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________________ पाठ 81 अव्यय जाव =जब तक, ताव -तब तक, जत्थ ___=जहाँ, तहिं/तत्थ =वहाँ, जहेव -जिस प्रकार से, तहेव =उसी तरह, केत्य/कहिं =कहां, एत्थ =यहाँ, मा नहीं जई जहा तहा तह एवमेव -यदि जैसे वैसे =उस तरह -इस तरह =इसलिए =बिना =भी =तो विरणा पि ता प्रन्यास (1) जब तक तुम जागते हो, तब तक मैं चित्र देखता हूँ। (2) जहाँ तुम्हारा गांव है, वहाँ मेरा घर है । (3) जिस प्रकार वह सुख चाहता है, उसी प्रकार मैं सुख चाहता हूँ। (4) तुम कहाँ रहते हो ? (5) मैं यहाँ रहता हूँ। (6) तुम नहीं हँसो। (7) राम नहीं उठता है । (8) यदि तुम कहते हो, तो मैं यह काम करता हूँ। 1. "ऐसे शब्द जिनके रूप में कोई विकार/परिवर्तन उत्पन्न न हो और जो सदा एक से, सभी विभक्ति, सभी वचन और सभी लिंगो में एक समान रहें, अव्यय कहलाते हैं।" [लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में घटती-बढ़ती न हो, वह अव्यय है।] (अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 213) 180 ] [ प्राकृत रचना सौरभ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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