SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ख) नरिंदेहि/नरिंदेहि/नरिंदेहिं (अकारान्त पुल्लिग-तृतीया बहुवचन) कमलेहि कमलेहिं/कमलेहिँ (अकारान्त नपुंसकलिंग-तृतीया बहुवचन) ससाहि/ससाहिं/ससाहिं (आकारान्त स्त्रीलिंग- तृतीया बहुवचन) अम्हेहि अम्हाहि [उत्तम पुरुष सर्वनाम - तृतीया बहुवचन (पुल्लिग __ स्त्रीलिंग)] तुब्भेहिं/तुम्हेहिं/तुज्झेहिं [मध्यम पुरुष सर्वनाम-तृतीया बहुवचन (पुल्लिग स्त्रीलिंग)] तेहिं तेहि [अन्य पुरुष सर्वनाम-तृतीया बहुवचन (पुल्लिग)] ताहि/ताहि/तीहिं __ [अन्य पुरुष सर्वनाम- तृतीया बहुवचन (स्त्रीलिंग)] तृतीया बहुवचन बनाने के लिए अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दो में तथा प्राकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में हि, हिं, हिँ प्रत्यय जोड़े जाते हैं, इनके जोड़ने पर प्रकारान्त शब्दों का अन्त्य 'अ' का 'ए' हो जाता है- नरिंदेहि, नरिंदेहि, नरिंदेहिँ तथा प्राकारान्त में कोई परिवर्तन नहीं होता- ससाहि, ससाहि, ससाहिं। उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के सर्वनामों के तृतीया बहुवचन को उपर्युक्त प्रकार से याद कर लेना चाहिए। (ग) अर्द्धमागधी में उत्तम पुरुष तृतीया बहुवचन के लिए अम्हेहि काम में प्राता है (पिशल पृष्ठ, 614)। 2. यदि क्रिया अकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त भाववाच्य में भी प्रयुक्त होता है । भूतकालिक कृदन्त से भाववाच्य बनाने के लिए कर्ता में तृतीया (एकवचने अथवा बहुवचन) तथा कृदन्त में सदैव 'नपुंसकलिंग एकवचन' ही रहेगा । 3. उपर्युक्त सभी क्रियाएं अकर्मक हैं तथा सभी वाक्य भाववाच्य के हैं । 98 ] [ प्राकृत रचना सौरभ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy