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________________ कर्मवाच्य वर्तमानकाल एकवचन कहा कर्ता-तृतीया कर्म-प्रथमा क्रिया-परिवर्तित कर्म के अनुसार नरिदेण नरिदेणं ग्रह/ह/ अम्मि कोक्किज्जमि/कोक्कोअमि/= राजा के द्वारा मैं बुलाया पादि जाता हूँ। नरिदेण/नरिदेणं तुम/तुं/तुह कोक्किज्जसि/कोक्कीअसि/= राजा के द्वारा तुम बुलाये प्रादि __ जाते हो। नरिदेण/नरिदेणं कोक्किज्जइ/कोक्कीअड/ =राजा के द्वारा वह बुलाया प्रादि जाता है। नरिंदेण/नरिदेणं कोक्किज्जइ/कोक्कीअइ/ =राजा के द्वारा वह बुलाई प्रादि जाती है। दरिदेण/नरिदेणं रक्खिज्जइ रक्खीअइ/ =राजा के द्वारा वह (राज्य) प्रादि रक्षा किया जाता है । नरिदेण/नरिदेणं सुणिज्जइ/सुणीअइ/आदि =राजा के द्वारा कथा सुनी जाती है। मइ/मए/मे ममए तुम/तुं/तुह । देखिज्जसि/देक्खीप्रसि/ =मेरे द्वारा तुम देखे जाते आदि हो। तइ/तए/तुमे/तुमए सो/सा देक्खिज्जइ/देक्खीअइ/ =तुम्हारे द्वारा वह देखा आदि जाता है/देखी जाती है। तेण/तेणं अहं हं/अम्मि देक्खिज्जमि/देक्खीअमि| =उस (पुरुष) के द्वारा मैं पादि देखा जाता हूँ। ताए/तीए अह/हं/अम्मि देक्खिज्जमि/देक्खीअमि/ =उस (स्त्री) के द्वारा मैं आदि देखा जाता हूँ। मायाए/मायाइ/मायाअ अहं/हं/अम्मि पालिज्जमि/पालीअमि/ =माता के द्वारा मैं पाला जाता हूँ। मायाए/मायाइ/माया तुमं/तुं/तुह पालिज्जसि/पालीप्रसि/ =माता के द्वारा तम पाले प्रादि । जाते हो। आदि प्राकृत रचना सौरभ ] [ 123 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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