
2010_03
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुल्लिग-क (कौन)
एकवचन
बहुवचन
प्रथमा
द्वितीया
किणा, केण, केणं
तृतीया चतुर्थी पंचमी
कास, कस्स
किणो, कीस, कम्हा, कत्तो, कारो, काउ, काहि, काहिन्तो, का
के, का केहि, केहि, केहि कास, केसिं, कारण, काणं कत्तो, कायो, काउ, काहि, काहिन्तो, कासुन्तो, केहि, के हिन्तो, केसुन्तो कास केसि, कारण, काणं केसु, केसुं
षष्ठी
कास, कस्स
सप्तमी
काहे, काला, कइया, कहि, कम्मि, कस्सि, कत्थ
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
नपुंसकलिंग-क (कौन) एकवचन
बहुवचन कि .
काई, काइँ, काणि
काई, काई, कारिण किणा, केण, केणं
केहि, केहि, केहि कास, कस्स
कास, केसि, काग, काणं किणो, कीस, कम्हा, कत्तो, कालो, कत्तो, कारो, काउ, काहि, काउ, काहि, काहिन्तो, का
काहिन्तो, कासुन्तो, केहि,
केहिन्तो, केसुन्तो कास, कस्स
कास, केसि, काण, काणं काहे, काला, कइया, कहि,
केसु, केसुं कम्मि, कस्सि, कत्थ
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
196 ]
[ प्राकृत रचना सौरम
___ 2010_03
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थी
पंचमी
प्रथमा
का
द्वितीया
कं
तृतीया की, कीए, काय, काए
षष्ठी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
एकवचन
सप्तमी
स्त्रीलिंग- - का ( कौन)
किस्सा, कीसे, की, कास, काए
की, कीए, कित्तो, की प्रो,
की हिन्तो, काच, कत्तो, कायो, काहिन्तो
किस्सा, कीसे, कीए, कास,
काइ, काए
की, कीश्रा, की, काम, काइ, काए
एकवचन
एसो, एस, इणं, इणमो
एतं, ए
एतेना, एते, एतेणं, एइणा, एए एएणं
से, एतस्स, एस्स
प्राकृत रचना सौरभ 1
एत्तो, एत्ता, एतत्तो, एताश्रो, एताज, एताहि, एताहिन्तो, एता, एत्तो, एग्रो, एआउ, एहि, एमाहितो, एआ
से, एस्स, एतस्स
प्रायम्मि, इम्मि, एतम्मि, एतस्मि, एम्मि, एस्सि, एत्थ
2010_03
बहुवचन
की, काउ, की, कालो, काउ, का की, काउ, की, कालो, काउ, का
कीहि, कीहिं, कीहिँ,
काहि काहिं, कीहिँ
पुल्लिंग - एत, ए (यह )
केसि, कारण, काण, कास कित्तो, की, कीउ, कीहिन्तो, कीसुन्तो, कत्तो, काम्रो, काउ, काहिन्तो, कान्तो
केसि, कारण, काणं
की, की, कासु, कासुं
बहुवचन
एते, एए
एते, एता, एस, ए एतेहि, एतेहि, एतेहिँ,
एहि, एएहि, एएहिँ सिं, एतेसि, एताण, एताणं, एएसिं,
एआण, एप्राण
एतत्तो, एताओ, एताउ, एताहि, एता हिन्तो, एतासुन्तो, एतेहि, एते हिन्तो, एतेसुन्तो, एअत्तो, एम, एप्राउ एहि, एआहिन्तो, सुन्त सि, एतेसि, एतारण, एताणं, एएसि एप्राण, एप्राणं
एतेसु एतेसुं, एएसु, एएसुं
[
197
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया तृतीया
चतुर्थी
पचमी
नपुसकलिंग-एत, एम (यह) एकवचन
बहुवचन एअं, एस, इणं, इगणमो
एमाई, एमआई, एप्राणि एवं
एमाई, एआई, एप्राणि एतेणा, एतेण, एतेणं, एइणा, एराण, एतेहि, एतेहि, एतेहिँ एएणं
एएहि, एएहि, एएहिँ से, एतस्स, एस्स
सिं, एतेसिं, एताण, एताणं,
एएसि, एमाग, एप्रागं एत्तो, एत्ताहे, एतत्तो, एताप्रो, एतत्तो, एतानो, एताउ, एतीह, एताउ, एताहि, एताहिन्तो, एता, एताहिन्तो, एतासुन्तो, एतेहि एअत्तो, एमाओ, एग्राउ, एग्राहि, एतेहिन्तो, एतेसुन्तो, एअत्तो, एग्राहिन्तो, एग्रा
एप्रायो, एग्राउ, एग्राहि,
एाहिन्तो, एपासुन्तो से, एअस्स, एतस्स
सिं, एतेसिं, एताण, एताण,
एएसि, एमाण, एमाणं प्रायम्मि, इअम्मि, एतम्मि, एतस्सि, एतेसु, एतेसुं, एएसु, एएसुं एअम्मि, एअस्सि, एत्थ
षष्ठी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
- स्त्रीलिंग-एइ, एपा (यह) एकवचन
बहुवचन एसा, एस, इणं, इणमो, एई, एइमा एईआ, एई, एप्रायो, एमा एई, एग्रं
एईया, एईप्रो, एग्रानो, एप्राउ एईअ, एईप्रा, एईइ, एईए, एग्राअ, एईहि, एईहिं, एईहिँ, एमाए
एग्राहि, एनाहिं, एग्राहिँ एईअ, एप्राग्र, एईइ, एमाए एईण, एईणं, सि, एमाण, एआणं एईअ, एईश्रा, एईइ, एइत्तो, एअत्तो, एप्रायो, एप्राउ, एईहिन्तो, एमात्र, एअत्तो, एअाहिन्तो एप्राहिन्तो, एप्रासुन्तो एई, एईपा, एईइ, एपान, एमाए एईण, सि, एमाण, एप्राणं एई, एईआ, एमाअ, एप्राइ एईसु, एईसुं, एमासु, एमासुं -
चतुर्थी पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
198 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
"द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
एकवचन
अयं, इमो
इणं, इमं णं
इमिणा, इमेण, इमेणं, णिणा, पेण, णेणं
से, इमस्स, अस्स
इमत्तो, इमाम्रो, इमाउ,
इमाहि, इमाहिन्तो, इमा
से, इमस्स, अस्स
सि, इमम्मि इमस्सि, इह
पुल्लिंग -इम (यह )
प्राकृत रचना सौरभ ]
एकवचन
इदं इणमो, इणं
इदं, इमो, इ
इमिणा, इमेण इमेणं, णिणा, पेण,
से, इमस्स, अस्स
इमत्तो, इमाश्रो, इमाउ, इमाहि इमाहितो, इमा
से, इमस्स, अस्स
सि, इमम्मि इमस्सि, इह
2010_03
नपुंसकलिंग - इम (यह )
बहुवचन
इमे
इमे इमा, णे णा
इमेहि, इमेहि, इमेहिँ,
हि, हि, हिँ एहि, एहि, एहिं
सि, इमेसि, इमाण,
इमाणं
इमत्तो, इमाओ, इमाउ, इमाहि इमा हिन्तो, इमासुन्तो
सि, इमेसि, इमाण, इमाणं
इमेसु, इमेसुं, एसु, एसुं
बहुवचन
इमाई, इमाई, इमाणि
इमाई, इमाई, इमाणि
इमेहि, इमेहि, इमेहिँ,
णेहि, हि, हिं, एहि, एहि, एहिं
सि, इमेसि, इमाण, इमाणं
इमतो, इमाश्री, इमाउ, इमाहि, इमाहितो, इमान्तो सि, इमेसि, इमाण, इमाणं इमेसु, इमेसुं, एस, एसुं
[
199
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
200 1
एकवचन
इमी, इमी, इमिश्रा, इमा
इमि, इमं इणं, णं
इमी इमीग्रा, इमात्र,
इमाए, णाम, णाये
इमी, इमीइ, इमान,
इमाइ, इमाए
इमी, इमीग्रा, इमीए, इमित्तो,
इमा, इमा, इमाइ, इमाउ, इतो इमाहिन्तो
इमी, इमीइ, इमीए, इमात्र, इमाए
इमी, इमी, इमीए,
इमान, इमाए
एकवचन
अमू
अमुं
स्त्रीलिंग - इमी, इमा (यह )
प्रमुणा
" 2010_03
मुणो, मुस्
मुणो प्रमुतो, अश्रो, अमू
मू, अमूहिन्तो
मुणो, मुस्
यम, इम्मिश्रमुम्मि
बहुवचन
इमीग्रा, इमोश्रो, इमाम्रो, इमाउ, इमा
इमा, इमी, इमाम्रो, इमाउ, राम्रो, गाउ
इमीहि, इमीहि, इमीहिं, इमाहि,
इमाह, इमाहिं, शाहि, जाहि
इमीण, इमीण, इमेसि, इमाण, इमाणं
इमित्तो, इमीहिन्तो, इमीसुन्तो, इत्तो, इमा, इमाहिन्तो, इमासुन्तो,
इमीरण, इमीरणं, इमेसि, इमाण, इमाणं
इमी, इमीसुं, इमासु, इमासुं
पुल्लिंग - श्रमु ( वह)
बहुवचन
मुणो, श्रमणो, अमत्रो, श्रम, अमू
श्रम, अमुणो
मूहि, अमूहिं, मूहिं
प्रमण, श्रमण
श्रमुत्तो, श्रो, अमू, श्रमूहिन्तो, अमूसुन्तो
अमूण, अमू
अमूसु, अमूसुं
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
एकवचन
अमुं
मुं
अमुणा
मुणो, मुस्स
मुणो, प्रमुत्तो, श्रमूश्रो,
अमू, अमूहिन्तो
मुणो, अस
आयम्मि, इम्मि, प्रमुम्मि
एकवचन
अमू
मुं
नपुंसकलिंग - श्रमु ( वह)
प्राकृत रचना सोरम ]
अमूत्र, अमूग्रा, अमूइ, अमूए
अमू, अमू, अमूइ, अमूए
अमून, अमूइ, अमूए, अमुत्तो,
अमू
अमूत्र, अमूम्रा, अमूइ, अमूए
अमू, अमूला, अमूइ, अमूए
2010_03
बहुवचन
अमूइ, अमूइँ, अमूणि
अमूड, मूईं, अमूणि
अमूहि, अमूहिं, अमूहिँ
मूण, मू
तो, मू, श्रमूउ, अमूहिन्तो,
अमूण, अमू
मूसु, असुं
स्त्रीलिंग - श्रमु ( वह )
बहुवचन
अमूप्रो, अमूउ, अमू
अमूप्रो, अमूउ, अमू
मूहि मूहिं, अमूहिँ
मूण, अमू
अमुक्तो, मू, अमू, अमूहिन्तो, सुन्तो
अमूण, अमू
अमूसु, अमूसुं
[
201
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
अन्न (अन्य)
एकवचन
बहुवचन
प्रथमा
अन्नो
अन्ने
द्वितीया
अन्नं
अन्ने, अन्ना
तृतीया
अन्नेण अन्नेणं
अन्नेहि, अन्नेहि, अन्नेहि
चतुर्थी
अन्नाय, अन्नस्स
अन्नेसि, अन्नाण, अन्नाणं
पंचमी
अन्नत्तो. अन्नाओ, अन्नाउ, अन्नाहि, अन्नाहिन्तो, अन्ना
अन्नत्तो, अन्नामो, अन्नाउ, अन्नाहि, अन्नाहिन्तो, अन्नेहिन्तो, अन्नासुन्तो, अन्नेसुन्तो
षष्ठी
अन्नस्स
अन्नेसि, अन्नाण, अन्नाणं
सप्तमी
अन्नहि, अन्नम्मि, अन्नासिं, अन्नत्थ
अन्नेसु, अन्नेसुं
सम्बोधन
अन्न, अन्नो
अन्ने
2021
। प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
तीनों लिङ्गों में-अम्ह (मैं)
एकवचन
बहुवचन
प्रथमा
म्मि, अम्मि, अम्हि, हं, ग्रह, महये
अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं, भे
द्वितीया
अम्हे, अम्हो, अम्ह, णे
णे, णं, मि, अम्मि , अम्ह, मम्ह, मं, मम, मिमं, अहं
तृतीया
अम्हेहि, अम्हाहि, अम्ह, अम्हे, प्ये
मि, मे, मम, ममए ममाइ, मइ, मए, मे
चतुर्थी व षष्ठी
मे, मइ, मम, मह, मज्झं मज्झ, मम्हं, अम्ह, अम्हें
णे, णो, मज्झ, अम्ह, अम्हें, अम्हे, अम्हो, अम्हाण, ममाण, ममाणं, महाण, महाणं, मज्झाणं
पंचमी .
मइत्तो, मईयो, मईउ, मईहिन्तो, ममत्तो, ममाओ, ममाउ, ममाहि, ममाहिन्तो, ममा, महत्तो, महाओ, महाउ, महाहि, महाहिन्तो, महा, मज्झत्तो, मज्झाो . मज्झाउ, मज्झाहि, मज्झाहिन्तो, मज्झा
ममत्तो, ममायो, ममाउ, ममाहि, ममाहिन्तो, ममासुन्तो, अम्हत्तो, अम्हारो, अम्हाउ अम्हाहि, अम्हाहिन्तो, अम्हासुन्तो, अम्हेहि. अम्हेहिन्तो, अम्हेसुन्तो
सप्तमी
मि, मइ, ममाइ, मए, मे, अम्हम्मि, अम्हस्सि, अम्हत्थ, ममम्मि, ममस्सि, ममत्थ, महम्मि, महस्सि, महत्थ, मज्झम्मि, मज्झस्सि, मज्झत्थ
अम्हेसु, अम्हेसुं, ममेसु, ममेसे, महेसु, महेसुं, मज्झसु, मज्झेसुं, ममसु, ममपुं, महसु, महसुं, मज्झसु, मज्झसुं
प्रकृित रचना सौरम 1
[ 203
2010_03
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
तीनों लिंगों में-तुम्ह (तुम) एकवचन
बहुवचन तुम, तं, तुं, तुवं, तुह
भे, तुब्भे, तुज्झ, तुम्ह. तुम्हे, उहे, तुम्हे, तुझे, उम्हे
प्रथमा
द्वितीया
तं, तुं, तुवं, तुम, तुह, तुमे, तुवे
वो, तुज्झ, तुज्झ, तुम्हे, तुह्य . तुम्हे, उय्हे, भे
तृतीया
भे, दि, दे, ते, तइ, , तुम, तए, तुमइ, तुमए, तुमे, तुमाइ ।
भे, तुब्भेहि, तुम्हेहि, तुज्झहिं, उज्झेहि, उम्हेहि, तुम्हेहिं, उव्हेहि
चतुर्थी व
षष्ठी
तु, वो, भे, तुब्भ, तुम्ह, तुज्झ, तुब्भ, तुम्हं, तुझं, तुब्माण, तुम्हाण, तुज्झाण, तुवाण, तुमारण, तुहाण, उम्हाण, उम्हाणं, तुब्भाणं, तुम्हाणं
पंचमी
तइ, तु, ते, तुम्ह, तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुमाइ, दि, दे, इ, ए, तुब्भ, तुम्ह, तुज्झ, उन्भ, उम्ह, उज्झ, उयह तइत्तो, तईप्रो, तईउ, तईहिन्तो, तुवत्तो, तुवानो, तुवाउ, तुवाहि, तुवाहिन्तो, तुव, तुमत्तो, तुहत्तो, तुहानो, तुहाहि, तुब्भत्तो, तुब्भाहिन्तो, तुम्हत्तो, तुम्हाहिन्तो, तुज्झाउ, तुज्झाहि, तुय्ह, तुब्भ, तुम्ह, तुज्झ
तुब्भत्तो, तुब्भाहिन्तो, तुब्भासुन्तो, तुम्हत्तो, तुम्हाहिन्तो, तुम्हासुन्तो, तुम्हेहि, तुज्झत्तो, तुज्झायो, तुज्झाहिन्तो, तुज्झासुन्तो, तुम्हत्तो, तुम्हाउ; उरहत्तो, उपहासुन्तो, उम्हत्तो, उम्हारो, उम्हाहिन्तो, उम्हासुन्तो
सप्तमी
तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ, तए, तुम्मि, तुवम्मि, तुस्सि , तुवत्थ, तुमम्मि, तुमस्सि, तुमत्थ, तुहम्मि, तुहस्सि, तुहत्थ, तुब्भम्मि, तुभरिस, तुब्भत्थ, तुज्झम्मि, तुज्झस्सि, तुज्झत्थ
तुसु, तुसुं, तुवेसु, तुबेसुं, तुमेसु, तुमसुं, तुहेसु, तुहेसुं, तुब्भेसु, तुब्भेसुं, तुम्हेसु, तुम्हेसुं, तुझसु, तुज्झसुं, तुममु, तुमसुं, तुम्हसु, तुम्हसुं, तुज्झासु, तुज्झासुं, तुम्हासु, तुम्हासुं
204 ]
प्राकृत रचना सौरभ
___ 2010_03
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुल्लिग-एग, एम, एक्क (एक)
एकवचन
बहुवचन
'प्रथमा
एगो, एप्रो, एक्को
एगे, एए, एक्के
द्वितीया
एगं, एअं, एक्कं
एमे, एमा, एए, एमा, एक्के, एक्का
तृतीया
एगेण, एएण, एक्केण, एगेणं, एएणं, एक्केणं
एगेहि, एएहि, एक्केहि, एगेहि, एएहिं, एक्केहि, एगेहिँ, एएहिँ, एक्केहि
चतुर्थी
एगाय, एआय, एक्काय, एगस्स, एअस्स, एक्कस्स
एगेसिं, एएसि, एक्केसि, एगाण, एमाण, एक्काण, एगाणं, एआणं, एक्कार
पंचमी
एगत्तो, एअत्तो, एक्कत्तो, एगत्तो, एअत्तो, एकत्तो, एगाग्रो, एग्रामो, एक्कामो, एगायो, एग्रामो, एक्कायो, एगाउ, एग्राउ, एक्काउ, एगाउ, एग्राउ, एक्काउ, एगाहि, एग्राहि, एक्काहि, एगाहि, एनाहि, एक्काहि, एमाहिन्तो, एअाहिन्तो, एक्काहिन्तो, एगाहिन्तो, एपाहिन्तो, एक्काहिन्तो, एगा, एमा, एक्का
एगासुन्तो, एप्रासुन्तो, एक्कासुन्तो
षष्ठी
एमस्स, एअस्स, एकस्स
एगेसिं, एएसिं, एक्केसि, एगाण, एमाण, एक्का, एगाणं, एग्राणं, एक्कारणं
सप्तमी
एगहिं, एअहि, एक्कहि, एगम्मि, एअम्मि, एक्कम्मि, एगस्सि, एअस्सि, एक्कस्सि
एगेसु, एएसु, एक्के सु एगेसुं, एएसुं. एक्केसुं
प्राकृत रचना सौरभ
1 205
2010_03
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
नपुंसकलिंग-एग, एअ, एक्क (एक)
बहुवचन
एकवचन एग, एअं, एक्कं
प्रथमा
एगाई, एआई, एक्काई, एगाई, एमाई, एक्काइँ, एगाणि, एप्रारिण, एक्काणि
द्वितीया
एगं, एग्रं, एक्क
एगाई, एआई, एक्काई, एगाइँ, एग्राईं, एक्काई, एगाणि, एआणि, एक्काणि
तृतीया
एगेण, एएण, एक्केण, एगेणं, एएणं, एक्केणं
एगेहि, एएहि, एक्केहि, एगेहि, एएहिं, एक्केहिं, एगेहि, एएहि, एक्केहि
चतुर्थी
एगाय, एप्राय, एक्काय, एगस्स, एग्रस्स, एक्कस्स
एगेसि, एएसि एक्के सिं, एगाण, पाण, एक्काण एगाणं, एग्राणं, एक्काणं
पंचमी
एगत्तो, एअत्तो, एक्कत्तो, एगत्तो, एअत्तो, एक्कत्तो, एगाओ, एमाओ, एक्कामो, एगाओ, एमाओ, एक्काओ, एगाउ, एग्राउ, एक्काउ, एगाउ, एग्राउ, एक्काउ. एगाहि, एपाहि, एक्काहि, एगाहि, एनाहि. एक्काहि, एगा हिन्तो, एग्राहिन्तो, एक्काहिन्तो, एगाहिन्तो, एग्राहिन्तो, एक्काहिन्तो, एगा, एमा, एक्का
एगासुन्तो, एग्रासुन्तो, एक्कासुन्तो
षष्ठी
एगस्स, एअस्स, एक्कस्ल
एगेसिं, एएसि, एक्केसि, एगाण, एमाण, एक्काण, एगाणं, एमाणं, एक्काणं
सप्तमी
एगहिं, एअहिं, एक्कलिं, एगम्मि, एअम्मि, एक्कम्मि, एगस्सि, एअस्सि, एक्कस्सि
एगेसु, एएसु, एक्केसु, एगेसुं, एएसुं, एक्केसुं
206
]
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
स्त्रीलिंग - एगा, एग्रा एक्का (एक)
बहुवचन
एगा, एस, एक्का, एगा, एमओ, एक्काप्रो,
एगाउ, एग्राउ, एक्काउ
एकवचन
एगा, एस, एक्क.
एगं, एअं, एक्कं
एगा, एम, एनकाअ, एगाइ, एआइ, एक्काइ, एगाए, एमए, एक्काए,
• एगा, एमश्र, एक्का, एगाइ, एआइ, एक्काइ, एगाए, एमए, एक्काए
एगा, एन, एक्का, एगाइ, एमाइ, एक्काइ, एगाए, एआए, एक्काए, एगत्तो, एत्तो, एक्कत्तो, एगा, एमओ, एक्काप्रो,
एगाउ, एआउ, एक्काउ,
एगा हिन्तो, एग्राहिन्तो, एक्काहिन्तो
एगा, एमश्र, एक्का, एगाइ, एमाइ, एक्काइ,
एगाए, एमए, एक्काए
एगाग्र, एग्राम, एक्का, एगाई, एमाइ, एक्काइ, एमए, एमए, एक्काए
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
एगा, एआ, एक्का, एगा, एमओ, एक्काप्रो,
एगाउ, एआउ, एक्काउ
एगाहि, एप्राहि, एक्काहि,
गाहिं, एप्राहिं, एक्का हि, गाहिं, एहिँ, एक्काहिं
एसि, एएसि, एक्केसि,
एगारण, एआरण, एक्काण, एमाणं, एणं, एक्काणं
एगत्तो, एप्रत्तो, एक्कत्तो,
एगा, एमओ, एक्काओ,
एगाउ, एआउ, एक्काउ, एगा हिन्तो, एग्राहिन्तो, एक्काहिन्तो, एग सुन्तो, सुन्तो, एक्कासुन्तो
एसि, एएसि, एक्केसि,
एगाण, एप्राण, एक्काण, एगाण, एप्राणं, एक्काण
एगासु, एमासु, एक्कासु, एगासुं, एासुं, एक्का सुं
[ 207
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ 85
हेमचन्द्र के अनुसार
प्राकृत के
संज्ञा-शब्द-रूपों के
प्रत्यय (विभक्ति चिह्न)
प्राकृत रचना सौरभ ]
! 209
2010_03
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा एकवचन
2010_03
2101
हेव- अ
हरि-इ
गामणी--ई
साहु- उ
स यंभू-ऊ
म→ो
0-→ऊ
नपुंसकलिंग
महु-उ
कमल-अ (-) अयं
वारि-इ (-) इ→ई
(-)उ→
सघोलिंग
कहा- श्रा
लच्छो - ई
धेणु-उ
मइ-इ o→ई
o
0→ऊ
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथमा बहुवचन
2010_03
प्राकृत रचना सौरभ ]
प्राकृत रचना सौरभ ]
पुल्लिग
देव-अ
गामणी-ई
साहु-उ
--ऊ
हरि-इ o→ई
0→पा
0→ई
अउ
अउ
अग्रो
प्रो
अग्रो
अग्रो णो→इणो
अवो
अवो
गो-→उणो
नपुंसकलिंग
कमल-अ वारि-इ इं→पाइँ इं→पाई णि→पाणिणि→ईणि
णि आणि
स्त्रीलिंग
मई-ई
घेणु-उ 0→ पोऊपो
[
मो→ईओ उ-ईउ
उ→ऊउ
[ 211
211
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
212 ]
पुल्लिग
द्वितीया एकवचन हरि-इ गामणी-ई (-)
(-)
देव-अ (-)
साहु-उ (-)
सयंभू-ऊ (-)
अ→अं
ई
her
नपुंसकलिंग
-
कमल-प (-) प्र
वारि-इ (-)
महु-उ (-) उ→
स्त्रीलिग
कहा--प्रा
लच्छी -ई (-)
घण-उ . (+)
बहू-ऊ (-)
(-)
मा→
प्राकृत रचना सौरम
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
पुल्लिंग
नपुंसकलिंग
स्त्रीलिंग
देव — अ
0 →ना
० → ए
कमल - प्र
इं आई
इं आई
णि आणि
कहा - श्रा
0
怎
उ
द्वितीया बहुवचन
हरि - इ
0 ई
णो
वारि-इ
इईई
इंईइं
णि ईणि
मइइ
० ईइ
श्रो
उईउ
ईश्रो
गामणी - ई
0
-
णो इणो
लच्छी-ई
०
怎
उ
श्रा
साहु–उ
043
णां
महु—उ
इं
इंऊई
णि ऊणि
धेणु - उ
0-3
श्रो ऊप्रो
उ ऊउ
सयंभू -
०
णो उणो
श्री
6
उ
R
-ऊ
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 213
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
214]
तृतीया एकवचन
2010_03
देव-अ
हरि-इ
गामणी-ई
साहु-उ
सयंभू-ऊ णा→उणा
ण→एण
णा
णा→इणा
णा
कमल-अ
वारि-इ
महु-उ
णा
णा
ण→एण णं→एणं
स्त्रीलिंग
कहा-पा
मई
ई
लच्छी-ई
धेणु-उ
-ऊ
अ→ऊन
प्राऊया
प्र→ई आईआ इ-ईइ ए→ईए
मा
ए→ऊए
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीया बहुवचन
2010_03
प्राकृत रचना सौरभ
पुल्लिग
देव-अ
रणी--ई
सयंभू--ऊ
हरि-इ हि→ईहि
देव-अ हि→एहि हि→एहि हिं→एहिं
साहु--उ हि→ऊहि हिं→ऊहिं हि-अहिं
हिं→ईहि
नपुंसकलिंग
TIIT TINI
वारि-इ हिईहि
कमल-अ हि→एहि हि→एहिँ हि→एहि
हि→ऊहि हिं→ऊहिँ हिं→ऊहिं
हि→ईहिं
स्त्रीलिंग
कहा--ग्रा
लच्छी-ई
बहु-ॐ
हि→ईहि हिं→ईहिँ हिं→ईहिं
घेणु-उ हि→अहि हिं→ऊहिं हिं→ऊहिं
[
215
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
216 1
चतुर्थी व षष्ठी एकवचन
पुल्लिग
देव-अ
गामणी-ई
-उ
हरि-इ स्स
सयंभू ऊ स्स-उस्स णो→उणो
स्स
स्स→इस्स रगो->इणो
प्राय
णो
नपुंसकलिंग
कमल-अ
-इ
स्स
1. !: !...
प्राय
स्त्रीलिंग
कहा-या
मइ--इ
लच्छी-ई
घेणु-उ
अ→ई
अ→ऊन
प्रा→ईया
प्रा→ऊया
इ→ऊ
ए→ईए
ए-ऊए
.
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
पुल्लिंग
नपुंसकलिंग
स्त्रीलिंग
देव-श्र
ण प्राण
णं आणं
कमल-अ
ण आण
णं आणं
कहा -- श्रा
ण
णं
चतुर्थी व षष्ठी बहुवचन
हरि - इ
ण ण
णं ई
वारि-इ
ण ईण
णं ई
मइ.इ
ईर
णं ईणं
गामणी - ई
4. 9
ण
ण
1
लच्छी--ई
9.9
ण
साहु–उ
ण ऊण
णं ऊणं
महु -- उ
ण ऊण
ण ऊण
धेणु - उ
णऊण
णं ऊणं
सयंभू ऊ
ण
Б Б
1
बहू-ऊ
ण
णं
प्राकृत रचना सौरभ ]
[217
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
हरि-इ
साहु-उ
2010_03
पंचमी एकवचन
गामणी-ई णो→इणो त्तो-इत्तो
सयंभू-ऊ णो-उरणो तो→उत्तो प्रो
218 ]
2111
तो
त्तो
प्रो
प्रो→ईओ उ-ईउ हितो-ईहितो
प्रो-ऊो उ-+ऊउ हिन्तो-हिन्तो
44
हिन्तो ।
हिन्ता
पुल्लिग देव-अ
सो→अत्तो प्रो→ानो उ→ग्राउ हिपाहि हितो+ग्राहितो
0-+आ नपुंसकलिंग कमल-अ
त्तो प्रोग्रामो उ→ग्राउ हि→ाहि हिन्तो+आहिन्तो
0+या स्त्रीलिंग कहा-या
वारि-इ
मो→ईयो उ→ईउ हिन्तो-ईहिन्तो
प्रो→ऊो उ-ऊउ हिन्तोऊहिन्तो
लच्छी - ई
bat me
मइ-३ अ-+ई प्रा+ईश्रा इ-ईइ ए+ईए तो+इलो प्रो-+ईयो
te bo
धेणु-उ अ+ऊन मा+ऊया इ +ऊ ए+ऊए नो-+उत्तो ओ+ऊो उ-+ऊउ हिन्तो-+ऊहिन्तो
प्राकृत रचना सौरभ
। प्रकृत रचना खौरन
तो+इत्तो
तोउ+त्तो
प्रो
हिन्तो-+ईहिन्तो
हिन्तो
हिन्तो
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
पुल्लिंग
देव - श्र तो ओ आओ
तो
ओईश्रो
उग्राउ
उईउ
हि हि, एहि
हिन्तो
हिन्तो ग्राहिन्तो, एहिन्तो सुन्तो
सुन्तो
सुन्तो, सुन्तो
नपुंसकलिंग कमल - न
तो
श्रो→ श्राश्रो
स्त्रोलिंग
उ प्राउ
हिहि ए
हिन्तो हिन्तो, एहिन्तो सुन्तोश्रासुन्तो, एसुन्तो
कहा- आ
तो प्रत्तो
श्रो
उ
हिन्तो सुन्तो
मई - इ
लो
श्रो ईश्रो
हिन्तो
सुन्तो
उईउ
हिन्तो हिन्तो सुन्तोईसुन्तो
पंचमी बहुवचन
गामणी - ई
तो इत्तो
श्रो
उ
हिन्तो
सुन्तो
वारि-इ
तो
श्रो ईप्रो
उईउ
हिन्तो हिन्तो
सुन्तो
सुन्तो
लच्छी-ई
तो इसो
श्रो
उ
हिन्तो
सुन्तो
साहु-उ
तो
श्रोऊन
उ ऊउ
हिन्तो ऊहिन्तो
सुन्तो
सुन्तो
धेणु उ
ता
श्रो ओ
उ ऊउ
हिन्तो
हिन्तो
सुन्तो सुन्तो
सयंभू—ऊ तो उत्तो
ओो
उ
हिन्तो
सुन्तो
ম
महु – उ
त्तो
श्रो ऊप्रो
उऊउ
हिन्तो हिन्तो सुन्तोन्तो
- ऊ
बहू -
तो उत्तो
श्रो
उ
हिन्तो सुन्ता
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 219
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
सप्तमी एकवचन
2201
2010_03
पुल्लिग
हरि-इ
गामणी-ई
साहु-उ
देवअ→ए
सयंभूम्मि→उम्मि म्हि→उम्हि
म्मि→इम्मि
. म्हि→इम्हि
म्हि
वारि-इ
नपुंसकलिंग कमल-अ
अ→ए
म्मि
म्मि
म्मि
म्हि
स्त्रीलिंग
कहा-पा
लच्छी
बहू
घेणु-उ
मइ
-ई
अ→ऊन
अ→ई प्रा→ईमा
आ-ऊपा
[ प्राकृत रचना सौरभ
। प्राकृत रचना सौरन
ए→ऊए
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
पुल्लिंग
देव -
सुसु
सुं -एसुं
नपुंसकलिंग कमल - अ
सु एसु
सुं सुं
स्त्रीलिंग
कहा- ग्रा
सु
हरि-इ
सुईसु
सुईसुं
मई -- इ
सुईसु
सुं→ईसुं
सप्तमी बहुवचन
गामणी - ई
वारि-इँ
सुईसु
सुंईसुं
लच्छी - ई
69
साहु-उ
सुऊसु
सुं→ऊसुं
धणु - उ
सुऊसु
सुं ऊसुं
सभू-ॐ
सु
महु — उ
सुऊसु
सुं →ऊसुं
बहु – ॐ
सु
669
सु
प्राकृत रचना सौरभ 1
(.221
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
222
सम्बोधन एकवचन
2010_03
पुल्लिग
वेव --
हरि-इ
गामणी - ई
साहु
सयंभू - ऊ o→
अयो
अ→ग्रा
नपुंसकलिंग कमल-अ
महु-उ
वारि-इ ०
.
0
स्त्रीलिंग
कहा-पा
मइ
लच्छी -ई
घेणु-उ
०
.
,0→उ
--11
-0
प्राकृत रचना मौरभ
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
सम्बोधन बहुवचन
गामणी ई
पुल्लिग
देव-अ
साहु-उ
शकृत रचना सौरभ ]
0->ई
0+उ
अउ
प्रउ
प्रउ
अग्रो
उ अयो रणो→णो
अग्रो
अयो
अवो
अवो णो→उणो
वारि-इ
नपुंसकलिंग कमल-अ
ई-पाई ई-पाई रिण->आणि
इंऊई णिऊणि
णि→ईणि
स्त्रीलिंग
कहा-पा
बह-ऊ
.
घेणु -3 0-ऊ प्रो→ऊपो
ओ→ईयो
ओ
उऊउ
223
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-1
__ संज्ञा-कोष प्राकृत रचना सौरभ में प्रयुक्त संज्ञा शब्द
लिंग आँसू आँख
क्र.सं. मंज्ञा शब्द
अर्थ
1. अंसु 2. अच्छि 3. अट्टि 4. अरि 5. अवयस
पृ. सं. 134 134 134 127 61
हड्डी
6 प्रसरण
अपयश भोजन
69
पायु
स्त्री .
शास्त्र प्राकार प्राज्ञा अभिलाषा स्त्री
स्त्री . स्त्री . स्त्री .
7. प्राउ 8. प्रागम 9. प्रागिइ 10. प्रारणा 11. इच्छा 12. इत्थी 13. उदग 14 उप्पत्ति 15. प्रोहि/प्रवाह 16. कई 17. कट्ट 18. कडच्छु
जल
नप.
134
61 134 77 77 134
69 134 134 121 .69 135 135 77
स्त्री .
जन्म समय की सीमा कवि
स्त्री .
काठ
19. कण्डू
स्त्री . स्त्री . स्त्री .
की, चमची खाज कन्या कमल का फूल लक्ष्मी कर्म
नपु.
स्त्री
20. कण्णा 21. कमल 22. कमला 23. कम्म 24. कयंत 25. कर 26. करह 27. करि 28. करुणा
मृत्यु
हाथ
61
61
हाथी
127
दया
स्त्र
77
224 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. संज्ञा शब्द
अर्थ
लिंग
पृष्ठ संख्या
127
हाथी छोटा घड़ा
स्त्री .
77
17
स्त्री .
कथा
61
29. करेणु 30. कलासया 31. कहा 32. कुक्कुर 33. कूव 34. केसरि 35. खज्जू 36. खलपू
कुत्ता कुत्रा सिंह
61 127 135 135
खुजली
स्त्री .
खलियान को साफ करनेवाला
दूध
69
69
खेत गति गंगा
134
स्त्री. स्त्री .
77
61
पुस्तक
खड्डा
स्त्री
.
71
61
69
गर्व गीत गाँव गाँव का मुखिया
61
पर्वत
37. खीर 38. खेत्त 39. गइ 40. गंगा 41: गंथ 42. गड्डा 43. गव्व 44. गारण 45. गाम 46. गामणी 47. गिरि 48. गुरु 49. गुहा 50. घय 51. घर 52. चंचु 53. चमू 54. छिक्क 55. जइ 56. जउरणा 57. जंतु 58. जंबू 59. जरा
135 127 127 77
गुरु गुफा
स्त्री .
घी
61
स्त्री .
135 135
स्त्री.
नप
69
मकान चोंच सैन्य छींक यति यमुना प्राणी जामुन का पेड़ बुढ़ापा
पु .
127 77
स्त्री .
121
पु. स्त्री .
135
स्त्री .
77
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 225
2010_03
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र. सं. संज्ञा शब्द
60. जाइ
61. जाण
62. जाया
63. जीवण
4. जुवइ
65. जून 66. जोगि
67. जोववरण
68. कुंपडा
69. गई
70. णयरजरप
71. पर
72. गह
73. णागरी
74. गारण
75 for
76. पारो
77 तरगया
78. तहा
79. तणु 80. तत्ति
81. तरु
82. तवसि
83. तिरप
84. तिसा
85. तेउ
86. थुइ
87. दहि
88. दारु
89. विश्रर
90. दिवायर
91. दुक्ख
226
]
2010_03
अर्थ
जन्म / जाति
घुटना
स्त्री
जीवन
युवती
जुश्रा
योगी
यौवन
झोंपड़ी
नदी
नागरिक
मनुष्य
आकाश
नगर में रहनेवाली
ज्ञान
नींद
नारी
पुत्री
तृष्णा
शरीर
तृप्ति / सन्तोष
पेड़
साधु / मुनि / तपस्वी
घास
प्यास
तेज
स्तुति
दही
लकड़ी
देवर सूर्य
दुःख
,
लिंग
स्त्री.
नपुं.
स्त्री.
नपुंः
स्त्री.
नपुं.
पु.
नपुं.
स्त्री.
स्त्री.
नपुं.
पु.
नपुं.
स्त्री.
नपुं.
स्त्री.
स्त्री.
स्त्री.
स्त्री.
स्त्री.
स्त्री.
पु.
नपुं.
स्त्री.
पु.
स्त्री.
नपुं.
नपुं.
(b) 8)
पु.
पु.
पु.
पृष्ठ संख्या
135
134
77
69
135
69
127
69
77
34
69
61
69
134
69
77
134
77
77
135
134
127
127
69
77
127
134
134
134
61
61
61
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. संज्ञा शब्द
अर्थ
लिंग
पृष्ठ संख्या
दुःख धन धनुष
61 69 127 134
दाई
स्त्री .
धान
नपं.
धैर्य बेटी
स्त्री. स्त्री .
69 134
77 135
गाय ननद राजा
स्त्री.
77
स्त्री .
राजा रात्रि पति प्रतिष्ठा
127 61 77 127 77
१.
स्त्री .
61
92. दुह 93. धरण 94. धणु 95. धत्ती 96. धन्न 97. धिई 98. धूमा 99. घेणु 100. नगन्दा 101. नरव 102. नरिद 103. निसा 104. पई 105. पइट्ठा 106 पड 107. पण्णा 108. पत्त 109. परमेसर 110. परमेसरी 111. परिक्खा 112. पसंसा 113. पहु 114. पारिए 115. पिनामह 116. पिनामही 117. पुढवी 118. पुत्त 119 पुत्ती 1 20. पुप्फ 121. पोट्टल 122. पोत्त
EEEEEEEEEEEEEE
स्त्री .
77
69 61
स्त्री .
वस्त्र प्रज्ञा कागज परमेश्वर ऐश्वर्य सम्पन्न स्त्री परीक्षा प्रशंसा प्रभु प्राणी दादा दादी पृथ्वी
134
MH HGA
77 77
127
127
स्त्री
.
61 134 134
स्त्री .
पु.
61
पुत्र पुत्री
स्त्री
.
134
69
69
गठरी पोता
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 227
2010_03
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. संज्ञा शब्द
अर्थ
लिंग
पृष्ठ संख्या
कुल्हाड़ी
भाई पिता बहिन
स्त्री
127 127
61 134 135
61 127
बहू
स्त्री .
बालक
GAA
बीज
69
134
भक्ति भय
69
संसार
१.
61
69
स्त्री . स्त्री .
123. फरसु 124. बंधु 125. बप्प 126. बहिणी 127. बहू 128. बालम 129. बिंदु 130. बीन 131. भत्ति 132. भय 133. भव 134. भुक्खा 135. भोयण 136. मह 137. महरा 138. मंति 139. मच्च 140. मज्ज 141. मरण 142. मणि 143. मरण 144. महिला 145. महु 146. माउल 147. माया 148. मारुप 149. मित्त 150. मुरिण 151. मेरु 152. मेह 153. मेहा
भूख मोजन मति मदीरा मंत्री मृत्यु मद्य चित्त, मन
SEEEEEEEEEEEEnty thin
134
77 127 127 69 69
रत्न
स्त्री
नपं.
मरण स्त्री मधु मामा माता पवन
134 61
मित्र
मुनि
127
127
पर्वत विशेष मेघ
61 77
बद्धि
स्त्री .
228
]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ
पृष्ठ संख्या
61
69
135
राक्षस राज्य रस्सी रक्त रात रत्न
69
134
61 127 127 61 61
-9
127
69 134 127
राम नरेश, राजा दुश्मन कर्ज वैभव मुनि रूप लकड़ी लक्ष्मी प्राप्ति जंगल वस्त्र पदार्थ
69
क्र.सं. संज्ञा शब्द 154. रक्खस 155. रज्ज 156. रज्जु 157. रत्त 158. रति 159. रयण 160. रवि 161. रहु 162. रहुगन्दरण 163. राय 164.रिज 165.रिण 166. रिद्धि 167. रिसि 168. रूव 169. लक्कुड 170. लच्छी 171. लद्धि 172. वण 173. वत्थ 174. वत्थ 175. वय 176. वसरण 177. वाउ 178. वायस 179. वाया 180. वारि 181. विमाण 182. विहि 183. वेरग्ग 184. संझा 185. सच्च 186. सत्ति
69
Eth EEEE try to tin in EEEEEEEEEE thin EEEEEEER
134 134
69
69
69
व्रत
व्यसन
69
127
61
वायु कौमा वाणी जल विमान विधि वैराग्य सायंकाल सत्य
77 134
69 127
69
69
बल
134
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
229
2010_03
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. संज्ञा शब्द
अर्थ
पृष्ठ संख्या
शत्रु श्रद्धा सांप
127 77
61
घी
134 134 135
स्त्री .
77
स्त्री
श्रमणी स्वयंभू नदी पानी बहिन चंद्रमा ससुर सास साड़ी/वस्त्र/कपड़ा मालिक मालिकिन
61 77 127
61
135
स्त्री .
स्त्रा
187. सत्तु 188. सद्धा 189. सप्प 190. सप्पि 191. समणी 192. सयंभू 193. सरिता 194. सलिल 195. ससा 196. ससि 197. ससुर 198. सस्सू 199. साडी 200. सामि 201. सामिणी 202. सायर 203. सालि 204. सासरण 205. साहु 206. सिक्खा 207. सिर 208. सिसु 209. सीया 210. सील 211. सीह 212. सुत्त 213. सुया 214. सुह 215. सूर्ण 216. सेउ 217. सेरगाव 218. सोक्ख
समुद्र चावल
134 121 134
61 134
69 121
H
77
शासन साधु शिक्षा मस्तक बालक/पुत्र सीता
69 127
i EEEEEEEE to try to
HGA
71
सदाचार
सिह
धागा
पुत्री
- ET
69
सुख पुत्र
पुल
127 127 127
सेनापति सुख
69
230 ]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं. संज्ञा शब्द
219. सोहा
220. हणु
221. हणुवन्त
222. हथि
223. हरि 224. हुवह
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
अर्थ
शोभा
ठोढी
हनुमान
हाथी
हरि
अग्नि
लिंग
स्त्री.
स्त्री.
पु.
पु.
पु.
पु.
पृष्ठ संख्या
77
135
61
127
121
61
[ 231
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.स.
1.
2.
3.
+ vio2 N
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
25.
26.
27.
28.
232
शब्द
]
श्ररि
अवयस
श्रागम
कइ
कयंत
कर
करह
करि
करेणु
कुक्कुर
कव
केसरि
खलपू
गंथ
गव्व
गाम
गामणी
गिरि
गुरु
घर
जइ
जंतु
जोगि
29.
30. दुक्ख
पर
तरु
तस्सि
तेज
दिश्रर
दिवायर
2010_03
पुल्लिंग संज्ञा शब्द
आर्थ
शत्रु
अपयश
शास्त्र
कवि
मृत्यु
हाथ
ऊँट
हाथी
हाथी
कुत्ता
कुना
सिंह
खलियान को साफ करनेवाला
पुस्तक
गर्व
गांव
गांव का मुखिया
पर्वत
गुरु
मकान
पति
प्राणी
योगी
मनुष्य
पेड़
साधु / मुनि / तपस्वी
तेज
देवर
सूर्य
दुःख
पृष्ठ संख्या
127
61
61
121
61
61
61
127
127
61
61
127
135
61
61
61
135
127
127
61
127
121
127
61
127
127
127
61
61
61
[ प्राकृत रचना सौरम
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
शब्द
अर्थ
पृष्ठ संख्या
31.
दुह
32. 33. 34.
धणु नरवई
दुःख धनुष राजा राजा पति वस्त्र परमेश्वर
61 127 127
61 127
रिद
35.
36.
61
पइ पड परमेसर
37.
61
38.
पहु
प्रभु
127
127
पाणि पिनामह
प्राणी दादा
61
पुत्र
पोता
पोत्त फरसु
61 61 127 127
कुल्हाड़ी
भाई
पिता
161
बप्प बालन बिंदु
बालक
61
भव
संसार मन्त्री
मंति
127
61 127 127 61
50.
मच्चु
मृत्यु मामा
51.
52.
माउल मार मित्त
61
पवन मित्र
52
61 127
54.
मुणि
मुनि
55.
127
पर्वत विशेष मेघ
56.
61
57. 58.
राक्षस रत्न
61 61
मेर मेह रक्खस रयण रवि रह रहुगन्दरण राय
59.
- सूर्य
127 127
60. 61. 62.
रघु राम नरेश; राजा
61
61
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
233
2010_03
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
63.
64.
65.
66.
67.
68.
69.
70.
71.
72.
73.
74.
75.
76.
77.
78.
79.
80.
81.
82.
83.
84.
85.
86.
234
]
शब्द
रिउ
रिसि
वय
वाउ
वायस
विहि
सत्तु
सध्य
सयंभू
सलिल
सि
ससुर
सामि
सायर
साहु
सिसु
सीह
सूण
सेउ
सेगावह
हणुवन्त
हत्थि
हरि
हुप्रवह
2010_03
श्रथं
दुश्मन
मुनि
व्रत
वायु
कौश्रा
विधि
शत्रु
साँप
स्वयंभू
पानी
चन्द्रमा
ससुर
मालिक
समुद्र
साधु
बालक / पुत्र
सिंह
पुत्र
घुल
सेनापति
हनुमान
हाथी
हरि
अग्नि
पृष्ठ संख्या
127
127
61
127
61
127
127
61
135
61
127
61
121
61
121
127
61
127
127
127
61
127
121
61
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
25.
26.
27.
28.
29.
30.
शब्द
सु
अच्छि
श्रि
श्रसरण
श्राउ
उदग
कट्ठ
कमल
कम्म
खोर
खेत्त
गारण
घय
छिक्क
जाणु
जीवर
जूझ
जोव्वर
णयरजरण
णह
णारण
तिरग
दहि
दारु
धरण
धन
पत्त
पुष्क
पोट्टल
बीन
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
नपुंसकलिंग संज्ञा शब्द
अर्थ
प्रसू
आँख
हड्डी
भोजन
आयु
जल
काठ
कमल का फूल
कर्म
दुध
खेत
गीत
घी
छींक
घुटना
जीवन
जुना
यौवन
नागरिक
आकाश
ज्ञान
घास
दही
लकड़ी
धन
धान
कागज
फूल
गठरी
बीज
पृष्ठ संख्या 134
134
1.34
69
134
69
69
71
69
69
69
69
69
69
134
69
69
69
69
69
69
69
134
134
69
69
69
69
69
69
[ 235
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
शब्द
अर्थ
पृष्ठ संख्या
31.
69
32.
भय भोयण मज्ज
69
33.
14.
मग
35.
मरण
36.
महु
69 134 69
37.
रज्ज रत्त
भय भोजन मद्य चित्त, मन मरण मधु राज्य रक्त कर्ज रूप लकड़ी जंगल वस्त्र पदार्थ
38.
39
40.
60
रूव लक्कुड वरण
69
वत्थ
69
44.
45.
व्यसन
वत्थ वसण वारि विमाण वेरम्ग सच्च सम्पि सालि सासण
134
69 134 69 69
विमान वैराग्य सत्य
69 134
घी
चावल
134
52..
शासन
69
सिर
मस्तक
सील
सदाचार
सुत्त
धागा
56.
सुख
69
57.
सोक्ख.
69
सुख
236 1
.
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द
कस.
शब्द
अर्थ
पृष्ठ संख्या
प्राकार
प्रागिह प्राणा इच्छा
इत्थी
134 77 77 134 134 134 135 135
आज्ञा अभिलाषा स्त्री जन्म समय की सीमा की, चमची खाज
उप्पत्ति प्रोहि/अवहि कडच्छ
कण्डू
कण्णा
77
कमला
77
11.
77
करुणा कलसिया
12.
13. 14. 15.
कहा खज्ज गइ
कन्या लक्ष्मी दया छोटा घड़ा कथा खुजली गति गंगा खड्डा
77.
77 135 134 77
16.
गंगा
17.
11
18.
गुहा
गुफा
19.
77 135 -135
चमू
21.
जउगा
71
22.
चोंच सैन्य यमुना जामुन का पेड़ बुढापा जन्म/जाति स्त्री
जरा
जाइ
युवती
135
77 135
77 135
77 134 134 77
27.
जाया जुवई झुपडा रई गागरी गिद्दा
28. 29. 30.
झोपड़ी नदी नगर में रहनेवाली नींद
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
237
2010_03
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
31.
32.
33.
34.
35.
36.
37.
38.
39.
40.
41.
42.
43.
44.
45.
46.
47.
48.
49.
50.
51.
52.
53.
54.
55.
56.
57.
58.
59.
60.
61.
62.
238
शब्द
गारी
तरगया
तहा
तणु
तत्ति
तिस्सा
थुइ
धत्ती
धिई
धूश्रा
धे
]
नान्दा
निसा
यइट्ठा
पण्णा
परमेसरी
परिक्खा
पसंसा
विश्रामही
पुढवी
पुत्ती
बहिणी
बहू
भति
भुक्खा
मइ
मइरा
मणि
महिला
माया
मेहा
रज्जु
2010_03
अर्थ
नारी
पुत्री
तृष्णा
शरीर
तृप्ति / सन्तोष
प्यास
स्तुति
दाई
धैर्य
वेटी
गाय
ननद
रात्रि
प्रतिष्ठा
प्रज्ञा
ऐश्वर्य सम्पन्न स्त्री
परीक्षा
प्रशंसा
दादी
पृथ्वी
पुत्री
बहिन
बहू
भक्ति
भूख
मति
मदिरा
रत्न
स्त्री
माता
बुद्धि
रस्सी
पृष्ठ संख्या
134
77
77
135
134
77
134
134
134
77
135
77
77
77
77
134
77
77
134
134
134
134
135
134
77
134
77
134
77
77
72
135
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
अर्थ
पृष्ठ संख्या
63.
64.
65.
रात वैभव लक्ष्मी प्राप्ति वाणी सायंकाल
134 134 134 134 77
66. 67. 68.
77
69.
बल
134
70.
77
134
71. 72.
शब्द शब्द रत्ति रिद्धि लच्छि लद्धि वाया संझा सत्ति सद्धा समणी सरिमा ससा सस्सू साडी सामिणी सिक्खा सीया सुया सोहा हणु
77 77
73.
74.
75.
श्रमणी नदी बहिन सास साड़ी/वस्त्र/कपड़ा मालिकिन शिक्षा सीता पुत्री शोभा
76.
77.
135 144 134 77 77 77 77 135
78.
81.
ठोढी
प्राकृत रचना सौरभ ।
[
239
2010_03
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट 2
किया-कोश
क्र.सं.
क्रिया
अर्थ
अक/सक
पृष्ठ संख्या
सक
प्रक
2. 3.
अच्च अच्छ प्रस प्रागच्छ इच्छ उग
सक सक
119
53 128 136 128
62 119
5.
सक
प्रक
उग्घाड
सक
प्रक
53
उच्छल उच्छह उज्जम
अक
70
प्रक
53
53
12.
प्रक प्रक
62 62
13.
उपज्ज
प्रक
14.
उप्पाड
सक
पूजा करना बैठना खाना प्राना इच्छा करना उगना खोलना, प्रकट करना उछलना उत्साहित होना प्रयास करना उठना उड़ना पैदा होना उपाड़ना, उन्मूलन करना खुश होना उपकार करना विरत होना बैठना शान्त होना सांस लेना अभिनन्दन करना रोना कापना काटना करना कलंकित करना कलह/झगड़ा करना कहना
15.
उल्लस
प्रक
119
53 119
16
सक
17.
उवयर उवरम उविस
प्रक
17
18.
अक
78
19.
उवसम
प्रक
78
20. 21.
उस्सस प्रोणंद
प्रक सक प्रक
78 128
62
22. 23.
प्रक
53
कंप कट्ट
24. 25.
सक सक
119 128 119
26.
कलंक
सक
27.
प्रक
53
कलह कह
28.
सक
128
240
]
प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
.
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
क्रिया
अक/सक
पृ.सं.
29.
प्रक
किलिस कीरण
सक
30. 31
78 136
70 119
कील
प्रक
32.
सक
69
33. 34.
प्रक प्रक सक
53
कुल्ल
कोक्क
35.
119
36.
78
प्रक
37.
सक
अर्थ दुःखी होना खरीदना कीलना कूटना कूदना कूदना बुलाना लंगडाना टुकड़ा करना खोदना क्षमा करना नष्ट होना खाना खाँसना निन्दा करना अफसोस करना फैकना खिसकना क्रीड़ा करना
136 119 136
38.
खरग
सक सक
39.
61
40.
खय
प्रक सक
41
113,128
78 136
42.
प्रक
सक
43
खा खास खिस खिज्ज खिव खिस
44.
प्रक
70
136
45.
सक प्रक
46 47.
प्रक
48.
खेल
खेलना
प्रक
53 136
.
सक
49.
गच्छ
50.
62
प्रक
गज्ज
51.
प्रक
52.
सक
गडयड गण गरह
53.
सक प्रक
77 136 119
61 119 128 136
54.
जाना गरजना गिड़गिड़ाना गिनना निन्दा करना गलना खोज करना गाना गाना औसक्त होना गूंजना गॅथना/गठना
गल
सक
55.
सक
56. 57. 58.
सक
गवेस गा गान गिज्झ गज गुंध
प्रक
18
प्रक
69
59.
26
60.
सक
प्राकृत रचना सौरभ ]
[
241
2010_03
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रिया
अर्थ
प्रक/सक
पृ. स.
प्रक
53
भटकना
घुम 62.
___ चर
सक
चखना
चक्ख
सक सक
119, 136
113 128 128
चित
सक
चिट्ठ
प्रक
62
119
67.
सक
अक
68.
चिरण चिराव चुप
प्रक
69. 70. 71.
70
69 128,136
70
सक
चुभ
प्रक
चुक्क
सक
128
72.
69
प्रक सक
सक
73. 74. 75. 76. 77. 78. 79.
चेट्ट चोप्पड चोराव छज्ज छड्ड
119 128
77 119
प्रक
सक
चरना बोलना चिंता करना बैठना इकट्ठा करना देर करना टपकना त्याग करना भूल करना टुकड़ा-टुकड़ा करना प्रयत्न करना स्निग्ध करना चुराना शोभना छोड़ना ठगना छूटना क्षुब्ध होना/ब्याकुल होना स्पर्श करना छोड़ना छीलना जंभाई लेना जागना उत्पन्न करना जन्म लेना बूढ़ा होना जलना जागना जानना सूचना
छल
सक
प्रक
80.
77
छन्भ
प्रक
सक
81. 82.
सक
119 119 119
छुव छोड छोल्ल जंभा जग्ग
83.
सक
प्रक
84.
85.
86.
जग
128
87.
जम्म जर
प्रक प्रक
88
89.
जल
अक
90.
जागर
प्रक
सक
91. 92.
जाण जिध
113 136
.
सक
242 ]
प्राकृत रचना सौरभ ।
2010_03
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.स.
क्रिया
अर्थ
प्रक/सक
पृ. सं.
जिम
सक
02
119
जीमना जीना
94.
प्रक
प्रक
53
जीव जुज्झ जेम जो
लड़ना जीमना प्रकाशित करना
सक
128 136
97.
सक
78
जोह
प्रक
झा
सक
136
प्रक
लड़ना ध्यान करना ठहरना डसना डरना डोलना, हिलना
इंस
सक
128
प्रक
53
प्रक
61
डुल
ढकता
सक
119
ढक्क णच्च
प्रक
णम
नाचना नमस्कार करना नष्ट होना
सक
प्रक
प्रक
128 62 61 136 128
सक
रस्स णिज्झर गिरक्ख रिगसुरण ण्हा तडफड
98. 99. 100 101. 102 103. 104. 105 106 107. 108. 109. 110. 111. 112. 113. 114. 15. 116. 117. 118. 119 120. 121. 122. 123.
सक
प्रक
प्रक
C
तव
प्रक
प्रक प्रक
थक्क थुरण
झरना देखना सुनना नहाना छटपटाना तपना टूटना थकना स्तुति करना जलाना देना दुखना देखना धारण करना दौड़ना धिक्कारना धोना
सक
सक
दह
53 128 136 128 61
दा
सक
प्रक
दुक्ख
देवख
सक
119 128
धार
सक
धाव
सक
सक
136 136 119
धिक्कार
सक .
धोप
124.
[
243
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
क्रिया
अर्थ
अक/सक
पृ. सं.
पड़
प्रक
पढ
सक
125. 126. 127. 128.
153 127 113
सक
परगम पला
पड़ना, गिरना पढ़ना प्रणाम करना भाग जाना फैलना पालना पाना
62
129.
पसर
प्रक प्रक सक
61
पाल
सक
113 136 128 128
पाव पिन, पिब पीड पीस
पीना
सक सक
119
सक सक
पुक्कर पेच्छ पेस
119 128
सक
सक
128
फाड
सक
130. 131. 132. 133. 134. 135. 136. 137. 138. 139. 140. 141. 142. 143. 144. 145. 146. 147. 148.
119 70
प्रक
प्रक
69
फुल्ल बंध
सक
बुक्क
प्रक
सक
बुज्झ बोल्ल भरण मइल मग्ग
सक
पीडा देना पीसना पुकारना देखना भेजना फाड़ना प्रकट होना खिलना बांधना भोंकना समझना बोलना कहना मैला करना मांगना मरना सम्मान करना मारना मूच्छित होना जानना जाना रंगना रक्षा करना रक्षण करना/पालन करना
128
62 136 127 127
सक
सक
128
सक
128
प्रक
53
149.
मारण
सक सक
136 128
मार
मुच्छ
प्रक
53
150. 151. 152. 153. 154. 155.
मुण
128, 136
सक
136
या रंग रक्ख
सक
127
सक
113
156.
रक्ख
सक...
136
244 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
क.सं.
क्रिया
अर्थ
प्रक/सक
157.
रम
पृ. सं. ___70 136
158.
स्य
'प्रक सक अक अक
.53
रुव रूस
रोक्क
प्रक
119
53 136 128 136
लज्ज लभ लिह लिह लुक्क लुढ
सक
सक
प्रक
प्रक
-61
सक
128
लोट्ट
अक
69
वद
सक
वक्खारण
सक
रमना बनाना रोना रूसना रोकना शरमाना प्राप्त करना लिखना चाटना छिपना लुढकना लेना/ग्रहण करना सोना, लोटना प्रणाम करना व्याख्यान करना जाना बढ़ना वर्णन करना बधाई देना मुड़ना बसना धारण करना खिलना उपस्थित होना जानना सोना सींचना सीखना सिद्ध होना सूखना
वच्च
वड्ढ
159. 160. 161. 162. 163. 164. 165. 166. 167. 168. 169. 170. 171. 172. 173. 174. 175. 176. 177. 178. 179. 180. 181. 182. 183. 184. 185. 186. 187. 188.
प्रक
136 127 136
69 128 1.28 62
वद्धाव
सक सक श्रक प्रक
वल
वस
70
वह
सक प्रक
128 70
विप्रस विज्ज
70
प्रक सक
विण्णा
128
सय सिच सिक्ख
प्रक सक
128 136
प्रक
69
सिझ सुक्ख
प्रक
61
सुण
सुनना
सक
113 127
सुमर
स्मरण करना
सक
प्राकृत रचना सौरभ
[ 245
2010_03
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र सं.
क्रिया
अर्थ
प्रक/सक
पृ. सं.
सेव
सक
128
सोह
प्रक
61
128
सक प्रक
हरिस
62
189. 190. 191. 192. 193. 194. 195. 196. 197.
सेवा करना शोभना मारना प्रसन्न होना होना हंसना होना होना हिंसा करना
प्रक
70
हस
प्रक
प्रक
61
प्रक
हिंस
सक
128
246
1
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
+ 2 3 4 vi
t.
2.
3.
4.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
i6.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
25.
26.
27.
28.
29.
30.
क्रिया
अच्च
अस
श्रागच्छ
इच्छ
उग्घाड
उप्पाड
उवयर
श्रोणंद
कट्ट
कर
कलंक
कह
कीरण
कुट्ट
कोक्क
खंड
खण
खम
खा
खिस
खिव
गच्छ
गरण
गरह
गवेस
J
गा
गान
""
गुध
चक्ख
चर
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
सकर्मक क्रियाएँ
अर्थ
पूजा करना
खाना
अना
इच्छा करना
खोलना, प्रकट करना
उपाड़ना, उन्मूलन करना
उपकार करना
अभिनन्दन करना
काटना
करना
कलंकित करना
कहना
खरीदना
कूटना
बुलाना
टुकड़ा करना
i
खोदना
क्षमा करना
खाना
निन्दा करना
फ्रैंकना
जाना
गिनना
निन्दा करना
खोज करना
+
गाना
गाना
गूंथना / गठना
चखना
चरना
पृष्ठ संख्या
119
128
136
128
119
119
119
128
119
128
119
128
136
119
119
136
119
136
113, 128
136
136
136
136
119
119
128
136
136
119, 136
113
[ 247
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
क्रिया
अर्थ
31.
पृष्ठ संख्या
128 128
119 128, 136
चव चित चिण चुन
32.
33..
34.
35.
128
36.
चोप्पड़ चोराव
119 128
37. 38. 39.
119
छल
छव
119 119 119 119
छोड छोल्ल जण जारण जिय
128
44.
45.
46. 47.
बोलना चिता करना इकट्ठा करना त्याग करना टुकड़ा-टुकड़ा करना स्निग्ध करना चुराना छोड़ना ठगना स्पर्श करना छोड़ना छीलना उत्पन्न करना जानना सूंघना जीमना जीमना प्रकाशित करना ध्यान करना डसना ढकना नमस्कार करना देखना मुनना स्तुति करना जलाना देना देखना धारण करना दौड़ना धिक्कारना घोना
जेम
113 136 119 128 136 136 128 119 128 136
झा डंस
ढक्क
52.
53.
णम रिणरक्ख रिगसुरण थुरण
54.
128
55.
128
56.
136
57.
दा
128 119
देक्ख
128 136
60
धार धाव धिक्कार
60. 61. 62.
136 1197
धोन
248
]
.
प्राकृत रचना सौरभ ]
।
2010_03
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
63.
64. 65.
66.
67.
68.
69.
70.
71.
72.
73.
74.
75.
76.
77.
78.
79.
80.
81.
82.
83
84.
85
86.
87.
88.
89.
00.
91.
92.
93.
94.
क्रिया
पढ
परणम
पाल
पाव
पिश्र, vिa
पीड
पीस
पुक्कर
पेच्छ
पेस
फाड
बंध
बुज्झ
बोल्ल
भरण
मइल
मग्ग
मारण
मार
मुण
या
रंग
रक्ख
रक्ख
रय
रोक्क
लभ
लिह
लिह
ले
वंद
वक्खाग
प्राकृत रचना सौरभ ]
2010_03
अर्थ
पढ़ना
प्रणाम करना
पालना
पाना
पीना
पीड़ा देना
पीसना
पुकारना
देखना
भेजना
फाड़ना
बांधना
समझना
बोलना
कहना
मैला करना
माँगना
सम्मान करना
मारना
जानना
जाना
रंगना
रक्षा करना
रक्षण करना / पालन करना
बनाना
रोकना
प्राप्त करना
लिखना
चाटना
लेना / ग्रहण करना
प्रणाम करना
व्याख्यान करना
पृष्ठ संख्या
127
113
113
136
128
128
119
119
128
128
119
128
136
127
127
128
128
136
128
128, 136
136
127
113
136
136
119
136
128
136
128
136
127
[249
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
क.सं.
क्रिया
अर्थ
पृष्ठ संख्या
वच्च
95. 96.
वारण
97.
वद्धात्र
98. 99. 100. 101. 102. 103. 104. 105. 106.
वह विण्णा सिंच सिक्ख सुरग सुमर
जाना वर्णन करना बधाई देना धारण करना जानना सींचना सीखना सुनना स्मरण करना सेवा करना मारना हिंसा करना
136 128 128 128 128 128 136 113 127 128 128 128
सेव
हरण हिंस
250
1
[ प्राकृत रचना सौरम
2010_03
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
अकर्मक क्रियाएं
क्र.सं.
क्रिया
अर्थ बैठना
उग
उगना
70
उच्छल उच्छह उज्जम उछ
53.
53
उपज्ज
उछलना उत्साहित होना प्रयास करना उठना उड़ना पैदा होना खुश होना विरत होना बैठना शान्त होना सांस लेना
उल्लस
53
उवरम उवविस उवसम उस्सस कंद
33 78 78
11. 12. 13. 14.
रोना
62
.
कंप
53
5.
16. 17.
कलह किलिस कील
18.
69
21.
78
कुल्ल खंज खय खास खिज्ज खिस खेड्ड खेल गज्ज गडयड गल
कांपना कलह/झगड़ा करना दुःखी होना कीलना कूदना कूदना लंगड़ाना नष्ट होना खांसना अफसोस करना खिसकना क्रीड़ा करना खेलना गरजना गिड़गिड़ाना गलना
78
78
26. 27.
53
28.
71
29. 30.
61
प्राकृत रचना सौरम
।
[
251
2010_03
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
क्रिया
पृष्ठ संख्या
78
31.
गिज्झ
32.
गुंज
33.
घुम
34.
चिठ्ठ
70
35.
चिराव
69
36.
70
37. 38. 39. 40.
चुन चुक्क चेट्छ छज्ज
론
77
41.
छन्भ
42.
78
43.
69.
62
61
अर्थ आसक्त होना गूंजना भटकना बैठना देर करना टपकना भूल करना प्रयत्न करना शोभना छूटना क्षुब्ध होना/व्याकुल होना जंभाई लेना जागना जन्म लेना बूढ़ा होना जलना जागना जीना लड़ना लड़ना ठहरना डरना डोलना, हिलना नाचना नष्ट होना झरना नहाना छटपटाना तपना टूटना थकना दुखना
जंभा जग्ग जम्म जर जल जागर जीव जुज्झ जोह
44. 45. 46. 47. 48. 49. 50. 51.
70
w
3
co
a
ठा
52..
61
53.
54.
डर डुल रगच्च णस्स णिज्झर
62
61
55. 56. 57. 58. 59.
पहा
तडफड तव
How
60..
53
थक्क
61.. 62.
दुक्ख
252 ]
[ प्राकृत रचना सौरभ
2010_03
,
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र.सं.
क्रिया
अर्थ
पृष्ठ संख्या
63.
53
पड पला पसर
पड़ना, गिरना भाग जाना फैलना प्रकट होना
61
65. 66.
70
67.
खिलना
69
फुल्ल बुक्क मर
53
.
70.
मुच्छ
71.
170 53
रुव
72. 73..
रूस
74.
53
लुक्क
61
लोट्ट वढ
69
वल
62
भोंकना मरना मूच्छित होना रमना रोना रूसना शरमाना छिपना लुढकना सोना, लोटना बढ़ना मुड़ना बसना खिलना उपस्थित होना सोना सिद्ध होना सूखना शोभना प्रसन्न होना होना हंसना होना होना
80.
81.
वस विप्रस विज्ज
83. 84. 85.
सय सिज्म
69
सुक्ख
सोह हरिस
2
.
87. 88. 89. 90. 91.
90.
61
हु हो
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 253
2010_03
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्र. सं.
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9:
10!
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
254 ]
पृष्ठ संख्या
32
23 से 49
37
38
41
41
41
41
44
46
54
54
60
61
91
110
130
132
140
224
2010_03
शुद्धि-पत्र
पंक्ति संख्या
5
( पादटिप्पण )
3
18
4
6
6
7
20
13
7
15
12
13
24
20 से 24
5
21
29
प्रशुद्ध
तें / ताओ / ताउ
घाटे
'सि'
'सि'
इनको जोड़ने के
पश्चात्
हि, स्स,
'दि'
सन्दर्भ नहीं
दिया
सि
स्सि
लुक्कि हिइत्था
धक्कधि
तुहुं
प्रकारान्त
कवंत
विश्वसताई
ससान / ससाइ /
संसाए
कइउ / कइओ
कइउ / कइ
रक्खणीयो
लिंग नहीं दिया
शुद्ध
ता/ ताओ / ताउ
घाटगे
'स्सि
'रिस'
'हि' 'स्स' जोड़ने
के पश्चात्
हि, स
'ति'
प्राकृत मार्गोपदेशिका दोशी,
250
स्सि
लुक्कि हित्या
थक्कवि
तुह
प्रकारान्त
कियंत
विश्रसंताई
साहि / साहि
साहिँ
कउ / क
कउ / को
रक्खणीया
पु.
[ प्राकृत रचना सौरभ
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
सहायक पुस्तकें एवं कोश
1. हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, भाग 1-2
2. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण
3. अभिनव प्राकृत व्याकरण
: व्याख्याता-श्री प्यारचन्द जी महाराज (श्री जैन दिवाकर-दिव्य ज्योति कार्यालय, मेवाड़ी बाजार, ब्यावर) । : डॉ. आर. पिशल
(बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना)। : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री
(तारा पब्लिकेशन, वाराणसी)। : पं. बेचरदास जीवराज दोशी
(मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली)। : डॉ. कपिलदेव द्विवेदी (विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी)
4 प्राकृत मार्गोपदेशिका
5. प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी
6. पाइअ-सद्द-महण्णवो
:पं. हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द सेठ (प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी)
7. अपभ्रंश-हिन्दी कोश, भाग 1-2
: डॉ. नरेशकुमार (इण्डो-विजन प्रा. लि., II A, 220, नेहरु नगर, गाजियाबाद)
8. हेमचन्द्र-प्राकृत-व्याकरण सूत्र-विवेचन
(जनविद्या-9, मुनि योगीन्दु विशेषांक)
: डॉ. कमलचन्द सोगाणी (जनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, राजस्थान)
9. Apabhramsa of Hemacandra
: Dr. Kantilal Baldevram Vyas
(Prakrit Text Society, Ahmedabad)
10. Introduction to
Ardba-Magadhi
: A M. Ghatage
(School and college Book stall, Kolhapur)
प्राकृत रचना सौरभ ]
[ 255
2010_03
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
2010_03
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________ 2010_03