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________________ (iii) 'स्सि' प्रत्यय क्रिया में जोड़ने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' ही होता है । (iv) पिशल ने 'स्स' प्रत्यय का विधान किया है--भणिस्सह, भरिणस्सध (प्रा.मा.व्या., पृष्ठ 772) । बेचरदास जी ने प्राकृत मार्गोपदेशिका में मध्यम पुरुष बहुवचन में 'स्स' प्रत्यय माना है (पृष्ठ 249) । 3. उपर्युक्त सभी क्रियाएँ अकर्मक हैं । 4. उपर्युक्त सभी वाक्य कर्तृवाच्य में हैं । 5. सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियानों में भविष्यत्काल के 'हि' प्रत्यय का लोप करके केवल वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं और अन्त्य 'अ' का 'इ' या 'ए' कर दिया जाता है-सोच्छिह सोच्छिध/सोच्छेह/सोच्छेध । सोच्छिहिह आदि रूप भी बनते हैं। अर्द्धमागधी में सोच्छ, रोच्छ, वोच्छ आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल का 'ह' प्रत्यय क्रिया में जोड़ देने से भविष्यत्काल का रूप बन जाता है, जैसे-वोच्छह, सोच्छह आदि (घाटे, पृष्ठ 121)। प्राकृत रचना सौरभ [ 47 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002571
Book TitlePrakrit Rachna Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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