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(iii) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है ।
(iv) बेचरदास जी ने 'प्राकृत मार्गोपदेशिका' में मध्यम पुरुष एकवचन आदि में 'स्स'
प्रत्यय भी माना है (पृष्ठ 249)। पिशल ने भी 'स्स' प्रत्यय दिया है - गमिस्ससि (पृष्ठ 761) ।
3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं ।
5. (i) मोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप
करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है । जैसे—सोच्छिसि/सोच्छेसि= (तुम) सुनोगे । सोच्छिहिसि आदि रूप भी बनते हैं (हे. प्रा. व्या., 3-172)।
(ii) अर्द्धमागधी में सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का
'सि' प्रत्यय जोड़ देने से भविष्यत्काल के रूप बन जाते हैं, जैसे—सोच्छसि, रोच्छसि, वोच्छसि आदि (घाटे, पृष्ठ 121)।
प्राकृत रचना सौरभ 1
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