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पाठ 54 क्रियाएँ और उनका कर्मवाच्य में प्रयोग क्रियाएँ
कोक्क=बुलाना, परमप्रणाम करना,
सुण=सुनना, रक्ख= रक्षा करना,
देख-देखना पाल=पालना
उपर्युक्त क्रियाएँ सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाएँ कर्तवाच्य और कर्मवाच्य में प्रयुक्त होती हैं । सकर्मक क्रिया से कर्मवाच्य बनाने के लिए वे ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं जो भाववाच्य बनाने के लिए जोड़े गए थे (पाठ-47, इज्ज, ईअ/ईय)। कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन) हो जाता है, कर्म में द्वितीया (एकवचन अथवा बहुवचन) के स्थान पर प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा क्रिया में कर्मवाच्य के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार पुरुष और वचन के प्रत्यय काल के अनुरूप जोड़ दिए जाते हैं। कर्मवाच्य सकर्मक क्रिया से वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि एवं आज्ञा में बनाया जाता है। भविष्यत्काल के कर्मवाच्य में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य का रूप ही रहता है, उसमें इज्ज, ईम/ईय प्रत्यय नहीं लगाए जाते हैं । भूतकाल के लिए भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। आगे कर्मवाच्य बनाने के लिए केवल तृतीया एकवचन के प्रयोग दिए गए हैं । तृतीया बहुवचन के प्रयोग भी कर लेने चाहिए। पिछले अध्यायों में अकारान्त पुल्लिग व नपुंसकलिंग तथा आकारान्त स्त्रीलिंग के प्रथमा, द्वितीया एवं तृतीया में रूप समझाये जा चुके हैं । यहाँ इकारान्त व उकारान्त पुल्लिंग के रूप प्रथमा एकवचन व तृतीया एकवचन में दिए गए हैं।
संज्ञा शब्द
प्रथमा एकवचन
तृतीया एकवचन
इकारान्त पुल्लिग
संज्ञाएँ हरिहरि सामि=मालिक कई=कवि
हरी सामी कई
हरिणा सामिणा कइणा
उकारान्त पुल्लिग
साहु-साधु जंतु=प्राणी सत्त=शत्रु
साहुणा जंतुणा सत्तुणा
प्राकृत रचना सौरभ ]
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