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________________ (ii) हि, स्सा, स्सं और हा प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। (iii) 'सि' प्रत्यय जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है (हे. प्रा. व्या , 4-275) । 3. (i) सोच्छ=सुनना, मोच्छ-छोड़ना, वेच्छ-जानना, भोच्छ खाना रोच्छ=रोना, वोच्छ= कहना, दच्छ-देखना, गच्छ=जाना छेच्छ=छेदना भेच्छ= भेदना उपर्युक्त क्रियाओं में उत्तम पुरुष एकवचन के रूप बनते हैंसोच्छं = (मैं) सुनूँगा, मोच्छं = (मैं) छोडूंगा, वोच्छ=(मैं) कहूँगा गच्छं= (मैं) जाऊँगा, वेच्छं=(मैं) जानूंगा, छेच्छं= (मैं) छेदूंगा भोच्छं=(मैं) खाऊँगा, दच्छं =(मैं) देखूगा, भेच्छं=(मैं) भेदूंगा रोच्छ = (मैं) रोऊँगा। (ii) सोच्छ, गच्छ प्रादि क्रियाओं में भविष्यत्काल के हि: प्रत्यय का लोप करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं, अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है। सोच्छ+ मि=सोच्छिमि/सोच्छेमि= मैं सुनूंगा । कभी-कभी सोच्छिहिमि आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या., 3-172) । (iii) भविष्यकाल में उत्तम पुरुष एकवचन में काहं = (मैं) करूँगा, दाह= (मैं) दूंगा, प्रयोग भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त 'का' और 'दा' के रूप उपर्युक्त प्रकार से भी बनते हैं - काहिमि/दाहिमि आदि । अर्द्धमागधी में सोच्छ, गच्छ रोच्छ आदि उययुक्त क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'मि प्रत्यय जोड़ देने से भविष्यत्काल के रूप बनते हैं—सोच्छाभि=सुनूंगा, वोच्छामि= कहूँगा, रोच्छामि=रोऊँगा आदि । इनके अतिरिक्त भोक्खामि= (मैं) खाऊँगा, होक्खामि होऊँगा, पेक्खामि देखूगा आदि रूप भी अर्द्धमागधी में बनते हैं (घाटे, पृष्ठ 121)। 4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । प्राकृत रचना सौरभ ] [ 37 Jain Education International 2010 03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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