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Jain Education International 2010_03
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पुल्लिंग
देव - श्र तो ओ आओ
तो
ओईश्रो
उग्राउ
उईउ
हि हि, एहि
हिन्तो
हिन्तो ग्राहिन्तो, एहिन्तो सुन्तो
सुन्तो
सुन्तो, सुन्तो
नपुंसकलिंग कमल - न
तो
श्रो→ श्राश्रो
स्त्रोलिंग
उ प्राउ
हिहि ए
हिन्तो हिन्तो, एहिन्तो सुन्तोश्रासुन्तो, एसुन्तो
कहा- आ
तो प्रत्तो
श्रो
उ
हिन्तो सुन्तो
मई - इ
लो
श्रो ईश्रो
हिन्तो
सुन्तो
उईउ
हिन्तो हिन्तो सुन्तोईसुन्तो
पंचमी बहुवचन
गामणी - ई
तो इत्तो
श्रो
उ
हिन्तो
सुन्तो
वारि-इ
तो
श्रो ईप्रो
उईउ
हिन्तो हिन्तो
सुन्तो
सुन्तो
लच्छी-ई
तो इसो
श्रो
उ
हिन्तो
सुन्तो
साहु-उ
तो
श्रोऊन
उ ऊउ
हिन्तो ऊहिन्तो
सुन्तो
सुन्तो
धेणु उ
ता
श्रो ओ
उ ऊउ
हिन्तो
हिन्तो
सुन्तो सुन्तो
सयंभू—ऊ तो उत्तो
ओो
उ
हिन्तो
सुन्तो
ম
महु – उ
त्तो
श्रो ऊप्रो
उऊउ
हिन्तो हिन्तो सुन्तोन्तो
- ऊ
बहू -
तो उत्तो
श्रो
उ
हिन्तो सुन्ता
प्राकृत रचना सौरभ ]
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