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निम्नलिखित वाक्यों में सम्बन्धक भूत कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग कीजिए
(1) वह रोकर सोता है। (2) तुम सब थककर बैठो। (3) वे थककर बैठते हैं । (4) हम हँसकर जीयेंगे। (5) वे नाचकर छिपी। (7) तुम सब गिरकर उठते हो । (7) वे डरकर कांपते हैं। (8) हम उठकर खुश होंगे। (9) मैं प्रयास करके खुश होता हूँ। (10) तुम लड़कर मरते हो ।
1. क्रिया के अन्त में प्रत्यय लगने पर जो विशेषण या अव्यय बनता है वह कृदन्त
कहलाता है।
2.
हंसकर, सोकर, जागकर आदि भावों को प्रकट करने के लिए प्राकृत में उपर्युक्त प्रत्यय काम में लिये जाते हैं। उन प्रत्ययों के लगने के पश्चात् जो शब्द बनता है वह सम्बन्धक भूत कृदन्त कहलाता है। जब कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरा कार्य करता है तो पहिले किए गए कार्य के लिए 'सम्बन्धक भूत कृदन्त' का प्रयोग किया किया जाता है। वे शब्द अव्यय होते हैं। इसलिए इनका वाक्य-प्रयोग में रूप-परिवर्तन नहीं होता है।
3.
(i) क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय ऊरण/दूरण आदि जोड़ने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य
'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । हसिऊरण हसेऊग हसिदूण/हसे दूरण (यहाँ केवल 'इ' के रूप ही दिये गये हैं)।
(1) प्राकारान्त व अोकारान्त क्रियाओं जैसे ठा व हो में प्रत्यय जोड़ने पर उनके रूप
निम्न प्रकार बनते हैंठाऊरण/ठादूण, होऊण/होदूरण
4. उपर्युक्त सभी प्रत्यय अकर्मक क्रियाओं में लगाए गए हैं ।
5. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं।
. अर्द्धमागधी में सम्बन्धक भूतकृदन्त के लिए (i) ताणताणं, (ii) आय, (iii) पाए
(iv) यारण/याणं (५) तु प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं ।
(i) ताण ताणं जोड़ने पर अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हा जाता है ।
प्राकृत रचना सौरभ ]
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