SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कमलाई कमलाई कमलाणि कमलाई कमलाई कमलाणि । कमलाई कमलाइँ कमलाणि (ग) क्रियाएँ 92 वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय न्त मारण विश्रसंताई / विताइँ विप्रसंताणि रगच्च नाचना 1 विप्रसंताई / विप्रसंताई | विप्रसंताणि विसंता इं/ विताई विप्रसंताणि . एच्च णच्चन्त = नाचता हुआ गच्चमाण = नाचता हुआ सोहन्तु / प्रादि ] (i) सोहीअ Jain Education International 2010_03 > सोहिहिन्ति / प्रादि =सांना, (ii) सोहिश्राइं / सोहिश्राई/ सोहारिण सय= = कमल खिलते हुए ( विधि एवं प्राज्ञा ) सयन्त = कमल खिलते हुए शोभे । ( भूतकाल ) For Private & Personal Use Only | = कमल खिलते हुए (भूतकालिक कृदन्त ) शोभें । = सोता हुआ सयमाण==== = सोता हुआ = कमल खिलते हुए शोभेंगे । (भविष्यत्काल ) सय (i) वाक्यों में प्रयोग नोट - सर्वप्रथम कृदन्त का स्त्रीलिंग बनाना चाहिए । 'श्री' प्रत्यय जोड़ें -- णच्चन्ता, सयन्ता, णच्चमाणा, सयमाणा, अब इनके रूप 'कहा' की तरह चलेंगे । (स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' प्रत्यय भी जोड़ा जा सकता है—णच्चन्ती, सयन्ती, णच्चमाणी, सारणी, तब इसके रूप 'लच्छी' की तरह चलेंगे । ) शोभे । - [ प्राकृत रचना सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy