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क्र.सं.
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29.
30.
क्रिया
अच्च
अस
श्रागच्छ
इच्छ
उग्घाड
उप्पाड
उवयर
श्रोणंद
कट्ट
कर
कलंक
कह
कीरण
कुट्ट
कोक्क
खंड
खण
खम
खा
खिस
खिव
गच्छ
गरण
गरह
गवेस
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गा
गान
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गुध
चक्ख
चर
प्राकृत रचना सौरभ ]
Jain Education International 2010_03
सकर्मक क्रियाएँ
अर्थ
पूजा करना
खाना
अना
इच्छा करना
खोलना, प्रकट करना
उपाड़ना, उन्मूलन करना
उपकार करना
अभिनन्दन करना
काटना
करना
कलंकित करना
कहना
खरीदना
कूटना
बुलाना
टुकड़ा करना
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खोदना
क्षमा करना
खाना
निन्दा करना
फ्रैंकना
जाना
गिनना
निन्दा करना
खोज करना
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गाना
गाना
गूंथना / गठना
चखना
चरना
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