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(ii) स=वह (पुरुष) का भी प्रयोग होता है ।
(iii) अर्द्धमागधी में से वह (पुरुष) का भी प्रयोग होता है, (पिशल, पृष्ठ 625) ।
2. (i) भविष्यकाल में अन्य पुरुष एकवचन में हि, स्स, स्सि प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते
हैं । इनको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के प्रत्यय इ, ए, दि दे जोड़े जाते हैं।
(ii) कभी-कभी भविष्यत्काल के प्रत्यय हि, स्स, स जोड़ने के पश्चात् "दि' प्रत्यय
भी जोड़ दिया जाता है ।
(iii) हि, स्स प्रत्यय क्रिया में जोड़ने के पश्चात् क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए'
हो जाता है। ऊपर केवल 'इ' के रूप ही दिए गए हैं।
(vi) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर 'दि' और 'दे' प्रत्यय ही जोड़े जाते हैं और
क्रिया के अन्त्य 'अ' का इ' ही होता है ।
(v) बेचरदास जी ने 'प्राकृत मार्गोपदेशिका' में अन्य पुरुष एकवचन में 'स्स' प्रत्यय भी
माना है (पृ. 245) । पिशल ने भी 'स्स' प्रत्यय दिया है (भविस्सदि, पृष्ठ 755; मरिस्सइ पृष्ठ 760)।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. (i) सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप
करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है । जैसे-सोच्छिइ/सोच्छेइ आदि=वह सुनेगा । सोच्छिहिइ आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या. 3-172) ।
(ii) अर्द्धमागधी में सोच्छ, गच्छ, रोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'इ' प्रत्यय
जोड़ देने से भविष्यत्काल का रूप बन जाता है जैसे - सोच्छइ/रोच्छइ आदि ।
प्राकृत रचना सौरभ ।
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