SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठा-ठहरना ठा+एठाए ठा+अठाअ (ठहराना) ठा-पाव -ठाव ठा+पावे =ठावे णच्च-ए=णच्चे णच्च-पाव =णच्चाव णच्च+आवे =णच्चावे रगच्च-नाचना णच्च अ= णाच्च-→णच्च (नचाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' होता है पर सयुक्ताक्षर आगे होने पर 'अ' ही रहता है) नोट-1. क्रियाओं में प्रेरणार्थक के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कालों के प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसे-हासइ हंसाता है, हासहि हंसाते हो, हासमि=हँसाता हूँ। 2 उपघा में गुरु या दीर्घ स्वर हो तो इन प्रत्ययों के अतिरिक्त 'अवि' प्रत्यय भी लगता है । जैसे-रूसविइ । (वेचरदास दोशी, प्राकृत मार्गोपदेशिका, पृष्ठ 320) । 3. आर्ष प्राकृत में कहीं-कहीं प्रेरणासूचक 'अवे' प्रत्यय का प्रयोग भी उपलब्ध होता है । 'अवे' प्रत्यय परे होने पर धातु के उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है। जैसे-कर+प्रवे=कारवे । (ख) कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रेरणार्थक प्रत्यय प्रावि, 0 क्रियाएँ प्रत्यय प्रावि हस हँसना हस+प्रावि =हसावि हस-10 =हास (उपान्त्य 'अ' का 'या' हो जाता है) कर=करना कर+प्रावि =करावि कर+0 =कार दुह=दुहना दुह+प्रावि =दुहावि दुह+० =दुह रूस रूसना रूस+प्रावि = रूसावि रूस+o =रूस ठा=ठहरना ठा+प्रावि =ठापावि ठा+0 =ठा नोट-क्रियाओं में प्रेरणार्थक के प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कर्मवाच्य-भाववाच्य के प्रत्यय जोड़े जाते हैं । 174 ] प्राकृत रचना सौरभ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy