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नोट-(i) इसी प्रकार कर्तृवाच्य में कर्म में द्वितीया बहुवचन को दूसरे वाक्यों में प्रयोग कर
लेना चाहिए।
(ii) भूतकाल/विधि एवं प्राज्ञा में कर्मवाच्य बनाने के लिए क्रिया में कर्मवाच्य का
प्रत्यय लगाने के पश्चात् भूतकाल/विधि एवं प्राज्ञा के प्रत्यय लगाये जाते हैं (तीनों पुरुषों और दोनों वचनों में)।
उपर्युक्त वाक्यों में इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग शब्दों का भी प्रथमा एकवचन और तृतीया एकवचन में प्रयोग किया गया है।
(i) इकारान्त पुल्लिग शब्दों से प्रथमा एकवचन बनाने के लिए '0' प्रत्यय जोड़ने पर
दीर्घ (o→दीर्घ, इ-ई) हो जाता है, जैसे हरिहरी। तृतीया एकवचन बनाने के लिए 'णा' प्रत्यय जोड़ा जाता है, हरि-हरिणा ।
(ii) उकारान्त पुल्लिग शब्दों से प्रथमा एकवचन बनाने के लिए 'o' प्रत्यय जोड़ने पर
दीर्घ (o→दीर्घ, उ→ऊ) हो जाता है, जैसे साहु→साहू । तृतीया एकवचन बनाने के लिए 'णा' प्रत्यय जोड़ा जाता है, साहु→साहुणा ।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सकर्मक हैं ।
3.
इकारान्त और उकारान्त शब्दों के प्रथमा बहुवचन व तृतीया बहुवचन के रूप इस प्रकार होंगेप्रथमा बहुवचन -हरि-हरी हरउ/हरो/हरिणो (o→ई, अउ, अयो, णो) . साहु→साहू/साहउ/साहनो/साहवो/साहुणो (o→ऊ, अज, अग्रो,
__ अवो, णो) तृतीया बहुवचन-हरि-हरीहि/हरीहिं/हरीहिं (हि/हिं/हिं प्रत्यय जोड़ने के पश्चात्
साहु→साहूहि/साहि/साहूहिँ (हि/हिं/हिँ प्रत्यय जोड़ने के पश्चात्
उ→ऊ)
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प्राकृत रचना सौरभ
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