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________________ पाठ 62 विधि कृदन्त (कर्मवाच्य में प्रयोग) प्राकृत में प्राप्त किया जाना चाहिए', 'रक्षा किया जाना चाहिए' आदि भावों का प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है । क्रिया में प्रत्यय [पाठ 49 में दिए गए हैं-अव्वयव्व, तव्व, दव, णीय (जो अकारान्त क्रियाओं में लगता है)। ] लगाकर विधि कृदन्त बनाये जाते हैं । विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचन अथवा बहुवचन), कर्म में प्रथमा (एकवचन अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे । पुल्लिग में 'देव' के अनुसार, नपुंसकलिंग में 'कमल' के अनुसार तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार रूप चलेंगे । सकर्मक क्रियानों से निर्मित विधि कृदन्त ही कर्मवाच्य में प्रयुक्त किए जाते हैं । क्रियाएँ कोण =खरीदना, झाप्र=ध्यान करना, गरण गिनना, पेस भेजना, रक्ख=रक्षा करना, खम क्षमा करना, पेच्छ=देखना, बंध=बाँधना लभप्राप्त करना पिन (पिब)=पीना धार धारण करना (i) पुल्लिग सामिरणा हत्थी कीरिणअव्वो कीणिदव्वो/ ] स्वामी द्वारा कीणितव्वो कीणणीयो/ = हाथी खरीदा कीणेअव्वो/कीरोदव्वो जाना चाहिए। कीणेतव्वो | पाणी/पाणउ/ मुणीहि/ मुणीहिं/ मुणीहि रक्खि अव्वा/रक्खिदव्वा/ रक्खितव्वा/रक्खणीयो/ रक्खेअन्वा/आदि मुनियों द्वारा = प्राणी रक्षा किए जाने चाहिए। पाणो/पाणिणो साहुणा तेउ तेउ लभिअव्वो/लमिदव्वो/ लभितव्वो/लभणीयो लभेअव्वो आदि साधु द्वारा तेज = प्राप्त किया जाना चाहिए। 140 ] [ प्राकृत रचना सौरभ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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