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________________ 1. 2. 3. 4. 5. तेहि ह ताहि / ताहितीह हसिव्वं /हसियव्वं / हसितव्वं / हसदव्वं / हसणीयं ह से अव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं / हसेदव्वं पाठ-45 का पादटिप्पण 1 (क) देखें | पाठ-45 का पादटिप्पण 1 ( ख ) देखें । हसिव्वं / हसियव्वं /हसितव्वं / हसिदव्वं / हसणीयं हसेव्वं /ह से यव्वं / हसेतव्वं / हसे दव्वं प्राकृत रचना सौरभ ] Jain Education International 2010_03 उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं तथा वाक्य भाववाच्य में हैं । अव्व / यव्व / तव्व / दव्व प्रत्यय लगने के पश्चात् 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । आकारान्त आदि क्रियानों में भी ये ही प्रत्यय जोड़े जाते हैं—ठायव्व, ठादव्व, ठातव्व, होयव्व, होदव्व, नेयव्व, नेदव्व श्रादि । = उन (पुरुषों) के द्वारा हँसा जाना चाहिए । अर्द्धमागधी में विधि कृदन्त के लिए रिगज्ज प्रत्यय भी अकारान्त क्रियाओं में जोड़ा जाता है ---हसरिगज्ज, जग्गरिगज्ज आदि । ( घाटगे, पृष्ठ 144; पिशल, पृष्ठ 812 ) 1 = = उन (स्त्रियों) के द्वारा हँसा जाना चाहिए । For Private & Personal Use Only 111 www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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