Book Title: Prakaran Ratna
Author(s): Nagardas Pragjibhai
Publisher: Nagardas Pragjibhai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीतरागाय नमः श्री प्रकरणरत. जीवविचार, नवतत्त, दंडक, कर्मग्रंथ दशवकालीक, चुलिका विगेरे. तपगच्छ पूज्यपाद गुरुणीजी महाराज देवश्रीजी महाराजना शिष्यो आणंदधीजीना शिष्या अनोपोजोना सदुपदेशथी छपावी प्रसिद्ध करनार, महेता नागरदास प्रागजीजाइ ठे. दोशीवाडानी पोळ मु. अमदावाद. आवृति बीजी. सं. १९८८. पालीताणा-श्री बहादुरासहजी प्री प्रसमा शा. अमरचन्द बहेचरदास छाप्यु कामत -२४-० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॥ श्री बोतरागाय नमः श्री प्रकरणरत्न. जीवविकर, नवतल, दंडक, कर्मग्रंथ दशवकालीक, चुलिका विगेरे. तयगच्छ पूज्यपाद गुरुणीजो महाराज देवश्रीजी महाराजना शिष्यो आणंदश्रीजीना शिष्या अनोपश्रीजोना सदुपदेशथी छपावी प्रसिद्ध करनार, महेता नागरदास प्रागजीना ठे० दोशीवाडानी पोळ मु. अमदावाद. आवृति बीजी. सं. १९८८. कीमत ०-१४-० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहेर खबर. श्रीपाल राजानो रास अर्थ तथा चित्रसहीत गुजराती २-:-० चैत्यवंदनादि पर्वतीथीनो संग्रह (लाभश्रीजीवाल) १-४-० पूजासंग्रह भाग १-२-३-४ २-०-० देववंदनमाला गुजराती १-०-० देवशीराइ मूल गुजराती पंचप्रतिक्रमण अर्थसह उ रा. .. १-४पंचपतिक्रमण वीधी सहीत-पाकु पुटुं. १-०-० पंचपतिक्रमण विधि सहित-काचुः पुटुं. ०.१०.० स्थापनाजी रेशमी ०-१-० स्थापनाजीनो सापडो ०-१-० लोकेठबुक (बे छबी साथे ) रत्नाकर पचीशी नेमनाथना सलोका सहीत __o- प्राचीन स्तवन मज्झाय संग्रह नवपद ओळीनी वीधी (छपाय छ ).. ___०.१२.० रेशमी नोकारवाली १-४ ० सजाय संग्रह ०-२-० संघवी मुळजीना झवेरचंद . पालीताणा. महेता नागरदास प्रागजीजा ठे. दोशीबाडानी पोळ-अमदावाद. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ છે. મા પુસ્તકમાં મદદ આપનારના નામ, ૫) બેન હીરી ડાહ્યાભાઈ. ઠે. માંડવીની પોળમાં - છગન દફતરીની ખડકીમાં-અમદાવાદ ૫) બાઈ પુંજી ભગવાનદાસ ડે માંડવીની પિળમાં લાલાભાઈની પોળ અમદાવાદ, ૫) શા મેહનલાલ અમીચંદના ધર્મપત્ની બાઈ - સમરત. ઠે. માંડવીની પિળમાં છગન દફતરીની ખડકી-અમદાવાદ ૫) શા. ચમનલાલ ચુનીલાલની દીકરી બેન તારાં * ઠેમાંડવીની પિળમાં છગન દફતરીની ખડકી -અમદાવાદ, ૫) શા- હીરાલાલ ભાયચંદના ધર્મપત્ની બાઈ - વિજયા વઢવાણવાળા, Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. विषय. श्री शत्रुजय लघुकल्प १थी ४ जीव विचार ४ थी नव तत्व दंडक ... लघु संघयणी ... चैत्यवंदन भाष्य ... गुरुवन्दन भाष्य पच्चक्खाण भाष्य... कर्म विपाक नामे प्रथम कर्मग्रन्थ कर्म स्तच नामे द्वितीय कर्मग्रन्थ बन्ध स्वामित्व नामे तृतीय कर्मग्रन्थ षडशीति नामे चतुर्थ कर्मग्रन्थ शतक नामे पंचम कर्मग्रन्थ ... सप्ततिका नामे षष्ठ कर्मग्रन्थ ... ९१ रत्नाकर पच्चीशो... ०३-1, दशवकालिकनी सज्झायो ११ १०७-१२७ पंच महाव्रतनी सज्झायो ... ... १२७-३२ परचुरण सज्झायो, चैत्यवन्दनो विगेरे... १३३ थी ११ दशवैकालिक सूत्र, मूल .... ... १४१-२१६ दसवैकालिक सूत्र चूलिका .... ... २१७-२३४ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॐ नमः सिद्धं ॥ ॥अथ शत्रुजय लघुकल्प॥ अइमुत्तयकेवलिणा, कहियं सेत्तुजतित्यमाह. प्पं ॥ नारयरिसिस्स पुरयो, तं निसुणह भावो नविया ॥१॥ सेतुंजे पुंडरियो, सिछो मुणिको. डिपंच संजुत्तो॥ चित्तस्स पुएिणमाए, सो जन्न तेण पुंडरियो॥॥ नभिविन भिरायाणो, सिद्धा कोमिहिं दोहिं साहूणं ॥ तह द विडवाली खिल्ला, निव्वुआ दस य कोडियो ॥३॥ पज्जुन्नसंवपमु. हा, अछुट्टायो कुमारकोडियो ॥४॥ तह पंडवा वि पंच य सिद्धिगया नारयरिसी य॥४॥ यावच्चासुयसेलगाय,मुषिणो वितह राममुणि॥ जरहो दसरह पुत्तो, सिद्धा वंदामि सेत्तुंजे॥५॥ अन्ने वि खवियमोहा, उसना विसालससंजु. था ॥ जे सिद्धा सेत्तुंजे, तं नमह मुणी असं. खिज्जा ॥६॥ पन्नास जोयणाई, आसी सेत्तुंज Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] वित्थको मूले ॥ दसजोयण सिहरतले, उच्चत्तं जोयणा अट्ट ॥७॥ ज लहइ अन्नतित्थे,जग्गेण तवेण बंजचेरेण ॥ तं लह पयत्तेणं, सेत्तंज गि. रिम्मि निवसंते॥७॥ जं कोडिए पुन्नं, कामियथाहारजोआ जे उ ॥ लहई तत्थ पुन्नं, एगोववासेण सेत्तुंजे॥ए॥ जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायाले माणुस्से लोए॥ तं सव्वमेव दिडं, पुंडरिए दिए संत्ते ॥१० ॥ पडिलानंते संघ, दहमदिठेय साहू सेत्तुंजे ॥ कोमिगुणं च अदिडे, दिठेथ अणंतयं होई ॥११॥ केवलनाणुप्पत्ती, निव्वाणं यासि जत्थ साहूणं ॥ पुंडरिए वंदित्ता, सव्वे ते वंदिया तत्थ ॥१२॥ बहावय संमेए, पावा चंपाई उर्जित नगे य॥ वंदिता पुन्न फलं, सयगुणं तंपि घुमरिए ॥१३॥ प्रथा करणे पुन्नं, एगगुणं सयगुणं च डिमाए ॥ जिणलवणेण सहस्सं, पंतगुणं पालणे होश ॥१४॥ पमिमं चे. शहरं वा, सित्तुंज गिरिस्स मत्थ ए कुण॥जुतूण भरहवासं, वस सग्गेण निरुवसग्गे ॥१५॥ नव Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] कार १ पोरिसीए २, पुरिमले ३ गास णं च ४ आयामं ५॥ पुंडरियं च सरंतो, फलकंखी कुणश् श्र. भत्त ६ ॥१६॥ छ म दसम ३ वा. लसाणं, मासक ५ मास खवणाणं ६॥तिगरण सुद्धो लहर, सित्तुंज्जं संजरंतो अ॥१७॥ छठेणं जत्तेणं, अप्पाणेणं तु सत्त जताई॥ जो कुण सेत्तुंजे, तश्य नवे बह सो मुख्खं ॥१७॥ अज्ज. वि दीस लोए, भत्तं चईजण पुंडरिए नगे ॥ सग्गे सुहेण वच्चर, सोलविहुणो वि होऊणं ॥ छत्तं झयपमागं, चामरनिंगारथालदाणेण ॥ वि. जाहरो अहवइ, तह चक्की होइरहदाणा॥२०॥ दस वीस तीस चत्तालपन्नासा पुप्फदामदाणेण लहर चउत्थछट्टम, दसम पुवालस फलाइं॥ १॥ धूवे पक्खुववासो, मासख्खमणं कपूरधूवं. मि ॥ कित्तिय मासख्खमणं, साहुपमिलाभिए लहइ ॥२२॥ न वि तं सुवन्ननूमि-जूसण दा. णेण अन्नतित्थेसु ॥ जं पावर पुन्नफलं, पूथा न्हवणेण सित्तुंजे॥३॥ कंतार? चोर सावय३, Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संमुद्दध दारिद५ रोग६ रिउ रुदाण ॥ मुच्चंति अविग्घेणं, जे सेत्तुंजं धरंति मणे ॥४॥ सारावलो पयन्नगगाहायो सुअहरेण जणोपायो ॥ जो पढ गुणइ निसुणई, सो लहर, सित्तुंज जत्तफलं ॥२५॥ ॥ इति श@जय लघुकल्प समाप्तः॥ ॥ अय श्रीजीविचारप्रकरणं ॥ जुवणपश्वं वीरं, नमिऊण जणामि अबुदबोंइत्थं । जीवसरूवं किंचि वि, जह भणियं पुवसूरोहिं ॥१॥ जीवा मुत्ता संसारिणो य, तस थावरा य संसारी ॥ पुढवि जल जलण वाऊ, वसई थावरा नेया ॥२॥ फलिइ मणि रयण विदुम, हिंगुल हरियाल मणसिल रसिंदा ॥ कण. गाइ धाउ सेढी, वन्निय धरणेय पलेवा ॥३॥ अब्जय तूरी ऊसं, मट्टो पाहाण जाश्यो णेगा॥ सोवीरंजण खुणा, पुढ विनेया इच्चाई ॥४॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोमंतरिक्वमुदगं, ओसा हिम करग हरितणू महिया॥ ति घणोद हिमाई, नेआणेगा या उस्स ॥५॥ इंगाल जाल मुम्मुर, उकासणि कएग विज्जुमाश्या॥अगणिजियाणं नेया, नायबा निजणबुडीए॥६॥ उब्जामग उकलिया, मंडखिमह (मुह) सुद्ध गुंजवायाय घणतणु वायाश्या नेया खलु वाउकायस्त ॥७॥ साहारण पत्तया, वणस्तजीवा पुहा सुहे नणिया ॥ जेसिमणं. ताणं तणु, एगा सादारणा तेऊ ॥ ७॥ कंदा अंकुर किसलय, पणगा सेवाल मूमि फोडा य॥ अवयतिय गज्जर मोत्थ, वत्थुला थेग पद्धंका ए।। कोमलफलं च सव्वं, गूढ सिराई सिणा पता थोहरि कुंआरि गुग्गुलि, गाय पमुदाय छिन्नरहा ॥१०॥ चाणो अणेगे, हवंति नेया अ. पंतकायाणं ॥ तेसिं परिजाणणत्थं, लक्खणमेयं सुए जणियं ।। ११॥ गूढ सिरसंधिपळवं, समन्नंगमहीरुगं च बिन्नरुहं ॥ साहारणं सरीरं, तविव. रीयं च पत्तेयं ॥१२॥ एगसरीरे एगो, जीवो जेसि Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६] तु तेय पत्तेया ॥ फल फूल बलि कहा, मूलग पत्ताणि बीयाणि ॥१३॥ पत्तेयं तरु मुत्तं, पंचवि पुढवाईणो सयललोए ।सुहुमा हवंति नियमा, अंतमुहुत्ताउ अहिस्सा ॥१४॥ संख कवाय गंमुल, जलोय चंदणग अलस लहगाई ॥ मेहर किमि पूयरगा, बेद्रिय माश्वाहाई ॥१५॥ गोमी मंकण जूधा, पिपीलि उद्देहिया य मकोमा ॥३विय घयमिलीयो, सावय गोकीड जाश्यो॥१६।। गद्ददय चोरकीडा, गोमयकीडा य धन्नकोडा य ॥ कुंथु गुवालिय इलिया, तेदिय इंदगोवाई।१७। चरिदिया य विच्चू , टिंकुण नमराय नमरिया तिका॥ मच्छिय मंसा मसगा, कंसारी कविलमोलाई ॥१०॥ पंचिंदिया य चउहा, नारय तिरिया मणुस्स देवा य ॥ नेरश्या सत्तविहा, नायवा पुढविनेएणं ॥१५॥ जलयर थलयर खयरा, ति. विदा पंचिंदिया तिरिक्खा य ॥ सुसुभार मच्छ कच्छव, गाहा मगरा य जलचारी ॥२०॥ चनपय उरपरिसप्पा, जुयपरिसप्पा, य थलयरा ति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ] विहा ॥ गो सप्प नल पमुहा, बोधवा ते समा. सेणं ॥१॥ खयरा रोमयपक्खी, चम्मयपक्खी य पायडा चेव ॥ नरसोगायो बाहिं, समुग्गपक्खी विययपक्खी ॥२॥ सवे जल थल खयरा, त. मुच्छिमा गब्भया उदा हुँति ॥ कम्मा कम्मग नूमि, अंतरदीवा मणुस्ता य ॥२३॥ दसहा न. वणाहिवई, अट्टविहा वाणमंतरा हुँति॥ जोरपंचविहा, विहा वेमाणिया देवा ॥४॥ सिद्धा पनरस नेया, तित्थातियाइसिद्धन्नेएणं ॥ एए संखेवेणं, जीवविगप्पा समक्खाया॥॥ एएसिं जीवाणं, सरीर माउ विईसकायम्मि ॥ पाणा जोणिपमाणं, जेसिं जं अत्थि तं भणिमो ॥२६॥ अंगुलअसंख नागा, सेरीरमेगिंदियाण सवेसि ॥ जोयणसहस्स महियं, नवरं पत्तेयरुख्खाणं ॥७॥ बारस जोयण तिन्नेव, गाउआ जोयणं च अणुकमसो ॥ बेदिय तेऽदिय, चरिदिय देहमुच्चत्तं ॥श्न॥ धणुसयपंचपमाणा, नेरश्या सत्तमा पुढवीए॥ तत्तो अडकूणा, नेया रयणप्पाहा जाव Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] ॥श्ण॥ जोयणसहस्समाणा, मच्छा उरगा य गब्भया हुंति ॥ धणुह पुहुत्तं पक्खिसु, जुश्चचारी गाउअपहुत्तं ॥३०॥ खयरा धणुहपुहुत्तं, नुअगा उरगा य जोयणपुहुत्तं ॥ गाउअ पुहुत्तमित्ता, समुच्छिमा चउपया नणिया ॥३१॥ छच्चेव गाउयाई, चनप्पया गब्जया मुणेयव्वा ॥ कोसतिगं च मणुस्सा, उकोस शरीरमाणेणं ॥ ३२ ॥ ईसाणंत सुराणं, रयणीओ सत्त हुँति उच्चत्तं ॥ जुग जुग जुग चउगेवि. जणुत्तरे इकिक परिहाणी ॥३३॥ बावीसा पुढवीए, सत्तय थाउस्स तिनि वाउस्स ॥ वाससहस्सा दस तरु, गणाण तेज तिरित्ताओ॥३॥ वासा णि बारसान, बेदियाणं तेइंदियाणं तु॥ अजणापन्न दिणाश्, चरिंदीणं तु छम्मासा ॥ ३५ ॥ सुरनेझ्याण लिई, उकोसा सागराणि तित्तीसं ॥ चपय तिरिय मणुस्सा, तिन्निय पलियोवमा हुँति ॥३६॥ जलयर उरजुअगाणं, परमाऊ होश पुत्व कोमियो। पक्खी. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णं पुण नणिो , असंखजागो य पलियस्स ॥३॥ सव्वे सुहुमा साहा-रणा य, समुच्छिमा मणुस्सा य ॥ उकोस जहन्नेणं, अंतमुहत्तं चिय जि. यंति ॥३७॥ ओगाहणाजमाणं, एवं संखेवयों समख्खायं ॥जे पुण इत्थ विसेसा,विसेस सुत्ताउ ते नेया॥३५॥ एगिदिया य सव्वे, असंख उ. स्तप्पिणी सकायम्मि ॥ उववज्जति चयति य, अणंतकाया अणंतांओ ॥४०॥ संखिज्जसमा विगला,सत्तट्ट नवा पणि दि तिरिमणुया। उववज्जति सकाए, नारयदेवाय नो चेव ॥४१॥ दसहा जिआणं पाणा इंदि ऊसासाउ जोग बल रूवा। एगिदिएसु चनरो, विगलेसु ब सत्त अव ॥४॥ असन्निसन्नी पंचि-दिएसु, नवदस कमेण बोध. व्वा ॥ तेहिं सह विप्पयोगो, जीवाणं जएणए मरणं ॥४३॥ एवं अणोरपोरे, संसारे सायरम्मि भोमम्मि ॥ पत्तो अणंतखुत्तो, जोवेहि अपत्तधम्मेहिं ॥४४॥ तह चनरासी लख्खा, संखा १ इंदियउसासआनुबलरुवा. पाठांतरम् ॥ . Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] जोणीए होइ जीवाणं ॥ पुढवाईणं चउएहं, पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥४५॥ दस पत्तेयतरुणं, चनदस लख्खा हवंति श्यरेसु । विगलिदिएसु दो दो, चउरो पंचिंदितिरियाणं ॥४६॥ चउरो चउरो नारय, सुराणमणुयाण' चउदस हवंति । संपिंडि. आउ सव्वे, चुलसी लख्खाउ जोणोणं ॥४॥ सिद्धाणं नत्थि देहो, न बाउ कम्मं न पाण जो. णीया ॥ साश्वता तेसिं, लिई जिणंदागमे भणिया॥४॥ काले अणानिहणे, जोणि गहणम्मि भीसणे इत्थ ॥ जमिया जमिहंति चिरं, जीवा जिणवयणमलहंता ॥४॥ ता संपइ संप. ते, मणुअत्ते फुलेहेवि सम्मत्ते॥ सिरिसंतिसूरि सिढे, करेह नो उज्जमं धम्मे ॥५०॥ एसो जीव वियारो, संखेवरुईण जाणणादेऊ ॥ संखित्तो उहरियो, रुदायो सुयसमुदायो ॥५१॥ ॥ इति श्री जीव विचार प्रकरणं समाप्तम् ॥ १ मुरेम. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] ॥ अथ श्री नवतत्त्व प्रकरण प्रारंभः ॥ जीवाऽजीवा पुणं, पावाऽसव संवरो य निजरणा ॥ बंधो मुख्खो य तहा, नवतत्ता हुंति नायव्वा ||१|| चउदस चउदस बायालीसा बासी हुति बायाला || सत्तावन्नं बारस, चन नत्र ज्ञेया कमेणेसिं ॥२॥ एगविह दुविह तिविहा, चहा पंच विहा जीवा ॥ चेयण तस इयरेहिं, वेय-गई - करण - काहिं ॥ ३ ॥ एगिंदिय सुहुमियरा, सन्नियर पििदया य सबितिचन ॥ कापजत्ता पज्जत्ता, कमेण चउदस जियढाणा ॥४॥ नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा ॥ वोरियं जवयोगो य, एयं जीअस्स लख्खणं ॥ ५॥ आहार' सरीर इंदिय, पज्जती खाणपाणजासमऐ ॥ च पंच पंच छप्पिय, इग विगलाsसन्नि सन्नीणं ॥ ६ ॥ पणिदिय तिबलूसा, साऊ दस पाण च ब सग अट्ठ | इग दु तिश्वजरिंदी; १ शरीरीदिय. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असन्नि-सन्नीण नव दस य ॥७॥ धम्माऽधम्मागासा, तिय तिय नेया तहेव अद्धा य ॥ खंधा देस पएसा, परमाणु अजीव घउदसहा ॥॥ धम्माऽधम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुँति अजीवा ॥ चलणसहावो धम्मो, थिरसंगणो अहम्मो य॥ए॥ श्रवगाहो आगासं, पु. ग्गलजीवाण पुग्गला चउहा ॥ खंधा देस पएसा, परणाणू चेव नायवा ॥१०॥ सबंधयार उज्जोय, पजाबायातवेहि (इय)॥ वएण गंध रसा फासा, पुग्गलाणं तु लख्खणं ॥११॥ एगाकोडि सतसहि, लख्खा सत्तहुत्तरि सहस्सा य ॥ दोय सया सोलहिया, बावलिया इगमुहुत्तम्मि ॥१॥ समया वली मुहुत्ता, दोहा पख्खा य मास वरिसा य ॥ जणियो पलिया सागर, उस्सप्पिणोसपिणी कालो॥१३॥ परिणामि जीव मुत्तं, सपएसा एग खित्त किरिया य ॥ निच्चं कारण कत्ता, सवगय श्यर अप्पवेसे ॥१४॥ सा उच्चगोय मणुग, सुर• उग पंचिंदिजाइ पणदेहा ॥ बाइतितणूवंगा, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३] आश्मसंघयणसंगणा॥१५॥ वएण चनक्कामुरुलहु परघा ऊसास आयवुज्जोयं ॥ सुनखग निमिण तस दस, सुर नर तिरियाउ तित्थयरं ॥१६॥ तस बायर पजत्तं, पत्तेयथिरं सुनं च सुभग च ॥ सुस्सर आइज्ज जस, तसाइदसग, श्म हो॥१७॥ नाणंतरायदसगं, नव बीये नीयसाय मिच्छत्तं ॥ थावरदस नरयतिगं, कसायपणवीस तिरियागं ॥१७॥ ग बिनि चल जाईयो, कुखगर उवधाय हंति पावस्स ॥ अपसत्थं वएणचऊ अपढम सं. घयण संगणा ॥ १७ ॥ थावर सुहुम अपज्जं, साहारणमसुभकुनगाणि ॥ उस्सरणाज जसं, थावरदसगं विवजत्थं ॥२०॥ इंदिश कसाय अ. वय, जोगा पंच चन पंच तिन्नि कमा ॥ किरि. थाश्रो पण वीतं, मा न ताओ अगुकमलो ॥१॥ काश्य अहिंगरणिआ, पाउसिआ पारिता. वणी किरिया ॥पाणावायारंमिअ, परिग्गदिया मायवत्ती अ॥२२॥ मिच्छादसणवत्ती, अपच्चखाणी य दिहि पुष्टिय ॥ पामुच्चिच सामंतो Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ [१४] वणीअ नेसत्थि साहत्या ॥२३॥ आणवणि वि. आरणिआ, अणनोगा अणवकंखपच्चश्या ॥ अन्ना पयोग समुदा-ण पिज दोसेरिआवहिआ ॥५॥ समिई गुत्ती परिसह जइधम्मो भावणा चरित्ताणि ॥ पण ति वीस दस बार, पंचने. एहिं सगवन्ना ॥२५॥ शरिया जासेसणादाणे, उ. चारे समिश्सु थ ॥ मणगुत्ती वयगुत्ती, काय. गुत्ती तहेव य ॥६॥ खुहा पिवासा सी उएहं, दंसाचेलारशथियो॥ चरिआ निसीहिआ सिज्जा, अकोस वह जायणा ॥२७॥ अलान रोग तण. फासा, मल सकार परीसहा ॥ पन्नाअन्नाण स. म्मत्तं, इअ बावीस परीसहा ॥॥ खंती म. दव अजव, मुत्ती तव संजमे अ बोधव्वे ॥ सच्चं सोयं आर्कि-चणं च बंनं च जश्धम्मो ॥श्ए। पढममणिचमचरणं, संसारो एगया य अन्नत्त॥ असुश्त्तं आसवसंवरोय, तह निजरा नवमी।३०॥ लोगसहावो बोही-मुखहा धम्मस्स साहगा अ. रिहा ॥ एआयो नावणाओ, भावेश्रवा पय Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५] तेणं॥३१॥ सामाश्अत्थ पढम, ओवट्ठावणं नवे बीयं ॥ परिहार विसुद्धीयं, सुहमं तह संपरायं य ॥३॥ तत्तो अअहरुखायं, खायं सबम्मि जी. वलोगम्मि ॥ जं चरिऊण सुविहिया, वच्चंति अयरामरं गणं ॥३३॥ अणसणमूणोअरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चायो॥कायकिलेसो संलीणथाय बज्झो तवो हो।॥३४॥ पायच्छित्तं विणयो, वेयावच्चं तदेव सद्यायो॥झाणं जस्सग्गोऽवि अ. अप्रिंतरो तवो होई॥३५॥ बारसविहं तवो निजरा य, बंधो चनविगप्पो थ॥पय हिअणुभागपएसनेएहिं नायव्यो।३६। पय सहाबो वुत्तो, विकालावहारणं ॥ अणुनागो रसो णेयो, प. एसो दलसंओ ॥३७॥ पडपमिहारऽसि मज्ज, हडचित्त कुलाल नंडगारीणं ॥ जह एएसिं जावा, कम्माणवि जाण तह जावा ॥३॥ इह नाणदसणावरण, वेय मोहाउ नाम गोआणि ॥ विग्धं च पण नव अहवीस चउ तिसय 5 पण विहं ॥३५॥ नाणे य दंसणावरणे, वेअणिए Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] वेव अंतराए । तीस कोडाकोमी, अयराणं विई य नकोसा ॥ ४० ॥ सत्तरि कोमाकोमी, मोहणिए वीस नामगोएसु॥ तित्तीसं अयराई, था. उहिश्बंध उक्कोसा ॥४॥ बारस मुहुत्त जहन्ना, वेयणिए अट नामगोऐसु ॥ सेसाणंतमुहुतं, एयं बंध निई माणं ॥४॥ संतपय परुवणया, दवपमाण च खितफुसणा य ॥ कालो अ अंतर नाग नावे अप्पाबहु चेव ॥ ४३ ॥ संतं सुद्धः -पयत्ता, विज्जंतं खकुसुमंव्व नअसंतं ॥ मुख्खत्ति पयं तस्स उ, परूवणा मग्गणाइहिं ॥४४॥ गइ इंदिए काये, जोए वेए कसाय नाणे य ॥सं. जम दंसण लेसा, नव सम्मे सन्नि आहारे॥४५॥ नरग पणिदि तस नव, सन्निबहक्खाय खर. असम्मत्ते ॥ मुरकोणाहार केवल-दसणनाणे नसेसेमु ॥४६॥ दवपमाणे सिद्धाणं, जीवदवाणि हुँतिऽणताणि ॥ लोगस्स असंखिज्जे, नागे को य सवेवि ॥ ४ ॥ फुसणा अहिया कालो, गसिद्ध पमुञ्च साइयोणतो॥पमिवाया, जावायो, Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७] सिद्धा अंतरं नहि ॥ ४८ ॥ सव जियाणमणंते, भागे ते तेसिं दंसणं नाएं | खईए जावे परिणा मिएका पुण होइ जीवन्तं ॥ ४८ ॥ थोवा नपुंस सिद्धा, थी नर सिद्धा कमेण संखगुणा ॥ अमुख्खतत्तमेां, नवतत्ता लेस विद्या ॥ ५० ॥ जीवा नव पयत्थे, जो जाइ तस्स होइ सम्मत्तं ॥ जावेण सद्दतो, यापमाणेऽवि समत्तं ॥ ५१ ॥ सव्वाइं जिणेसर जासिआई वयपाई नंनहा हुंति ॥ इअ ( 5 ) बुद्ध | जस्स मणे, सम्मत्तं निच्चलं तस्स ॥ ५२ ॥ तो मुहुत्त मित्तं पि फासि हुज्ज जेहिं सम्मत्तं ॥ तेसिं वपुग्गल, परिट्टो चेव संसारो ॥ ५३ ॥ उस्सप्पिणी अयंता, पुग्गल परिश्र मुणेश्रव्वो || तेऽताऽतीअद्धा, अणागयका अांतगुणा ॥ २४ ॥ जिए जि तित्थ तित्था, गिहि अन्न सलिंग थी नर नपुंसा ॥ पत्ता सयंबुद्धा, बुद्धबोदिय 'सिद्धणिक्काय ॥ ५५ ॥ जिसिद्धा १ इक्कणिक्का य. पाठा० Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] अरिहंता, अजिणसिका य पुंडरिया पमुहा॥ गणहारि तित्यंसिद्धा, अतित्थसिद्धा य मरुदेवी ॥ ५६ ॥ गिहिलिगसिझ भरहो, वक्षकलचीरीय अन्नलिंगम्मि ॥ साहु सलिंगसिद्धा, थी सिद्धा चंदणापमुहा ॥५७॥ पुंसिद्धा गोयमाई, गांगेयाई नपुंसया सिद्धा ॥ पत्तेय सयंबुद्धा, जणिया करकं कविलाई ॥५॥तह बुद्धबोहिगुरुषो-हिया, गसमय एगसिद्धाय ॥ गसमएवि अणेगा, सिद्धा तेऽणेगसिद्धाय ॥ए। जश्याश् हो पुच्छा जिणाण मगंमि उत्तरं तश्या ॥ कस्स निग्गोयस्स, अणंतजागो य सिगियो ॥ ६ ॥ ॥ इति श्री नवतत्त्वं समाप्तम् ।। अथ श्री दंडकप्रकरण लिख्यते ॥ नमिड चवीसजिणे, तस्सुत्तवियारखेसदेसणयो॥ दंडगपएहिं तेच्चिय, थोसामि सुणेद Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९] जो भव्वा ॥१॥ नेरश्या "असुराई, 'पुढवाई 'बेइंदियादयो चेव ॥ गप्नय तिरिय 'मणुस्सा, 'वंतरजोइसिय 'वेमाणो ॥५॥ सखित्तरी उ इमा, 'सरीरमा गाहणा य संघयणा ॥ 'सन्ना संगण 'कसाय, "लेस दिय 5 समुग्धाया ॥३॥"दिही 'दसण नाणे, "जोगुोगों "ववाय चवणं विई॥ पज्जति किमाहारे, सन्नि गई धागई "वेए ॥ ४॥ चउ गब्भतिरिय वानसु, मणुयाणं पंच सेस निसरीरा ॥ थावर चउगे उहयो, अंगुल असंखजागतणु ॥ ५॥ सवेसि पि जहन्ना, साहाविय अंगुलस्सयसं. खंसो ॥ उकोस पणसय धणु, नेरइया सत्तहत्थं सुरा॥६॥ गन्नतिरि सहस जोयण, वणस्सई अ. हियजोयण सहस्सं ॥ नर तेदि तिगाऊ, बेदिय जोयणे बार ।। जोयणमेगं चउरि दिदेह मुच्चत्तणं सुए भाणयं ॥ वेउव्वियदेहं पुण, अंगुलसंखं समारंने ॥॥ देव नर अहियलक्खं, तिरियाणं नव य जोयणसयाई॥ जुगुणं तु नारयाणं, ज. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] णियं वेउब्विय सरीरं ॥ ॥ अंतमुहुत्तं निरये, मुहृत्त चत्तारि तिरिय-मणुएसु ॥ देवेसु अझमासो, उक्कोस विउठवणा कालो ॥१०॥ थावर सुर नेरश्या, असंघयणा य विगल बेवहा ॥ संघयण छगं गप्नय, नर तिरिएसु वि मुणेयव्वं ॥११॥ सव्वेसिं चल दह वा, सन्ना सव्वे सुरा य चउरंसा ॥ नर तिरिय उ संगणा, हुंडा वि. गलिंदिनेरश्या ॥ १२ ॥ नाणाविह धय सूई, बुब्बुह वण वाउ तेन अपकाया ॥ पुढवी मसूर चंदा कारा संगणको नणिया ॥ १३ ॥ सम्वे विचउकसाया, लेस छगं गप्नतिरियमणु. एसु ॥ नारय तेउ वाज, विगला वेमाणि य तिखेसा ॥ १५ ॥ जोसिय तेउलेसा, सेसा सवेवि हुंति चउलेसा, ॥“दियदारं सुगम," मणुआणं सत्त समुग्घाया ॥ १५ ॥ वेयण कसाय मरणे, वेटविय तेयए य आहारे ॥ केवलि य समुग्घाया, सत्त इमे हुति सन्नीणं ॥१६॥ एगिदियाण केवलि, तेउहारगविणा उ चत्तारि ।। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१] तेवेव्वियवज्जा, विगला सन्नीण ते चेव ॥१७॥ पण गप्नति रिसुरेसु, नारय वाउसु चउर तिय सेसे ॥ विगल दिही थावर, मिच्छत्ति सेस तिय दिट्टी ॥१७॥ थावर बि तिसु अचक्खु, चरिदिसु तयुगं सुए नणियं मणुआ चउदंस णिणो, सेसेसु तिगं तिगंजणियं ॥१॥ अन्नाण नाण तिय तिय, सुरतिरिनिरए थिरे अनाण पुगं ॥ नाण नाण विगले, मणुए पण नाण, ति अनाणा॥२०॥श्क्कारस सुर निरए, तिरि• एसु तेर पन्नर मणुएसु॥ विगले चउ पण वाए, जोगतियं थावरे होइ॥१॥ उवयोगा मणुएसु, बारस नव तिरिय निरय-देवेसु॥ विगलागे पण छक्कं, चउरिदिसु थावरे तियगं ॥ २२ ॥ संखमसंखा समए, गप्जय तिरि विगल नारय सुरा य ॥ मणुया नियमा संखा, वणणंता थावर अ. संखा॥२३॥असन्नि नर असंखा, जह उववाए तदेव चवणे वि॥ बावीस सग ति दसवास-सहस्स किट पुढवाई ॥४॥ तिदिणग्गि तिप Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२] बाज, नर तिरि सुरनिरय सागर तितीसा॥वंतर पद्धं जोइस, वरिस लख्खादिरं पलियं ॥२५॥ असुराण अहिय अयरं, देसूणऽपवयं नव निकाए॥ बारसवासुणपणदिण, छम्मास उकिठ विगलाऊ ॥ २६॥ पुढवाइ दस पयाणं, अंतमुहत्तं जहन्न थानविई॥ दससहस वरिसविइआ जवणाहिवानरयवंतरिया ॥ २७ ॥ वेमाणिय जोशसिया, पवतयउंस आउया हुँ।त॥सुर नर तिरि निरएसु, छ पजत्तो थावरे चउगं ॥श्न॥ विगले पंच पजत्ती, छदिसियाहार होइ सव्वेसिं ॥ पणगाइपए नयणा, अह सन्निातयं भणिरसामि ॥ ॥ चउविदसुरतिरिएसु, निरएसु य दोहकालिगी सएणा ॥ विगले हेउवएसा, सन्नारहिया थिरा सवे ॥३०॥मणुयाण दीहकालिय, दिवायोवए।सथा केवि॥पज पण तिरि मणुअच्चिय, चउविहदेवेसुगच्छति ॥३१॥ संखाउ पज पणिदि, तिरियनरेसु तहेव पजत्ते ॥ जूदगपत्तेयवणे, एएसु च्चिय सुरागमणं ॥३॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२]पजत्त संखगब्भय, तिरियनरा निरयसत्तगे जंतिनिरजबहा एएसु, उवद्धति न सेसेसु ॥ ३३ ॥ पुढवी आज वणस्स, मज्झे नारयविवजिया जीवा ॥ सवे उववज्रंति, नियनिय कम्माणु माणेणं ॥ ३४ ॥ पुढवाइ दसपएसु, पुढवीअऊत्रणस्सई जंति ॥ पुढवाइदस पए दिय, तेऊवाऊसु उववान ॥ ३५ ॥ तेऊ वाऊ गमणं, पुढवीपमुहम्मि हो पयनवगे | पुढवाइ ठाण दसगा, विगलाई तियं तहिं जंति ॥ ३६ ॥ गमणा गमणं गब्जयतिरिआएं सयलजीवठाणेसु ॥ सव्वत्य जंति मणुआ, तेजवाऊहिं नो जंति ॥३१ ॥ वेयतिय तिरिनरेसु, इत्थी पुरिसो य च विद. सुरे || थिर विगलनारएसु, नपुंसवेो दवइ एगो ॥ ३८ ॥ पजमणु बायरग्गी, वेमापिय भव निरय वंतरिया || जोइसचउ - पण तिरिया, बेइंदि तेइंदि खाउ ॥ ३७ ॥ वाउ वणसई च्चिय, अहिया अहिया कमेण मे हुंति ॥ सव्वे - वि इमे जावा, जिणा मए पंतसो पत्ता ॥४०॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४ ] • संपइ तुम्ह जत्तस्स, दंडगपयन मणनग्गे । हययस्स ॥ दंगतिय विरय सुबह, लहु मम दिंतु मुखखयं ॥ ४१ ॥ सिरि-जिहंस मुणीसर- रज्जे सिरि-धवल चंदसी सेण ॥ गजसारेण बिहिया, एसा वित्ति अप्पहिया ॥ ४२ ॥ ॥ इति श्री दमकप्रकरणं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री लघु (जंबूद्वीप ) संघयण प्रारयते ॥ ४ ८ नमिय जिणं सव्वन्नुं, जगपुज्जं जगगुरुं महावीरं ॥ जंबुद्दीव पयत्थे, बुच्छं सुत्ता सपरदेऊ ॥ १ ॥ खंडा 'जोय 'वासा, पव्त्रय "कूमा यतित्थ "से ॥ विजय दइ "सबिलाश्रो, पिडेसिं होइ संघयणी ॥ २ ॥ न असयं खंडणं, जरहपमाणेण भाईए लख्खे अड्वा उअसयगुणं, भरमाणं दवइ लख्खं ॥ ३ ॥ ' विग १ अहंवेगखंडभर हे० पीठा० Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५] खंडे जरहे, दो हिमवंते श्र हेमवश् चउरो॥ अट्ठ महा हिमवंते, सोलस खंडाई () हरि. वासे॥५॥ बत्तीसं पुण निसढे, मिलिया तेसहि बीयपासेऽवि ॥ चउसठ्ठी विदेहे, तिरासि पिंडेनुं () नउयसयं ॥५॥ जोयणपरिमाणाई, समचरंसाई इत्थ खमाइं॥ लख्खस्स य परिहीए, तप्पायगुणे य हुँतेव॥६॥विख्खनवग्गदहगुण-करणी वट्टस्स परिरो हो॥ विख्खं. भपायगुणिओ, परिरओतस्स गणियपयं ॥७॥ परिही तिलख्ख-सोलस-सहस्स दो य सय सत्तवीसहिया ॥ कोसतिगंअट्ठा वीसं, धणुः सय तेरंगुलद्धहियं ॥७॥ सत्तेव य कोमिसया, पउआ छपन्नसयसहस्साई ॥ चउण उयं च सहस्सा, सयं दिवढं च साहीयं ॥ ए ॥ गाउअ मेगं पनरस-धणुसया तह धणूणि पन. रस ॥ सर्डिं च अंगुलाई, जंबुद्दीवस्स गणियपयं ॥ १० ॥ नरहाई सत्त वासा, वियत चउ चउर. तिस वट्टियरे ॥ सोलस वख्खारगिरी दो चित्त Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६] विचित्त दो जमगा॥११॥ दोसय कणयगिरीणं, चल गयदंता य तह सुमेरू य ॥ न वासहरा पिंडे, एगुणसत्तरि सया पुन्नी ॥ १५ ॥ सोखसवख्खारेसु, चउ चउ कूडा य हुँति पत्तेयं ॥ सोमणस गंधमायण, सत्तठ य रुप्पि महा हिमवे ॥१३॥ चउतीसवियलेसु, विज्जुप्पद निसढ. नीलवतेसु ॥ तह मालवंत सुरगिरि, नव नव कूडाई पत्तेयं ॥ १४ ॥ हिम सिहरिसु श्वारस, इगसहीगिरीसु कूडाणं ॥ एगत्ते सबधणं, सय. चउरो सत्तसट्टीयं ॥१५॥ चन-सत्त-अट्ट-नवगेगारसकूडेहिं गुणह जहसंखं ॥ सोलस गुणयालं, ज्वे य सगसहि सयचरो ॥ १६ ॥ चनतीसु विजएसु, उसहकूडा अह मेरुजंबुमि॥यह य देवकुराई, हरिकूड हरिस्सहे सही ॥ १७ ॥ मागह वरदाम पनास तित्थ विजयेसु एरवय जरदे ॥ चलतीसा तिहिं गुणिया, पुरुत्तरसयं तु. तित्थाणं ॥ १० ॥ विजाहर-अनियोगिय, सेढीओ पुन्नि पुन्नि वेअढे ॥श्य घउगुण धन Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२७] तीसा, छत्तीस सयं तु सेढीणं ॥१५॥ चक्की जेयवाई, विजयाई इत्य हुंति चलतीसा ॥ मह. दह छप्पउमाई, कुरुसु दसगति सोलसगं ॥२०॥ गंगा सिंधू रत्ता, रत्तवई चउ नईयो पत्तेयं ॥ चउदसहिं सहस्सेहिं, समगं वच्चंति जलहिं मि ॥१॥ एवं अजितरिया, चउरो पुण अट्ठवीससहस्सेहिं॥ पुणरवि छप्पन्नेहिं जंति चन सलिला ॥ २२॥ कुरुमज्झे चनरासी, सहस्साई तह य विजयसोत्रसेसु॥ बत्तीसाण नईणं, चनदस सहस्साई पत्तेयं ॥२३॥ चउदस सहस्स गुणिया, अमतीस नश्यो विजयमज्झिदा ॥ सीओयाए निवति तहय सीयाई एमेव ॥ २४ ॥ सीया सीओयावि य, बत्तीससहस्स पंचलख्खेहिं ॥ सव्वे चउदस लख्खा, छप्पन्नसहस्स मेलविया ॥५॥ छज्जोयणे सकोसे, गंगासिंधूण वित्थरो मूले ॥ दसगुणियो पाते, इय गुणणेण सेसाणं॥ २६ ॥ जोयणसयमुच्चिता, कणयमया सिहरिचुलहिमवंता ॥ रुप महाहिमवंता, उसुउच्चा Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८] रुप्पकणयमया ॥२७॥ चत्तारि जोयणसए, उच्चिहो निसढ नोलवंतो य॥निसढो तवणिजमो, वेरुलियो 'नीलवंतो य ॥२७॥ सवेवि पवयवरा, समयवित्तम्मि मंदरविहुणा ॥ धरणितले उवगाढा, उस्सेदचउत्थनायम्मि ॥ श्ए॥ खंमाई गाहाहिं, दसहि,दारेहिं जंबुद्वीवस्स ॥ संघयणी सम्मत्ता, रश्या हरिभदसूरीहिं ॥३०॥ ॥ इतिश्री लघुसंग्रहणी समाप्त ॥ ॥अथ चैत्यवंदन नाष्य प्रारच्यते॥ वंदित्तु वंदणिज्जे,सक्वेचिश्चंदणासु वियारं ॥ बहुवित्तिजासचुएणी-सुयाणुसारेण बुज्छामि ॥१॥'दहतिग अहिगमपणगं, बुदिसि तिहु 'ग्गतिहा उ 'वंदणया ॥ पणिवाय नमुकारा, 'वएणा सोलसयसीयाला ॥२॥ गसयं तु ‘पया, सगनउ "संपया "उपण दंमा ।। बार १ नीलवंतगिरी. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९] १३. ૧૪ ૧૫ " अहिगार च वं- दणिक " सर पिऊं" चढद जिला || ३ || चउरो "थुइ निमित्तट्ट - बारह ૧૬ २३ २४. हे सोल आगारा ॥ गुणत्रोत दोस उस्सग्ग माप युत्तं च सगवेला || ४ || दस सा यणचाओ, सवे चिश्वंदलाइ गणा । चडवीस दुवारेहिं, दुसहस्सा हुंति चसयरा || || तिन्नि निसोह। तिन्नियो, पयाहिणा तिन्नि चैत्र य पणामा || तिविहा पूया य तहा, यवत्थतिय जावणं चैव ॥ ६ ॥ तिदिसि निरिखखण विरई, पयभूमि पमजणं च तिक्खुत्तो ॥ वन्नाइतियं मुद्दा -तियं च तिविहं च पणिहाणं ॥ ७ ॥ घर जिणदर जिणपूया - त्रावारच्चा निसीही तिगं ॥ अग्गद्दारे मज्झे, तश्या विश्वंदनणासमये ॥ ८ ॥ अंजलिवद्धो अद्धोगो का तिपणामा ॥ सव्वत्थ वा तिवारं सिराइ नमणे पणामतियं ॥ ए ॥ अंगग्गभाव नेया, पुप्फादार त्यहिं पूयतिगं ॥ पंचुवयारा होवयार सोवयारा वा ॥ १० ॥ नाविज्ज अव अ पंच Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] त्यतियं, पिंमत्य पयत्य रुवरहिअत्तं ॥ छनमत्थकेवलित्तं, सिद्धत्तं चेव तस्सत्थो ॥ ११ ॥ न्ह. वणञ्चगेहिं उउभत्थ वत्थपडिहारगेहिं केवलियं ॥ पलियंकुस्सग्गेहि य, जिणस्स नाविज सिद्धत्तं ॥१२॥उढाहोतिरियाणं, तिदिसाण निरिख्खणं वजहवा ॥ पच्छिम दाहिण वामाण, जिणमुहनत्यदिहिजुयो ॥ १३ ॥ वन्नतियं वन्नत्थालंबणमालवणं तु पडिमाई ॥जोग जिण मुत्त सुत्ती-मुद्दानेएण मुद्दतियं ॥ १४ ॥ अन्नुन्नंतरिअंगुलि कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं ॥ पिट्टोवरि कुप्परसं-विएहिं तह जोगमुद्दत्ति ॥१५॥ चत्तारि अंगुलाई, पुरको ऊणाई जत्थ पच्छिमयो । पायाणं उस्सग्गो, एसा पुए होजिणमुद्दा॥१६॥ मुत्तासुत्तीमुद्दा, जत्थ समा दोवि गनिआ हत्था ॥ ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गत्ति ॥१७ ।। पंचंगो पणिवाओ, थयपाढो होइ जोग मुद्दाए ॥ वंदण जिणमुदाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ॥ १७ ॥ पणिहाणतिगं चेश्य-मुणिवंदण पत्थ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] णासरुवं वा॥मण वय कायएगतं, सेस तियत्थो उ पयमुत्ति ॥१५॥ सच्चित्तदव्वमुणमज्झत्त मणुज्जणं मणेगत्तं ॥ गसाडिउत्तरासं-ग थं. जलि सिरसि जिणदिट्टे ॥२०॥श्य पंचविहाभि. गमो, अढ़वा मुच्चंति रायचिन्हाई।।खग्गं उत्तोवाणह, मउमं चमरे अ पंचमए ॥१॥ वंदंति जिणे दाहिण-दिसि ट्ठिया पुरिस वामदिसि नारी ॥ नवकरजहन्न सठिकर जिट्ट मश्ग्गहो सेसो ॥२२॥ नमुकारेण जहन्ना, चिश्चंदण मज्ज दंडथुजुअला ॥ पणदंग जुश्चउक्कग, थयपणिहाणेहिं उक्कोसा॥२३॥अन्ने वितिगेणं, सकत्थएणं जहन्नवंदणया ॥ तदुगतिगेण मज्झा, उकोसा घनदि पंचहि वा ॥२४॥ पणिवायो पंचंगो, दोजाणू करदुगुत्तमंगं च ॥सुमहत्थनमुक्कारा, ग जुग तिग जाव अट्ठसयं ॥२५॥ अडसठि अठवीसा, नव नय. सयं च उसयसगनव्या॥दोगुणतीस दुसहा सो. ल अडनउयसय बन्नसयं ॥ इअ नवकार.खमा. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समण, शरियसकत्यआश् दंडेसु॥पणिहाणेसु अ अपुरु-तवनसोलसय सीयाला॥७॥ नव बत्तीस तित्तीसा,तिचत्त अडवीस सोलवीस पया।मंगल इरिया सक्कत्थयाश्सु गसीश्सयं ॥ २७ ॥ अष्ट नवट्ठ य अठ्ठवीस सोलस य वीस वीसामा॥ कमसो मंगल शरिया, सक्थयाईसु सगनई ॥श्ए॥वएणसहि नव पय. नवकारे अठ संपया तत्थ ॥ सग संपय पय तुझा, सत्तरक्खर बट्टमी दुपया॥३७ (नवक्खरमि यूपय बहो॥ इत्यन्य) पणिवाय अख्खराई, अठ्ठावीसं तहा य रियाए नवनउअ मैक्खर सयं, इसीसपय संपया अट्ट ॥ ३१॥ दुग दुग ग चउ ग पण, गार छग इरिय संपयाइपया॥श्च्छा हरि गम पाणा, जे मे एगिदि अनि तस्स ॥३॥ अन्जुवगमो निमित्तं, थोदेबरदेउ संवेगे पंच ॥ जीवविराहण पमिकमणनेययो तिन्नि चूलाए ॥ ३३ ॥ दुतिचनपणपणपणदुचतिपयसकत्थयसंपयाइपया ॥ नमुथाइगपुरिसोलोगुधजय धम्मऽप्पजिणसव्वं Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३३] ॥३॥ थोअवसंपया ओह-श्यरहेऊवयोगतद्धेऊ सविसेसुवयोगसरूवहेऊ नियसमफलय मुक्खे ॥३५॥दोसगनऊया बएणा,नवसंपय पय तित्तोस सकथए ॥ चेश्यथयट्ठसंपय, तिचत्तपय वएण दुसयगुणतीसा ॥ ३६ ॥ 5 छ सग नव तिय छ चन, छप्पय चिसंपया पया पढमा॥अरिहं वंदण सिद्धा, अन्न सुहुम एव जा ताव ॥३७ ।। अब्जुवगमो निमित्त, हेऊ शग बहुवयंत आगारा ॥आगंतुग आगारा,उस्सग्गावहि सरूवठ्ठ॥३॥ नामथयाश्सु संपय, पयसम अडवीस सोल वीस कमा॥ अपुरुत्तवएण दोसट्ट, दुसयसोलह नउत्र सयं ॥३ए । पणिहाण दवन्नसयं, कमेण सग ति चवीस तित्तोसा ॥ गुणतीस अट्ठवीसा, उतीसिगतीस वार गुरुवएणा ॥४०॥ पणदंडा सकत्थय, चेअ नामसुथ सिहत्थय स्थ॥दो ग दो दो पंच य, अहिगारा वारस कमेण ॥४१॥ नमु जेथइ अरिहं लोग सब पुख्ख तम सिद्ध जोदेवा ॥ उचित्ता वेयावच्चग अहिगार Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • [३४] पढमपया ||१२|| पढमा हिगारे वंदे, जाव जिणे बीएड दवजिणे || इगचेश्य ग्वणजिणे, तय चत्थंमि नामजिणे ॥ ४३ ॥ तिहुआठवण - जिणे पुणे, पंचमए विहरमा जिए छडे ॥ सत्त मए सुनाएं, हमए सवसिद्धथुई ॥ ४४ ॥ तित्थाहिव वीरथुइ, नवमे दसमे य उज्जयंतथुई || अट्ठावयाइ इगदि सि, सुदिट्ठि सुरसमरणा चरिमे ॥ ४५ ॥ नव अहिगारा इह ललिअवित्थरा वित्तिमाइ अनुसारा ॥ तिरिए सुयपरं - परया, बीओ दसमो इगारसमो ॥ ४६ ॥ श्रावस्वयचुएणीए, जं जणियं सेसया जहिच्छाए | तेणं उज्र्जिताइवि, अहिगारा सुयमया चैव ॥ ४७ ॥ बी सुत्याई, त्यो पन्नियो तहिं चेत्र ॥ सक्कत्थयंते पढियो, दवारिहवसरि पयमत्थो ॥ ४८ ॥ असढाइन्नणवजं, गोत्थ वारिति मज्झत्था || यरणावि हु आए - ति वयओ सुबहु मन्नंति ॥ ४९ ॥ च वंदणिज जिएमुणि, सुयसिद्धा इह सुराश्य सरणिजा || Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३५] चव्ह जिणा नाम उवण, दव जाव जिण एणं ॥५॥ नामजिणा जिणनामा, ग्वणजिणा पुण जिणिदपडिमाओ॥ दवजिणा जिणजीवा, नाव. जिणा समवसरणत्था ॥५१॥ अहिगयजिण पढम थुई, बीया सवाण तईच नाणस्स ॥वेया. वच्चगराणं, उवयोगत्थं चनत्थथुई ॥५२॥ पाव. खवणत्थ रिआइ, वंदणवत्तिया छ निमित्ता ॥ पवयणसुरसरणत्थं, उस्सग्गो इअ निमित्ता ॥५३॥ चन तस्स उत्तरीकरण-पमुह सद्धाआ य पण हेऊ ॥ वेयावच्चगरताई, तिन्नि श्व हेल बारसगं ॥५४॥ अन्नत्थया बारस, श्रागारा एवमाश्या चउरो ॥अगणी पणिंदि बिंदण, बोही खोभार मकोय ॥ ५५॥ घोडग लय खंगाई, मालुद्धी निअल सबरि खलिण वह ॥ लंबुत्तर थण संजर, नमुहंगुलि वायस कविठ्ठो ॥५६॥ सिरकंप मूथ वारुणि, पेहत्ति चइज दोस उस्सग्गे ॥ लंबुत्तरथण संजर, न दोस समणोण सबहुसहोणं ॥५७ ॥ इरिउस्सगपमाणं, पणवी Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] सुस्सा अट्ट सेसेसु ॥ गंभीर महुरसह, महस्थजुतं वइ युक्तं ॥ ५८ ॥ परिक्रमणे चेइय जिमण. चरम पडिकमण सुबोड़े || चिश्वंदण इअ जणो, सत्त उ वेला अहोरत्ते ॥ ५० ॥ पडिक्कम गिहिणोत्रि हु, सगवेलापंचवेल इरस्स || आसु तिसंझासु अ, होइ तिवेला जहन्नेणं ॥ ६० ॥ तंबोल पाण जोयणु, वाह मेहुन्न सुण निवणं ॥ मुत्तुच्चारं जूां, वज्जे जिणना जगईए ॥ ६१ ॥ इरि नमुकार नमुत्थुप, कारिहंत थुइ लोग सव्व थुइ ॥ पुक्खथुइ सिद्धा वेळा थुइ, नमुत्थु जावं |त थय जयवी ॥ ६२ ॥ सव्वोवादिविसुद्धं, एवं जो वंदर सया देवे || देविंदविंद महिां, परमपर्यं पावइ लहु सो ॥ ६३ ॥ ॥ इति श्री चैत्यवंदनजाष्यं समाप्तम् ॥ ॥ श्री गुरुवन्दन जाष्य प्रारंभः ॥ गुरुवंदमह तिविहं, तं फिट्टा बोज बार Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३७] सावत्तं ॥ सिरनमणासु पढमं, पुरण खमास. मण दुगि बीयं ॥१॥ जह यो रायाणं, नमिजं कज्जं निवेश्चं पच्छा॥ वीसज्जियोवि वं. दिअ, गच्छ५ एमेव श्त्य दुगं॥२॥आयारस्स उ मूलं, विणो सो गुणवयो अ पमिवत्ती ॥ सा य विहिवंदणायो, विही श्मो बारसावत्ते ॥३॥ तश्यं तु बंदणदुगे, तत्थ मिहो आइमं सयलसंघे॥ बीयं तु दंसणीण य, पयहिआणं च तश्यं तु॥॥ वंदण चिइ किइकम्म,पूयाकम्मं च विणयकम्मं च,कायव्वं कस्स व केण वावि काहे व 'कश्खुत्तो॥५॥ कश्लोणयं 'कासिर, कशदि व आवस्सएहिं परिसुद्धं ॥ कश्दोस विप्पमुक्कं, किश्कम्मं कीस कीरश्वा॥६॥'पणनाम पणाहरणा, अजुग्गपण जुग्गपण चल अदाया ॥ 'चउदाय पण निसेहा, 'चउ अणिसेहढकारणया ॥७॥ "आवस्सय "मुहणंतय, "तणुपेहपणीस दोसबत्तीसा ॥ छ गुण गुरुविण "जुग्गह, "लवीसख्खर "गुरु Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३८]: पणीसा ॥७॥ पय “अमवन्न "छठाणा, छरगुरुवयणा रासायण तित्तीसं ॥ विही मुवीसदारेदि, चउसया बाणउ ठाणा ॥ए॥ वंदणयं चिइकम्मं, किश्कम्मं विषयकम्म पूअ. कम्मं ॥ गुरुवंदणपणनामा, दवे नावे हो. हेणं (हाहरणा) ॥१०॥ सीयलय खुएवीरकन्द सेगवडु पालए संबे ॥ पंचेए दिलुता, किश्कम्मे दव्वनावेहिं ॥ ११॥ पासत्थो ओ. सन्नो, कुसील संसत्तयो अदाच्छंदो ॥ दुग दुग ति दुगणेगविहा, अवंदणिज्जा जिणमयंमि॥१॥ आयरिय उवज्झाए, पवत्ति थेरे तहेव रायणिए ॥ किश्कम्मनिज्जरठ्ठा, कायव्व मिमेसि पंचन्हं ॥१३॥ माय पिय जिट्ठभाया, थउमावि त. देव सवरायणिए॥किश्कम्म न कारिजा, चल समणाई कुणं ति पुणो ॥१४॥ विक्खित्त पराहुत्ते, पमत्ते मा कया वंदिजा ॥ आहारं नी. हारं, कुणमाणे कामकामे अ॥ १५ ॥ पसंते आसपत्थे अ, उवसंते उवहिए । अणुन्न वित्तु Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९] मेहावी, किश्कम्मं पउंजई ॥१६॥ पमिकम्मणे सज्जाए, काउस्सग्गावराह-पाहुणए ॥ आलोयण संवरणे, उत्तमढे य वंदणयं ॥ १७ ॥ दोवणय महाजायं, आवत्ता बार चउ सिर तिगुत्तं॥ दपवेसिगनिख्खमणं, पणवीसावसय किश्कम्मे ॥१७॥ किश्कम्मपि कुणतो, न हो किश्क. म्मनिज्जराभागी ॥ पणवीसामन्नयरं, साहू गणं विराईतो ॥१५॥ दिहि पडिलेह एगा, छ उह पप्फोम तिगतिगंतरिया ॥ अख्खोड पमज्जणया, नव नव मुहपत्ति पणवीसा ॥२०॥पायाहिणेण तिअ तिअ, वामेअरबाहु-सीस-मुहहियए ॥ अंसुट्ठाहो पिटे, चउ बप्पय देहपणवीसा ॥१॥ आवस्सएसुजह जह, कुण पयत्तं बहीणमरित्तं ॥तिविहकरणोवउत्ती, तह तह से निज्जरा होइ ॥२॥दोस 'अणाढिब'थद्विअ, पविक परिपिडियंच टोखगई॥'अं. कुस कच्छभरिंगिअ, मच्छवत्तं “मणपउठं ॥३॥ "वेश्यबद्ध "नयंतं, "जय गारव Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] पमित्त "कारणा तिन्नं ॥ पमिणीय रुष्ट ताज्जा, "सढ हीलिअविपलियचिअयं ॥२४॥ २३दिठमदिठं "सिंगं, "कर य तम्मोअण"अविझणालिई॥"ऊणं "उत्तरचूखि. अ, मूअं ढहर चुमलिशं च ॥२५॥ बत्तीस. दोसपरिसुझं, किश्कम्मं जो पउंज गुरुणं ॥सो पाव निवाणं, अचिरेण विमाणवासं वा॥२६।। श्ह उच्च गुणा विणयो-वयारमाणाभंग गुरुपूआ ॥ तित्थयराण य ाणा, सुअधाम्मराहणाऽकिरिया ॥ २७ ॥ गुरुगुणजुत्तं तु गुरु, गवि. ज्जा अहव तत्थ अक्खाई॥ अहवा नाणातिअं, विज सख्खं गुरुअनावे ॥२०॥ अख्खे वराडए वा, कठे पुत्थे अ चित्तकम्मे अ॥सब्जाव. मसब्भावं, गुस्तषणा इत्तरावकहा ॥शए। गुरुविरहंमी वणा, गुरुवएसोवदसणत्थं च ॥ जिणविरहंमि जिण विंब-सेवणामंतणं सहलं ॥३॥ चदिसि गुरुग्गहो इह, अहु तेरस करे सपरपख्खे ॥ अणगुन्नायस्स सया, न कप्पए तत्थ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] पविसेजं ॥ ३१॥ पणतिग बारस दुगतिग, चउरो बहाण पय इगुणतीसं॥ गुणतीससेस बावस्सयाइ सवपय अडवन्ना ॥३५॥ इच्छा य अणुन्नवणा, अबाबाहं च जत्त जवणा य॥अब. राहखामणावि य, वंदणदायस्स छठाणा॥३३॥ बंदेणणुजाणामि, तहत्ति तुब्नपि वट्टए एवं। अह. मवि खामेमि तुमं, वयणावंदण रिहस्स॥३४॥ 'पुरयो पख्खासन्ने, ५ गंता 'चिठ्ठण निसी. अणायमणे" ॥ आलोयणऽपडिसुणणे, पु. वालवणे अ"आलोए ॥ ३५॥ तह "उवदंस निमंतण, खद्धाययणे" तहा अपडिसुणणे ॥"खद्धत्ति य तत्थगए, कि तुम "तज्जाय नोसुमणे ॥ ३६॥ नो "सरसि रकहंछित्ता, परिसंभित्ता अणुठ्यिार कहे ॥ संथारपायघट्टण, चिटुच्च समासणे आवि ॥ ३७॥ शरिया कुसुमिणुसग्गो, विश्वं दण पुत्ति वंदणालोयं ॥ वंदण खामण वंदण, संवर चश्बोन पुसज्झायो ॥३॥ इरिया चिश् Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४२] वंदण पुत्ति वंदणं चरिमवंदणालोयं ॥ वंदणखामणचउडोज दिवसुस्तग्गो मुसज्झायो॥३॥ एवं किश्कम्म विहिं, जुजंता चरणकरणमाउत्ता ॥ साहू खवंति कम्मं, अणेगनवसंचियमणंतं ॥४०॥ अप्पमश्भव्वबोहत्थं, नासियं विवरियं च जमिह मए ॥ तं सोहंतु गीयत्था, अणनि. निवेसी अमच्छरिणो ।। ४१॥ ॥ इति श्रीगुरुवंदन नाष्यं समाप्तम् ॥ ॥ अथ तृतीय पच्चख्खाण नाष्य प्रारंनः॥ दस 'पञ्चख्खाण चउबिहि, थाहार - वीसगार अपुरुत्ता ॥ दस विग तीस 'विगई गयाइनंगा छ सुकि फलं ॥१॥ 'अणागय'मश्कतं, कोडीसहियं नियंटि 'अणगारं ॥ 'सागार निरवसेसं, परिमाणकर्म सके "अका ॥२॥'नवकारसहिय पोरिसि, पुरिमद्वेगासणेगगणे अ॥ 'आयंबिल अभत्तट्टे, चरिमे अ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिग्गहे विगई॥३॥ उग्गए सूरे अनमो, पोरिसि पञ्चख्ख उग्गए सूरे ॥ सूरे उग्गए पु. रिमं, अनत्तहँ पच्चख्खाइत्ति॥४॥ नण गुरू सीसो पुण, पच्चख्खामि त्ति एव वो सिर ॥ उव. ओगित्थ पमाणं, न पमाणं वंजणच्छलणा॥५॥ पढमे गणे तेरस, बीए तिनिउ तिगाश् तर अंमि॥पाणस्स चउत्थंमी, देसवगासाइपंचमए ॥६॥ नमु पोरिसि सवा, पुरिमव अंगुठमाश् अड तेर॥ निवि विगइ अंबिलातय, तिय गासण एगगणाई॥७॥ पढमंमि चउत्थाई, तेरस बोयंमि तश्य पाणस्स॥देसवगासं तुरिए, चरिमे जह संनवं नेयं ॥ ७ ॥ तह मज्ज पच्चख्खाणे सुन पिहु सूरुग्गया वो सिर । करण विहि जन नन्न, जहावसीया बियबंदे॥णा तह तिविद पच्चखाणे, नन्नति अ पाणगस्स (ब) आगारा॥ विहाहारे अचित्त-नोश्णो तह य फासुजले ॥ १० ॥ इत्तुच्चिय खवणंबिल, निवियाइसु फासुयं चिय जलं तु ॥ सहा वि Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४४] पियंति तहा, पच्चख्खंति य तिहाहारं ॥११॥ चउहाहारं तु नमो, रतिपि मुणीण सेस तिह घउहा॥ निसि पोरिसि पुरिमेगा-सणा सहाण उतिचउहा ॥१॥ खुहपसमखमेगागी, बाहारि व ए देइ वा सायं ॥ खुहियो व खिव कुठे, जं पंकुवमं तमाहारो ॥ १३ ॥ असणे मुग्गोयणसत्तु मंग पय खज्ज रब्ब कंदाई॥पाणे कंजिय जव कयर, कक्कमोदग सुराश् जलं ॥ १४॥ खा. श्मे नत्तोस फलाइ, साइमे सुंठि जीर अजमाई ॥ महु गुम तंबोलाई, अणहारे मोय निंबाई ॥१५॥ दो नवकार छ पोरिसि, सग पुरिन गासणे अट्ठ ॥ सत्तेगठाणि अंबिल, अट्ठ पण चउत्थि छ पाणे ॥ १६॥ चन परिमे चननिग्गाह, पण पावरणे नव निव्विीए॥आगारुखिखत्तविवेग, मुत्त दव विग नियमिह ॥१७॥ अन्न सह 5 नमुकारे, अन्न सह पच्छ दिस य य साहु सब ॥ पोरिसि छ सपोरिसि, पुरिमढ्ढे सत्त समहत्तरा ॥१०॥ अन्न सहस्सागारि य, Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४५] आउंटण गुरु अ पारि मह सब ॥ एगबिया. सणि अन, सग गगणे अउंट विणा ॥१॥ अन्न सह सेवा गिह, उख्खित्त पमुच्च पारि मह सब । विगई निविगए नव, पमुच्चविणु अंबिले अह ॥२०॥ अन्न सह पारि मह सब, पंच खवणे ब पाणि खेवाई॥ चउ चरिमंगुठाई, निग्गदि अन्न सह मह सब ॥१॥ बुद्ध महु मजतिवं, चउरो दव विगश्चनर पिंमदवा ॥ घय. गुल-दहियं-पिसियं, मख्खणपक्कन्न दो पिंडा ॥ २५॥ पोरिसि समवळं, उन्नत्त निविगर पोरिसाइ समा ॥ अंगुट्ट-मुष्टि-गंठो सचित्त दवाइभिग्गदियं ॥ २३॥ विस्सरणमणानोगो, सहस्सागारो सयं मुदपवेसो॥ पच्छन्नकाल मेदाई, दिसिविवजासु दिसिमोहो ॥२४॥ साहुवयण उग्घाडा, पोरिसि तणुसुथ्थया समादित्ति ॥ संघाश्कज महत्तर, गिदत्य बंदाइ सागारी ॥ २५॥आउंटणमंगाणं, गुरुपाहुणसाहु गुरुअप्जुठाणं ॥ परिगवण विहिगहिए, जईण पावर Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४६] णि कमिष्टो ॥६॥ खरडिअ खुहिय मोवा. लेव संसद्ध मुच्च मंडाई ॥ उख्खित्त पिंडविगईणं, मक्खियं अंगुलीहिं मणा ॥ २७॥ लेवाम आयामाइ, श्यर सोवीरमच्छ मुसिणजलं ॥धो. अण बहुल ससिथ्यं, उस्सेश्म श्यर सिथ्यविण। ॥२॥ पण चल चल चल विद, बजरुव उद्धाश्-विग इगवीसं ॥ ति पुति चविह अनख्खा, चउ महमाई विग बार ए॥ खीर घय दहिअतिवं, गुड पकन्नं भख्ख विगईयो ॥ गो-महिसि-हि-अय-एलगाण पण उद्ध यह चउरो ॥३॥ घय दहिया उद्दिविणा, तिल सरिसब अयसि लट्ट तिल्ल चऊ ॥ दवगुम पिंगुडा दो, पक्कन्नं तिल घयतलियं ॥३१॥ पय. साडिखोर-पेयाऽवलेहि दुट्टि उद्धविगगया॥ दख्ख बहु अप्पतंजुल, तच्चुन्नंबिल सदिअमुके ।। ३२॥ निब्नंजण वीसंदण, पकोसहितरिय किहि पक्वघयं ।। दहिए करंब-सिहरिणि-सलवणदहि घोल घोलवडा ॥३३॥ तिलकुट्टी निजंजण, पक Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४७] तिल पक्कुसहित रिय तिल्बमली। सकर गुल. वाणय, पाय खंग अधकढिय इख्खुरसो ॥३४॥ पूरिय तवपूआ बीय, पूअ तन्नेह तुरिय घाणाई।। गुलहाणो जललप्पसि, य पंचमो पूत्तिकयो ॥३५॥ दुद्ध दही चउरंगुल, दवगुल घयतिब एग नत्तुवरि ॥ पिमगुरु मक्खणाणं , अदामलयं च संसठं ॥३६॥ दवहया विगई विगइ-गय पुणो तेण तं हयं दत्वं ।। उद्धरिए तत्तंमि य, उकिठदवं इमं चन्ने ॥३७॥ तिल सक्कुलि वरसोलाइ, रायणंबा दक्खवाणाई॥ मोली तिहाई श्य, सरसुत्तमदव सेवकमा ॥३॥ विगगया सं. सट्टा, उत्तमदवा य निविगश्यंमि॥ कारणजायं मुत्तुं, कप्पंति न जुत्तुं जं वुत्तं ॥३॥ विगई विगई जीओ, विगगयं जो अ लुंजए साढू ॥ विगई विगश्सहावा, विगई विगई बला नेई। ४० ।। कु. त्तिय मच्छिय भामर, महुँ तिहा कह पिठ मज हा ॥ जल-थल-खगमंस तिहा, घयव मक्खण चउ अजक्खा ॥४१॥'मण वयण कायमणवय, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] मणतणु वयतणुति ओगिसगसत्त ॥ 'कर कारणु मदति जु, तिकालो सीयाल नंगसयं ॥४२॥ एयं च उत्तकाले, सयं च मण वय तणुहिं पालणियं ॥ जाणग जाणगपास, त्ति जंग चनगे तिसु अणुएणा ॥४३॥ फासिय पालिय सोहिय, तोरिय किट्टिय अ राहिय छ सुद्धं ।। पचरूखाणं फासिय, विहिणोचियकालि जे पत्तं ॥४४॥ पालिय पुणपुणसरियं, सोहिय गुरुदत्तसेसभोयणो ॥ तरिय समहियकाला, किट्टिय जोयणसमयसरणा ।। ४५॥अपडियरिशंआरा-हियं तु अहवा छ सुद्धि सद्दद्दणा ॥ जाणण विणयणुजासण, अणुपालणभाव सुद्धित्ति ॥४६॥ पञ्च. ख्खाणस्स फलं, इह परलोए य होइ सुविहं तु ॥ इहलोए धम्मिलाई, दामनगमा परलोए ॥४७॥ पञ्चरुवाणमिणं से-विऊण भावेण जिणवरुद्दिष्ठं ॥ पत्ता अणंत जीवा, सासयसुख्खं अणाबाहं ॥ ४ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४९ ] अथ श्रीदेवेंद्रसूरिविरचितकर्मग्रंथ प्रारंजः तत्र प्रथम कर्मविपाकनामाकर्मग्रंथः प्रारंभः सिरि वोर जिणं वंदिका, कम्मत्रिवागं समासश्रो बुच्छं || कोर जिए देऊहिं, जें तो जएगए कम्मं ॥ १ ॥ पय विरस 'पएसा, तं चउहा मोअगस्स दिहंता । मूल पगइह उत्तर, पगई मन्न सयनेयं ॥२॥ इह 'नाम 'दंसणावर वेत्र मोदाउ' 'नाम 'गोआणी । 'विग्धं च पण 'नव 'दु 'अ-वीस 'च 'तिसय दु विहं ॥ ३॥ मइ सुख ही मण, केवलाणि नापाणि तत्य मनाएं || वंजणवग्गह चउद्दा, मानयणं त्रिणिंदिय चक्का ॥ ४ ॥ अत्युग्गढ़ ईहावा - य धारणा करणमाणसेहिं छहा ॥ इ अट्टवीस जेां, चउदसहा वीसदा व सुखं ॥ ५॥ अक्खर सन्नी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसिां च ॥ गमियां गपविहं, सत्तवि एएसपमिवक्खा Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५०] ॥६॥ पजय अरकर पय सं-घाया पमिवत्ति तह य अणुयोगो। पाहुडपाहुडपाहुड, वत्थू पुवा य ससमासा ॥७॥ अणुगामि वठ्ठमाणय, पडि. वाश्यर विहा छहा श्रोही। रिउमा विउलमई मण-नाणं केवलमिगविहाणं ॥ ॥ एसिं जं आवरणं, पमु व चख्खुस्स तं तयावरणं । दसण. चउ पणनिद्दा, वित्तिसमं दसणावरणं ॥ ए॥ चख्खूद्दिष्टि अचख्खू सेसिदिय ओहि केवलेहिं च । दसण मिह सामन्नं, तस्लावरणं तयं चउदा ॥ १० ॥ सुहपडिबोहा निद्दा, निहानिदा य पुख्खपडिबोहा । पयलावियोवविठस्स पयलपयलाउ चंकमयो ॥ ११॥ दिचिंतिपत्थकरणी, थीणद्धी अद्धचक्कि अद्धबला। महुलित्त खग्गधारा, लिहणं व हा उ वेअणियं ॥१॥ योसन्नं सुरमणुए, सायमसायं तु तिरिअनिरएसु मजं व मोहणीयं, विहं दंसणचरणमोहा॥१३॥ दंसणमोहं तिविहं, सम्म मीरसं तदेव मिच्छत्तं । सुद्धं अविसुझं अविसुद्धतं हव कमसो ॥१४॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] जिअ-अजिब-पुएण-पावा-सव-संवर-बंधमुख्खनिऊरणा । जेणं सदहइ तयं, सम्मं खरगावहुनेअं ॥१५॥ मीसा न रागदोसो, जिणधम्मे अंतमुहु जहा अन्ने । नालिअर दीव. मणुणो, मिच्छं जिणधम्म विवरीयं॥१६॥ सोलस कसाय नव नोकसाय विहं चरित्तमोहणियं । अण अपचख्खाणा, पञ्चख्खाणा य संजलपा।१७। जा जीव वरिस चनमास, पख्खगा निरय तिरिय -नर-अमरा । सम्माणु-सब विरई, अहक्खाय चरित्तघायकरा ॥१७ ॥ जल रेणु पुढवि पवय, राईस रिसो चलबिहो कोहो । तिणिसलया कट्ट अ, सेलत्थंनोवमोमाणो ॥१॥ मायावलेहि गोमु-त्ति मिसिंग घणवंसमूलसमा। लोहो हलिद्द खंजण, कद्दम किमिरागसा रित्यो (सामाणो)॥२॥ जस्सुदया हो जिए, हास रई अरइ सोग जय कुच्छा ॥ सनिमित्त मन्नहा वा, तं श्ह हासाश्मोहणियं ॥३१॥ पुरिसित्थि तमु भयं पर, अहिलासो जवसा हव सो उ। थी Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५२] नर नपु वेदयो, फुंफुम तण नगर दाहसमो ॥ २२ ॥ सुर नर तिरि निरयाऊ, हडिसरिसं नामकम्म चित्तिसमं । बायाल तिनवविहं, तिउत्तरस्यं च सत्तट्टी ||२३|| गइजा इतगुजवंगा, बंघण संघायणाणि संघयणा । संगणवएण गंधरस, फास अपुवि विहगई ॥ २४ ॥ पिंपयडित्ति चउदस परघाउस्सासायवुोयं । गुरुलहुतित्यनिमिणो वघाय मिअ पत्ते ||२५|| तसबायर पकतं, पत्तेयं थिरं सुनं च सुजगं च । सुसराइक जसं तस दसगं थावर दसं तु इमं । २६ । थावर सुहुमअपज्जं, साहारा थिरअसुन नगाणि । डुस्सरणाइका जस- मिश्रा नामे सेअरा वीसं ॥ २७ ॥ तसच थिरछकं अथि-रछकपुमतिग थावरचनकं । सुजगतिगाइविभासा, तयासंखाहि पयमीहिं ॥ २८ ॥ वरणच अगुरुलहु चल, तसाइडुतिचउरछक मिच्चाइ । इय अन्नावि वि - भासा, तयाइ संखाहि पयडीहिं ॥ २९ ॥ गइआईण उ कमसो, चन पण पण ति. पण पंच Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५३ ] छ छकं । पण डुग पणट्ट चट डुग, इय उत्तर अपसठ्ठी ॥ ३० ॥ अडवीस जुया तिनवर, संते वा पनरबंधणे तिसयं । बंधण संघायमहो, तणूसु सामण्णवरणचऊ ॥ ३१ ॥ इा सत्तडी बंधो दए अ न य सम्ममीसया बंधे ॥ बंधुदए सत्ताए, वीस वीसवएणसयं ॥ ३२ ॥ नरयति - रिनरसुरगई, इग बिअतिअव उपणिदिजाई || ओरालविवाहा -रते कम्मपणसरीरा ||३३|| बाहूरुपिट्टि सिरजर, उअरंग उवंग अंगुली पमुद्दा सेसा गोवंगा, पढमतणुतिगस्सुवंगाणि ॥३४॥ उरलाइ पुग्गलाएं, निबद्धबज्झतयाण संबंधं ॥ जं कुणइ जनसमं तं बंधणमुरलाई तणु नामा ( उरलाई बंधणं नेयं) ||३५|| जं संधाय उरलाइ पुग्गले तणगणं व दंताली ॥ तं संघायं बंधण, मिव तणुनामेण पंचविहं ॥ ३६ ॥ ओराल विउबादा-रयाणं सगतेअ कम्मजुत्ताणं ॥ नव बंधपाणि इअर सहिखाणं तिनि तेसिं च | ३ | संघयण महिनिचयो, तं छद्धा वज्जरिसनारायं Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५४ तह य रिसदनारायं, नारायं अजनारायं ॥३॥ कीलिय जेवढं श्ह, रिसहो पट्टो अ कीलिया वजं ॥ उजो मक्कमबंधो, नारायंश्ममुरालंगे ॥३॥ समचउरंसं निग्गा-ह साखुजाश्वामणं हुं॥संगणा वएणा किएह, नील लोहिय हलिद्द सिया।। सुरहि रही रसा पण, तित्त को कसाय अंबिला महुरो । फासा गुरुलहु मिउ खर, सी उएह सिणिक रुख्खा ॥४१॥ नीलक सिणं गंध, तित्तं कमुझं गुरुं खरं रुक्ख ॥ सीधेच असुहनवगं, श्कारसगं सुनं सेसं ॥४॥ चउहगवणुपुवी गश्पुब्विदुगं तिगं निभाउजुयं ॥ पुब्बीउदो वक्के, सुह असुह वसुट्ट विहगगई ॥३॥ परघा उदया पाण), परेसि बलिणंपि होइ दुद्ध. रिसो॥ ऊससिण लद्धिजुत्तो, इवेद ऊसासना. मवसा ॥ ४४ ॥रविबिंबे ऊ जिअंगं, तावजुअं आयवान न उ जलणे॥जमुसिणफासस्स तहिं, लोहिअवएणस्स उदउ ति॥ ४५ ॥ अगुसिणपयासरूवं, जिअंगमुज्जोए हुज्जोया ॥ जर Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५], देवुत्तर विक्किअ, जोइसखज्जोधमाश्व्व ॥४६॥ अंगं न गुरु न लहुआं, जाय जीवस्स अगुरुखहु. उदया ॥ तित्येण तिहुअणस्स वि, पुज्जो से उदयो केवलिणो ॥ ४ ॥ अंगोवंगनिअमिणं, निम्माणं कुण सुत्तहारसमं। उवघाया उबहम्मश्, सतणुवयवलं बिगाहिं ॥७॥ बितिचउ. पणिदिय तसा, बायरयो बायरा जिया थूला॥ निअनिअपज्जत्तिजुआ, पज्जत्ता लछिकरणेहिं ॥ए। पत्तेअतणू पत्ते-उदएणं दंत-हिमा थिरं ॥ नानुवरि सिराश् सुहं, सुभगायो सव्वजणश्हो॥५॥ सुसरा महुरसुद्दझुणी, थारजा सव्वलोअगिज्जवो ॥ जसो जसकित्तीयो, थावरदसगं विवज्जत्थं ॥५१॥ गोरं जुहुच्चनीअं, कुलाल श्व सुघमजुंजलाईयं ॥ विग्धं दाणे लाने, जोगुवजोगेसु वीरिए अ॥५॥ सिरि हरिथसम एवं, जह पमिकूलेण तेण रायाई ॥ न कुण दाणाईचं, एवं विग्घेण जीवो वि॥५३॥ परिणी अत्तण निन्दव-उवधाय पोस अंतराएणं ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] अच्चासायणयाए, आवरणगं जियो जयई।५।। गुरुजत्ति खत्ति करुणा, वयजोग कसाय विजय दाणजुयो ॥ दढधम्माई अजय, सायमसायं विवजयश्रो ॥५५॥ उम्मग्गदेसणा मग्ग-नासणा देवदव्वहरणेहिं । दसणमोहं जिणमुणि, चेश्य संघापडिणीयो ॥५६॥ विहंपि चरणमोहं, कसायहासाइविसयविवसमणो ॥ बंध निर. याउ महा-रंन परिग्गहरको रुद्दो ॥ ५॥तिरिवाज गूढहियो, सढो ससलो तहा मणुस्साओ ॥पर्यईइ तणुकसायो, दाणरुई मज्झिमगुणो अ ॥५॥ अविरयमा सुराजं, बालतवो कार्मानजरो जय ॥ सरलो अगारविल्लो, सुहनामं अन्न हा असुहं ॥५ए। गुणपेही मयरहियो, अज्झयणज्झावणाई निञ्च ॥पकुण जिणाश्भत्तो,उच्चं नीचं इअरहा उ ॥६०॥ जिणपूआ विग्घकरो, हिंसाइपरायणो जयश् विग्धं ॥ श्य कमविवागोयं, लिहियो देविंदसूरीहिं ।। ६१॥ इति कर्मविपाक नामा प्रथमः कर्मग्रंथः संपूर्णः॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५७] श्री कर्मस्तवनामा द्वितीयकर्मग्रंथःप्रारज्यते. ___ तह थुणिमो वीरजिणं, जह गुणगणेसु सयल कम्माई॥बंधुदयोदीरणया, सत्तापत्ताणि खवियाणि ॥१॥ 'मिच्छे सासण मीसे, अविरय देसे पमत्त अपमत्ते ॥ निअहि अनियहि सुहुमु-वसम'११२वीण सजोगि अजोगिगुणा ॥२॥ अभिनवकम्मग्गहणं, बंधो मोहेण तत्य वीससयं ॥ तित्थयराहारग पुग--वज्ज मि. च्छंमि सतरसयं ॥३॥नरयतिग जाश्थावर-चठ हुँमायवछिवठ्ठनपुमिच्छं ॥ सोलंतो गहियसय, सासणि तिरिथीण उदगतिगं ॥४॥ अणम. ज्झागिसंघय-ण चज निउज्जोअ कुखगत्थि त्ति ॥ पणवीसंतो मीसे, चउसयरि दुहाउस अबंधा ॥ ५॥ सम्मे सगसयरि जिणा-उबंधि वरनरतिअ बिअकसाया ॥ उरलदगंतो देसे, सत्तट्ठी तियकसायंतो ॥६॥ तेवठ्ठी पमत्ते सोग • अरश्अथिरदुग अजस अस्सायं ॥ वुच्छिज्ज छच्च Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५] सत्तव, नेश्सुरालं जया निळं ॥७॥ गुणसहि अप्पमत्ते, सुरानबंध तु जर इहागच्ने, अन्नह अट्ठावन्ना, जं आहारगदुगं बंधे ॥७॥ अडवन्न थपुव्वाशम्मि, निददुगंतो छपन्न पणजागे ॥ सुरगपणिदिसुखगर, तसनवजरलविणु तणुवंगा ॥ ए ॥ समचउरनिमिण जिणवन्न अगुरु. लहुचउ छलंसि तीसंतो॥ चरमे छवीस बंधो॥ हासरई कुच्छभयनेयो॥१०॥ अनियहि जाग पणगे, गेगहीणो ऽवीसविहबंधो ॥ पुमसंजल ण चउएहं, कमेण बेओ सतर सुहुमे ॥११॥ चल दसणुच्च जस ना-ण विग्घदसगं ति सोलसुच्छेओ ॥ तिसु सायबंध लेओ, सजगि बंधतु एंतो अ ॥ १५ ॥ उदयो विवागवेषण-मुदी. रणमपत्तिश्ह वीससयं ॥ सतरसयं मिच्छे मी म सम्म थाहारजिणणुदया ॥ १३ ॥ सुहुमतिगायवमिच्छ, मिच्छतं सासणे गारसयं ॥ निरयाणु पुच्चिणुदया, अणथावरगविगलथंतो १४ मोसे सयमणुपुत्री-णुदया मीसोदएण मीसंतो Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९] चउसयमजए सम्मा-णुपुविखेवा बिअकसाया ॥१५॥मणु तिरिणुपुवि विजब उहग अणाज्ज दुग सतर ओ॥सगसीइ देसि तिरिंग, बाउनिजोअतिकसाया ॥१६॥ अठ्ठच्छेयो गसी, प. मत्ति थाहारजुअलपरकेवा ॥ थीणतिगाहारगग, वे ओ छ सयरि अपमत्ते ॥१७॥ सम्मत्तंतिम संघयण, तिअगलेओबिसत्तरि अपुढे ॥ हासाइ बक्कतो, बसहि अनिअट्टि वेअतिगं ॥१७॥ संजलण तिगं बडेओ, सट्टो सुहुमंमि तुरिअलो. नंतो ॥ उवसंतगुणे गुणसहि रिसहनारायगअंतो॥१ए। सगवन्न खीण पुचरिमि, निदगंतो अचरिम्मि, पणवन्ना। नाणंतरायदंसणचउ बेयो सजोगि बायाला ॥२०॥तित्युदया उरलाथिर, खगश्ग परित्ततिग छ संगणा॥ अगुरुवहुवनचउ निमिाण तेअकम्माश्संघयणं ॥१॥ सूसर सर साया ऽसाएगयरं च तीस वुच्छेयो ॥ बारस अजोगि सुनगाइज जसनयर वेषणिशं ॥२॥ तसतिग पणिंदि मणुआ उग जिणुचं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] ति चरमसमयंतो। उदउव्वु दोरणया, परम पमत्ता सगगुणेसु ॥२३॥ जं वेअणि आहारग थीण तिग नराउ अमपमत्ता । गुणयाल सजोगि नदी-रणं तु अणुदोरगु अजोगी ॥२४॥ एसा पयडी तिगुणा, वेधणियाहार जुबल थीणतिगं ॥ मणुयाउ पमत्ता, अजोगि अणुदीरगो भयवं ॥ २५॥ सत्ता कम्माणविई, बं. धार लद्धअत्तलानाणं ॥ संते अमयालसयं, जा उवसमु विजिणु बिथतइए ॥ २६ ॥ अपुठनाइ चउके, अणतिरिनिरयाउ विणु बिआलसयं ॥ सम्माश् चउसु सत्तग-खयंमि इगचत्तलयमहवा ॥ २७ ॥ खवगं तु पप्प चउसु वि, पणयालं निरयतिरिसुराज विणा ॥ सत्तगविगु अडतीसं, जा अनिअट्टिपढम नागो ॥२७॥ थावरतिरि. निरयायव-दुग थीणतिगेग विगल साहारं ॥ सोलखयो दुवीस सयं, बिअंसि बिअतिअकसा. यंतो ॥ श्ए ॥ तआश्सु चउदस ते र बार छ पण चउ तिहिअसयकमसो ॥ नपु इथिहास Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] बग पुंस, तुरिश्र कोहो मय मायखो ॥ ३० ॥ सुहुमि दुसय लोहंतो, खीणदुचरिमेगसय दुनिद खयो । नवनवश् चरिम समए, चउदंसणनाण विग्धंतो ॥ ३१ ॥ पणसी सजोगि अजोगि दुचरिमे देवखग गंधदगं ॥ फासठ वएणरसतणु, बंधणसंघायपण निमिणं ॥३॥संघयण अथिर संग-छक अगुरुलहुचन अपज्जतं ॥ सायं व असायं वा, परित्तुवंगतिग सुसरनियं ॥३३॥ बिसयरि खयो अ चरिमे, तेरस मणुमतसतिग जसा ॥ सुजगजिणुच्च पणिं दिख, सायसा एगयर बेश्रो ॥ ३४ ॥ नरअणुपुवि विणा वा, बारस चरिमसमयंमि जो खविलें ॥ पत्तो सिद्धिं देविंद वंदिशं नमह तं वीरं॥३५॥ ॥ इति कर्मस्तवाख्यो द्वितीयः कर्मग्रंथः सं॥॥ बंधस्वामित्वाख्य तृतीय कर्मग्रंथःप्रारज्यते। बंधविहाणविमुक्कं, वंदिध सिरि वद्धमाण Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२]. जिणचंदं ॥ गईशाश्सु बुच्छ, समासयो बंधसामित्तं ॥१॥ गइदिए काए,॥ जोए वेए कसाय नाणे य॥ संजम दंसण खेसा, भव सम्मे सन्नि आहारे ॥२॥ जिण सुर विवादारदु, देवाउ अ नरयसुहुमविगलतिगं॥ एगिदि थावरायव, नपुमिच्छं हुंम बेवढं ॥३॥श्रण मज्जागिर संघयण, कुखगनिअ इथि दहगवीणतिगं ॥ उज्जोय तिरिदुगं तिरि नराउ नर उरल दुग रिसहं ॥४॥ सुरश्गुणवीस वज, गसयो ओहेण बंधहिं निरया॥तित्थविणा मिच्छि सय, सासणि नपु च विणा छनुई ॥५॥ विणु अणबवोस मीसे, बिसयरि सम्ममि जिण नराउजुआ ॥अ रय. णाश्सु नंगो, पंकाश्सु तित्थयरहीणो ॥६॥ अजिण मणुबाउ मोहे, सत्तमिए नरदुगुच्च विणु मिच्छे ॥ गनवई सासाणे, तिरिवाउ नपुंसचउवज्जं ॥७॥ अणचवीस विरहिआ, सनरमुगुच्चा य सयरि मीसदुगे ॥ सतरस ओदि मिच्ने, पज्जतिरिया विणु जिणाहारंजा विणु Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६३ ] निरयसोल सासपि, सुराउ एग तीस विणु मीसे ॥ ससुराज सपरि सम्मे, बी अकसाए विद्या देसे ॥ ए ॥ इ चगुणेसु वि नरा, परमजया सजिए हु देसाई || जिणश्क्कारसहीणं, नवसय अपजत्त तिरिय नरा ॥ १० ॥ निरयव सुरा नवरं, हे मिच्छे इगिंदितिगसहिया ॥ कप्पदुगे वि एवं जिलही पो जो भववणे ||११| रयणु व सकुमारा आण्याई उतोअ चनरहिआ । अपज्जतिरिव नव सय मिगिंदि पुढवि जल तरु विगले ॥ १२ ॥ छनवइ सासणि विणु सुहुमतेर के पुण बिंति चनवई ॥ तिरि नराऊहिं विद्या, तणु पज्जत्तिं न जंति जय ॥ १३ ॥ ओहु पणिदितसे गश्त से जिणिकार नरतिगुच्च विद्या ॥ मणवयजोगे यो हो, उरले नरजंगु तम्मि स्से |१| आहारबग विणोदे, चउदससन मिच्छि जिणपणगहीणं । सासणि चउनवइ विद्या, तिरिअनराऊ सुहुमतेर || १५ || अपचडवीसाइ विद्या, जिलपणा सम्मि जोगियो सायं ॥ विणु तिरि Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४] नराउ कम्मे, वि एवमाहारदुगि हो ॥१६॥ सुरोहो वे उव्वे, तिरिअनराजरहियो अ तम्मिस्से ॥ वेअतिगाश्म बिअतिअ-कसाय नव दु चल पंच गुणा ॥ १७ ॥ संजलणतिगे नव दस, लोहे चउ अजय दु ति अनाणतिगे॥ बारस अघरकुचख्खुसु पढमा अहक्खाय चरिम चऊ ॥ २७ ॥ मणनाणि सग जयाई, समय अ घन दुन्नि परिहारे ॥ केवल दुगि दो चरमा, जयाश् नव मसुशोहि दुगे ॥१५॥ अड उवसमि च वेअगि, खइए श्कार मिच्छ. तिगि देसे ॥ सुहृमि सठाणं तेरस, आहारगि निअनिअगुणोहो ॥ २७ ॥ परमुवसमि वहता, आउ न बंधंति तेण अजयगुणे ॥ देव मणुयाउ हीणो, देसासु पुण सुराउ विणा ॥१॥ आहे अट्ठारसयं, थाहारगुणमा लेसतिगे॥ तं ति. त्योणं मिच्छे, साणाश्सु सव्वहिं ओहो ॥॥ तेऊ निरय नवूणा, उजोथचन निरयबार विणु सुका ॥ विणु निरयबार पम्हा, अजिणाहारा Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६५] इमा मिच्छे ॥ ५३॥ सव्वगुण भव्वसन्निसु, बोहु अजव्वा असन्नि मिच्उसमा ॥ सासणि असन्नि सन्निव्व, कम्मण नंगो श्रणाहारे ॥२४॥ तिसु दुसु सुक्काश्गुणा, चउ सग तेरत्ति बंधसामित्तं ।। देविंदसूरि रश्चं(लिहिय)नेयं कम्मत्ययं सोश्य इति बंधस्वामित्वाख्यस्तृतीयः कर्मग्रंथः समाप्तः३ षमशीतिकाख्यः चतुर्थः कर्मग्रंयः प्रारंजः नमिअजिणं जिअमग्गण, गुणगणुवोगजोगलेसाओ॥ बंधप्पबहू नावे, संखिजाई किमवि वुच्छं ॥ १ ॥ नमियं जिणं वत्तव्वा, चदसजिगणएसु गुणगणा ॥ जोगुवयोगो खेसा, बंधोदोदीरणा सत्ता ॥२॥ ( पाठांतरं ).॥ चउदस जियगणेसु, चउदस गुणवाणगाणि .. १ आ चतुर्थ कर्म ग्रंथर्नु षडशीतिक (८६ गाथावानो) न म छे.. नपिअजिणवत्तव्यान्थी चउद.सगुणठाणेमुक ए गाथा ४ प्रक्षिप्त छे तेथी तेनो गाथा अंक जुदो १ थी ४ लखेल छ । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] जोगाय ॥ उवयोगलेस बंधो-दोदीरण संत अपए ॥२॥ तह मूल चउदमग्गण-गणेसु बासहिउत्तरेसु च ॥ जिअगुणजोगुवयोगा, लेसप्पबहुं च छठाणा ॥३॥ (पागंतरं ॥ चनुदस मग्गणगणे-सु मूलपएसु बिसहि अरेसु ॥ जिथ गुण जोगुवयोगा, लेसप्पबहुत्त छ हाणा ॥३॥) चउदस गुणेसु जियजो-गुवयोग लेसा य बंधदेऊ य ॥ बंधाश् चउ थप्पा-बहुं च तो जावसंखाई ॥४॥ (पागंतरं। चउदस गुणगणेसु जिथजोगुवयोग लेस्स बंधा य ॥ बंधुदयुदीरणाओ, संतप्पबहुत्त दसठाणा ॥४॥) शह सुहुम बायरेगि-दि बितिचउअसन्निसन्नि पं. चिंदी ॥ अपजत्ता पज्जत्ता, कमेण चउदस जिअढाणा ॥२॥ बायरअसन्निविगले, अपजि पढम-विथ सन्नि अपजत्ते ॥ अजयजुअ सन्नि. पज्जे, सवगुणा मिच्छे सेसेसु ॥३॥ अपजत्तबकि कम्मुर-खमीसजोगा अपज्जसन्नीसु ॥ ते सविउवमीसएसु, तणुपज्जेसु उरलमन्ने ॥४॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६७] सो सन्निपजत्ते, उरलं सुहुमे सभासुतं चनसु॥ बायरि सविउव्विगं, पजसन्निसु बार उवयोगा ॥५॥ पज चरिंदिवसन्निसु, दुदंस दुअनाण दसम् चख्खुविणा ॥ सन्निअपज्जे मणना--ण चख्खुकेवल दुगविहूणा ॥ ६॥ सन्निदुगि बलेस अप-ज्जबायरे पढमचउ ति सेसेसु॥सतह बंधुदीरण, संतुदया थट्ट तेरससु॥७॥सत्तहजेगबंधा, संतुदया सत्त अट्ट चत्तारि ॥ सत्तटबपंचदुर्ग, उदोरणा सन्निपज्जत्ते ॥॥ गइ दिए अकाए, जोए वेए कसाय-नाणेसु ॥ संजम-दसण-खेसाभव--सम्मे सन्नि-आहारे ॥ ए ॥ सुरनरतिरिनिरयगई, गबिअतिथचउपणिं दि छकाया ॥ जूजलजलणाऽनिलवण, तसा य मणवयणतणुजोगा॥ १० ॥ वेधनरिस्थिनपुंसा, कसाय कोहमयमाय लोन त्ति ॥ मइसुअवहिमणकेवल, विजंगम सुथनाणसागारा ॥११॥ सामाश्य. अपरिहार सुहमअहखायदेसजयअजया ॥च ख्खु अचखू श्रोही, केवलदसण अणागारा ॥१२॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६८] किएहा नीला काऊ, तेऊ पम्हा य सुक्क नविअरा ॥ वेअगखश्वसममि--च्छ मीस सासाण सन्निवरे॥ १३॥ आहारेअर नेआ, सुरनिरय. विजंगमइ सुयोहिदुगे॥ सम्मत्ततिगे पम्हासुक्कासन्नीसु सन्निदुगं ॥ १४ ॥ तमसन्निअपज्ज. जुलं, नरे सबायरअपज्जतेकए ॥थावर गिदि पढमा--चन बार असन्नि दुदु विगले ॥ १५ ॥ दस चरम तसे अजया हारगतिरितणुकसायदु. अनाणे ॥ पढम तिलेसानविअर अचख्खुनपु. मिच्छिसवे वि ॥१६॥ पज्जसन्नी केवल दुगे, संजममणनाणदेसमणमीसे। पण चरमपज वयणे, तिय छ व पजिअर चख्खुमि॥१७॥ थीनरपणिंदि चरमा-चउ अणहारे दुसन्नि छ अपजा॥ ते सुहुमअपज्ज विणा, सासणि इत्तो गुणे बुच्छे ॥१७॥ पण तिरि चन सुरनिरए, नरसन्निपणिंदिलवतसि सवे ॥ इगविगलजूदगवणे, दुदु एगं गश्तसपनवे ॥ १५ ॥ वेअतिकसाय नव दस, लोग्ने चन अजय द ति अनापतिगे ॥ बारस Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६९] अचख्खुचख्खुसु, पढमा अहखाय चरम चउ ॥०॥ मणनाणि सग जयाई, समश्अध पठ पुन्नि परिहारे ॥ केवलागि दो चरमा, जया नव मसुशोहिगे ॥१॥ अम उपसमि चल वेअगि, खरए श्कार मिच्छतिगि देसे ॥ सुहुमे यसठाणं तेर-स जोगेयाहारसुकाए ॥॥थस्सन्निसु पढमगं, पढमतिलेसासु छच्च सु सत्त। पढमंतिमदुगअजया, अणहारे मग्गणासु गुणा ॥३॥ सच्चेअरमीस अस-च-मोसमणवयविउ. विआहार। ॥ उरलं मीसा कम्मण, इव जोगा कम्ममणहारे ॥२४॥ नरगश्पणिदितसतणु--अचख्खुनरनपुकसायसम्मगे।सन्निबलेसाहारग नवमश्सुअ अोहि दुगि सव्वे ॥२५॥ तिरिक्षथियजयसासण-अनाण उवसमअनव्वमिच्छेसु ॥ तेराहारदुगूणा, ते उरलदुगूणसुरनिरए ॥६॥ कम्मुरलदुगं थावरि, ते सविनविदुग पंच इगि पवणे ॥ छ असन्नि चरमवश्जुत्र, तेविजविण चन विगले ॥४॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७०] कम्मुरलमीस विणु मणवयसमश्यलेअचख्खु मणनाणे ॥ उरलगकम्मपढमं-तिममण व केवलघुगंमि ॥॥ मणवश्जरला परिहारि सुहुमि नव ते उ मीसि सविनवा ॥देसे सवि. उविगा, सकम्मुरलमीस अहखाए ॥ए॥ ति अनाण नाण पण चउ, देसण बार जिअलरुखणुवयोगा॥ विणु मणनाणकेवल, नव सुरतिरिनिरय अजएसु ॥३०॥ तसजोअवेअसुक्काहारनरपणिदिसन्निजवि सो। नयणेअरपणलेसा कसा दस केवल गूणा ॥ ३१ ॥ चउरिदिनसन्नि पुअना-ण ऽदंसणइगबितिथावरि अचख्खु ॥ तिअनाण दंसणगं, अनापतिगि अभविमिच्छद्गे ॥ ३२ ॥ केवलदुगे निअदुर्ग, नव तिअनाण विणु खश्यअहखाए ॥ दंसण नाणतिगं दे-सिमीसि अन्नाणमीसं तं ॥३३॥ मणनाणचख्खुवज्जा, अणहारि तिनि दंसण चउ नाणा ॥ चउनाण संजमोवस-मवेअगे ओहिदंसे अ॥ ३४ ॥ दोतेर तेर बारस, मणे Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] कमा अदु चउ च वयणे ॥ चउ दु पण तिन्नि काये, जिअगुणजोगोवयोगन्ने ॥ ३५ ॥ छसु खेसासु सगणं, एगिदिअसन्निजूदगवणेसु। पढमा चउरो तिन्नि उ नारयविगलग्गिपवणेसु ॥३६ ॥ अहखायसुहुमकेवलगि सुका छाधि सेसठाणेसु ॥ नरनिरयदेवतिरिया, थोवा दु असंखणंत गुणा ॥३॥ पण चउति पुएगिंदी, थोवा तिनि अहिया अपंतगुणा ॥ तस थोव असंखग्गी, लूजलानिल अहिअ वण पंता ॥३॥ मणवयणकाय जोगी, थोवा असंखगुण अणंतगुणा ॥ पुरिसा थोवा इत्थी, संखगुणा. पंतगुण कीवा ॥३॥ माणी कोही माई, लोभी अहिअ मणनाणिणो थोवा ॥ ओहि असंखा मइसुश्र, अहिअसमअसंख विव्हंगा॥जो केवलिणोणंतगुणा, मसुनअन्नाणि छतषण, तुला ॥ सुहुमायोका परिहार संखयहखाय खगुणा ॥४१॥ देम समश्य संखा, देस असखगुणपंतगुण अनेया । अवश्य संख प्रता, मोहित mal - - - - - Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७२] नयणकेवल अचख्खु ॥४२॥ पच्छाणुपुविखेसा, पोवा. दोसंख णंत दो अहिया ॥ अभवियर थोवणंता, सासण थोवोवसम संखा॥४३॥ मीसा संखा वेअग, असंख गुण खश्यमिच्छ दु अणंता ॥सन्नियर थोव एंताणहार थोवेअर असंखा ॥ ४४ ॥सवजिअगण मिच्छे, सग सासणि पण अपज सन्निदुगं॥ सम्मे सन्नी दुविहो सेसेसु सन्निपजत्ता॥४५॥ मिच्छदगि अजजोगा हार दुगुणा अपुवपणगे उ ॥ मणवइ उरलं सविनव मीसिसविउठव दुग देसे ॥ ४६॥ साहारग पमत्ते ते विजवाहारमीस विणु इयरे । कम्मुरलदुगंताश्म, मणवयण सजोगि न अजोगि ॥ ४७ ॥ तियनाणदुर्दसाइम दुगे अजय देसि नाणदंसतिगं ॥ ते मीसि मीसा समणा, जया केवलदु अंत दुगे ॥४७॥ सासणभावे नाणं, विउवगाहारगे उरल मिस्सं ॥ नेगिंदिसु सासाणो, नेहा हिगयं सुअमयंपि॥४ए ॥ छसु. सबा तेउतिगं, इगि छसु सुक्का अजोगि अबेसा॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] बंस मिच्छ अविर, कसाय जोग त्ति चउ हेऊ ॥ ५० ॥ अनिगहियमणनि गहिया भि: निवेसिअसंसश्चमणाजोगं ॥ पणमिच्छ बार अविर, मणकरणानिअमु बजिअवहो ।५॥ नव सोल कसाया पन-र जोग इय उत्तरा उ सगवएणा ॥ग.चल पण ति गुणेसु, चनति दु ग पच्चयो बंधो।एश चउमिच्छ मिच्छाविरश, पञ्चश्या सा य सोल पणतीसा॥जोग विणुति पञ्चश्याहारग जिणवज सेसाओ ॥ ५३ ॥ पणपन्न पन्न तिबबहि, अचत्त गुणचत्त छ चन दगवीसा।। सोलस दस नव नव स-त्त देउणो न उ अजोगिंमि ॥५४॥ पण न्न मिच्छि हारग दगूण सासाणि पन्न मिच्छ विणा ॥ मीसद्ग कम्मश्रण विणु, तिचत्त मीसे अह बचत्ता ॥४४॥ सदमीसकम्म अजए, अविरश्कम्मुरलमीस बिकसाए ॥ मुत्तु गुणचत्त देसे, वीस साहारदु पमत्ते ॥ ५६ ॥ अविर. गारतिकसा-यवज्ज अपमत्ति मीसगरहिया चवीस अपुवे पुण, मुवीस अविउविवादारा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] ॥ ५७ ॥ अछहास सोल बायरि, सुहुमे दस वेबसंजलणति विणा ॥ खीणुवसंति अलोला, सजोगि पुव्वुत्तसगजोगा ॥ २७ ॥ अपमत्ता सत्त-मीसथपुवबायरा सत्त ॥ बंध बस्सु. हुमो ए-ग मुवरिमाऽबंधगाऽजोगी ॥ ५ ॥ आसुहुमं संतुदए, अवि मोह विणु सत्त खा. (म ॥ चउ चरिमागे अह उ, संते उपसंति सत्तुदए ॥ ६७ ॥ नरंति पमत्तता, सग? मीसह वेअबाउ विणा ॥ छग अपमत्ताइ तथो, न पंच सुहुमो पणुवसंतो॥६१॥ पण दो खीण 3 जोगीणुदीरगु अजोगि थोत्र उवसंता ॥ संख गुण खीण सुहुमा, नियहिश्यपुत्व सम अहिया ॥ ६॥ जोगिअपमत्त श्यरे, संखगुणा देस. सासणामीसा॥अविरइ अजोगिमिच्छा, असंख चउरो ऽवे पंता ॥ ६३ ॥ उवसमखयमीसोदय परिणामा पुनव हार गवीसा ॥ तिअनेथ सन्निवाश्य, सम्मं चरणं पढमभावे ॥ ६४ ॥ बीए केवलजुअलं, सम्मं दाणाश्लद्धि पण च Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] रणं॥ तश्ए सेसुवयोगा, पण लकी सम्मविर उगं ॥६५॥ अन्नाणमसिहताऽसंजम खेसा कसाय गश्वेआ॥ मिच्छं तुरिए भवाऽनवत्तजिअत्त परिणामे ॥६६॥चउ चउगईसुमीसग, परिणामुदएहिं चउ सखश्एहिं॥ उवसमजुएहिं वा चत, केवलि परिणामुदयखइए॥६॥खय. परिणामे सिझा, नराण पणजोगुवसमसेढोए ॥ श्य पनर सन्निवाश्य, नेया वीसं असंनविणो ॥ ६० ॥ मोदेव समो मीसो, चउघासु अठ. कम्मसु अ सेसा॥ धम्मा पारिणामित्र, नावे खंधा उदए वि ॥ ६ए॥ सम्माश्चसु तिग चल, नावा चल पणुवसामगुवसंते ॥ चलखी. णापुवे ति,-नि सेसगुणगणगेगजिए ॥ ७० ॥ संखिज्जेगमसंखं, परित्तजुत्तनिअपयजुब तिविहं ॥ एवमणंतंपि तिहा, जहन्नमज्मुक्कसा सवे ॥ ६॥ लहु संखिच्चिअ अथो परं मजिम तु जा गुरुयं ॥ जंबूदीव पमाणय, चउपसपरूवणाश् श्मं ॥ ७ ॥ पवाणवडिअसला-ग पमि Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७६] समागमहासलागख्खा ॥ जोयणसहसोगाढा, सवेइअंता ससिहनरिआ ॥ ३ ॥ ता दोवुद. हिसु शकि-कसरिसवं खिविध निटिए पढमे ॥ पढमं व तदंतं चित्र, पुण जरिए तम्मि तह खोणे ॥ ४॥ खिप्प सलागपने-ग सरिसवो श्य सलागखवणेणं ॥ पुएणो बीयो अतयो, पुर्व पि व तम्मि उहरिऐ॥७५॥खीणे सलागि तश्ए, एवं पढमेहिं बीअयं भरसु॥ तेहिं तश्यं तेहि अ, तुरियं जा किर फुमा चउरो ॥१६॥ पढमतिपदवुद्धरिआ, दोवुदही पलचल सरिसवा य ॥ सबो वि एसरासी रूवूणो परमसंखिड ॥ ७ ॥ रूवजुयं तु परित्ता, संखं बहु अस्सरासिअन्नासे । जुत्ताऽसंखिज्ज लहु, श्रावलिआसमयपरिमाणं ॥ ७ ॥ विति चन पंचम गुणणे, कमा सगाऽसंख पढमचउसत्ता ॥ पंता ते रूवजुया, मज्झास्वूण गुरु पच्छा ॥णा श्य सुत्तुत्तं अन्ने, वग्गियमिकसि चमत्थयमसंखं ॥ होश असंखासखं, बहु रुवजुशं तु तं मझं Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७७] ॥॥ रुवूणमाश्मं गुरु, तिवग्गि तस्थिमे दसख्खेवे ॥ लोगागासपएसा, धम्माधम्मेगजिय देसा ॥ १ ॥ विश्बंधज्झवसाया, अणुनागा जोगलेअपलिभागा॥ दुएह य समाण समया, पत्तेअनिगोथए खिवसु ॥ ७॥ पुणरवि तंमि तिवग्गिय, परित्तणंत लहु तस्स रासीणं ॥ अ. ब्लासे लहु जुत्ताऽणंतं अनबजिअमाणं ॥३॥ तबग्गे पुण जायर, एंताएंत बहुतं च तिख्खुत्तो वग्गसु तह विन तं हो-३ पंतखेवे खिवसु श्मे ॥ ४ ॥ सिझा निगोअजीवा, वणस्सई काल पुग्गला चेव ॥ सबमलोगनहं पुण, तिव. ग्गिलं केवलदुगंमि ॥५॥ खित्तेऽणंताणंतं, हवे जिलं तु ववहर मज्झं ॥ श्य सुहमत्थ विआरो, लिहियो देविंदसूरीहिं ॥ ६ ॥ ॥ इति षमशीतिकाख्यः चतुर्थकर्मग्रंथः समाप्तः॥ ॥शतकनामा पंचमः कर्मग्रंथः प्रारच्यते ॥ नमिश्र जिणं धुवबंधो-दयसत्ताघाश्पुएण Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७८] परिअत्ता ॥ सेअर चउहविवागा, वुच्छं बंधविह सामी अ ॥१॥ वएणचउतेअकम्मा-गुरुलहु निमिणोवघायजयकुच्छा ॥मिच्छकसायावरणा, विग्धं धुवबंधि सगचत्ता ॥२॥ तणुवंगागिश्सं. घयण जागश्खगपुविजिणुसासं ॥ उज्जोयायवपरघा-तसवीसागोअवेयणियं ॥३॥ हा. साजुअलगवे-अबाउ तेउत्तरी अधुवबंधी॥ नंगा थणाश्साई, अणंतसंत्तुत्तरा चउरो ॥४॥ पढमबिआ धुवउदश्सु, धुवबंधिसु तअवज. जंगतिगं ॥ मिच्छम्मि तिन्नि नंगा, हा वि अधुवा तुरिअनंगा ॥५॥ निमिणथिरअथिरअगुरुय-सुहअसुहं तेअकम्मचवन्ना ॥ नाणं. तरायदंसण-मिच्छ धुवउदय सगवीसा ॥ ६ ॥ थिरसुनिअर विणु अधुव-बंधी मिच्छ विणु मोदधुवबंधी ॥ निदोवघायमीसं, सम्मं पणनवर अधुवुदया ॥७॥ तसवएणवीसलगते-अकम्म धुवबंधिसेस वेयतिगं॥ आगिइतिग वेअणियं, उजुअल सगउरल सासचऊ॥७॥ खगई तिरि• Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७९ ] डुगनी, धुवसंता सम्ममीसमणुअदुगं ॥ विजव्विकार जिणाऊ, हारसगुच्चा धुवसंता |||| पढमतिगुणेसु मिच्छं, नियमा अजया गे भज्जं ॥ ससाणे खलु सम्मं, संतं मिच्छाइदसगे वा ॥ १० ॥ सासणमीसेसु धुवं, मीसं मिच्छाइनवसु भयणाए ॥ आइदुगे ऋण नियमा, जइया मीसा नवगमि ॥ ११ ॥ याहारसत्तगं वा, सव्वगुणे बितिगुणे विद्या तित्थं ॥ नोजयसंते मिच्छो मुहुत्तं नवे तित्थे ॥ १२ ॥ केवलजुलावरणा, पण निद्दा बारसाइमकसाया ॥ मिच्छं ति सव्वधाई, चनापतिदंसणावरणा ॥ १३ ॥ संजल नोकसाया, विग्धं इा देसघा । पत्तेतणुट्टाऊ, तसवीसा गोदुगवणा ॥१४॥ सुरनर तिगुच्च सायं, तसदस तणुवंग वर चलरंसं ॥ परघासग तिरियाऊ, वरणचउ पणिदि सुभखगई ॥ १५ ॥ बायाल पुरणपगई- अपढमसंगणखगसंघयणा ॥ तिरिदुग का साथ नीओवघायइगविगल निरयतिगं ॥ १६ ॥ थावरदस घाई Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८०] वएणचउ-क घाश्पणयालसहिय बासीई॥पाव. पयडि त्ति दोसु वि, वएणागहा सुहा असुहा ॥१०॥नामधुवबंधि नवगं, दंसण पणनाण विग्घ परघायं ॥ भय कुच्छ मिच्छ सासं, जिण गुण. तीसा अपरियत्ता ॥१७॥तणुअठ्ठ वेथ दुजुअल, कसाय उज्जोअ गोयदुग निदा ॥ तसवीसाउ परित्ता, खित्तविवागाणुपुब्बीओ॥१५॥ घणघाइ. दुगोअजिणा, तसिअर तिगसुलग दुनगच. उसासं ॥ जाइतिग जिअविवागा, आऊ चउरो नवविवागा ॥२०॥ नामधुवोदय चनतणु-वघाय साहारणियरजोअतिगं ॥ पुग्गलविवागि बंधो, पयवि रसपएस ति॥१॥ मूलपयडीण अडस--त बेगबंधेसु तिन्नि नगारा ॥ अप्पत्तरा तिय चलरो, अवठ्ठिा न हु अवत्तवो ॥ २२ ॥ एगादहिगे जूओ, एगाईऊणगम्मि अप्पतरो॥ तम्मत्तो अवठियो, पढमे समए अवत्तव्यो ॥३॥ नवबच्चउदंसे दुदु, ति दु मोहे दुश्गवोस सत्तरस ॥ तेरस नव पण चउ ति दु, Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८१ शको नव अट्ठ दस सुन्नि ॥ २४ ॥ तिपणअट्ठ नवहिया, वीसा तीसेगतीस ग नामे ॥ छस्तगअतिबंधा, सेसेसु य ठाणमिकिकं ॥२५॥ ॥वीसयर कोमिकोमी, नामे गोए य सत्तरी मोहे ॥तीसियरचउसु उदही, निरय सुरामि तित्तीसा ॥२६॥ मुत्तुअकसाय वि, बार मुहुत्ता जहन्न वेयणिए ॥ अठ्ठ नामगोए-सु सेसएसुं मुहत्तंतो ॥ २७॥ विग्धावरण असाए, तीसं अट्ठार सुहुम विगलतिगे । पढमागिसंघयणे, दस पुसु(व)चरिमेसु उग वुढो ॥ २७ ॥ चालीस कसाएK, मिउलहुनिध्धुएहसुरहिसिय महुरे ॥ दस दोससमहिया, ते हाविदंबिलाईणं ॥ ॥ दस सुह विदगश्नच्चे, सुरगथिरछक्क पुरिसरश्हासे । मिच्ने सत्तरि मणुग, इत्थीसाएसु पएणरस ॥ ३० ॥ भयकुच्छ अरइसोए, विउवितिरिउरलनिरयडुगनीए ॥ तेअपण श्रथिरबक्के तसवउ थावरग पणिंदो ॥३१॥ नपुकुखगश् सासचउ, गुरुकख्खमरुख्खसोयगंधे॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [22] वीसं कोकाकोमी, एवइयाबाद वाससया ||३२|| गुरु कोडिकोड तो, तित्थाहारा मिन्नमुहु बादा || लहुविइ संखगुगुणा, नरतिरियाषाउ पतिगं ॥ ३३ ॥ इगविगल पुत्र कोडिं, पलियासंखंस वाउचर अमणा ॥ निरुवकमाए ब मासा, बाद सेसाण जवतंसो ॥ ३४ ॥ लहुविश्बंधो संजलण, लोहपण विग्घनाणंसेसु || भिन्नमुहुत्तं ते अट्ठ, जसुच्चे बारस य साए ||३५|| दो इगमा सो परुखो, संजलप तिगे पुमट्ठ वरिसापि ॥ से साक्कासाठ. मिच्छत्त विश्ए जं लद्वं ॥ ३६ ॥ यमुक्को सो गिंदिसु, पलियाSसंखं सही लहु बंधो || कमसो पणवीसाए, पन्नासय सहस संगुणि ॥ ३७ ॥ विगलि असन्निसु जिहो, कहियो पलसंखनागूणो ॥ सुर नरया समा दस, - सहस्स सेसाज खुमनवं ॥ ३८ ॥ वाण विलहुबंघे, भिन्नमुहू अबाद चाउजिट्टे वि ॥ केइ सुराउसमं जिण, मंतमुहू बिंति दारं || ३ || सत्तरस समहिआ किर, Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] गाणुपाणुंमि हुंति खुमनवा ॥ सगतीससयतिहुत्तर, पाणू पुण गमुहुत्तंमि ॥ ४० ॥ पणसहि सहस पणसय, उत्तीसा गमुहुत्त खुमनवा ॥ आवलियाणं दोसय, बप्पन्ना एगखुमनवे ॥४१॥ अविरयसम्मो तित्थं, आहारगामरान अ पमत्तो ॥ मिच्उद्दिट्टी बंधड़, जिटिश सेसपयडीणं ॥४२॥ विगलसुहुमाउगतिगं, तिरिमणुया सुरविनविनिरयदुगं ॥ एगिदिथावरायव, थाई. साणा सुरक्कोसं ॥ ४३ ॥ तिरिउरलदुगुज्जोअं, छिवह सुरनिरय सेस चउगआ॥आहारजिण मपुत्वो,ऽनियट्टि संजलणपुरिसलहुं ॥४४॥ साय. जसुच्चावरणा, विग्धं सुहुमो विउविछ असन्नी॥ सन्नी वि आउ बायर-पज्जेगिंदी उ सेसाणं ॥४५॥ उक्कोस जहन्नेयर, नंगा साई अणा धुव अधुवा ॥ चहा सग अजहन्नो, सेसतिगे आउचजसु दुहा ॥४६॥ चउन्नेलो अजहन्नो, संजलणावरण नवगविग्घाणं ॥ सेसतिगि साइ. अधुवो, तद घउद। सेसपयमीणं ॥ ४ ॥ सा. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] णाइअपुवंते, अयरंतो कोडिकोडियो न हिगो॥ बंधो नहु हीणो न य, मिच्छे नवियरसन्निमि ॥ ४ ॥ जश् लहुबंधो बायर, पज असंखगुण सुहमपज्जहिगो ॥ एसिं अपज्जाण लहू सुहुमेअर अपज्जपज्जगुरु ॥ ४ए ॥ लहु बिध पज्ज अपज्जेअर बिअगुरु हिगो एवं॥ति चउ यसन्निसु नवरं, संखगुणो बिधअमणपजते॥५०॥तो जइ जिट्ठो बंधो, संखगुणो देसविरयदस्सिअसे ॥ सम्मच सन्निचउरो, उइबंधाणुकमसंखगुणा ॥५१॥ सव्वाण वि जिपिई, असुहा जं सासंकिलेसेणं ॥ श्वरा विसोदियो पुण, मुत्तुं नरअमरतिरिआ ॥ ५५ ॥ सुहुमनिगोआश् खण--प्पजोगबायरयविगलअमणमणा । अपज्ज लहुपढमदुगुरु, पजहस्सियरो असंखगुणो ॥५३॥ असमत्ततसुक्कोसो, पजजहन्नियर एव विइगणा ॥अपजेयरसंखगुणा, परमपजविए असंखगुणा ॥५४॥ पश्खणमसंखगुणविरि-य अपज पइ १ अपजत्त, पाठांतरम् ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ so [ ८५ ] विश्मसंखलोग समा ॥ अज्झवसाया ाहिया, सत्तसु खासु असंखगुणा ॥ ५५ ॥ तिरिनिरयतिजोयाएं, नरजवजुअ सचउपल्ल तेसहं ॥ या• वरच उइग विगला - यवेसु पणसी इसयमयरा |२६| पढमसंघयणा गिइ, खगईछाए मिच्छ दुजगथी - पतिगं ॥ निानपुइत्थि दुतीसं, पणिदिसु - बंधविश् परमा ॥ ५७ ॥ विजयाइस गेविज्जे, तमाइ दहिसय दुतीस तेसहं ॥ पणसीइ सययबंधो, पल्लतिगं सुरविजव्विदुगे ॥ ५८ ॥ समयादसंखकालं, तिरिदुगनी एसु आज अंतमुहू ॥ जरोल असंखपरट्टा, सायडिईपुत्रको रूणा ॥ ५९ ॥ ज• लदिसयं, पणसी परघुस्सा से पणिदितसच गे ॥ बत्तीसं सुहविहगर, पुमसुजगतिगुच्चचजरंसे ॥ ६० ॥ असुहखगइजाइया गिइ- संघयणाहारनिरयुजोयद्गं ॥ धिरसुनजसथावरदस-नपुइ. त्थीदुजुअलमसायं ॥ ६१ ॥ समया दंतमुडुतं, मणुदुग जिणवइरजर लुवंगेसु ॥ तित्तीसयरा परमो, अंतमुहू लहु वि आऊ जिणे ॥ ६२ ॥ तिब्वो Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८६ ] असुरसुहाणं, संकेस विसो दियो विवज्जययो ॥ मंदरसो गिरिमदिरय जलरेहा सरिसक साएहिं । ६३ । चालाई सुहा, सुन्नदा विग्घदेस (धार) आवरणा ॥ पुमसंजल गिदुतिच-- वाणरसा सेस दुगमाई ||६|| निंबुच्छुरसो सहजो, दुतिचउभागक ढिक्कभागंतो ॥ गगणाई असुहो, सुहा सुहो सुहाणं तु ॥ ६५ ॥ तिव्वमिगथावरायव, सुरमिच्छा विगल सुहुम निश्यति ॥ तिरिमणुआ तिरिनरा, तिरिदुग बेवह सुरनिरया ॥ ६६ ॥ विजविसुराहरग दुगं, सुखगश्वन्नचनतेय जिणसायं ॥ समच परघातसदस-- पणिं दि सासुच्च खवगान ॥ ६७ ॥ तमतमगा उज्जोयं, सम्मसुरा मणुयउरलदुगवरं । पमन्तो अम राउ, चउगइ मिच्छात सेसाणं ॥ ६८ ॥ श्रीतिगं प्रणमिच्छं, मंदरसं संजमुम्मुदो मिठो ॥ बियतियकसाय विरय, देस पमत्तो रइसोए ॥ ६ । पमाई हारगदुगं, दुनिद्दसुवन्नदास रइकुच्छा ॥ भयमुवधायमपुढो, अनियही पुरि · Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] ससंजलणे ॥ ७० ॥ विग्यावरणे सुहुमो, मणुतिरिया सुहुम विगलतिगयाऊ॥वेउविबक्कममरा, निरया उज्जायउरलदुगं ॥ १॥ तिरिदुर्गनियं तमतमा, जिणमविरयनिरयविणिगथावरयं ॥ आसुहुमायवसम्मो व सायथिरसुहजसासियरा ॥७२॥ तसवन्नतेअचमणु-खगश्गपणिदिसासपरघुच्च ॥ संघयणागिश्नपुत्थी--सुभगियरति मिच्छ चनगइआ ॥७३॥ चतेश्रवन्न वेअणिअनामणुकोस सेसधुवबंधी ॥ घाईणं अजहन्नो, गोए दुविहो श्मो चउदा ॥४॥ सेसंमि दुहा ग दुग, णुगा जाअनवणंतगुणि वाणू ॥ खंधा उरलोचिअव-ग्गणा उ तह अगहणं तिरिया ॥३५॥ एमेव विवाहा-रतेअन्नासाणुपाणमणकम्मे ॥ सुहुमा कमावगाहो, ऊणूणंगुलअसंखंसो ॥ ६ ॥ एकिकहिया सिद्धा-णंतसा अंतरेसु अग्गहणा ॥ सवत्थ जहन्नुचिया, नियणंतंसा. दिया जिट्ठा ॥ ७ ॥ अंतिमचनफासदुगं-ध पंचवन्नरस कम्मखंधलं ॥ सबजियणंतगुणरस, Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tec 1 एगपएसो गाढं, मणुजुत्तमर्णतयपएसं ॥ ७८ ॥ निअस एसो गढे जियो || थोवो खाত तदंसो, नामे गोए समो हि ॥ ७९ ॥ विग्धावरणे मोहे, सवोवरि वेश्वणीय जेप्पे | तस्स फुडत्तं न दवइ, विई विसेसेण सेसाणं ॥ ८० ॥ निाजाइलद लिखा, पंतंसो होइ सबधाई | बज्झतीण विजजइ, सेसं सेसाण पइसमयं ॥ ८१ ॥ सम्मदेससवविरई, उ अणविसंजोअदंसखवगे | मोहसमसंतखवगे, खीएसजोगीश्वर गुणसेढी ॥ ८२ ॥ गुणसेढी दलरयणा समयमुदयादसंखगुण पाए || एअगुणा पुण कमसो, असंख गुणनिजरा जीवा ॥ ८३ ॥ पलियासंखंसमुहू, सासर गुण अंतरं इस्सं ॥ गुरु मिच्छ बे बसट्टी, इयरगुणे पुग्गल तो ॥८४॥ उद्धाराऊ खित्तं पलिय तिहा समयवाससयसमए || केसवहारो दीवो, दहि उतसाइपरिमाणं ॥ ८५ ॥ दद्वेखित्ते काले, जावे चजह दुह बायरो सुमो || होइ ऋतुस्सप्पिणि, " Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिमाणो पुग्गलपरहो ॥ ७६ ॥ उरलाइ सत्तगेणं, एगजियो मुअइ फुसिय सवअणू ॥ जि. त्तियकालि स थूलो दवे सुहुमो सगन्नयरा ॥ ७ ॥लोगपएसोसप्पिणि,-समया अणुभागबंधगणा य ॥ जह तह कममरणेणं, पुठ्ठाखित्ताश् थूलियरा ॥ ॥ अप्पयरपयमिबंधी, उक्कडजोगी अ सन्निपजत्तो॥कुण पएसुक्कोस, जहन्नयं तस्स वच्चासे ॥ नए ॥ मिच्छ अजयचल आज, बितिगुणविणु मोहि सत्त मिच्छाश छएहं सतरस सुहुमो, अजया देसा बितिकसाए ॥ ए ॥ पण अनिअट्टी सुखगश्,-नराउ सुरसुनगतिगविउविगं ॥समचरंस मसायं, वरं मिच्छो व सम्मो वा ॥ १ ॥ निदापयलाउजु. थल, भयकुच्छातित्थ संमगो सुजई॥ आहार पुगं सेसा, उक्कोसपएसगा मिच्यो ।ए। सुमुणी सुन्नि असन्नी, नरयतिगसुराउ सुरविउविगं ॥ सम्मो जिणो जहन्नं, सुहुमनिगोधाश्खणि सेसा ॥ ए३ ॥ दंसपछगभयकुच्छा, बितितुरिबक Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९०] सायविग्धनाणाणं ॥ मूलछगेऽणुकोसो, चउह पुहा सेसि सवत्थ ॥ ए ॥ सेढिअसंखिजसे, जोगहाणाणि पयमिग्इिनेआ॥ विश्बंधज्झवसाया, अणुनागठाणा असंखगुणा॥ए५॥ तत्तो कम्मपएसा, अणंतगुणिया तयो रसच्छेया, जोगा पयडिपएसं, विश अणुनाग कसायायो ॥ ए६ ॥ चउदसरज्जू लोगो, बुद्धिको सत्तरज्जुमाणघणो ॥ तद्दीदेगपएसा, सेढी पयरो थ तवगो ॥ए॥ अणदंसनपुंसित्थी, वेअच्छक च पुरिसवेयं च ॥ दो दो एगतिरए, सरिसे सरिसं उसमे ॥ एज॥ अणमिच्छमीससम्म, तिबाउ इगविगलथीण तिगुज्जुयं ।। तिरिनय थावरफुगं, साहारायव अडनपुसिथी।एए। छगपुंसंजलणादोनिद्द विग्यावरणखए नाणी। देविंदसूरि लिहिलं, सयगमिणं आयसरणहा ॥१०॥ शतकनामा पंचमः कर्मग्रंथः सम्पूर्णः॥ १ होइ सत्तरज्जुघणो, पाठांतरे॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] ___ ॐ परमगुरुच्य नमः ॥ श्री चंद्रमहत्तराचार्य प्रणीत सप्ततिका नामा ... षष्ठः कर्मग्रंथः समारज्यते ॥ .... सिद्धपहि महत्थं, बंधोदयसंतपयमिगणाणं ॥ वुच्छे सुण संखेवं, नीसंदं दिठिवायस्स ॥१॥ कर बंधतो वेअर, कर कश् वा पयमिसं. तगणाणि ॥मुलुत्तर पगईणं, जंगविगप्पा मुणेय व्या (उबोधव्वा) ॥२॥ अठविहसत्तछब्बं,धएसु, अद्वेव उदय संतंसा ॥ एगविहे तिविग. प्पो, एग विगप्पे अबंधमि ॥३॥ सत्तबंध अह्रद-यसंततेरससु जीव गणेसु ॥ एगंमि पंच जंगा, दो नंगा हुंति केवलिणो ॥ ४ ॥ अट्ठसु एग विगप्पो, छस्सु वि गुणसन्निएसु विगप्पा ॥ पत्तेयं पत्तेयं, बंधोदयसंत कम्माणं ॥५॥पंच नव पुएिण अट्ठा-वीसा चउरो तहेव बायाला ॥ दुएिण य पंच य जणिया, पयडीओ आणुपुव्वीए ॥६॥ बंधोदयसंतसा, नाणावरणंतराइए Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] पंच ॥ बंधोवरमे वि तहा उदय-संता हुंति पंचेव ॥ ७॥ बंधस्स य संतस्स य, पगश्ठाणा तिन्नि तुबाई॥ उदयट्ठाणा दुवे, चउ पणगं दंसणावरणे ॥ ७॥ बीयावरणे नवबं-धएसुच. उपंचउदय नवसंता ॥ छच्चउबंधे चेवं, चउबंधु. दए छवंसा य ॥णा उवरयबंधे चल पण, नवंस चउरुदय छच्च ऊसंता ॥ वेयणियाउअगोए, विभज मोहं परं वुच्छं ॥ १०॥ गोअम्मि सत्त जंगा, अ य नंगा हवंति वेयणिए ॥ पण नव नव पण नंगा, आउचऊक्के वि कमसो उ ॥ ११ ॥ बावीस इक्कवीसा सत्तरसा तेरसे व नव पंच ॥ चउ तिग दुगं च श्क्कं, बंधठ्ठाणाणि मोहस्स ॥१२॥ एर्ग व दो व चउरो, एत्तो एगाहिया दसुक्कोसा ॥ ओहेण मोहणिज्जे, उदए गणाणि नव हुँति ॥ १३॥ अठ्ठय सत्तय छ चन तिगद्गएगाहिआ नवे वीसा ॥ तेरस १ बंधोवरमेवि उदय संतंसा हुंति पंचेव, पाठा० ॥ २ अढग सत्तग. पाठा. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९] वारिकारस, श्त्तो पंचाएगणा ॥१४॥ संतस्स पयडिगणा-णि ताणि मोहस्स हुँति पन्नरस॥ बंधोदयसंते पुण, जंगविगप्पे (प्पा) बहू जाण ॥१५॥ उ ब्बावीसे चल ग-वीसे सत्तरस तेरसे दो दो॥नवबंधगे विएिणन शकिकमयो परं नंगा ॥१६॥ दस बावी से नव ग-वीसे सत्ताइ उदयकम्मंसा ॥ बाई नव सत्तरसे, तेरे पंचाइ अठेव ॥ १७ ॥ चत्तारिआइ नवबंघएसु, उक्कोस सत्तमुदयंसा ॥ पंचविदबंधगे पुण, उ. दयो पुएहं मुणेअव्वो ॥१७॥ इत्तो चउबंधार, शक्किक्कुदया हवंति सव्वे वि बंधोवरमे वि तहा, उदयाभावे वि वा हुजा ॥१ए॥ श्क्कगबक्किक्कारस, दस सत्त चउक्क श्क्कगं चेव।। एए चळवीसगया, बार पुगिक्कम्मि श्क्कारा॥ (तथा मतांतरे, चउवीस गिक्क मिक्कारा) ॥२०॥ नवतेसीश्सएहिं, उदयविगप्पेहि मो. हिआ जीवा ॥ अउणुत्तरिसीआला, पयविंदस १ गणाई. पाठा० ॥ २ तेरसि पादां० Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] एहि विन्नेआ ॥१॥ नवपंचाणउअसए उदयविगप्पेहि मोहिया जीवा ॥ अनणत्तरि एगुत्तरि, पयविंदसएहि विन्नेआ ॥२॥ तिन्नेव य बावीसे, गवीसे अट्टवीस सत्तरसे ॥ छच्चेव तेर नव बंधएसु पंचेव गणाणि ॥३॥ पंचविदचउबिहेसु, छक्क सेसेसु जाण पंचेव ॥ पत्तेचं पत्ते, चत्तारि उ बंधुवुच्छेए ॥ २४ ॥ दसनवपन्नरसाई, बंधोदयसंतग्याडगणाणि ॥ मणियाणि मोहणिज्जे, इत्तो नामं परं वुच्छं ॥ २५॥ तेवीस पन्नवीसा, छठवीसा अठवीस गुणतीसा॥ तीसेगतीसमेगं, बंधठ्ठाणाणि नामस्स ॥२६॥ चल पणवीसा सोलस, नव बाण. उईसया य अडयाला॥ एयानुत्तर बाया-लसया शक्किक्कि बंधविही ॥ २७॥ वीसिगवीसा च. उवी-सगाउ एगाहिया य गतीसा॥ उदयद्या. पाणि भवे, नव अ य हंति नामस्त ॥२॥ इक्क बियालिकारस, तित्तीसा छस्सयाणि तितीसा ॥ बारससत्तरससया,-पहिगाणि विपंच Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९५] सीहिं ॥३॥अणतोसिक्कारस, सया हिगा सतरपंचसटोहिं ॥ इक्किक गं च वीसा,-दहृदयंतेसु उदयविही ॥३०॥ तिदुननई गुणनउई, अडसी छलसी असीइ गुणसीई ॥ अट्टय छप्पन्नत्तरि, नव अव्य नाम संताणि ॥३१॥ अट्टय बारस बारस, बंधोदयसंतपय डिगणाणि॥ोहे. णाएसेण य, जत्थ जहा संभवं विभजे ॥३॥ नवपणगोदयसंता, तेवोसे पएणवीस छव्वीसे ॥ अट्ठ चउरहवोसे, नव सत्तिगुणतीसतीसम्मि ॥३३॥ एगेगमेगतीसे एगे एगुदय अठ्ठ संतमि॥ उवरयबंधे दस दस, वेयगसंतंमि गणाणि ॥३॥ तिविगप्पपगाणेहिं जोवगुणसन्निएसुगणे सु॥ जंगा पजियवा, जत्थ जहा संनवो नव॥३५॥ तेरससु जीवसंखे-वएसु नाणंतरायतिविगप्पो॥ श्कमि तिविगप्पो, करणं पइ इत्य अविगप्पो ॥३६ ॥ तेरे नव चल पणगं, नव संत्तेगम्मि जंगमिक्कारा ॥ वेअणिअआउगोए, विजज्ज मोहं परं वुच्छं ॥ ३२ ॥ पजत्तगसन्निवरे, अह. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९६] चउकं च वेयणियनंगा ॥ सत्तय तिगं च गोए, पत्तेयं जीवगणेसु ॥ ३० ॥ पजत्ताऽपजत्तग,समणा पजत्तश्रमण सेसेसु॥ अठ्ठावीसं दसगं, नवगं पणगं च आउस्स ॥ ३५॥ अस पंचस एगे, एग पुगं दस य मोहबंधगए। तिग चल नव उदयगए, तिगतिग पन्नरस संतंमि॥४॥ पण जुग पणगं पण चल, पणगा हवंति तिएणे व॥ पण छप्पणगं छन, पणगं अट दसगं ति ॥४१॥ सत्तेव अपात्ता, सामी सुहमा य बायरा चेव॥ विगलिंदिया उय तिनिय तह असन्नी य सन्नीया ॥४२॥ नाणंतराय तिविहमवि दससु दोहुति दोसु गणेसु ॥ मिच्छासाणे बी,ए नव चउ पण नव य संतंसा॥४३॥ मिस्साई नियट्टीत, बचन पण नव य संतकम्मंसा॥ चनबंध तिगे चर्ड पण, नवंस मुसु जुअल छस्संता ॥४४॥ जवसंते चज पण नव, खाणे चनरुदय छच्च चल सत्ता ॥ वेयणिययाउगोए, विभज्ज मोहं परं कुच्छ ॥ ४५ ॥ चउ छस्सु दुन्नि सत्तसु, एगे चउ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९७१ गुणिसु वेश्रणिधनंगा ॥ गोए पण चळ दो तिसु, एगट्टसु दुन्नि कमि ॥४६॥ अठच्छाहि गवीसा, सोलस वीसं च बारस दोसु ॥ दो चन तोसु कं, मिच्छाइसु आजए नंगा॥४॥ गुणगणगेसु अहसु, इकिकं मोहबंधगणं तु॥ पंचानिअहिठाणे, बंधोवरमो परं तत्तो ॥ ४ ॥ सत्ताइ दस उ मिच्छे, सासायणमीसए न. कोसा ॥ छाई नव उ अविरए, देसे पंचाई अठेव ॥ ४ए ॥ विरए खोवसमिए, चउराई, सत्त छच्च पुर्वमि ॥ अनियट्टिबायरे पुण, श्को व मुवे व उदयंसा ॥ ५७ ॥ एगं सुहुमसरागो, वे. एइ अवेअगा नवे सेसा ॥ नंगाणं च पमाणं, पुवुद्दिष्टेण, नायचं ॥५१॥ इक्केछक्केकारे सेव कारसेव नव तिन्नि ॥ एए चळवीसगया, बार पुगे पंच कमि ॥ ५५ ॥ बारसपणसठिसया, उदयविगप्पेहिं मोहिया जीवा ॥ चुलसीई सत्तुत्तरि, पविंदसएहि विन्नेया ॥५३।। बग चन चउ चउर-छगा य चउरो अ हुंति चल. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९८] वीसा ॥ मिच्छाश्अपुवंता, बारस पणगं च अ. निअट्टी ॥ ५४ ॥ जोगोवोगलेसा-इएहिं गु. णिआ हवंति कायवा ॥ जे जत्य गुणगणेसु, हवंति [होति ] ते तत्थ गुणकारा ॥५५॥ अट्ठी बत्तीसं, बत्तीसं सहिमेव बावन्ना ॥ चो. थाल दोसु वीसाविय मिच्छामाईसु सामन्नं ॥ ॥ ५६ ॥ तिन्नेगे एगेगं, तिग मोसे पंच चनसु तिग पुवे [ नियहिए तिन्नि ] ॥ श्कार बायरंमि उ, सुहुमे चल तिन्नि जवसंते ॥५७॥ छन्नवछकं तिग सत्त, गं उगतिगपुगं तिगढ़ घऊ॥ उगछच्चन जुग पणचज, चमगचऊ पणगएगचउ ॥जा एगेगम गेगम बनमत्यकेवलजिणाएं एगचऊ एग चऊ, अट्टचन दु छक्कमुदयंसा ॥एए॥ चउ पणवीसा सोलस, नव चत्ताला सयाय बाणन ॥ बत्तीसुत्तराया,-लसया मिच्छस्स बंधविही ॥६० ॥ अठसया चउसहो, बत्तीससयाई सासणे नेआ ॥ अठ्ठावोसाईसु, सवाणटाहिय बन्नई ॥६१॥ एगचतिगार Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९९] बत्ती-स उसय एगतीसिगारनवनउई ॥ सत्त. रिगसि गुत्तिस,चनद गारचसहि मिच्बुदया ॥६॥ बत्तीस दुन्नि अट्टय, बासीश्सयायपंच नव उदया। बारहिथा तेवीसं, बावन्निकारस सया य ॥६३ ॥ दो उक्क चउक्कं, पण नव श्क्कार बक्कगं उदया ॥ नेरआश्सु सत्ता, ति पंच श्क्कारस चउक्कं ॥ ६॥ग विगलिंदिय सगले, पण पंच य अठ्ठ बंधगणाणि ॥ पण बक्किक्कारुदया, पण पण बारस य संताणि ॥६५॥ श्य कम्मरगश्ठाणा-णि सुछ बंधुदय संतकम्माणं ॥ गश्आएहिं असु, चनप्पयारेण नेत्राणि ॥ ६६ ॥ गइ दिए थ काए, जोए वेए कसाय नाणे अ ।। संयम दसण लेसा, जव संमे सन्नि बाहारे ॥ ६७ ॥ संतपय परूवणया, दवपमाणं च खित्तफुसणाय ॥'कालंतरं च नावो अप्पाबहुयं च दाराई॥६॥ उदयस्सुदीरणाए, सामित्ताओ न विजश् विसेसो ॥ मुत्तण य १ कालो य अतरं भाग भावे अपाबहुचे. पाठा. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० इगयालं, सेसाणं सवपयडीणं ॥ ६ ॥नाणंत. रायदसगं, दंसणनव वेयणिज्जमिच्छत्तं ॥ संमत्तंलोभवेश्याआणि नवनाम उच्चं च ॥ ७० ॥ मणुयगइ जाइ तस बा-यरं च पज्जत्त सुनगश्राऊं॥ जसकित्ती तित्थयरं, नामस्त हवंति नव एया [ उच्चं] ॥१॥ तित्थयराहारगविर हिाथो अज्झे सव्वपयडीयो ॥ मिच्छत्तवेअगो सा-साणो गुणवोससेसायो ॥ ७ ॥ छा. यालसेस मीसो,अविरयसम्मो तिमालपरिसेसा तेवन्नदेसविरो,विरयो सगवन्नसेसायो॥३॥ श्गुसहिमप्पमत्तो, बंधश् देवानअस्स श्यसेवि॥ अष्टावएणमप्पुबो बप्पन्नं वा वि छवीसं। बावी. सा एगणं, बंधश्वट्ठारसंतमनियट्टी ॥ सत्तर सुहुमसरागो,सायममोहो सजोगित्ति ॥३५॥ एसोउ बंधसामि-त ओहो गइआइए सु वि तदेव ॥ ओहायो साहिजर, जत्थ जहा पयडिसन्नावो ॥७६ ॥ तित्थयरदेवनिरिआ-उधेच तिसु तिसु गईसु बोधवं ॥ असेसा पयमीयो, हवंति सबा. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०१ सु वि गईसु ॥ ७ ॥ पढमकसायचउक, देसण. तिग सत्तगा वि उवसंता॥अविरयसम्मत्तायो, जाव नियहित्तिनायबा ॥ ७० ॥ सत्तट्ट नव य पनरस, सोलस अट्ठारसेव [गण ] श्गवीसा॥ एगाहिद चवीसा, पणवीसा बायरे जाण ॥ ॥ ए ॥ सत्तावीसं सुहमे, अठ्ठावीसं च मोह. पयमीयो॥उवसंतवीरागे, उवसंता हुँति नाय. वा ॥ ७० ॥ पढमकसायचनकं, इत्तो मिच्उत्तमीससम्मत्तं ॥ अविरयसम्मे देसे, पमत्ति अपमत्ति खीयंति ॥१॥ अनिअहिबायरे थी--- गिद्वितिग निरयतिरिअनामाो ॥ संखिज्जश्मे सेसे, तप्पायोगायो खीयंति ॥॥ इत्तो हणइ कसाय-ट्टगं पि पच्छा नपुंसगं स्थी॥तो नोकसायबक्कं, बुदइ संजलणकोदम्मि ॥३॥ पुरिसं कोहे कोहं, माणे माणं च बुदश्मायाए ॥ मायं च बुहर लोहे, लोहं सुहुमं पि तो दण ॥४॥खीणकप्तायडुचरिमे, निदं पयलं च हिणइ छउमत्थो ॥ बावरणमंतराए, छउमत्थो Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०२) चरमसमयम्मि ॥५॥ देवगश्सहगयायो, . चरिमसमयं नविअंमि खीअंति॥ सविवागेअरनामा, नीआगो पि तत्थेव ॥ ६॥ अन्नयरवेअणिज्ज, मणुयाउअमुच्चगोअनवनामा ॥ वे. एइ अजोगिजिणो, उक्कोस जहन्नमिक्कारे ॥७॥ मणुअगजाश्तसबा-यरं च पजत्तसु. भगभाज्जं ॥ जसकित्ती तित्थयरं, नामस्स हवंति नव एआ ॥७॥ तच्चाणुपुव्विसहिया, तेरस भवसिद्वियस्स चरमंमि॥संतंसगमुक्कोसं, जहन्नयं बारस हवंति ॥जए॥ मणुअगसहगयायो, भव खित्तविवागजिय विवागायो॥वेअ. णिअअन्नयरुच्चं, चरमसमयं मि खीयंति ॥०॥ अहसुश्यसयल जगसिह-र मरुवनिरुवमसहावसिद्धिसुहं ॥ अनिहणमब्बाबाहं, तिरयणसारं अणुहवंति ॥१॥ पुरहिगम निउणपरम-स्थरुश्रबहुलंगदिठिवायायो ॥ अत्था अणुसरिअव्वा, बंधोदयसंतकम्माणं ॥ए॥जो जत्थ अपडिपुन्नो, अत्थो अप्पागमेण बद्धोवितं खमिकण . Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] बहुसुश्रा, पूरेऊणं परिकहंतु ॥ ए३॥ गाहगं सयरीए, चंदमहत्तरमयाणुसारीए ॥ टीगाइ नियमियाणं, एगणाहो न श्यो॥ए ॥ ॥ सप्ततिकानामा षष्ठः कर्मग्रंथः समाप्तः॥ ॥ श्री रत्नाकर पञ्चोशी ॥ श्रेयः श्रियां मंगलके लिसन, नरेंद्रदेवेंद्रनताघ्रिपद्म सर्वज्ञ सर्वातिशयप्रधान, चिरं जय ज्ञानकलानिधान ॥१॥ जगत्त्रयाधार कृपावतार, मुरिसंसार विकारवैद्य ॥ श्री वीतराग त्वयि मुग्धनावाद्विज्ञ प्रनो विज्ञपयामि किंचित् ॥२॥ किं बाललीलाकलितो न बालः, पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः ॥ तथा यथार्थ कथयामि नाथ, निजाशयं सानुशयस्तवाग्रे॥३॥ दत्तं न दानं परिशीलितं च, न शालिशीलं न तपोऽजितप्तं ॥ शुलो न भावोऽप्यनवनवेऽस्मिन्, चिनो मया ज्रांतमहो मुधैव ॥४॥ दग्धोमिना क्रोधमयेन Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] दष्टो, उष्टेन लोनाख्यमहोरगेणं ॥ ग्रस्तोऽनिमानाजगरेण माया जालेन बद्धोऽस्मि कथं नजे त्वाम् ॥५॥ कृतं मयाऽमुत्र हितं न चेह, लोकेऽपि लोकेश सुखं न मेऽजुत् ॥ यस्मादृशां केवलमेव जन्म, जिनेश जझे भवपूरणाय ॥ ६॥ मन्ये मनो यन्न मनोज्ञवृत्तं, त्वदास्यपीयूषमयूखलानात् द्रुतं महानंदरसं कठोर,मस्मादृा देव तदश्मताऽपि॥७॥ त्वत्तः सुष्माप्यमिदं मयाप्तं, रत्नत्रयं चरि भवज्रमेण ॥ प्रमादनिद्रावशतो गतं तत्, कस्याग्रतो नायक पूत्करोमि ॥॥ वैराग्यरंगः परवंचनाय, धर्मोपदेशो जनरंजनाय ॥ वादाय विद्याऽध्ययनं च मेजुत्, कियद् ब्रुवे हास्यकरं स्वमीश ॥ ए॥ परापवादेन मुखं सदोषं, नेत्रं परस्त्रीजनवीक्षणेन॥चेतः परापाय विचिंतनेन, कृतं जविष्यामि कथं विनोऽहं ॥१०॥ विमंबितं यत्स्मरघस्मरार्ति, दशावशास्वं विषयांधलेन ॥ प्रकाशितं तनवतो हियैव, सर्वज्ञ सर्व स्वयमेव वेसि ॥११॥ध्वस्तोऽन्यमंत्रः परमेष्ठिमंत्रः, कुशा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] स्त्रवाक्यैर्निहतागमोक्तिः ॥ कर्तुं वृथा कर्म कुदे. वसंगा, दवांच्छि हि नाथ मतिज्रमो मे ॥१॥ विमुच्य दृग्लदयगतं नवंतं, ध्याता मया मूढ. धिया हृदंतः ॥ कटाक्षवदोजगजीरनाजि-कटी. तटीयाः सुदृशां विलासाः ॥ १३ ॥ लोलेक्षणा वक्त्रनिरीक्षणेन, यो मानसे रागलवो विलग्नः॥ न शुद्धसिद्धांतपयोधिमध्ये, धौतोऽप्यगातारक कारणं किम् ॥१४॥ अंगं न चंगं न गणो गुणानां, न निर्मलः कोऽपि कलाविलासः ॥ स्फुरत्प्रभान प्रजुता च काऽपि, तथाऽप्यहंकारकदर्थितोहं ॥१५॥यायुगलत्याशु न पापबुद्धि-र्गतं वयो नो विषयाजिलाषः ॥ यत्नश्च जैषज्यविधौ न धर्म, स्वामिन्महामोह विमंबना मे ॥१६॥ नाऽत्मान पुण्यं न नवो न पापं, मया विषानां कटुगीरपीयम् ॥ अधारि कर्णे त्वयि केवलार्के, परिस्फूटे सत्यपि देव घिमां ॥१७॥ न देवपूजा न च पात्रपूजा, न श्राइधर्मश्च न साधुधर्मः। लब्ध्वापि मानुष्यमिदं समस्तं, कृतं, मयाऽरएयवितापतु Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०६] व्यं ॥ १०॥ चक्रे मयासत्स्वपि कामधेनुकदम द्रुचिंतामणिषु स्पृहार्तिः ॥ न जैनधर्मे स्फुटशमदेऽपि, जिनेश मे पश्य विमूढभावम् ॥ १५॥ सदनोगलीला न चरोगकीला, धनागमो नो निध. नागमश्च ॥ दारा न कारा नरकस्य चित्ते, व्य. चिंति नित्यं मयकाऽधमेन ॥ २० ॥ स्थितं न साधोर्हदि साधुवृत्तात्, परोपकारान्न यशोऽर्जितं च॥ कृतं न तीर्थोद्धरणादिकृत्यं, मया मुधा हा. रितमेव जन्म ॥१॥ वैराग्यरंगो न गुरूदितेषु, न पुर्जनानां वचनेषु शांतिः॥ नाऽध्यात्मवेशो मम कोऽपि देव, तार्यः कथंकारमयं जवाब्धिः ॥२२॥ पूर्वे नवेऽकारि मया न पुण्य-मागामि जन्मन्यपि नो करिष्ये ॥ यदीदृशोऽहं मम तेन नष्टा, जूतोदनवनाविनवत्रयीश ॥२३॥ किं वा मुधाऽहं बहुधा सुधाजुक्-पूज्य त्वदग्रेच. रितं स्वकीयं । जस्पामि यस्मात् त्रिजगत्स्वरूपनिरूपकस्त्वं कियदेतदत्र॥२४॥दीनोहार धुरंधरस्त्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपा-पात्रं नात्र जने Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] जिनेश्वर तथाप्येतां न याचे श्रियम् ॥ किंवईनिदमेव केवलमहो सब्दोधिरत्नं शिव-श्रीरत्नाकरमंगलैकनिलय श्रेयस्करं प्रार्थये ॥२५॥ ॥इति रत्नाकर पच्चीशी समाप्ता॥ ॥ अथ श्रीवृद्धि विजयजीकृत दशवकालिकनी सज्झाय प्रारंज॥ ॥ तत्र प्रथमाध्ययनसज्झाय प्रारज्यते ॥ ॥ सुग्रीव नयर सोहामणुंजी ॥ए देशी ॥ श्री गुरुपदपंकज नमी जी, वलि धरी धर्मनी बुद्धि ॥ साधुक्रिया गुण भांखशुं जी, करवा समकित शुद्धि ॥ मुनीश्वर धर्म सयल सुखकार ॥ तुम्हें पालो निरतिचार ॥ मुनीश्वर, धर्म स. यल सुखकार ॥१॥ ए आंकणी ॥ जीवदया संयम तवो जी, धर्म ए मंगलरुप॥जेहनां मनमा नित्य वसे जी, तस नमे सुर नर जूप ॥ मु॥ ॥ध०॥२॥ न करे कुसुमकिलामणा जी ॥वच Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रतो जिम तरुवृंद ॥ संतोसे वलि आतमा जी, मधुकर ग्रहि मकरंद॥मु०॥ध० ॥३॥ तेणि परें मुनि घर घर भमी जी, सेतो शुद्ध आहारं ॥न करे बाधा कोइने जी, दिये पिंडने आधार।मु० ॥०॥४॥ पहिले दशवकालिके जी, अध्ययने अधिकार ॥ भांख्यो ते बाराधता जी, वृद्धिविजय जयकार ॥ मु० ॥ ध० ॥५॥ इति ॥ ॥अथ द्वितीयाध्ययनसज्झाय प्रारंजः॥ ॥शील सुहामणुं पालीयें ॥ ए देशी॥ नमवा नेमी जिणंदने, राजुलरुडो नाररे॥ शीलसुरंगी संचरे, गोरी गढगिरनार रे ॥१॥ शीख सुहामणी नन धरो ॥ तुमें निरुपम नि. ग्रंथ रे॥सवि अभिलाष तजी करी, पालो संयमपंथ रे ॥शी॥२॥ पाउत जीनी पद्मिनी, गश् ते गुफा मांहि तेम रे ॥ चतुरा चिर निचोवती, दीगी रुषि रहनेमरे ॥ शी० ॥ ३॥ चित्त चले चारित्रियो, वयण वदे तव एम रे॥ सुख जोग Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] वीय सुंदरी, आपणे पूरण प्रेम रे ॥ शी० ॥४॥ तव रायजादो एम भणे, घुमा एम शुं जांखे रे ॥ वयणविरुफ ए बोलतां, कां कुललाजन राखे रे॥ शी० ॥ ५ ॥ हुं पुत्री उग्रसेननी, अने तुं यादवकुलजायो रे ॥ ए निर्मल कुल थापणां, तो केम अकारज थायो रे ॥शी०॥६॥ चित्त चलावी एणि परें, निरखीश जो तुं नारी रे ॥ तो पवनाहत तरुपेरें, थाइश अथिर निरधारी रे ॥शी० ॥७॥ लोग भला जे परिदर्या, ते वली वांजे जेह रे ॥ वमननक्षी कूतर समो, कहीये कुकर्मी तेह रे ॥ शो ॥॥ सरप अंगधक कुलतणा, करे अग्नि प्रवेश रे ॥पण वमियुं विष नवि लिये, जुयो जातिविशेषरे॥शी०॥ ॥ ए॥तिम उत्तमकुल ऊपना, डोमी जोगसंजोगरे ॥ फरि तेहने वांडे नहि, हुवे जो प्राणवियोगरे॥ शी० ॥१० चारित्र किम पालो शके, जो नवि जाये अनिलाष रे॥ सीदातो संककरूपथी, पग पग श्म जिन जोखे रे॥२०॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] १२ ॥ नोग निरीह रे || ॥ ११ ॥ जो कण कंचन कामिनी, इच्छता अने जोगवता रे ॥ त्यागी न कदियें तेहनें, जो मनमें श्री जोगवता रे ॥ शी० ॥ संयोग भला लहि, परदरे जे त्यागी तेज भांखियो, तस पद नमुं निशदीद रे ॥ शी० ॥ १३ ॥ एम उपदेशने अंकुरों, मयगल परें मुनिराजो रे ॥ संयम मारग स्थिर कर्यो, सार्थ वंछित काजो रे || शो ||१४|| ए बीजा अध्ययनमां, गुरु हित शीख पयासें रे ॥ लाभविजय कविरायनो, वृद्धिविजय एम जासे रे ॥ ॥ शी० ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥ अथ तृतीयाध्ययनसझाय प्रारंभ || ॥ पंच महाव्रत पालीयें ॥ ए देशी ॥ आधाकर्मी आहार न लीजियें, निशिनोजन नवि करीयें || राजपिंडने सज्ञातरनो, पिंड वली परहरिये के ॥ १ ॥ मुनिवर ए मारग अनुसरियें ॥ जिम भवजलनिधि तरीयें ॥ मुनि० ॥ ए० ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१११] एकणी ॥ साहामो खाएयो आहार न लीजे, नित्य पिंक नवि दरीयें । शी इच्छा एम पूछी थापे, ते नवि अंगीकरियें के मु० ||२|| कंद मूल फल बीज प्रमुख वली, लवणादिक सचित्त ॥ वर्जे तिम वली नवि राखीजें, तेह सन्निधि निमित्त के ॥ मु० ॥ ३ ॥ ऊवटपुं पीठि परिहरियें, स्नान कदा नवि करियें, ॥ गंध विलेपन नवि खाचरियें, अंगकुसुम नवि धरिये के ॥ ० ॥ ४ ॥ गृहस्थनुं भाजन नव वावरिये, परहरियें वली आजरण || छाया कारण छत्र न धरियें, धरे न ऊपानह चरण के ॥ मु० ॥ ५ ॥ दाहण न करे दर्पण न धरे, देखे नवि निज रूप || तेल चोपडीयें नें कांकसी न कीजें, दीजें न वस्त्रें धूप के ॥ मु० ॥ ॥ ६ ॥ मांची पलंग नवि बेसीजें, किजें न विंजणे वाप | गृहस्थ गेह नवि बेसिजें, विए कारण समुदाय के ॥ मु० ॥ 9 ॥ वमन विरेचन चिकि त्सा, अग्नि आरंभ नवि कीजें ॥ सोगां सेज Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११२] प्रमुख जे क्रीमा, ते पण सवि वरजीजें ॥ मु॥ ॥७॥ पांच इंद्रिय निजवश आणो, पंचाव पञ्चक्खीजे ॥ पंच समिति त्रण गुप्त धरीने, छ. काय रक्षा ते कीजे के ॥ मु०॥ ए॥ ऊनाले यातापना लीजें, शीयाले शीत सहीयें ॥ शांत दांत थर परिसह सहेवा, स्थिर वरसाले रहियें के ॥ मु० ॥१०॥ श्म पुक्कर करणी बहु करतां, धरतां नाव उदासी॥ कर्म खपावी केश हूथा, शिवरमणीशं विलासी के ॥ मु० ११ ॥ दशवैका. लिक त्रीजे अध्ययनें, नांख्यो एह याचार ॥ खानविजयगुरु चरण पसायें, वृद्धिविजय जयकार के॥ मु० ॥ १५ इति॥ ॥ अथ चतुर्थाध्ययनसज्झाय प्रारंजः॥ ॥ सुण सुण प्राणी, वाणी जिन तणी ॥ए देश॥ स्वामी सुधर्मा रे कहे जंबु प्रत्ये, सुण सुण तुं गुणखाणि ॥ सरस सुधारसहूती मीग्डी, वीर जिणेसर वाणि ॥ स्वा० ॥ ए आंकण ॥१॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११ सूक्ष्म बादर त्रस थावर वली,जीव विराहण टास ॥ मन वच काया रे त्रिविधं स्थिर करी, पहिy व्रत सुविचार ॥ स्वा॥२॥ क्रोध लोन नय हास्य करी, मिथ्या म नांखो रे वयण ॥ त्रिकरण शुद्धे व्रत आराधजे, बीजु दिवस ने रयण ।।स्वा० ॥३॥ गाम नगर वनमाहे विचरंतां, सचित्त अचित्त तृण मात्र ॥काम अदीधांमत अंगीकरो, त्रीजुं व्रत गुणपात्र ॥ स्वा० ॥४॥ सुर नर तियेष योनि संबंधियां, मैथुन कार्य परिहार ।। त्रिविधे त्रिविधं तुं नित्य पालजे, चोथु व्रत सुखकार ।। स्वा० ॥ ५॥ धन कण कंचन वस्तु प्रमुखवली, सर्व अधित्त सचित्त ॥ परिग्रह मूळ रे तेहनी परहरी, धरी व्रत पंचम चित्त ॥ स्वा०॥६॥ पंचमहाव्रत एणी परें पालजो, टालजो जोजन राति ॥ पापस्थानक सघनां परहरि, धरजो समता सविभांति ॥ स्वा०॥ ७॥ पुढवी पाणी वायु,वनस्पति, अग्नि ए थावर पंच ॥ बिति चन पंपिंदि जलयर थलयरा, खयरा त्रस ए पंच Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११४] ॥स्वा०॥७॥ ए छकायनी वारो विराधना, जयणा करि सवि प्राणि ॥ विण जयणारे जोव. विराधना, भांखे तिहुअण जाण ॥ स्वा॥णा जयणापूर्वक बोलता बेसतां, करतां थाहार वि. हार॥ पापकर्म बंध कदिये नवि हुवे, कहे जिन जगदाधार ॥ स्वा० ॥१०॥जीव अजीव पहिला योलखी, जिम जयणा तस होय ॥ज्ञानविना नवि जीवदया पले, टखे नवि आरंज कोय ॥ स्वा० ॥११॥ जाणपणाथी संवर संपजे, संवरें कर्म खपाय॥कर्मक्षयथी रे केवल उपजे, केवली मुक्ति लहेय ॥ स्वा० ॥ १५ ॥ दशकालिक चउथाध्ययनमां, बर्थ प्रकाश्योरे एह ॥ श्री गुरुलाजविजयपद सेवतां, वृद्धिविजय लहे तेद ॥ स्वा० ॥ १३॥ इति ॥ ॥अथ पंचमाध्ययनसज्झाय प्रारंजः॥ ॥ वीरे वखाणी राणी चेलणा ॥ ए देशी॥ सुजता थाहारनो खप करो जी, साधुजी समय Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११५] संभाल॥ संयम शुद्ध करवा जणी जी, एषणा दूषण टाल ॥ सुज० ॥ १॥ प्रथम सज्झायें पोरिसी करीजी, अणुसरी वली उपयोग ॥ पात्र पडिलेहण पाचरोजी, श्रादरी गुरु अणुयोग ॥ सु० ॥२॥ ठार धूयर वरसादना जी, जीव वि. राहण टाल॥ पग पग ा शोधतां जी; हरिकायादिक नाल ॥ सु०॥३॥ गेह गणिका तणां परिहरी जी, जिहा गयां चलचित्त होय ॥ हिंसक कुल पण तेम तजोजी, पाप तिहां प्रत्यक्ष जोय ॥ सु०॥४॥ निज हाथे बार उघाडीने जी, बेसीय नवि घरमांहि ॥ बाल पशु निलुक प्रमुखने संघटें, जश्ये नहिं घरमांहि ॥ सुण ॥५॥ जल फल जलण कण खूणझुंजी, नेटतां जे दिये दान ॥ ते कटपे नहिं साधुनें जी, वरजवू अन्न ने पान ॥ सु० ॥६॥ स्तन अंतराय बालक प्रत्ये जी, करीने रडतो ग्वेय ॥ दान दिये तो उलट भरी जी, तोहि पण साधु वर. जेय ॥ सु०॥ ७॥गर्नवती वली जो दिये जी, Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११६] ते पण अकल्पहोय || माल निसरणी प्रमुख चढी जी, आणि दीये कल्पे न सोय ॥ सु० ॥ ॥ ८ ॥ मूल्य एयुं मत लीयो जी, मत लियो करी अंतराय || विहरतां थंज खंजादिकें जी, न को थिर ग्वोपाय ॥ सु० ॥ ए ॥ एषीपरें दोष सर्वे बांगतां जी, पामीयें आहार जो शुद्ध ॥ तो लहियें देह धारण भणी जी, अपलहे तो तपवृद्धि || सु० ॥ १० ॥ वयण लज्जा तृषा ज ना जी, परिसहाथी स्थिरचित्त ॥ गुरुपासें इरियावदी पडिक्कमी जी, निमंत्री साधुनें नित्य ॥ सु० ॥ ११ ॥ शुद्ध एकांत ठामें जई जी, पडिक्कमी ईरियावदीसार ॥ जोयण दोष सवि aisa जी, स्थिर थइ करवो आहार ॥ सु० ॥ १२ ॥ दशवैका लिकें पांचमे जी, अध्ययनें कह्यो ए आचार ॥ ते गुरु लाजविजय सेवतां जी, वृद्धिविजय जयकार ॥ सु० ॥ १३ ॥ इति ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ॥ श्रथ षष्ठाध्ययन सज्झाय प्रारंजः॥ ॥म म करो माया कारिमी॥ ए देशी ।। गणधर सुधर्म एम उपदिसे, सांगलो मुनिवरवृंद रे॥ स्थानक अढार ए बोलखो, जेह जे पापना . कंद रे ॥ग० ॥१॥ प्रथम हिंसा तिहां छांडियें, जूठ नवि नांखिये वयण रे ॥ तृण पण अदत्त नवि लीजीयें, तजीयं मेहुण सयण रे ॥ग०॥ ॥२॥ परिग्रह मूर्छा परिहरो, नवि करो जोयण राति रे ॥ बंमो छकाय विराधना, नेद समझी सहु भांतिरे ॥ गण॥३॥ अकल्प आहार नवि लीजीयें, उपजे दोष जे मांहि रे ॥ धातुनां पात्र मत वावरो, गृहीतणा मुनिवर प्राही रे ॥ गण ॥४॥गादीय मांचीयें न बेसीय वारियें शय्या पलंग रे ॥रात रहिये नवि ते स्थलें, जिहां होवे नारि प्रसंगरे । ग॥५॥ स्नान मजन नवि कीजीयें, जिणे हुवे मनतो दोजरे ॥ तेह शणगार वलि परिहरो, दंत नख केश तणी शोज रे ॥ ग॥६॥ छठे अध्ययनें एम प्रका• Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] शीयो, दशवकालिक एह रे ॥ लाजविजय गुरू सेवता, वृझिविजय लह्यो तेहरे ॥गणा॥इति॥ ॥अथ सप्तमाध्ययन सज्झाय प्रारंभः॥ . कपूर हुवे अति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ साचं वयण जे नांखिये रे,साची भाषा तेद ॥ सच्चा मोसा ते कहियें रे, साधु मृषा होय जेद रे ॥१॥ साधुजी करजो नाषा शुद्ध ॥ करी निर्मल निजबुछिरे॥सा०॥ कर० ॥ए आंकणो॥ केवल जूठ जिहां होवे रे, तेह असच्चा जाण ॥ साचुं नहिं जू नहीं रे, असत्या अमृषा गण रे ॥ सा० ॥ क० ॥॥ए चारेमाहे कही रे, पहेली भाषा होय ॥ संयमधारी बोलवी रे, वचनविचारी जोय रे ॥सा ॥ क० ॥३॥ कग्नि वयण नवि नांखिये रे, तुंकारो रेकार ॥ कोश्ना मर्म न बोलीयें रे, साचा पण निर्धार रे ॥ सा० ॥ क० ॥४॥ चोरने चोर न जांखिये रे, काणानें न कहे काण ॥ कहीयें न अंधो अंधने Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रे, साधु कछिन ए जाणरे ॥ सा० ॥क०॥५॥ जेदथी अनरथ उपजे रे, परने पीमा थाय ॥ साचुं वयण ते नांखा रें, लाभथी त्रोटो जाय रे॥सा॥क० ॥६॥ धर्म सहित हितकारीया रे, गवरहित समतोल ॥ थोमला ते पण मीउडारे, बोल विचारी बोल रे ॥ सा० का ॥७॥ एम सवि गुण अंगीकरी रें, पर हरि दोष अशेष ॥ ॥ बोलतां साधुनें हुवे नहिं रे, कर्मनो बंध लवलेश रे ॥सा०॥ क० ॥ ७॥ दशवैका. लिक सातमे रे, अध्ययनें ए विचार ॥ लाजविजय गुरुथी लदे रे, वृद्धिविजय जयकार रे ॥सा॥क० ॥ ए इति ॥ ॥अथाष्टमाध्ययन सज्झाय प्रारंजः॥ राम सीताने धीज करावे। ए देशी॥ कहे श्री गुरु सांजलो चेला रे,आचारज एपुण्यना वेला रे॥छकाय विरादण टालो रे, चित्त चोखे चारित्र पालो रे ॥१॥ पुढवी पाषाण न नेदो Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२०] रे, फल फूल पत्रादिन बेदोरें॥ बीज कूपल वन मत फरजो रे,जीव विराधनथी डरजो रे ॥२॥वली अग्नि मनेटशो नारे, पीजो पाणी ऊन सदाइ रे॥ मत वावरो काचुं पाणी रे, एहवी ने श्री वीरनी वाणी रे ॥३॥ हिम धूअर वड उंबरां रं, फल कुथुया कोडी नगरा रे ॥ नाल फूल हरी अंकूरा रे, इंडाल ए आठे पूरा रे ॥४॥ स्नेहादिक, नेदें जाणी रे, मत हणजो सूक्ष्म प्राणी रे ॥ पडिलेही सवि वारजो रे, उपकरणे प्रमाद म करजोरे ॥५॥ जयणायें डगला जरजो रे, वाटे चालतां वात म करजो रे॥ मत ज्योतिष निमित्त प्रकासो रे, निरखो मत नाच तमासोरे ॥६॥दी अणदीतुं करजो रे, पाप व्यसन न श्रवणे धरजो रे ॥ अणसूजतो आहार तजजो रे, राते सन्निध सवि वरजो रे ॥७॥बावीस परि. सह सहेजो रे, देहःखें फल सद्दहजो रे॥अण पामे कार्पण्य न करजो रे, तप श्रुतनो मद नवि धरजो रे ॥७॥ स्तुति गति समता ग्रहजो रे, Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२१] - देश काल जोइनें रहेजा रे ॥ गृहस्थशुं जाति सगाइ रे, मत काढजो मुनिवर कांई- रे, ॥ ए ॥ न रमाको गृहस्थनां बाल रे, करो क्रियानी सं. जाल रे, ॥ यंत्र मंत्र औषधनो नामो रे, मत करजा कुगतिकामो रे ॥१०॥ क्रोधें प्रीति पूरवली. जाय रे, वली मानें विनय पलाय रे, माया मित्राइ नसाडे रे, सवि गुण ते लोज नसाडे रे, ॥ ११ ॥ ते माटें कषाय ए चार रे, अनुक्रमें दमजो अणगार रे ॥ उपशमशुं केवल जावे रे, सरलाइ संतोष सजावें रे ॥ १२ ॥ ब्रह्मचारीने जाणजो नारी रे, जैसी पोपटनें मांजारी रे ॥ तेणें परिहरो तस परसंग रे, नव वाम धरो वलि चंगरे ॥ १३ ॥ रसलोलुप थइ मत पोषोरे, निजकाय तप करीनें शोषो रे । जाणो धिर पुद्गल पिंकरे, व्रत पालजो पंच अखंग रे ॥ १४ ॥ कहियुं दशवैकालिके एम रे, अध्ययनें लाजविजयथी जाणी रे. बुध आणी रे ॥ १५ ॥ इति ॥ ठमे तेम रे ॥ गुरु वृद्धि विजय मन Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२२] ॥अथ नवमाध्ययन सज्झाय प्रारंजः॥ ॥शेव्रुजे जश्ये लालन, शेर्जेजे जश्ये॥ एदेशी॥ विनय करजो चेला, विनय करेजो॥ श्रीगुरु आंणा शीश धरेजो। चेला ॥शी॥ ए बांकणी ॥ क्रोध मानी ने परमादी, विनय न शीखे वली विखवादी ॥चे॥ व० ॥१॥ विनयरहित थाशातना करतां, बहु भव भटके मुर्गति फरतां ॥ चे ॥४०॥ अग्नि सर्प विष जिम वळी मारे, गुरु आसायण तेथी अधिक प्रकारें ॥ चे० ॥ अ॥२॥ अविनये दूषियो बहुल संसारी, अविनयी मुक्तिनो नहिं अधिकारी॥ चे० ॥ न० ॥ कोह्या काननी कूतरी जेम, हांकी काढे अविनयी तेम ॥ चे॥ अ० ॥३॥ विनय श्रुत तप वली आचार, कहीयें समाधिना गम ए चार ॥ चे० ॥ गण॥ वली चार चार नेद एकेक, समजो गुरु मुखथी सवि. वेक॥ चे ॥ थी० ॥४॥ ते चारेभां विनय ने पहेलो, धर्म विनय विण जाखे ते घेलो॥ चे० Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॥ मूल थकी जिम शाखा कहिये, धर्म क्रिया तिम विनयथी लहियें ॥चे॥विणा॥ गुरु मान विनयथी लदेसोसार, ज्ञान क्रिया तप जे आचार ॥ चे ॥ जे ॥गरथ पखें जिम न होये हाट, विण गुरुविनय तेम धर्मनी वाट ॥ ॥ चे० ध० ॥ ६ ॥ गुरु नान्हो गुरु महोटो क. हियें, राजा परें तस आणा वहियें ॥०॥ था ॥अल्पश्रुत पण बहुश्रुत जाणो, शास्त्र सिद्धांतें तेह मनाणो ॥ चे० ॥ ते० ॥ ७॥ जेम शशी ग्रहगणें विराजे, मुनि परिवारमा तेम गुरु गाजे ॥ चे॥ ते॥ गुरुथो अलगा मत रहो नार, गुरु सेवे लदेशो गौरवा॥चे०॥ल०॥ ॥७॥गुरुविनये गीतारथ थाशो, वंछित सवि. सुखलखमी कमाशो॥ चे॥ ल० ॥ शांत दांत विनयी लजालु, तप जप क्रियावंत दयालु॥चे० ॥बंगाए॥गुरुकुलवासी वसतो शिष्य, पूजनीय होयें विसवावीश ॥चे० वि० ॥ दश वैकालिक नवमे अध्ययनें, अर्थ ए जांख्या केवली वयणे Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२४] ॥ चि० || के० ||१०|| इणिपरे लाजविजय गुरु से वि, वृद्धि विजय स्थिर लखमी लदेवी ॥ चे० ॥ ल० ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ दशमाध्ययनसज्झाय प्रारंभः ॥ ॥ तेतरिया जाइ ते तरीया ॥ ए देशी ॥ ते मुनि वंदो ते मुनि वंदो, उपसम रसनो कंदो रे || निर्मल ज्ञान क्रियाना चंदो, तप तेजें जेवो दिदो रे || ते ॥ १ ॥ एांकणी ॥ पं वो करी परिहार, पंच महाव्रत धारो रे ॥ षट्जीव तणो आधार, करतो जय विहारो रे ॥ ते० ॥२॥ पंच समिति त्रण गुप्ति आराधे, धर्म ध्यान निराबाध रे || पंचम गतिनो मारग साधे, शुभ गुण तो इम वाधे रे ॥ ते० ॥ ३ ॥ क्रय वि क्रय न करे व्यापार, निर्मम निरहंकार रे ॥ चारित्र पाले निरतिचारें, चालतो खड़नी धार रे ॥ ते० ॥ ४ ॥ जोग ने रोग कर। जे जाणे, आपे पुण्य वखाणे रे ॥ तप श्रुतनो मद नवि आएँ, Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] गोपवी अंग ठेकाणें रे ॥ ते ॥ ५ ॥ बांकी धन कण कंचन गेह, यइ निःस्नेही निरीह रे || खेड्समाण जाणी देह, नवि पोसे पापें जेह रे ॥ ते० || ६ || दोष रहित आहार जे पामे, जे लुखे परिणा में रे । लेतो देइनुं सुख नवि कामे, जागतो आ जामे रे ॥ ते० ॥ ७ ॥ रसना रस रसीया नवि थावे, निलेभी निर्माय रे ॥ सहे परिसह स्थिर करी काया, अविचल जिमे गिरिराय रे || ते० ॥ ८ ॥ रातें काजस्तग्ग करी समशानें, जो तिहां परिसह जाणे रे ॥ ता नवि चुके तेहवे टाणे, जय मनमां नवि आऐ रे ॥ ते० ॥ || कोइ उपर नवि धरे क्रोध, दिये सहुने प्रतिबोध रे, कर्म आठ झींपवा जोध, करतो संयम शोध रे ॥ ० ॥ १० ॥ दशवैकालिक दश माध्ययने, एम जांख्यो चार रे ॥ ते गुरु लाजविजयथी पामे, वृद्धि विजय जयकार रे. ते० ॥ ११ ॥ इति ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२६] ॥ अथ चूलिकाद्विक सार - एकादश सज्झाय प्रारंभः ॥ नमो रे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर ॥ ए देशी ॥ साधुजी संयम सूधो पालो, व्रत भूषण सवि टालो रे ॥ दशकालिक सूत्र संजालो, मुनि मारग अजुखालो रे ॥ सा० ॥ सं॥१॥ ए कणी॥ रोगातंक परिसद संकट, परसंगे पण धार रे ॥ चारित्र्थी मत चूको प्राणी, इम भांखे जिनसार रे ॥ सा० ॥ सं ॥ २ ॥ ष्टाचारी मुंमो कहावे, इह भव परजव दार रे ॥ नरक निगोद तणां दुःख पामे, जमतो बहु संसार रे ॥ सा० ॥ सं|| ॥ ३ ॥ चित्त चोखे चारित्र आराधे, उपशम नीर अगाध रे ॥ झीले सुंदर ममता दरिये, ते सुख संपत्ति साधे रे ॥ सा० ॥ सं ॥ ४ ॥ कामधेनु चिंतामणि सरिखुं, चारित्र चित्तमें आयो रे ॥ ॥ श्द भव परभव सुखदायक ए सम, अवर न कां जाणो रे || सा० ॥ सं ॥ ५ ॥ सिज्जैनव सूरियें रचीयां, दश अध्ययन रसालां रे, मनक Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२७] पुत्र देते ते जणतां, लहियें मंगलमाला रे ॥ ॥सा०॥६॥ श्री विजयप्रनसूरिने राज्ये, बुध लाजविजयने शिष्ये रे ॥ वृद्धिविजय विबुध थाचार ए, गायो सकल जगीशे रे ॥सा॥७॥ - ॥ इति दशवैकालिकसञ्झाय समाप्तः॥ अथ श्रीपंचमहाव्रतनी सज्झाय लिख्यते १प्रथम प्राणातिपात विरमणनी सज्झाय, कपूर होइं अति निरमलु रे ॥ ए देशी ॥ सकल मनोरथ पूरवे रे, संखेश्वर जिनराय ॥ तेह तणा सुपसायथी रे, करुं पंच महाव्रत स. झाय रे ॥१॥ मुनिजन ए पहे व्रत सार, एहथी लहिएं नवनो पार रे ॥ मु०॥आंकणी॥ प्राणातिपात विरमण कडं रे, पहेबुं व्रत सु विचार ॥ त्रस थावर में जीवनी रे, रक्षा करे अणगार रे ॥मु०॥३॥ प्राणातिपात करे नहि रे, न करावे कोई पास॥ करतां अनुमोदे नहि रे, तेदनो मुक्तिमा वास रे।मु०॥क्षा जयणाएं Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२॥ मुनि चालंतारे, जयणाए बेसंत ॥जयणाए उनो रहे रे, जयणाए सुवंत रे ॥मु॥४॥ जयणाए जोजन करे रे,जयणाए बोलंत॥पाप करम बांधे सही रे, ते मुनि मोटा महंत रे ॥ मु०॥५॥ पांचे वतनी भावनारे, जे नावे रुषिराय॥ कांतिविजयमुनि तेहना रे, प्रेमे प्रणमे पायरे ॥ मुण ॥६॥ इति. अथ बीजी मृषावाद विरमणनी सज्जाय.॥ जोखीडा हंसारे विषय नराचीएरे ॥ए देशी॥ असत्य वचन मुखथी नवि बोलिए, जिम नावेरे संताप ॥ महावत बीरे जिनवर श्म नणे, मृषा समु नहि पाप॥१०॥१॥ खारा जलथी रे तृ. पती न पामीए, तीम खोटानी रे वात ॥ सुणतां शातारे किमही न उपजे, वली होय धर्मनो घात ॥१०॥२॥ असत्य वचनथी रे वइर परंपरा, कोन करे विसवास ॥ साचा माणस साथे गो. मो, मुज मन करवानी बास ॥ अ०॥३॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२९] साचा नरने रे सहु सादर करें, लोक भणे जसवाद ॥ खोटा माणस साथे गोठमी, पगि पाग होय विखवाद ॥ अ० ॥४॥ पाली न शके रे धर्म वीतरागनो, धर्म तणे अनुसार ॥ कांतिवि: जय कहे ते परसंसीए, जेद कहे शुद्ध आचार ॥ अ० ॥ ५॥ इतिश्री बीजुव्रत समाप्तम् ॥ ॥ अथ श्री श्रीजुं महाव्रत लिख्यते॥ ॥चंदन मलयागर तणुं ॥ ए देशी॥ त्रीजु महावृत सांजलो, ने अदत्तादान॥द्रव्य देत्रकाल नावथी, त्रिविधे पचख्खाण ॥१॥ ते मुनि. वर तारे तरे, नही लोजनो लेश ॥ कर्मने क्षय करवा नणी, पेहेयों साधुनो वेस ॥ ते ॥२॥ गाम नगर पुर विचरंतां, तरणा मात्र जे सार॥ साधु होय ते नवी लोए, अण थाप्युं लगार ॥ ते ॥ चोरी करतां श्ह नवें, वध बंधन पामंत ॥ रौरव ते नरके पडे, इम शास्त्र बोलंत ॥ ते॥४॥ परधन लेता परतणा, सीधा बाह्य Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] पण (प्राण) ॥ परधन परनारी तजें, तेना करुरे वखांण ॥ ते० ॥ ५ ॥ त्रीजुं महाव्रत पा लतां, मोक्ष गया के कोड ॥ कांति विजय मुनि तेना, पाय नमें करजोड | ते० ॥ ६ ॥ इति ॥ श्रीश्रीजुं महाव्रत समाप्तं ॥ ॥ अथ श्री चोथुं महाव्रत लिख्यते ॥ ॥ सुमति जिणेसर साहेब पांचमो ॥ ए देश ॥ सरसती केरारे चरण नमी करी, महाव्रत चोथुरे सार ॥ कद्देस्युं जावे रे जवियण सजिलो, सुणतां जय जयकार ॥१॥ एड्वा मुनिवरने पाये नमुं, पाले शोयल उदार || अढार सहस सीलांग रथना धणी, उतारे जवपार ॥ ए० ॥ २ ॥ चोथाव्रतनें समुद्रनी उपमा, बीजां नदीखो समान ॥ उतराध्ययने रे ते बत्रीसमे, जाखे जिन वर्धमान ॥ ए० ॥ ३ ॥ कोस्था मंदीर चो मासुं रह्यो, न चल्यो सोयलें लगार ॥ ते थूलभद्रनें जाउं भामयें. नमो नमो रे सा वार ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३१] ॥ ० ॥ ४ ॥ सोता देखी रे रावण मोहीयो, कीधां कोमी उपाय || सीता माता रे सीयलथी नवी चल्यां जगमां सहु गुण गाय ॥ ए ॥ ५॥ सीयल विदुषां रे माणस फुटडां, जेड्वां यावळ फूल || सीयल गुणे करी जे सोहामणां, ते माएस बहु मूल ॥ ए ॥ ६ ॥ नीत उठीने रे तस समरण करूं, जेणे जग झीत्योरे काम ॥ व्रत लेइने रे जे पाले नही, तेहनुं न लीजें रे नाम ॥ ए० ॥ ७ ॥ दशमा अंगमां रे सीयल वखामित्रो, सकल घरमाही सार ॥ कांतिविजय मुनिवर इणी परे भणें, सीयल पालो नरनार ॥ ए ॥ ८ ॥ इति श्री चोथुं महावत संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीपांचमा महाव्रतनी सज्झाय ॥ || हवे रायशेठ ते बेहु जा ॥ ए देशी ॥ आज सकल मनोरथ अति गणो, महाव्रत गावा पांचमा तणो ॥ जीहां सर्व थकी परीग्रह तर्जे, तेहने संजम रमणी अति जर्जे ॥ १ ॥ ० ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेथी संजम जात्रा निरवहिए ॥ ते तो परिग्रह मांहि नवि कहियें ॥जे उपरें मूरछा होय घणी, तेहने परिग्रह नांखें जग धणी ॥ ॥२॥ तृष्णा तरुणीसु मोहीया, तेणे विसें वीसवा खो. श्या। तृष्णा तरुणी जस घरबाला, ते जग सगलाना श्रोसीयाला ॥था ॥३॥ तृष्णा तरुणी जेणें परिहरी, तेणें संजमश्री पोते वरी ॥ संयम रमण जस पटराणी, तेहने पाय नमें इंद्रशेंद्राणी ॥ आ० ॥४॥ संजम रमणीसु जे राता, तेहनें श्ह नवे परजवे सुख साता ॥ पांचे वरतनी नावना कही, ते याचारांग सूत्रथी लही ॥ श्रा० ॥५॥ श्री कीर्तिविजय उवझाय तणो, जगाहे जस माहमा घणो ॥ तेहनो शिष्य कांतिविजय कहें, ए सज्झाय भणे ते सुख लहें ॥ ॥६॥ इति श्री पांचमा महाबतनी सज्झाय संपूर्णः ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ बग रात्री जोजन विरमणनी सज्झाय।। सुणो मेरी सजनी रजनी न जावें रे॥ए देशी॥ ____सकल धरमनुसार ते कहीए रे, मनः वंछीत सुख जेहथी सहिए रे॥रात्री जोजननो परिहाररे, ए छतुं व्रत जगमा सारे ॥ मुनि. जन नावे ए व्रत पालो रे, रात्री जोजन त्रिविधे टालो रे ॥१॥ मु० ॥ आंकणी ॥ द्रव्य थकी जे च्यारे थाहार रे, न लोऐ रात्रं ते अणगाररे॥रात्रीजोजन करतां नीरधाररे, घणा जीवनो थाय संहाररे ॥ मु० ॥२॥ देवपूजा नवी सुनें स्नानरे, स्नान विना कीम खाए ए धान रे ॥ पंखी जनावर कहीए जेहरे, रात्रे चुण नवी करतां तेहरे ॥ मु०॥३॥ मारकंड रुषीसर बोल्या वाणी रे, रुधीर समान ते सघलां पाणी रे ॥ अन्न ते थामीष सरखं जाणो रे, दिनानाथ जब थाये राणो रे ॥ मु॥४॥ साबर सुथर घुअड काग रे, मंजार वीच्छं ने वली नागरे ॥ रात्री जोजनथी ए अवताररे, Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शौव शास्त्रमा एस्यो विचार रे ॥ मु० ॥५॥ जुकाथी जलोदर थायरे, कीडी थावे बुधि पला. एरे॥ कोलीआवमो जो उदरें आवेरे, कुष्ठ रोग ते नरने थावें रे ॥ मु० ॥ ३ ॥ श्री सिद्धांत जिनागम मांही रे, रात्री जोजन दोष बहु त्यांहीरे ॥ कांतिविजय कहे ए व्रत सारोरे, जे पाले तस धन अवतारो रे ॥मु॥७॥ श्री नेमिजिननी सज्झाय, नेम नेम करती नारी, कोश न चाली कारी ॥रथ लीधो पाने वालीरे साहेली मोरीरे, करमे कुमारा रहारे साहेति ॥१॥ मनथीतो माया मूकी, सूनितो दीसे डेलीजी ॥ हवे अमारं कोण बेली रे ॥ साहेलि मोरी ॥२॥ चित्तमांथी गेडि दोधा, प्रीतिथी प्रवेस कीधा॥ मुखमां अमने दिधारे ॥साहेलि मोरी ॥३॥ जावमा जादवराया, आठ भवनी मेहेली माया ॥ श्रावो सीवा देवीना जायारे, साहेलि मोरी ॥४॥ माछलि तो वीण नीर, बचे नही रखे Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३५] खीण.॥ दारा केम जासे पीयरे, साइलि मोरी ॥५॥ आजतो बनी उदासी,तुम दरसन हती खासी ॥ परणवानी हती आसीरे, सादेखि मोरी ॥६॥जोबनीया तो केम जासे, स्वामि विना केम रहेवासे ॥ दामा पियरे केम जासे रे, सालिमोरी ॥७॥ जोता पाण जोकि मलि, थाभवनी प्रीत्ति तोडी॥ जोबनीयामां पाख्या बोमीरे, सादेलिमोरी ॥ ॥ दे तो दाजो ने मारी, स्वामि, तुमे सु विचारी ॥ तमे जोत्या हुँ हारी रे, सा॥ए॥ पशुडा बोमवी दीधा, प्रजुए अनेदान दिधा॥उदासी तो अमने कीधा, साहे. लिमोरी ॥ १० ॥ मनमां वैराग आण, सेसावनमां गया चालि ॥ संजम लिधो मन जावीरे ॥सा० ११॥राजुल विचारे एवं, सुख डे सुपनना जेवं ॥ हवे नेम प्रजु सेवुरे, साहेलिमोरी ॥१॥ करमतो जाय नासी, पहोत्या शिवपुरवासी ॥ रत्न विजय कहे शाबासीरे, साहे लिमोरी ॥१३॥ इति नेमिजिन सज्जाय.॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३६] सिखामणनी सज्झाय. (राग जरथरीनो) - चोवीस जीनने प्रणमी करी, सुगुरू तणे सुपसायजी ॥ सज्जाय कहूंरे सुहामणी, जणतां गुणतां सुख थायजी॥ सुणजोरे साजन सीखडी ॥१॥सुदेव सुगुरु सुधरमनी, परीक्षा न करी समारजी, द्रष्टिरागमारे मोही रह्यो ॥ सुणे स्लीयो संसारजी सुणजो ॥२॥लाख चोरासी रे योनीमां, जम्यो काल अनंतजी ॥ जनम मरण दूख जोगव्यां, ते जाणे नगवंतजी ॥ सुणजो॥ ३॥ मनुष्य जनम पामी करी, पापी कुटुंब शुं धरी -प्रीतजी॥धरम कुटुंब नवी ओलख्यो, काम करीयु विपरीतजी॥ सुणजो॥४॥ पापनो मूल तो क्रोध , पापनो बाप ते लोनजी॥ माता ते पाफ्नी, पूत्र लालच यशुनजी॥ सुणजो० ॥५॥ कुबुद्धि पापनी अस्त्री , पापनी बेन तो रीसजी ॥पापनो नाइते जूठ बे, पुत्री तृष्णा कसायजी ॥ सुणजो॥६॥ पापी कुटुंबने परिहरी, धर्मकुटुंबसुं धरो प्रीतजी ॥ नाम बताईं बुं रे Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३०] तेहना, जेथी खेशो भव बेदजी॥सुणजो॥७॥ धरमनो मूल ते क्षमा डे, बाप तो निरलोजजी माता दया ते धरमनी, पुत्र संतोष सुजाणजी॥ सुणजो॥॥ धरमनी अस्त्री संजमपुरि, स. मताशुं मन राखजी॥ सुबुद्धि धर्मनी बेन , धर्मनो ना ते साचजी॥ सुणजो० ॥ए। पांच इंद्रिने वश करे, जगमा ते होय शूरवीरजी॥ परउपकार ते धनवंत ने कुलक्षण न सेवे ते चतुरजी॥ सुणजो ॥१०॥धरमव्रत धादरीने पाले, ज्ञानी ते कदेवायजी॥ पद्मविजय पसाय थी, जीव नमे तेदना पायजी।सुणजो॥१९॥ इति सिखामणनी सज्झाय.॥ स्वाध्याय. कर पमिकमणुं भावथीजी, समनावे मन लाय॥ अविधि दोष जो सेवस्योजी, तो नहीं पातिक जाय ॥ चेतनजी श्म किम तरस्योजी, ॥१॥ सामायकमां सामटीजी, निद्रा नयन Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] जराय ॥ विकथा करतां पारकीजी, अति उलसीत मन थाय ॥ चेतनजी० ||२|| काउसग्गमां उमा थइजी, करत दुखे पाय ॥ नाटिक पेखण देखतांजी, उज्जा रयणि जाय ॥ चेतनजो० ॥३॥ संवरमा मन नवि वरेजी, आश्रवमां हुसीयार सूत्र सुणे न शुभ मनेजी, वात सुणे धरि प्यार ॥ चेतनजी० ॥ ४ ॥ साधुजनथी वेगलोजी, नीचासुं धरे नेद ॥ कपट करे कोको गमेजी, घरममां धूजे देह ॥ चेतनजी० ||५|| धरमनी वेला नवि दिएजी, फुटी कोडी एक ॥ रालमा रुध्यो थकोजी, खुणो गणी दीये बेक ॥ चेतनजी० ॥ ॥ ६ ॥ जिनपूजा गुरु बंदणाजी, सामायक पच्चखखाण || नोकारवाली नवी रुचेजी, करे मन आरत ध्यान | चेतनजी० ॥ ७ ॥ खिमा दया मन खाणीयेजी, करीए व्रत पच्चखखाण ॥ धरिए मनमांदे सदाजी, धरम सुकल दोय ध्यान ॥ चेतनजी इम जव तरस्योजी० ८ ॥ शुद्ध मने आराधस्योजी जो गुरुना पद पद्म || Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११९] रूपविजय कहें पामस्योजी, तो नरं सुर शिव सद्म, चेतनजी इमजव तरस्योजी० ॥ ए ॥ इति स्वाध्धाय संपूर्ण || ॥ अथ चैत्यवंदन ॥ वीस वरस घेर वासनीसा त्रणज्ञाने स्वामी ॥ चौनाणी चारित्रीया, निज तमरामी ॥ १ ॥ बार वरस ऊपर वली ॥ साडा षटमास, घोर अनिग्रह यादर्यो, किम कहीए तास ॥ २ ॥ माधवसुदी दसमी दीने, पाम्या केवलज्ञान ॥ पद्म कड़े मोहोच्छव कर्यो. चौविए सुर मंडाण ॥ ३ ॥ इति संपूर्ण ॥ १ ॥ त्रीख वरस केवलपणे, वीचर्या महावीरः पावापुरी पधारिया, जीन सासनधीर || दस्तीपाल नृपराय तो, रजुका सजा मोजार. चरम चौमासु त्यां रह्या, बेइ अनिग्रहसार ॥ २ ॥ कासी कुसलदेसना. घणा राय अढार. स्वामी सुणी सो आवीया, वंदने निरधार ॥३॥ सोल पोहोर दीधी देखना, जाणीने लाज का Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] पार ॥ दीपो भवीहीत कारणे, विधी तेहीज पार ॥४॥देवशर्माबोधनजणी, गोयम गया सुजाण ॥ कार्तिक अमावास्या दीने, प्रनु पाम्या नि. र्वाण.॥५॥ भाव उद्योत गयो इवे. करो द्रव्य उद्योत ॥ श्म कही राय सरवे मली, कीधी दीपक जोत ॥ ६ ॥ दीवाली तिहाथी थइ, जगमांही प्रसिझ, पद्म कहे बाराधता, लहीए अविचलरिद्ध ॥ ७॥ इति संपूर्ण ॥ ॥सुणी निर्वाण गौतम गुरु, पागा वलता जेम॥ चिंतवता वीतरागता, वीतराग हुवा तिम।। वीर नाण निर्वाण वली, गौतम केवलनाण॥ गुणनू गणिंये तेहनु, छ? तप सुनिर्वाण ॥२॥संभारे गोयमनामथी, केवली पचासहजार, नाण दी. वाली प्रणमता ॥ पद्म कहे जवपार॥३॥ इति. ॥ चैत्यवंदन ४ थु.॥ नव चोमासी तप कयो, त्रण मासी को दोय ॥ दोय दोय अढिमासी, तिम दोढ मासीह [जोय] ॥१॥ बहोतेर पासखमण कर्या, मासखमण बार Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४१] ॥ खट बे मासी खादर्या, अट्टम एक तपकार ॥ २ ॥ खटमासी एक तिम कर्यो ए, पण दिए ऊणा खटमास || वासे योगणत्रीसठ जला, दीक्षा दीन एक खास || ३ || जद्र प्रतिमा दोय तणीए, महाभद्र दीन चार, दस दीन स्वारथा ने, लागट निरधार ॥ ४ ॥ वणपाणि तप आदर्या, पारणा दीनजास ॥ द्रव आहार पारणा कर्या, त्रण से योगणपचास ॥ ५ ॥ छद्मस्थ एणीपरे रह्या ए, सह्या परीसह अघोर ॥ सुकल ध्यान अलंकरी, बाल्यां कर्म कठोर ॥ ॥ ६ ॥ सुकल ध्यान अंतर रह्याए, पाम्या केवल ज्ञान, पद्म कड़े मुक्ते गया, नमतां नित्य कल्याण ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ॥ ४ ॥ ॥ चैत्यवंदन पांचमुं ॥ ज्ञान उज्वल दीवा करो, मेरैया सज्झाया ॥ तप जप सेव सुवाणिया, अध्यातक (म) थाय ॥ १ ॥ सुध आहार सुध जक्षिका, सत्यवचन तंबोला ॥ सीयल आभूषण पेद्देरीये, क Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४२] रीये रंग रोला ॥ २ ॥ निद्रा खालस दूर करी, मोह गेह समावो || केवल लक्ष्मी लाववा, निज गेह सुमारो ॥ ३ ॥ दानादिक स्वस्तिक, ए साधर्मि से | एम दीवाली कीजीए, सुपीए गुरु वेण ॥ ४ ॥ एम दीवाली दीन जला ए, जीन उत्तम निर्वाण | पद्म कहे आराधतां लदी ए अविचल वान ॥ ५ ॥ इति संपूर्ण ॥ જાહેર ખબર. અમારે ત્યાં દરેક જાતના જૈન પુસ્તકા તથા शोभा, रंगीन मशाओ, यापडा, यरवाजा, नवકારવાળીએ વિગેરે જથ્થાબ ંધ તથા છુટક કીફાયતથી મળી શકે છે. सयोः - संघवी भुणलाई वेश्य, नैन मुसेसर – पासीताथा. शा. नागरहास प्रा ડાશીવાડ'ની પાળ—અમદાવાદ. 0000 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४३] अथ श्री दशवकालिक मूल सूत्र प्रारंज. १-अध्ययनम्. ( अनुष्टुववृत्तम.) धम्मो मंगल-मुक्किटं, अहिंसा संजमो तवो ॥ देवा वि तं नमसंति, जस्त धम्मे सया मणो ॥१॥ जहा मस्स पुप्फेसु, नमरों यावियई रसं ॥ न य पुप्फ किलामेश, सो य पीणेश अप्पयं ॥२॥ एमे ए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो॥ विहंगभाव पु-फेसु, दाणनत्तेसणे रया ॥३॥ वयं च वित्तिं लभामो, न य कोश उवहम्मई ॥ अहागडेसु रीयंते, पुप्फेसु नमरा जहा ॥४॥ महुकार समा बुद्धा, जे भवंति अणि स्सिया ॥ नाणपिंम रया दंता, तेण वुचंतिसाहुणो तिबेमि ॥५॥ शति उम्मपुफिय नाम पढमं अज्झयणं सम्मत्तं? २-अध्ययनम्. कहन्नु कुजा सामन्नं, जो कामे न निवारए॥ पएपए विसीयंतो, संकप्पस्स वसंगयो ॥१॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४४]. वत्थ गंध-मलंकारं, इत्थियो सयणाणि य ॥ अच्छंदा जे न जुति, न से चाइ त्ति वुच्चई ॥२॥जेय कंते पिए नोए, खद्धे विपिठि कुव्वई ॥साहीणे चयई जोए, से हु चाइत्ति वुच्चई ॥३॥ (काव्यम् ) ..समाश् पेहाइ परिवयंतो, सिया मणो निस्सरई बहिका ॥ न सा महं नोवि श्रहंपि तीसे, श्च्चेव तायो विणिएका रागं ॥॥आया वया ही चय सोगमवं, कामे कमाही कमियं खु छुरकं॥ छिंदाहि दोसं विणिएक रागं, एवं सुही होहि सि संपराए ॥५॥ (अनुष्टुब् वृत्तम) परकंदे जलियं जोई, घूमकेलं पुरासयं ॥ नेच्छति वंतयं जोत्तु, कुने जाया अगंधणे ॥६॥ धिरत्थु ते ऽजसोकामी, जो तं जीविय कारणा वंतं इच्छसि थावेड, सेयं ते मरणं भवे ॥७॥ अहं च नागरायस्स, तं च सि अंधगवन्हिको ॥ मा कूले गंधणा होमो, संजमं निहुयो चरं Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५] ॥॥ जश्तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छास नारियो॥ वाया विध्धुव हमो, अहिअप्पा न. विस्तसि ॥ए॥ तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयार सुभासियं ॥ अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाश्यो॥१०॥ एवं करंति संबुझा, पंडिया पविअक्खणा ॥ विणियति नोगेसु, जहा से पुरिसोत्तमो त्ति बेमि ॥११॥ इति सामन्न पुवीय नाम ऽज्झयणं सम्मत्तं ॥२॥ ३-अध्ययनम्. ___ संजमे सुष्ठियप्पाणं, विप्पमुकाण तारणं ॥ तेसि मेय-मणानं, निगंथाणं भदेसिणं ॥१॥ उदेसियं कीयग, नियागं अनिहमाणि य॥राश्भत्ते सियाणे य, गंध-मले य वीयणे ॥२॥ संनिही गिदिमत्ते य, रायपिंडे किमि. च्छए । संवादण दंत पहोयणा य, संपुच्छण देह पलोयणा य ॥३॥ अठ्ठावए य नालिए, छत्तस्स य धारऽणहाए ॥ तेगिच्छं पाहणा पाए, समारंजं च जोश्णो॥४॥ सिझायर पिमंच, Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] आसंदी पलियंकए ॥ गिदंतर निसिजाए, गायस्सुवट्टणाणि य ॥५॥ गिहिणो वेयावमियं, जाइबाजीववत्तिया ॥ तत्तानिव्वुम नोश्तं, आउरस्सरणाणि य ॥ ६ ॥ मूलए सिंगबेरे य, उच्बुखंडे अनिव्वुडे ॥ कंदे मूले य सचित्ते, फले बीए य आमए ॥७॥ सोवच्चले सिंधवेलोणे रोमालोणे य थामए ॥सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य आमए ॥७॥ धूवणित्ति वमणे य, वत्थिकम्म विरेयणे ॥ अंजणे दंतवणे य, गायाजंग विनुसणे ॥ ए॥ सव-मेयमणानं, निग्गंथाणं महेसिणं ॥ संजमंमि य जुत्ताणं, लहुनुय विहारिणं ॥ १०॥ पंचासव परिन्नाया, तिगुत्ता छसु संजया॥ पंच निग्गदणा धीरा, निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥११॥ आयावयंति गिम्हेसु, हेमंतेसु अवाउडा ॥ वासासु पडिसंलीणा, संजया सुसमाहिया ॥१५॥ परीसह रिउ दंता, धूयमोहा जिइंदिया ॥ सब पुख पहीणहा, प. कमंति मदेसिणो ॥१३॥ पुक्कराई करित्ताणं, Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] पुस्सहाई सहित्तु य ॥ के इत्थ देवलोएसु, केइ सिझंति नीरया ॥ १४ ॥ ख वित्ता पुवकम्मा, संजमेण तवेण य ॥सिद्धिमग्ग-मणुपत्ता, ताश्णो परिनिव्वुडे त्ति बेमि ॥१६॥ इतिखुडगतिआयार कहा नामं तइयं अज्झयणं सम्मत्तं. ४-अध्ययनम्-गद्यम्. सुयं मे आजसं तेणं नगवया एव-मखायं श्ह खलु छज्जीवणिया, नामऽज्झयणं,समणेणं जगवया महावीरेणं, कासवेणं पवेश्या, सु अख्खा. या, सु पन्नता, सेयं मे अदिजिन,अज्झयणं धम्म पन्नति ॥१॥ कयरा खलु सा बज्जीवणिया ना. मऽज्झयणं, समणेणं, जगवया महावीरेणं, कासवेणं पवेश्या, सु अख्खाया, सु पन्नता, सेयं मे अहि जिलं अज्झयणं धम्म पन्नत्ति ॥२॥ इमा खलु सा छज्जीवणिया नामऽज्झयणं,समणेणं नगवया महावीरेणं कासवेणं पवेश्या, सुअख्खाया, सुपन्नता, सेयं मे अहिजिलं अज्झयणं धम्म पन्नत्ति ॥ तं जहा-पुढविकाश्या ?, थाउकाश्या Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४०] २, तेउकाइया ३, वाउकाश्या ४, वणस्सश्काश्या ५, तस्सकाश्या ॥६॥ पुढवि चित्तमंतमख्खाया अणेग-जीवा, पुढो-सत्ता, अन्नत्य सत्य-परिणएणं ॥१॥ श्राउ चित्तमंत-मख्खाया, अणेगजीवा, पुढो सत्ता, अन्नत्थ सत्थ-परिणएणं ॥२॥ तेउ चित्तमंत-मख्खाया, अणेग-जीवा, पुढो-सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥३॥ वाउ चित्तमंत---मरकाया, अणेगजीवा, पुढोसत्ता, अन्नत्थ सत्थ-परिणएणं ॥ ४ ॥ वणस्तई चित्तमंत- मख्खाया अणेग-जीवा,पुढो सत्ता, अन्नत्थ सस्थ-परिणएणं, तंजहा-अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधवीया, बीयरुहा, समुच्छिमा, तण लया ॥ वणस्सश्काश्या, स. बीया, चित्तमंतमक्खाया- अणेग-जीवा, पुढो. सत्ता, अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥ ५ ॥ से जे पुण श्मे अणेगे, बहवे तसा पाणा ॥ तं जहाअंमया, पोयया, जराउया, रसया, संसेश्मा, समुच्छिमा,उप्निया,उववाश्या; जेसिं केसिंच पा Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४९] गाणं, अभिक्कतं, पडिक्कतं, संकुचियं, पसारियं, रुयं, जंतं, तस्सियं, पलाश्यं, आगइ गइ; विन्नाया, जेय कीड पयंगा, जा य कुंथुं पिप्पीलिया, सव्वे बेइंदिया, सव्वे तेइंदिया, सव्वे चरिंदिया, सव्वेपंचिंदिया सव्वे तिरिख्ख जोणिया, सव्वे नेरइया, सव्वे मणुया, सव्वे देवा, सव्वे पाणा परमाहम्मिया ॥ एसो खलु बट्टो जीवनिकाओ, तस्सका ति पच्चइ ॥ ६ ॥ इच्चेसिं छएदं जीवनिकायाणं, नेव सयं दमं समारं भज्जा, नेवन्नेदिं दमं समारंजाविज्जा, दंमं समारंनंतेऽवि अन्ने न समणुजाणेजा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविदेणं, मणेणं, वायाए, कारणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स जंते, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, ® पाणं वो सिरामि ॥ पढमे जंते महव्वए पाणावाया वेरमणं, सव्वं नंते पाणाश्वायं पच्चखामि, से सुहुमं वा, बायरं वा, तसं वा थावरं वा, नेव सयं पाणे अश्वाएजा, नेवऽन्नेहिं, पाणे Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५० ] इवायाविज्जा, पाणे अश्वायतेऽवि अन्ने न समणुजाणेज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविदेणं, मणेणं, वायाए, काए, न करेमि न कारवेमि, करंतंsपि खन्ने न समणुजाणामि, तस्स जंते, पमिक्कामि, निंदामि गरिदाम, अप्पाणं वोसिरामि ॥ पढमे जंते मव्वए, उवडियो मि, सव्वा पाणाश्वायाओ वेरमणं ॥ १ ॥ । - वरे पुच्चे जंते मव्वए, मुसावायाच वेरमणं, सव्वं नंते मुसावायं पच्चख्खामि ॥ से कोहा वा, लोहा वा, जया वा, दासा वा, नेव सयं मुसं वइज्जा, dasate मुसंवायाविज्जा, मुसं वायंतेऽवि अन्ने न समणुजाणेज्जा; जावज्जीवाए, तिविदं तिविदेणं, मणेणं वायाए कारणं, न करेमि, न कारवेम करतंऽपि खन्ने न समणुजाणामि, तइस जंते, पक्किमामि निंदामि, गरिहामि अप्पा वोसिरामि ॥ पुच्चे जंते महव्वए, जब मि सव्वा मुसावायाच वेरमणं ||२|| हावरे तच्चे जंते महवए, अदिन्नादाणाओ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५१] वेरमणं, सव्वं ते अदिन्नादाणं पञ्चक्खामि से, गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्पं वा; बहुं वा, अणू वा; थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिन्नं गिन्हिज्जा, नेवऽन्नेहिं अदिन्नं गिन्हा विज्जा, अदिन्नंगिएहंतेऽवि अन्ने न समगुजाणिज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि न कारवेमि, करतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंते, पडिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ तच्चे नंते महव्वए, उवडियोमि, स. व्वायो अदिन्नादाणायो वेरमणं ॥३॥ अहावरे चउत्थे नंते महत्वए, मेहुणाओ वेरमणं, सव्वं नंते मेहुणं पञ्चक्खामि, से दिव्वं वा, माणु. स्सं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं से विज्जा, नेवऽन्नेहिं मेहुणं सेवाविज्जा, मेहुणं सेवंतेऽवि अन्ने न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविदेणं, मणेणं, वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि, करतंऽपि अन्ने Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२] न समणुजाणामि, तस्स नंते, पडिकमामि, नि. दामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ चउत्थे नंते महव्वए, उवडियोमि सव्वाबो मेहुणायो वेरमणं ॥४॥अहावरे पंचमे ते महव्वए, परि. ग्गहायो वेरमणं,सव्वं ते परिग्गहं पच्चक्खामि से अप्पं वा, बहुं वा, अणूवा, थूलं वा; चित्तमंतं, वा, अचित्तमंतं वा, नेवसयं परिग्गरं परिगिन्हिज्जा, नेवऽन्नेहिं परिग्गरं परिगिएहाविज्जा, परिग्गरं परिगिन्तेऽवि अन्ने न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविदेणं मणेणं, वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समणजाणामि, तस्स ते. पडि. कमामि, निंदामि गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ पंचमे नंते महत्वए, उवडियोमि, सवायो परिग्गहाओ वेरमणं ॥५॥ अहावरे बढे नंतेवएं राश्नोयणायो वेरमणं, सवं ते राईनोयणं पच्चरुखामि, से असणं वा, पाणंवा, खाश्मं वा, सामं वा, नेव सयं राई लुजिज्जा नेवन्नेहिं राई Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५३] मुंजाविज्जा, राई झुंजतेऽवि अन्ने न समणु. जाणिज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, कारणं न करेमि, न कारवेमि, करतंऽगि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स जंते, पमिकमामि निंदामि, गारदामि, थप्पाणं वोसिरामि ॥ छठे नंते वए, उवहि श्रोमि, सव्वायो राईनोयणायो वेरमणं ॥६॥ श्च्चेइया, पंचमहव्वया, राईनोयण वेरमण छट्ठा, अत्त--हियष्ठियाए, उवसंपज्जि. त्ताणं विहरामि॥ ___ से निख्खू वा, भिख्खूणी वा, संजय, विरयपमिहय-पच्चख्खाय-पावकम्मे, दिआ वा, रायो वा, एग वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा, जागर. माणे वा, से पुर्वि वा, भित्तिं वा, सिलं वा, लेवं वा, ससरख्खं वा कायं, ससरख्खं वा वत्थं, ह. त्थेण वा, पाएण वा, कटेण वा, (कलिंचेण वा, अंगुलियाए वा, सिलाग्गए वा, सिलागहत्थेण वा, नालिहिज्जा न विलिहिज्जा, न घहिज्जा, Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५४] न भिंदिज्जा, अन्नं नालिहाविज्जा, न विलिदा विज्जा, न घट्टाविज्जा, न जिदाविज्जा, अन्नं आलितं वा, विलितं वा, घट्टतं वा, भिदतं वा, न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए तिविहं तिविदेणं, मणेणं, वायाए, काएं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समजाणामि, तस्स जंते, परिक्रमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वो सिरामि ॥ १ ॥ से भिख्खू वा, जि. ख्खूणी वा, संजय विश्यपडिय पच्चख्खाय पावकम्मे, दिखावा, राओ वा, एगओ वा, परिसागोवा, सुत्तेवा, जागरमाणे वा, से उदगं वा, असं वा, हिमं वा, महियं वा, करगं वा, दरतणुगं वा, सुद्धोदगं वा, ऊदलं वा वत्थं, ससद्धिं वा कार्य, ससद्धिं वा वत्थं, नामुसिज्जा, न संफुसिज्जा नाविलिज्जा, न पविलिज्जा, न अख्खोडिज्जा न पखखोडिज्जा, न छायाविज्जा, न पयाविज्जा, अन्नं नामुसा विज्जा, न संफुसाविज्जा, न च्या विलाविज्जा, न पविला Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५५] विज्जा न खोडा विज्जा न पख्खोडाविज्जा, न आयाविजा न पयाविज्जा, अन्नं मुसंतं वा, संफुसंतं वा, विनंतं वा, पवितं वा अख्खोतं वा, पख्खोमंतं वा, आयावंतं वा, पयावतं वा, न समजा पिज्जा, जावज्जोवाए, तिविहं तिविदेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि खन्ने न समजाणामि, तस्स जंते, पक्किमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥२॥ से भिरकू वा, जिरकूणी वा, संजय - विरय-पमिदय-पच्चख्खाय पावकम्मे, दिखावा, रायो वा, एगओ वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा जागरमाणे वा, से अगणिं वा, इंगालं वा, मुम्मुरं वा, अचिंच वा, जालं वा, अलायं वा, सुद्धा गणिं वा, उक्कं वा, न जंजिज्जा, न घटिज्जा, न भिदिज्जा, न उज्जा | लज्जा, न पज्जालिज्जा, न निव्वाविज्जा, अन्नं न उंज्जाविज्जा, न घट्टाविजा, न भिंदा विज्जा, न उज्जालाविज्जा, न पज्जालाविज्जा, न निव्वावाविज्जा, अन्नं उज्जैतंवा घहूं Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५० तंवा,जिदंतं वा,उज्जासंतंवा,पज्जालंतंवा निव्वावंतं वा, न समणुजाणिज्जा, जावज्जीगए तिवि. इंतिविहेणं,मणेणं, वायाए, कारणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंते,पांडक्कमामि निंदामि,गरिहामि, अ. प्पाणं वासिरामि ॥३॥से जिख्खू वा, निख्खूणी वा, संजय विरय पमिहय-पच्चक्खाय पावकम्मे, दिया वा, रायो वा, एगो वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से सिएण वा, विहृयणेण वा, पत्तेण वा, पत्तनंगेण वा, साहाएण वा, साहानंगेण वा, पिहूणेण वा, पिहूण हत्थेण वा, चेलेण वा, चेल-कन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा, अप्पणो वा कार्य, बाहिरं वा वि पुग्गलं, न फुमिज्जा, न वीएज्जा, अन्नं न फुमाविज्जा, न वीयाविज्जा, अन्नं फुमंतं वा, वीयंतं वा, न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं; मणेणं, वायाए, कारणं न करेमि, न कारवेमि; करतंऽपि, अन्ने न Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५७ समणुजाणामि, तस्स जंते, पमिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥४॥ से निख्खू वा, जिख्खूणी वा, संजय विरय पडिहय पञ्चक्खाय पावकम्मे, दिआवा, रायो वा, एगयो वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा जागरमाणे वा, से बीएसु वा, बीथ-पश्ठेसु वा, रूढेसु वा, रूढपश्ठेसु वा, जाएसु वा, जायपरछेसु वा, हरिएसु वा, हरिय-पश्टेसु वा, छिन्नेसु वा, छिन्न-पश्ठेसु वा, सचित्तेसु वा, स. चित्त-कोल-पमिनिसीएसु वा, न गच्छिज्जा, चिहिज्जा न निसीएज्जा, न तुयहिज्जा, अन्नं न गच्छाविज्जा, न चिठ्ठाविज्जा, न नि. सीयाविजा, न तुयहाविजा, अन्नं गच्छंतं वा, चिलुतं वा, निसीयंतं वा, तुयद॒तं वा, न समणुजाणिजा जावज्जीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंते, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वो Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५४ सिरामि ॥५॥ से भिख्खू वा भिरकूणीवा संजय विरय पडिहय पच्चरुखाय पावकम्मे, दिया वा, रायो वा, एगयो वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से कीमं वा, पयंगं वा, कुंथु वा, पिप्पिलियं वा, हत्थंसि वा, पायंसि वा, बाहुंसि वा ऊरंसि वा, उदरंसि वा, सीसंसि वा, वत्थंसि वा, पडिग्गहंसि वा, कंबलंसि वा, पा. यपुच्छणं सि वा, गोच्छगंसि वा, उडगंसि वा, वा, दंडगंसि वा, सिज्जगंसि वा संथारगंसि वा, तहप्पगारेसु, उवगरणं जाए, तो संजयामेव, पडिलेहिय, पडिलेहिय, पमज्जिय, पमज्जिय, एगंतमवणिज्जा नोणं संघायमा. वज्जिज्जा ॥६॥ (अनुष्टुववृत्तम् ) अजयं चरमाणो य पाणयाई हिंसई ॥ बंधई पावयं कम्म. तं से होश कमुयं फलं ॥१॥ अजयं चिट्ठमाणो य, पाणयाई हिंसई ॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५९] बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कम्यं फलं ॥२॥ अजयं यासमाणो य, पाणतया हिंसई॥ बंधई पावयं कम्म, तं से हो कमुयं फलं ॥३॥ अजयं सयमाणो य, पाणनूयाई हिंसई॥ बंधई पावयं कम्मं; तं से हो कमुयं फलं ॥४॥ अजय मुंजमाणो य, पाणनूयाई हिंसई ॥ बंधई पावयं कम्म, तं से हो कम्यं फलं ॥५॥ अजयं नासमाणो य, पाणनूया हिंसई ॥ बंधई पावयं कम्म, तं से होश कमुयं फलं ॥६॥ कहं घरे कहं चिट्टे, कह-मासे कहं सए ॥ कहं जुजंतो भासंतो, पावकम्नं न बंधई ॥७॥ जयं चरे जयं चिठे, जय-मासे जयं सए । जयं मुंजतो नासंतो, पावकम्मं न बंधई॥७॥ सब जूयऽप्पयस्स सम्मं नूयाई पासो ॥ पिहियासवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधई ॥ ए॥ पढमं नाणं तश्रो दया, एवं चिह सव्व संजए ॥ अन्नाणी किं काही, किं वा नाहीय सेय पावगं॥ १० ॥ साच्चा जाणश् कलाणं, सोच्चा Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] जाणइ पावगं ॥ उनयंपि जाणइ सोच्चा, जं सेयं ते समायरे ॥११॥ जो जीवेवि न या. णाइ, अनोवेवि न याण । जीवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाही य संजमं ॥१२॥ जो जी. वेवि वियाणाई, अजीवेवि वियाण ॥ जीवा जीवे वियाणतो, सो हु नाही य संजमं ॥१३॥ जया जीव-मजीवे य, दोवि एए वियाणई ॥ तया गबहुविहं, सव्वजीवाण जाणई ॥१४॥ जया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणई ॥ तया पुन्नं च पावं च, बंध मोख्खं च जाणई ॥१५॥ जया पुन्नं च पावं च, बंध मोख्खं च जाण ॥ तया निर्दिबदए नोए, जे दिव्वे जे य माणुसे॥१६॥जयानिविंदए नोए।जे दिव्वे जेय माणुसे ॥तया चयर संजोग,सभितरंच बाहिरं ॥१७॥जया चयश् संजोगं,सन्जितरं च बाहिरं ॥ तया मुंडे भवित्ताणं, पवईए अणगारियं ॥१०॥ जया मुंडे नवित्ताणं, पवईए अणगारियं ॥ तया संवर- मुक्किएं, धम्म फासे अणुतरं ॥१ए। जया Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] संवर-मुक्किटं, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ तया धुणई कम्म रयं, अबोहि कसं कर्म ॥२०॥ जया धुणई कम्म रयं, अबोहि कसं कम्॥ तया सव्वत्तगं नाणं, दसणं चाजिगबई ॥१॥ जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छई। तया लोग-मलोगं च; जिणो जाण केवली ॥२॥ जया लोग-मलोगं च, जिणो जाणश् केवली॥ तया जोगे निलंनित्ता, सेलेसिं पविजई ॥२३॥ जया जोगे निमित्ता, सेलेसिं पमिवजई ॥ तया कम्म खवित्ताणं, सिम् िगच्छश् नीरयो ॥२४॥ जया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरयो। तया लोग मत्थयत्थो, सिको हवश्सासयो॥२५॥ ___ ( आर्यागीतिवृत्तम्) सुहसायगस्स समणस्स, सायाजलगस्स निगामसाश्स्स उच्छोलणापहोयस्स,उल्लहा सुगश्तारिसगस्स ॥ २६ ॥ तवो गुणप्पहाणस्त, उज्जुमर खंति संजभरयस्स ॥ परीसहे जिणंतस्स सुसहा, सुगश्तारिसग्गस्स,॥ २७ ॥ पच्छावि ते पयाया, Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] खिप्पं गच्छति अमरजवणाई ॥जेसि पियो तवो संजमो य, खंती य बंभचेरं च ॥ २ ॥ (अनुष्टुप्त्त म् ) श्च्चेयं छज्जीवणियं सम्मदिष्टि सया जए ॥ . वहं लजित्तु सामन्नं, कम्मुणा न विरा।हजासि त्तिबेमि ॥ शए॥ ॥ इति छज्जीवणिया नामं चउत्थं अज्झयणं सम्मत्तं ॥४॥ ५-अध्ययनम्. ॥ संपत्ते निख्खकालंमि, असंनंतो अमुच्छियो; श्मेण कम्मजोगेणं, भत्तपाणं गवेसए ॥१॥से गामे वा नगरेवा, गोयरग्ग गयो मुणी, चरे मंदमऽणुविग्गो, अवख्खित्तेण चेयसा ॥२॥ पुरो जुगमायाए, पेहमाणो महीं चरे, वजंतो बीयदरियाई, पाणे थ दगमहियं ॥३॥ोवायं विसमं खाएं, विजलं परिवजए, संकमेण न गच्छेजा, विजमाणे परक्कमे ॥४॥ पवमंते व से तत्थ, पख्खलंते व संजए, हिंसेज पाण Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] न्या, तस्से अव थावरे ॥५॥ तम्हा तेण न गच्छेज्जा, संजये सुसमाहिए, सश्अन्नेण म. ग्गेण, जयमेव परक्कमे ॥६॥ इंगालं च्छारियं रासिं, तुसरासिंच गोमयं, ससरख्खेहिं पाएहिं, संजयो तं नश्क्क मे. ॥७॥ न चरेज वासे वा. संते, महियाए व पतिए महावाए व वायंते, तिारच्छं संपाश्मेसुवा.॥॥न घरेज वेस सामंते, बंजचेर वसाऽणुए,बंजयारिस्तदंतस्स, होज्जात. स्थ विसोत्तियाए॥ अणायणे चरंतस्स,संसग्गी एअजिख्खणं,होज्ज वयाणं पीला, सामन्नंमि अ संसयो ॥१॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं . ग्गइवट्ठणं, वजए वेससामंतं, मुणी एगंतमस्सिए ॥ ११॥ साणं सूइयं गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं, संमिन्नं कलहं जुद्धं, पुरो परिवजए ॥१॥ अणुन्नए नावणए, अप्पदिठे अणाउले; दियाई जहानागं, दमइत्ता मुणी चरे ॥ १३॥ दवदवस्स न गच्छेजा, नासमाणो य गोअरे; हसंतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया ॥ १४ ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] आलोचं थिग्गलं दारं, संधि दगनवणाणि य; चरंतो न विनिज्झाए, संकटाणं विवज्जए ॥१५॥ रन्नो गिहवईणं च, रहस्सारख्खियाण य; संकिलेसकरं गणं, पुरो परिवजए ॥१६॥ पनिकुठं कुलं न पविसे, मामग्गं परिवजए; अचियत्तं कुलं न पविसे चियत्तं पविसे कुलं।१। साणीपावारपिहियं, अप्पणा नावपंगुरे; कवामं नो पणुबिजा, जग्गहंसि अजाआ॥ १७ ॥ गोयरग्गपविठ्ठोय, वच्चमुत्तं न धारए; ओगासं फासुझं नच्चा, अणुन्नविय वोसिरे ॥ १५॥ नीयं वारं तमसं, कुछगं परिवज्झए; अचख्खुविसयो जत्थ, पाणा . प्पडिलेहगा ॥२०॥ जत्थ पुप्फाईबीआई, वि. प्पइन्नाई कोट्ठए, अहुणोवलित्तं उद्धं, दट्ठणं परिवजए ॥१॥ एलगं दारगं साणं, वच्छगं वा वि कुठए, उलंधिया न पविसे, विउहित्ताण व संजए॥श्शा असंसत्तं पलोज्जा, नाश्शुरावलो. अए, उप्फुवं न विनिज्झाए, नियंटिज अयंपिरो ॥३॥ अमिं न गच्छेजा, गोअरग्गगो Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] मुणी, कुलस्स चूमि जाणित्ता, मियं जूमि परकमे ॥२४॥ तत्थेव पमिलेहेजा, जूमिनागविअख्खणो, सिणाणस्स य वच्चस्त, संलोग परिवजए ॥२५॥ दगमट्टियआयाणे, बीयाणि हरियाणि अ, परिवज्जंतो चिट्ठिज्झा,तविदिअ समादिए, ॥ २६ ॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स, आहारे पाणजोधणं, अकप्पियं न इच्छिज्जा, पमिगाहिज कप्पियं ॥ २७॥ आहारती सिया तत्थ, परिसामिज्झ नोअणं, दित्तियं पडियारके, न मे कप्पर तारिसं ॥२॥संमदमाणी पाणाणि, बीयाणि हरियाणि श्र। असंजमकर नच्चा, तारिसं परिवजए ॥ श्ए ॥ साइड निख्खिवित्ता णं, सचित्तं घट्टियाणि य, तदेव समणुठाए, उ. दगं संपणुखिया ॥३०॥योगाहश्त्ता चलश्त्ता, थाहारे पाणनोअणं, दित्तियं पडियाख्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥३१॥ पुरेकम्मेण हत्थेण, दबीए जायणेण वा। दित्तियं पडियारके, न मे कप्पर तारिसं ॥ ३॥ एवं उदउबे सस Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] णिद्धे, ससरख्खे मट्टियाओसे। दरियाले हिंगु. लए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥ ३३॥ गेरुअवन्निअसे ढिय, सोरठियपिटकुक्कुसकए अ। जकिटमसंसढे, संसढे चेव बोद्धवे ॥ ३४ ॥ अ. संसटेण हत्थेण, दवाए जायणेण वा। दिज्झमाणं न इच्छिज्जा, पच्छाकम्मं जहिं नवे ॥ ३५ ॥ संसटेण हत्थेण, दबीए नायणेण वा । दिजमाणं पमिच्छेिज्झा, जं तत्थेसणियं नवे ॥३६॥ उन्हें तुं मुंजमाणाणं, एगो तत्थ निमंतए। दि. जमाणं न इच्छिज्जा, बंदं से पडिलेहए॥ ३ ॥ उन्हं तु मुंजमाणाणं, दो वि तत्थ निमंतए। दिज्जमाणं पडिच्छिज्झा, जं तत्थेसणियं भवे ॥३७॥ गुठ्विणीए उवन्नत्थं, विविहं पाणनोअणं । नुंजमाणं विवज्जेज्जा, जुत्तसेसं पमिच्छए ॥३७॥ सीधा य समणठाए, गुठिवणी काल. मासिणी। उठ्ठिया वा निसीइज्जा, निसन्ना वा पुणुछए ॥४०॥ तं नवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितियं पांडयाइख्खे न मे कप्पइ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६७] तारिसं ॥४१॥ थणगं पिज्जमाणी दारगं वा कुमारियं । तं निकिवित्तु रोअंतं थाहारे पाणनोयणं ॥४२॥ तं जवे नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दित्तियं पमियाख्खे, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ४३ ॥ ज नवे नत्तपाणं तु, कप्पाकप्पंमि संकियं । दितिय पडियाख्खे,नमे कप्पर तारिसं ॥४४॥ दगवारेण पिहिवं, नीसाए पीढएण वा। लोढेण वाविलेवेण,सिलेसेण वा केण॥४५॥ तं च प्रिंदिया दिज्जा,समपठा एव दावए । दितिथं पमियाख्खे, न मे कप्प३ तारिसं ॥४६॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं साश्मं तहा। जं जाणेज्ज सुणिज्जा वा, दापठा पगमं श्मं ॥४७॥ तं नवे भत्तयाणं तु, संजयाण अकप्पियं। दितियं पमियाश्रूखे, न मे कप्प३ तारिसं॥ ४ ॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं साश्मं तहा। जं जाणेज्जा सुणिज्ज वा, पुन्नट्ठा पगमं श्मं ॥४॥ तं भवे नत्तपाणं तु,संजयाण अकपिथं । दितिथं पडियाश्रूखे, न मे Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६८] कप्पर तारिसं ॥ ५० ॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं साश्तहा । जं जाणेज्जा सुणिज्जावा, वणिमहा पगऊ मं ॥५१॥ तं नवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं, दितियं पडियाख्खे न मे कप्पए तारिसं ॥ ५५ ॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साश्मं तदा । जं जाणिजा सु. णिज्जा वा, समणठा पग; इमं॥ ५३॥ तं नवे जत्तपाणं तु, संजयाण अप्पियं । दितिथं पडियाइक्खे, न मे कप्प३ तारिसं ॥५४॥ उद्दे. सियं कीयगमं, पूइकम्मं च आदमं । अज्जो. अरपामिचं, मीसजायं विवजए॥ ५५॥ उग्गमं से अ पुच्छिज्जा, कस्तठा केण वा कम । सुच्चा निस्संकियं सुद्धं, पडिगाहिज्ज संजए ॥ ५६ ॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं सामं तदा। पु. प्फेसु हुज्ज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा ॥५॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितिथं पाडयाक्खे, न मे कप्पश् तारिस ॥५॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं साश्मं तहा। ऊद Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६९] गम्मि हुज्ज निक्खित्तं, उत्तिंगपणगेसु वा ॥५॥ तं जवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिां । दिं. ति पछि इक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६०॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तदा । ते उम्म (अगणिम ) होज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए ॥ ६१ ॥ तं भवे जत्ताणं तु, संजया अकपिछं । दिंतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६ ॥ एवं उस्सिक्किया योसक्किया, उज्जालिआ पज्जालिया निव्वाविया । उस्सिंचिया निस्सिंचिया, उववत्तिया ( उव्वत्तिया) वारिया दए ॥ ६३ ॥ तं भवे भत्तपापं तु, संजयाण अकप्पिां । दिंतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पर तारिसं ॥ ६४ ॥ हुज्ज कठ्ठे सिलं वावि, हालं वावि एगया । वविां संकमट्ठाए, तं च हुज्ज चलाचलं ॥ ६५ ॥ न तेरा जिक्खू गच्छिज्जा, दिट्ठो तत्थ संजमो । गंजीरं जूसिरं चेव, सव्विंदि समाहिए ॥ ६६॥ निस्सेणि फलगं पीढं, उस्तवित्ता व मारुदे । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७०] मंचं कीलं च पासायं, समणहा एव दावए ॥६॥ पुरूहमाणी पवडिज्जा (पडिवज्जा) हत्यं पायं व खूसए । पुढवीजीवे वि हिंसेज्जा, जेथ त. निस्सिया जगे ॥६॥ एआरिसे महादोसे, जाणिऊण मदेसिणो। तम्हा मालोद जिक्खं, न पहिगिएहंति संजया ॥६ए ॥ कंदं मुलं पलंबं वा, आमं छिन्नं च सन्निरं । तुंबागं सिगबेरं च, आमगं परिवज्जए ॥॥ तदेव सत्तुचुन्नाई कोलचुन्नाई आवणे । सक्कुलिं फाणिवे पूवं, अन्नं वा वि तहाविहं ॥१॥विकायमाणं पसढं, रएण परिफासियं । दितिथं पडिआइक्खे, न मे कप्प३ तारिसं ॥७२॥ बहुअडियं पुग्गलं अणिमिसं वा बहुकंटयं । अस्थियं तिं. ऽयं बिवं, उच्लुखंमं व सिंबलिं ॥७३॥ अप्पे सिया नोअणजाए, बहुजज्झिय धम्मिए (य)। दिति पडियाक्खे, न मे कप्पश्तारिसं ॥४॥ तदेवुच्चावयं पाणं, अनुवा वारधोयणं । संसेइमं पाउलोदगं, अहुणाधो विवज्जए ॥ ३५ ॥ जं Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१] जाणेज्ज चिराधोअं, मइए देसणेण वा । पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा,जं च निस्संकियं भवे ॥६॥ अजीवं पडिणयं नच्चा, पमिगाहिज्ज संजए । अद संकियं विज्जा, आसाश्त्ता ण रोए ॥ ७७॥ थोवमासायणकाए, हत्थगम्मि दलाहि मे। मा मे अचंबिलं पूचं, नालं तिएहं विणित्तए ॥ ७ ॥ तं च अचंबिलं पूचं, नालं तिएहं विणित्तए । दितिथं पमिआश्क्खे, न मे कप्पर तारिसं ॥७ए॥ तं च हुज्जा अकामेण, विमणेण पमिच्चियं । तं अप्पणा न पिबे, नो वि अन्नस्त दावए ॥ ७॥ एगंतमवकमित्ता, श्रचित्तं पमि. लेहिआ। जयं पडिविज्जा, परिठ्ठप्प पमिकमे ॥७॥ सिया अ गोअरग्गयो, इच्छिज्जा परि. जुत्तुकं । कुछगं नित्तिमूलं वा, पडिसेहित्ताण फासुकं ॥ ॥ अणुन्नवित्तु मेहावी, पडिच्छि. न्नम्मि संवुडे । हत्थगं संपमज्जित्ता, तत्य ठेंजिज्ज संजए ॥ ३ ॥ तत्थ से जुजमाणस्स अहिअं कंटओ सिथा। तणकट्ठसकरं वावि, Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७] अन्नं वावि तहाविहं ॥४॥ तं उक्खिवित्तु न निक्खिवे श्रासपण न झए । हत्थेण तं गहेऊण, एगंतमवक्कमे ॥५॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पडिबेहिआ। जयं परिझविज्जा, परिठ्ठप्प पमि. कमे ॥ ६ ॥ सिआ अ जिक्खू इच्छिज्जा, सि. ज्जमागम्म जुत्तुशं । सपिंडपाथमागम्म, उंमुआं पडिसेहिया ॥७॥ विणएण पविसित्ता, सगासे गुरुणो मुण।। इरियावहियमाय, बागो थ पडिकमे॥ ॥ आलोइत्ताणं नीसेसं, अइआरं च जहकमं । गमणागमणे चेव, नत्ते पाणे च संजए ॥ ७ए ॥ ऊजुप्पन्नो अणुव्विगो, अव. क्खित्तेण चेअला। बालोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं नवे ॥ ए ॥ न सम्ममालोश्शं हुज्जा, पुव्विं पच्छा व जं करूं। पुणो पमिकमे तस्स, वोसठो चिंतए श्मं ॥ १ ॥ अहो जिणेह असा. वज्जा, वित्ती साहूण देसिआ। मुक्खसाहणहे. उस्स, साहुदेहस्त धारणा ॥ ए ॥ णमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथवं । सज्जायं पट्टवि Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३] ताणं, वीसमेज्ज खणं मुणी ॥ ए३॥ वीसमंतो श्मं चिंते, हियम लालमट्टियो। जश् मे अणुगहं कुज्जा, साहू हुज्जाम तारियो ॥४॥ साहवो तो चियत्तेणं, निमंतिज्ञ जहक्कम । जर तत्थ के इच्छिज्जा, तेहिं सद्धिं तु मुंजए ॥ ए५॥ अह कोह न इच्छिज्जा तयो लुजिज्ज एक्कयो । बालोए जायणे साहू, जयं अपरिसामियं॥६॥तित्तगं व कमुशं व कसायं, अंबिलं च महुरं लवणं वा। एयलद्धमन्नत्थपनत्तं, महु घयं व मुंजिज्ज संजए ।ए॥ अरसं विरसं वावि, सूश्यं वा असूश्यं । उद्धं वा जश् वा सुकं, मंयकम्मासनोअणं ॥ एग ॥ जप्पएणं नाहीखिज्जा, अप्पं वा बहु फासुअं । मुहालद्धं मुहाजीवी, मुंजिज्जा दोसवज्जियं ॥ एए ॥ सुखहायो मुहादाई मुहाजीवी वि उखहा। मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छति सुग्ग; ॥ ति बेमि ॥१०॥श्य पिंडे सणाए पढमो उदेसो समत्तो ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७४] २-उदेसा. पडिग्गरं संलिहित्ताणं, बेवमाया संजए। उगंधं वा सुगंधं वा, सव्वं मुंजे न झए ॥१॥ सेजा निसीहियाए, समावन्नो अ गोअरे । अयावयग सुच्चा णं, जश् तेणं न संथरे ॥२॥ तो कारणमुप्पएणे, भत्तपाणं गवेसए । विहिणा पुव्वउत्तेण, श्मेणं उत्तरेण य ॥३॥ कालेण निक्खमे निक्खू , कालेण य पमिकमे। अकालं च विवजित्ता (जा), काले कालं समायरे ॥४॥ अकाले चरिसि भिक्खू , कालं न पडिखेहिसि। अप्पाणं च किलामेसि, सन्निवेसं च गरिहसि ॥५॥ स काले चरे भिक्खू, कुजा पुरिसकारियं । अलानोत्ति न सोजा, तवा ति अहियासए ॥६॥ तहेवुच्चावया पाणा, जत्तगए समागया। तं उज्जुझं न गच्छिज्जा, जयमेव परक्कमे ॥७॥ गोबरग्गपविगो अ, न निसीइज्ज कत्थई । कहं च न पबंधिज्जा, चिटित्ताण व संजए ॥७॥ अग्गलं फलिहं दारं, क Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२७] वाम वा वि संजए । अवलंबिया न विवि ज्जा, गोअरग्गगयो मुणी॥ए॥ समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं। उवसंकमंतं नत्त गा, पाणहाए व संजए ॥१०॥ तमश्वमित्तु न पविसे, न चिके चक्खुगोअरे । एगंतमवकमित्ता, तत्थ चिहिज्ज संजए ॥११॥ वणीमगस्स वा तस्त, दायगस्सुजयस्स वा । अप्प. त्तियं सिआ हुज्जा,लहुत्तं पवयणस्त वा ॥१॥ पमिसेहिए व दिने वा, तो तम्मि नियत्तिए। उवसंकमिज्ज जत्ता , पाणणाए व संजए ॥१३॥ उप्पलं पउमं वावि, कुमुझं वा मगदंतिथं । अन्नं वा पुप्फसचित्तं, तं च संतूंचिया दए ॥१४॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकपिधे । दितियं पडियाक्खे, न मे कप्पड़ तारिसं ॥१५॥ उप्पलं परमं वा वि, कुमुझं वामगदंतिथं । अन्नं वा पुप्फसच्चित्तं, तंच सम्म दिया दए ॥ १६ ॥ तं नवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितिथं पमियाक्खे, न मे Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६] कप्प३ तारिसं ॥१७॥ साबुआं वा विरालियं, कुमुझं उप्पलनालियं । मुणालियं सासवनालियं, उच्चुखमं अनिव्वुमं ॥१७॥ तरुणगं वा पवालं, रुक्खस्स तणगस्स वा। अन्नस्स वा वि हरिअस्स, आमगं परिवज्जए ॥१॥ तरुणिकंवा बिवामि, आमियं नज्जियं सयं । दितिथं पडिआश्क्खे, न मे कप्पर तारिसं ॥॥ तहा कोलमणुस्सिन्नं, वेबुथं कासवनालियं । तिलपप्पमगं नीम, श्रामगं परिवज्जए॥१॥ तदेव चाउलं पिटं, विअ वा तत्तनिव्वुझ । तिलपिट्ठ पूपिन्नागं, बामगं परिवद्यए ॥५॥ कविलु माजलिंगं च मूलगं मूल गत्तियं, आमं असच्छ परिणयं, मणसावि न पच्छए ॥२३॥ तदेव फल मंथुणि बीयमणि जाणिया, विहे. लगं वियालंच , श्रामगं परिवझए ॥२४॥ समुयाणं चरे भिख्खू , कुलं उच्चावयं सया नीयं कुल मइकमं उसढं नानिधारए ॥२५॥ अदीणो वित्तिमेसेा, न बिसिएद्य पंडिए, अमुबिलं Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७७] जोयणमि, माइन्ने एसणारए ॥२६॥बहुपरघरे मलि विविहं खाश्मं, न त पंमिर्ड कुप्पे, श्वा दिद्य परो नवा ॥ २७ ॥ सयणा सयण वडं वा, जत्तपाणं च संजए, अदितस्स न कुप्पेद्या, पञ्च. रके वि अदीस ॥ २७॥ बियं पुरिसं वावि, मदरं वा महबगं, वंदमाणं न जाएद्या, नोयणं फरुसं वए ॥शए ॥ जे नवंदे न से कुप्पे, वंदिउ नसमुकसे, एवंमन्ने समाणस्स सामन्नमणु चि. ॥३॥ सिया एगश्न लळू, लोनेणं विणिगूह, मामेयं दाश्यं संतं, दतुणं सयमायए ॥ ॥३१॥ यत्तट्ठा गुरुउ बुद्धो, बहु पावं पकुवर, उत्तोसउ य सो होइ, निव्वाणं च न गव॥३॥ सिया एगश्त लडूं, विविहं पाण जोयणं, भदगंजद्दगं नोच्चा, विवन्नं विरसमाहरे॥३३॥ जाणंतु ता इमे समणा, बाययही अयं मुणी, संतुह्रो सेवर पंतं, बुदवित्ति सुतोसउ॥३५॥पूयणहा जसो कामी, माण समाण कामए, बहु पसव पावं, माया सवंच कुवश्॥ ३५॥ सुरं वा मेरगं Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७] वावि, अन्नं वा मद्यगं रस, ससकं न पिवेजिख्वू, जसं सारक मप्पणो ॥३६॥ पियए एगइ. उ तेणो,न मे को वियाण, तस्स पसह दोसाई, नियमिंच सुणेह मे ॥३७॥वह सोंढिया तस्स, माया मोसंच भिख्खूणो, अयसोय अनिवाणं, सययं च असाया ॥ ३० ॥ निच्चुविग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं उम्मइ, तारिसोमरणं तेवि, नारदइ संववं ॥३णा आयरिए नारादेइ, समणे आवि तारिसो, गिहनाविणं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं ॥४०॥ एवंतु अगुणप्पेही, गुणाणं च विवऊउ तारिसो मरणंतेवि, नारादेश संवरं ॥४॥ तवं कुवश मेदावी, पणीयं वद्यए रसं, मऊप्पमाय विरउ, तवस्ती अश् उक्कसो ॥४॥ तस्स पसह कल्लाणं, अणेग साहू पूश्य, विनलं अब संजुत्तं, कित्तसं सुणेदमे ॥४३॥ एवं तु गुण प्पेही, अगुणाणं च विवऊयो, तारिसो मरणं तेवि बारादेइ संवरं ॥४४॥ थायरिए बारादेइ समणेवावि तारिसो, गिदहावि ण Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९] पूयंति, जेण जाणंति तारिसं ॥४५॥ तव तेणे वय तेणे, रुव तेणेय जेनरे,यायार नाव तेणेय, कुवर देव किविसं ॥४६॥ लकूणयवि देवत्तं, उववन्नो देव किव्विसे, तहवि से न याणाइ, किमे किच्चाश्मं फलं ॥४७॥ तत्तो विसे चश्त्ताणं, लब्नइ एल मूयगं, नरग तिरिकजोणिवा, बोही जबसु उखद। ॥ ४ ॥ एयंच दोसदहुणं नाय पुत्तेण नासियं; अणु मायपि मेहावी, माया मोसं विवद्यए ॥४॥ ( काव्यम्. ) सिरिकऊण मिकेसण सोहिं, संजयाणं वुद्धाण सगासे; तह भिरकू सुप्पिणि हिंदिए, तिव्व लद्य गुणवं विहरेज्जासि तिबेमि ॥५॥ इति पिंडेसणाए बीउ उद्देसो पिंडेसणाए पंचमंड ज्झयणं सम्मत्तं ॥५॥ नाण दंसण संपन्नं, संजमेण तबे रयं; गणिमागम्म संपन्नं उजाणं मि समोसढं ॥१॥ रायाणो राय मच्चाय; माहणा अव खत्तिया, Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८०] पुति निहुय अप्पाणो, कहने आयार गोयरो ॥२॥ तेसिं सो निहु दंतो, सब जूय सुहा. वहो, सिक्खएसु समा उत्तो, आश्क्खर वियक्खणो. ॥३॥ हंदि धम्म कामाणं, निग्गबाणं सुणेद मे, बायार गोयरं नीम, सयलं पुरहि. यिं ॥४॥ नन्नब एरिसंवुत्तं, जे लोए परमपुच्चरं, विउलं गण नाश्स्स, न जूयं न जविस्तर ॥५॥ स रुखुमुग वियत्ताणं, वाहियाणं च जे गुणा, अखंग फुडिया कायवा, तं सुणेह जहा तहा॥ ६॥ दस अग्य गणाई, जाबालो वरद्यश्, तब अन्नयरे ठाणे, निग्गंथा ताउ भस्स॥ ७॥ वयकं कायछकं, अकप्पो गिहिजायणं, पलियंकं निसिज्जा य, सिणाणंसोज वजणं ॥७॥ तबिमं पढमंगणं, महावीरेण देसियं, अहिंसा निउणा दिग, सब नूएसु संजमो. ॥ ए॥ जावंति लोए पाणा, तसा अव थावरा; ते जाणमजाणं वा, नहणे नोविबघायए ॥ १० ॥ सव्वेजीवावि वंति, जीवी जं नमरि Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८१] जिउँ, तम्हा, घोरं पाणवहं निग्गंथा वद्ययंति णं ॥११॥अप्पणा परतावा, कोहावा जवा जया, हिंसगं न मुसं ब्रूया; नोवि अन्नं वयावए ॥१२॥ मुसावाज य लोगंमि, सव्वसाइहिंगरहिर्ज, श्रविस्सा सोय नुयाणं, तम्हा मोसंविवद्यए ॥१३॥ चित्तमंतमचित्तवा, अप्पंग जश्वा बहुं, दंत सोहण मित्तंपि, उग्गहंसे अजाश्या ॥१४॥ ते अप्पणा नगिन्हंति नोविगिन्हावए परं, अ. नंवा गिन्हमाणंपि, नाणु जाणंति संजया॥१५॥ अबंजचरियं घोरं, पमायं पुरहीठियं, नायरंति मुणी लोए, नेयायण विवद्यए ॥१६॥ मूलमे. यमहमस्स, महादोस समुस्सय, तम्हा मेहुण संसग्गि, निग्गंथा वद्ययंति णं ॥१७॥ बिममुज्झे इमं लोणं, तिल सप्पि व फाणियं, नते सन्निहि मिडंति, नाय पुत्त व रया ॥१७॥ लोजस्सेसणुफासे, मन्ने अन्नयरामवि, जे सिया संनिहि कामे, गिही पव्व ए नसे ॥१णाजपि बई व पायं वा, कंबलं पायपुडणं, तंपि संजम लज्जग Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२]. धारंति परिहरंतिय ॥ २० ॥ न सो पारग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताश्णा,मुबा परिग्गत्तोवुत्तो, इश वुत्तं महेसिणा ॥१॥ सबबुवि हिणा बुद्धा, संरकण परिग्गहे, अविअप्पणोऽवि देहं मि, नायरंति ममाश्यं ॥२॥ अहोनिच्चं तवोकम्म, सव्व बुझेहिं बन्नियं, जा य लज्जा समावित्ती, एगचत्तं च नोयणं॥३॥ संतिमे सुहुमा पाणा, तसा अव थावरा, जाई राउ अपासंतो, कदमेसणियं चरे ॥२४ ॥ उद नवं बीय संसतं, पाणा निवडिया महिं, दियाताई विवधिद्या, रात तब कहं चरे ॥२५॥ एयं च दोस दतुणं, नायपुत्तेण भासियं, सवाहारं न जुयंति, निग्गंथा राश्नोयणं ॥ २६ ॥ पुढविकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा, तिविदेणं करण जोएणं, संजया सु समाहिया ॥श्न॥ पुढविकायंवि हिंसंतो; हिंसश् उ तय[स्सए, तस्सेय विविहे पाणे, चख्खुसे य अच. ख्खुसे ॥२॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं 5. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] गश् वट्ठणं, पुढविकायं समारनं, जावजीवाए वझए ॥श्णा थाउकायं नहिंसंति, मणसा व. यसा कायसा, तिविहेणं करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥३७॥ थाउकार्यवि हिसंतो, हिंसर उ तयस्तिए, तस्सेय विविहे पाणे, चख्खुसेय, अचक्खुसे ॥३१॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं पुग्ग वकृणं बाउकायं समारंनं, जावजीवाए वद्यए ॥३॥ जायतेयं न वंति, पावगं जलश्त्तए तिरकमऽन्नयरं सलं, सवउवि दुरासयं ॥ ३३ ॥ पाश्णं पडिणं वावि, उढं अणुदिसामवि, अहे दाहिणउवावि, दहे उत्तरउ विय ॥३४॥ नू. याण मेसमाघाउ, दववाहो नसंसउ, तंपश्व पयावा, संजया किंचि नारने ॥३५॥ तम्हा. एवं वियणित्ता, दोसं दुग्गश् वद्गुणं, अगणिकायं समारंनं, जावज्जीवाए वज्जए ॥३६ ॥ अनिलस्स समारंनं, बुझा मन्नंति तारिस, सावळं बहुलंचेयं, नेयं ताहिं सेवियं ॥३७॥ तालियंट्टेण पत्तेण, साहा विहुयषण वा, नते वीश्चमीबंति, Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८४] वे यावेऊण वापरं ॥३॥ जंपि वढं व पायं वा, कंबलं पायपुत्रणं, न ते वाउ मुरंति, जयं परिहरंति य ॥३॥॥ तम्हा एयं विया णत्ता, दोसं दुग्गश्वकृणं, वाउकाय समारंनं, जावज्जीवाए वझए ॥४॥ वणस्सश्कायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा, तिविहेण करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४१॥ वणस्सश्कायं विहिंसंतो, हिंसश्न तयस्सिए, तसेय विविहे पाणे, चख्खुसे य अचख्खुसे ॥४॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोस पुग्गश् वकृणं,वणस्सश्कायं समारंजं, जावजीवाए वझए ॥४३॥ तस कायं नाहसंति, मणसा वयसा कायसा, तिविदेणं करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४४॥ तसकायं विहिंसंतो, हिंसश् उ तयस्तिए, तसेय विविहे पाणे, चख्खुसे य अचख्खुसे ॥४५॥ तम्हा एयं वि. याणित्ता,दोसंग्गश्वठणं, वणस्सश्कायं समा. रंजं, जावजीवाए वझए ॥ ४६ ॥ जाई चत्तारि जुद्याई, असणाहारमाणि, ताईतु विव Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८५] यंतो, संजमं अणुपालए ॥४७॥ पिंम सिद्य च वहं च, चउ पायमेवयं, अकप्पीयं न श्वेद्या, पडिगादिझ कपियं ॥ ४॥ जे नियागं ममायं ति, कीयमुद्देसिवाहनं, वहंते समणुजाणंति, श्य वुत्तं महेसिणाः॥४ए॥तम्दा असण पा. गाई,कीयमुदेसियाहमं, वझयंति हिय पाणो, निग्गंथा धम्म जीविणो ॥५॥ कंसेसू कंस पाएसु, कुंडमोएसु वा पुणो, मुंजती असण पाणा, थायार परिजस्स ॥५१॥ सीउदगं समारंने, मत्तघोवण छमणे, जासंबन्नंति नूया, दिहो तब असंजमो ॥५२॥ पडाकम्मं, पुरेकम्मं, सिया तब न कप्पर, एयमन जुळंति, निग्गंथा गिहि भायणं ॥ ५३॥ श्रासंदी पलियकेसु, मंच मासालएसु वा, अणयरिय मझाणं, थासश्तु सरंतु वा॥५४॥ नासंदी पलियंकेसु, न निसिझाए न पोढए, निग्गंथापमिलेहाए, बु. द्ववुत्तमहिठगा॥५५॥ गंजीरं विजया एए, पाणा उप्पडिलेहगा, आसंदी पखियं केयं,' Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६] एयम विषजिया ॥ ५६ ॥ गोयरग्ग पवि उस्स, निसेज्जा जस्स कप्पइ, श्मेरिस मऽणायारं, आवज अबोहियं ॥५॥ विवत्ती बंजचेरस्स, पाणाणं च वदेवहो, वणीमग्ग पडिघान, पमिकोहो आगारिणं ॥५॥ अगुत्ती बंभचेरस्स, इबिउवावी संकणं, कुसीलं वगुणं गणं, उरउ परिवजए ॥५॥ तिम्हमऽ. नयरागस्त, निसेका जस्स कप्पश्, जराए अ. निजुयस्स, वाहियस्स तवास्सणो ॥६० ॥ वाहिर्ज वा अरोगी बा, सिणाणं जो उ पगए, वु. कंतो होश आयारो, जढो हव संजमो॥६१ ॥ संतिमे सुहुमा पाणा, घसासु जिलगासूय, जे य जिख्खु सिणायंति, वियरेणू प्पलावए ॥६॥ तम्हा ते न सिणायंति, सीएण उसिणेण वा, जावज्जीव वयं घोरं, असिणाणं महिग्गिा ॥३॥ सिणाणं अवा ककं, लोद्धं पउमगाणिय; गा. यसुवट्टणगए, नायरंति कयाइवि ॥ ६४ ॥ निगणस्स वाविमुंडस्स, दोह रोम नहं सिणो; Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८७] मेहुणा उवसंतस्स, किंविनुसाए कारियं ॥ ६५ ॥ विजुसा वत्तियं निख्खु, कम्मं बंधइ चिक्कणं; संसार सायरे घोरे, जेणं पमइडुरुत्तरे ॥ ६६ ॥ विनूसा वत्तियं चेयं, बुद्धा मन्नंति तारिसं, सावयं बहुलं चेयं, नेयं ताहि सेवीयं ॥ ६७ ॥ ( काव्यम् . ) खवंति अप्पाण ममोह दंसिणो, तवेरया संजम अजवे गुणे, धुणंति पावाई, पूरे कमाई, नवाईं पावाइं नते करेति ॥ ६८ ॥ स उवसंता अममा व्यकिंचणा, सविज्ज विजणूगया जसं - सिणो उप्पसन्ने विमलेव चंदिमा, सिद्धिं विमालाई बेति ताइणो तिवेमि ॥ ६५ ॥ इति छठ्ठे धम्मक्षुकामऽज्ज्ञयणं सम्मत्तं ॥ ७० ॥ अथ सप्तमं अध्ययनं प्रारभ्यते. चउन्हं खलु जासाणं, परिसंखाय पन्नवं, दोन्हंतु विषयं सिक्खे, दो न भासेज्ज सबसो ॥ १ ॥ जा य सच्चा यवत्तवा, सच्चामोसा य जामोसा, जाय बुद्धेहिं नाइन्ना, न तं भासिक Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] पन्नवं॥२॥ असच्चं मोसं सच्चंच, अणवज्ञमककसं, समुप्पेह मसंदिवं, गिरंभासेज पन्नवं ॥३॥ एयंच अमिन्नंवा, जं तु नामे सासयं, सभासं सच्चमोसंपि, तंपिधीरो वि वजए ॥४॥वितहंपि तहा मुत्ति, जंगिरं नासए नरो; तम्हा सो पुगे पावेणं, किंपुणजो मुसंवए ॥ ५॥ तम्हा गहा मो वखामो अमुगं वाणि नविस्सइ, अहं वाणंकरि स्सामि, एसो वा णं करिस्स३॥६॥ एवमाश्न जा भासा, एस कालंमि संकिया, संपयाइवमठेवा, तं पि धीरो विवद्यए ॥७॥ अश् यमि य कालं मि, पच्चुपन्नमणागए, जं मवं तु नजाणेज्ञा, एमवेयंति नोवए ॥७॥ अइयंमिय कालं पि, पच्चुप्पन्नमणागए, जब संका भवे तंतु, एव मेयंति नोवए ए॥ अश्यं मिय कालंमि, पच्चुप्पन्ना मणागए, निस्संकियं नवे जंतु, एवमेयंति निदिसे ॥१०॥ तदेव फरसा नासा, गुरु जुन वघाश्णी, सच्चाऽविसा नवत्तबी, जउ पावस्स आगउ ॥११॥ तदेव काका Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९] ऐत्ति, पंमगं पंझगे तिगा, वाहियंवाऽविरोगेत्ति, तेणंचोरेत्ति नोवए ॥१२॥ ए ए एऽन्नेण अठेणं, परोजेणुवहम्मर, आयार नाव दोसन्नू न तं भासेद्य पन्नवं ॥ १३ ॥ तहेव होखे गोलेत्ति, साण वा वसुलेतिय, दमए उहए वावि, नेवं नासेक पन्नवं ॥१४॥ अकिए पकिए वावि, अम्मो माउसिउत्तियं, पिजसिए भायणिजत्ति, धूए नतुणिय त्तिय ॥ १५ ॥ इहलत्ति अन्नत्ति, जट्टे सामिणि गोमि णि, होले गोले वसुबेति, त्थियं नेवमालवे ॥१६॥ नामधिज्जेण णं बूया, इत्थीगुत्तेणवा पुणो, जहारिहम निगियं, आलवेद्य लविद्यवा ॥ १७॥ अद्यए पद्यए वावि, बप्पो चुब्लपियोति य, माउला भाइणेजाति, पुतेणतुणियत्तियं ॥१७॥ दोहोति अन्नेति, नढे सामिय गोमिय, होले गोले वसुले ति, पुरिसं नेव मालवे ॥१५॥ नाम घिोण एंबुया, पुरिस गुतेण वा पुणो, जहा रिदमनिगिझं, बालवेज लवेजवा Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९०] ॥२०॥ पंचिदि याण पाणाणं, एस इत्यीश्रयं पुमं, जावणं नविजाणीजा, ताव जात्ति आलवे॥१॥ तहेव माणुसुं पसु, पुक्खिं वावि सरीसिवं, थूले पमेयले वद्ये, पाय मेतिय नोवए ॥॥ परिवुवेत्ति णं बूया, बूया उवचिए तियं, संजाए पीणीएवावि, महाकाएत्ति बालवे ॥ ॥३॥ तदेव गाउ पुजाउ, दम्मा गोरहगतिय, वा हिमा रहजोगति. नेवं भासेज पन्नवं ॥॥ जुवं गति णं बूया, घेणुं रस दयतियं, रहस्से महबए वावि, वए संवह णित्तिय ॥ २५ ॥ तहेव गंतु मुजाणं, पवयाणि वणाणि य, रुक्खा महल पेहाए, नेवं जासेज पन्नवं॥६॥ अलं पासाय खंनाणं, तोराणि गिहणाणि य,फलिहंग्गण नावाणंअलं उदगदोणिणं॥श्वापीढए चंगबेरेय, नंगले मइयं सिया, जंत लट्टी व नानिवा, गंडीया वा अलंसिया ॥२॥ आसणं सयणंजाणं, होजावा किंचुवस्सए, जुन वघाणी भासं, नेवं भासेज पनवं ॥ २ए । तहेव गर्छ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९१] मुजाणं, पञ्चयाणि वणाणिय,रुरकामहल पहाएँ एवं नासेज पन्नवं ॥३०॥ जाश्मंता श्मे रुरका, दीह वट्टा महालया, पयाय सालावडिमा, वएद रिसणेति य ॥३१॥ तदा फलाई पकाई, पाश् खद्या नोवए, वेलोश्या टालाई, वेहिमाति नोवए ॥ ३॥ असं. थडा श्मे अंबा, बहुनिवमिमा फला, वएद्य बहु संजूया, नूयरुवेत्ति वा पुणो ॥३३॥ तदेवोसहिउँ पक्काउ, नीलियाउ छवीश्य, खाश्मा नजिमाउत्ति, पिहुखऊंति नोवए ॥ ३४ ॥ रुढा वसु संनूया, थिरा उसढाविय, गब्जियाउ पसूयायो संसारा उत्ति आलवे ॥३५॥ तदेव संरकर्मिनच्चा, किच्चंकजंति नोवए, तेणगं वावि वजिति, सुतिवितिय आवगा॥३६॥ संखमि संखमिंब्रूया, पणियडिंति तेणगं, बहुसामाणि तिबाणि, आ. वगाणं वियागरे ॥३७॥ तहा नश्न पुन्नाउ, काय तिझंति नोवए, नावाहिं तारिमाउत्ति, पाणी पिझंति नोवइ ॥३०॥ बहु वाहमा थ. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९२] गाड़ा, बहु सलिलु प्पिलोदगा. बहु वि. थको दगायावि, एवं जासेझ पन्नवं ॥ ३९ ॥ तदेव सावधं जोगं, परस्साए निवियं, कीरमाणंवा नच्चा, सावळं नलवे मुणी ॥ ४८ ॥ सुकडे ति सुपक्केत्ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे, सुनिठिए सुलठेत्ति, सावळं वझए मुणी ॥ ४१ ॥ ( काव्यम् . ) पयत्ति पक्केत्ति व पक्कमालवे, पयति च्छिन्नेति वच्छिन्न मालवे, पयत्ति लठेत्तिव कम्महे - यं, पाहारगाढेत्ति व गाढमालवे ॥ ४२ ॥ ( अनुष्टुववृत्तम् . ) सव्वुक्कसं परवा, अडलं नथिएरिसं, अवकीयं मवत्वं वियंत्तं चैव नोवए ॥ ४३ ॥ सबमेयं, वइस्लामि सङ्घमेयंति नोवए, अणुवीय सव सव्वच्छ, एवं जासेद्य पन्नत्रं ॥ ४४ ॥ सुक्कियं वा सुविक्को, कि किद्यमेव वा, इमं गि इमं मुच्चं, पणियं नोवियागरे ॥ ४५ ॥ अपग्धे वा मदग्धे वा, कएवा विकए वावि, पणिय समुप्यन्ने Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणवज्जं वयागरे ॥ ४६॥ तदेवासंजयं धीरो, थासएहिं करेहि वा, सयंचिठ वयाहित्ति, नेवं भासेद्य पन्नवं ॥ ४ ॥ बहवे श्मे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो; नलवे असाहुं साहूति, साहु साहुत्ति आलवे ॥४७॥ नाण देसण संपन्नं, संजमे य तवेरये, एवं गुणसमाउत्तं, संजयं साहू मालवे ॥४॥ देवाणं मणुयाणुंच, तिरियाणंच बुग्गहे, अमुयाणं जउ हो, मा वा होउत्ति नोवए ॥ ५० ॥ वाउ वुठंच सी उन्हें, खेम धायं सिवंति वा, कयाणि हुज एयाणि, मा वा होउत्ति नोवए ॥५१॥ (काव्यम्. ) तदेव मेहं व नहंच माणवं, नदेवदेवेत्ति गिरं वएज्जा, समुबिए उन्नए वा पउए, वएज. वा वुह वलाहएत्ति ॥५॥ . ( अनुष्टुवृत्तम् ) अंतलिक्खेत्तिणं बूया, गुज्झाणु चरियत्तिया, रिद्धमंतं नरं दिस्स, रिधिमंतंति आलवे॥५३॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (काव्यम्.) तदेव सावजाणु मोयणी गिरा, ओहारिणी जाय परोवघायणी, से कोह लोह जय हास माणवो, नहासमाणेवि गिरं वएया ॥५४॥ सुबक सुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च मुठं परिवजए सया मिअंगठे अणुवी नासए, सयाण मज्झे खहई पसंसणं ॥५५॥ भासा दोसेय गुणे य जाणिया, तीसेय फुठे परिवद्यए सया, बसु सं. जए सामिणिए सया जए, वएज बुद्धे हियमाणु लोमियं ॥५६॥ परिक्ख भासी सुसमाहि इं. दिए, चउकसाया वगए अणि स्सिए, स निधुणे धुत्तमलं पुरेकर्म, आराहए लोगमिणं तहा परं त्तिबेमि ॥ ५॥ शति सुवक्कसुकीनामं सत्तमं अजयणं सम्मत्तं ॥७॥ . ॥ अथ आयारपणिही अहममज्झयणं ॥ ( अनुष्टुवृत्तम् ) आयार पणिहि लध्धुं, जहा कायव जि. ख्खुणो, तंने उदाहरिस्सामि, थाणुपुट्विं सुणेह Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९५] मे॥१॥ पुढवि दग अगणि मारुय, तण रुक्खस्त बीयगा, तस्सा य पाणा जीवत्ति इश् वुत्तं मदेसिणा ॥२॥ तेसिं अबण जोएणं, निचं हीयवयं सया, मणसा काय वक्केणं, एवं जवर संजए ॥३॥ पुढवि भित्ति सिलंखेQ, नेवनिंदे नसंलिहे, तिविहेण करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४॥सुद्ध पुढवीए न निस्सिए, सस. रुक्खंमि य यासणे, पमज्झितु निसीएजा, जा. त्ता जस्स उग्गहं ॥५॥ सीउदगं न सेवेजा, सिलावुलं हिमाणिय, उसिणोदगं तत फासुयं, पमिगाहिद्य संजए ॥ ६ ॥ उदउज़ अप्पणो कायं, नेव पुढे नसंलिहे, समुप्पेह तहानूयं, नो णं संघट्टए मुणी ॥ ७॥ इंगालं अगणिं अचिं, अलायं वा सजोश्यं, न जिज्जा नघटेजा, नोणंनिव्वावए मुणी ॥७॥ तालियंटेण पत्तेणं, साहा विहुयणेण वा, नवीएज्झ अप्पणो कार्य, बाहिरं वा वि पुग्गलं ।। ए ॥ तणरुक्खं नहिं. देजा, फलंमूलं व कस्सर, बामगं विविहं बीयं, Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणसावि नपत्रए ॥१०॥ गहणेसु नचिठेद्या, बीएसु हरिएसुवा, उदगंमि तहा निच्चं, उत्तिंग पणगेसु वा ॥ ११ ॥ तस्से पाणे नहिंसेज्जा, वाया अव कम्मुणा, उवरयो सब जूएसु पासेज विविहं जगं ॥ १५॥ अठ सुहमा पेहाए, जाइ जाणितु संजए; दया हिगारी पूएसु, बास चिठ सरहिं वा ॥१३॥ कय. राई अउ सुहमाई, जाई पुल्लेद्य संजए, श्माई ताई मेहावी, आश्वखेज वियक्वणो ॥१५॥ सिषेहिं पुप्फ सुहुमं च, पाणुतिंग तहे वय, पणगं बीयं हरियंच, अंडसुहमं च अवमं ॥१५॥ एवमेयाणि जाणित्ता, सब भावेण संजए, अप्पमत्तो जश निच्च; सबिंदिय समाहिए ॥१६॥ धुवंच पमिलेदेजा, जोगसा पाय कंबलं, सेज्ज मुच्चार जूमिंच, संथारं अनुवासणं ॥ १७॥ उ. चारं पासवणं, खेल सिंघाण जल्लियं, फासुयं पडिलेदिजा, परिगवेज संजए ॥१७॥ पविसित्तु परागारं, पाणगलोयणस्स वा, जयं चिट्टे Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७] मियं जासे, न य उवेसु मणं करे ॥ १५ ॥ बहु सुणेहिं कन्नेहिं, बहू श्वीहिं पिछइ, न य दिवं सुयं सवं, भिख्खू अक्खाऊमरिदश॥२०॥ सुई वा जश् वादिलं, नलेवेजो वघाइ यं, नय केण उवाएणं, गिहि जोगं समायरे ॥१॥निहाणं रस निज्जूढं, भदगं पावगंतिवा, पुट्ठो वाविय. पुगे वा, लाभाऽलानं न निदिसे ॥२॥ नय जोयणंमि गिछो, चरे उंबं अयंपिरो, अफासुयं न जुजेज्जा, किय मुद्देसिया इमं ॥३॥ संनिहिं च नकुवेज्जा, अणुमायपि संजए, मुहाजीवी थसंबुछो, इविज जग निस्सिए ॥२४॥ खुदवित्तीसु संतुटे, अप्पिडे सुदरे सिया, थासुरुत्तं नगछेद्या, सुच्चाणं जिण सासणं ॥२५॥ कन्नं सोक्खेहिं सदेहिं, पेमेनानिनिवेसए, दारुणं ककसं फासं, काएण अहियासए ॥१६॥खुहं पिवासं इसेज्ज, सी उन्हं यर जयं, अहियासे अंबहिर्ड, देहपुरकं महा फलं ॥ २७॥ अत्थंगयंमिश्राश्चे, पुरवाय अणुग्गए, थाहार माश्य Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सवं, मण सावि न पचए ॥॥ अतिंतणे अचवले,अप्प जासी मियासणे,हवेज उयरे दंते, थोवं लध्धुं नखिसए॥। नयबाहरं परिजवे, अत्ताणं नसमुक्कसे, सुय लाने नमज्जिज्जा, जच्चा तवस्सी बुद्धिए ॥ ३० ॥ से जाण मजाणं वा, कटु अहम्मियं पयं, संवरे खिप्पमप्पाणं, वीइ. यंतं नसमायरे ॥३१॥श्रणायारं परकम्म, नेव गूहे ननिन्हवे, सुश्सया वियडनावे, असंसत्ते जिदिए ॥ ३२ ॥ अमोहं वयणं कुझा, आयरियस्स महप्पणो,तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥३३॥ अधुवं जीवियं नच्चा, सिद्धि मगं वियाणिया, विणियट्टिझ जोगेसु, आज परिमियमप्पणो ॥३४॥ बलं थामं च पेहाए, सद्धामारोग मप्पणो, खित्तं कालं च विनाय, तहप्पाणं निमुंजइ ॥ ३५ ॥ जरा जाव न पीडेश्, वाहीजाव नवइ, जाविंदिया नहायंति, ताव. धम्म समायरे ॥३६॥ कोहं माणंच मायंच, खोनंच पात्र वकृणं, वमे चत्तारि दोसाठे, रातो Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हियमप्पणो ॥३७॥कोहो पीई पणासेश, माणो ‘विणय नासणो, माया मित्ताणि नासेश, लोगो सव्व विणासणो ॥३७॥ उसमेण हणे कोई माणं मदवया जिणे, मायंचऽजव जावेणं, लोनं संतोसओ जिणे ॥३॥ (काव्यम्) कोहोय माणोय अणिग्गहिया, माया य लोनो य पवमाणा, चत्तारि एए कसिणा क. साया, सिंचंति मूलाई पुणोनवस्स ॥४०॥ राणिएसु विणयं पउंजे, धुव सीलयं सययं न. हावएज्जा, कुमव अदलीण पलीणगुत्तो, परक्कमेजा तव संजमंमि ॥४॥ ( अनुष्टुववृत्तम् ) निदंच न बहु मन्नेद्या, सप्पहासंविवज्जए, मिहो कहाहिं न रमे,सज्जायमि रयो सया॥४॥ जोगं च समण धम्ममि, जुडो अमलसो धुवं, जुत्तोय समण धम्ममि, अलुखहश्श्र णुत्तरं ॥४३॥ शह लोग पारत्त हियं, जेणं गहइ सुग्गई, बहु Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०० स्सुयं पवासिज्जा, पुल्लेज्जन विणिबियं ॥४॥ हलं पायं च कायंच, पणिहाय जिइंदिए, अ. वीण गुत्तो निसिए, सगासे गुरुणो मुणी॥४५॥ नपक्खयो नपुर, नेवकिच्चाण पियो नयऊरं समासेज्जा चिट्ठज्ञा गुरुणंऽतिए॥४६॥अपुडियो ननासेज्जा नासमाणस्स अंतरा, पिछि मसं नखाएज्जा, मायामोसं विवज्जए ॥४७॥ अपचियं जेण सिया, बासु कुप्पेज्ज वा परो, सव्वसो तं ननासेज्जा,नासं अहिय गामिणि ॥धादिहें मियं असंदिकं,पडिपुन्नं वियं जिय, अयं पिर मणु विग्गं, भासं निसिर अत्तवं ॥४ए ॥ यायार पन्नति धरं दिठिवायमऽहिद्यगं, वयं विखलियं नच्चा, न तं उवहसे मुणो॥५०॥ नस्कत्तं सुमिणं जोगं, निमित्तं मंत नेसज्जं;गिहिणो तं न आश्के, नूयाऽहिगरणं पयं ॥५१॥ अन्न पगढ़ लयणं, नएद्य सयणासणं; उच्चारजूमि संपन्नं, शनि पसु विवज्जियं ॥ ५५ ॥ विवित्ताय जवे सिज्जा, नारीणं नलवे कह; गिाह संथवं Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०१] निकुजा, कुका साहूदिं संथवं ॥ ५३ ॥ जदा कुक्कुडपोयस्स, निच्चं कुललयो भयं, एवं खु बंभयारिस्स, बी विग्गह जयं ॥ २४ ॥ चित्तभित्तिं न निजाए, नारिं वा सुचलंकियं, जरकरं पिव दहूणं, दिहिं पडि समाहरे ॥ ५५ ॥ दब पाय पडिहिन्नं, कन्नं नासवि कप्पियं, अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवज्जए, ॥ २६ ॥ विनूसा इति संसग्गी, पणीयंरस जोयणं, नरस्सत्तगवे सिस्स, विसं तालजमं जहा ॥ ५७ ॥ अंगं पच्चंग संगणं चारुलविय पेहियं, इब्बीणं तं न निझाए, कामराग विवढणं ॥ ५८ ॥ विसएसु मणुन्नेसु, पेमं नाऽजिनिवेसए, अणिच्चं ते सि विन्नाय, परिणामं पुग्गलाय ॥ ५९ ॥ पुग्गलाएं परिणामं तेसि नच्चा जहा तहा, विणीय तन्दा विहरे, सीइएण अपणो ॥ ६० ॥ जाए सद्धाए निरकंतो, परियाय ठाण मुत्तमं तमेव अणुपालेज्जा, गुण आयरिय सम्मए ॥ ६१ ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२] (काव्यम.) तवंचिमं संजम जोगयं च, सज्झायजोगं च सया अदिछिए, सुरेव सेणाए. समत्तमाउदे, अलमप्पणो होइ अलंपरेसिं ॥६॥ सज्झाय सु जाणरयस्स ताणो, अप्पाव जावस्स तवे रय. स्स, विसुज्झइ जंसि मलं पुरे कम, समीरियं रुप्प मलं व जोयणा ॥ ६३ ॥ से तारिसे पुरक सहे जिजिए, सुएणजुत्ते अममे अकिंचणे, विराय कम्म घणंमि अवगए, कसिणब्न पुमावगमेव चंदिमे तिबेमि ॥६॥ इति श्रायार पणिही नाम अमिमज्झयणं सम्मत्तं ॥७॥ ॥ अथ विणय समाही णाम नवममज्झयणं ॥ (काव्यम्.) थंना व कोहा व मयप्पमाया, गुरुसगासे विणयं न सिक्खे, सो चेव उ तस्स अजूनावो, फलंव कीयस्स वहाय हो ॥१॥ जेयावि मंदेत्ति गुरु विश्त्ता, महरे श्मे अप्प सुए. ति नच्चा; हीलंति मिखं, पडिवजमाणा करंति Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ करति आसायण ते गुरुणं ॥॥ पगए मंदावि जवंतिएगे, डहरावि य जे सुयबुद्धो ववेया, आयार मंता गुण सुहियपा, जेहीलिया सिहि रिव नासकुज्जा ॥३॥ जेयावि नागं डहरंति नच्चा, थासायए से अदियाय होश, एवायरियपि हु हीलयं तो, नियबर जा पहं खु मंदो ॥४॥ासी विसो वावि परं सुरुठो, किं जीव नास परंतु कुज्जा, थायरिय पाया पुण अप्पा सन्ना, अबोहियासायण नहि मोक्खो ॥५॥ जो पावगंजलिय मवक्कमेज्जा आसी विसं वा विहु कोवएज्जा जो वा विसं खाय जीवि यही, एसोवमासायणया गुरुणं ॥६॥ सिया हु से पावय नोडहेजा, आसीविसो वा कुवियो न जक्खे, सिया विसं हालहलं नमारे, नयावि मोक्खो गुरु होलणाए ॥७॥ जो पव्वयं सिरसा जितु मिले, सुत्तंव सोहं पमिबोहएया, जो वा दए सत्ति अग्गे पहारं, एसो वमासायणया गुरुणं ॥ ७॥ लिया हु सीसेण गिरिपि भिंदे, Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०४] सिया हु सौंहो कुविखो न जक्खे; सिया नजिंदेज्जव सत्तिअग्गं, नयावि मोक्खो, गुरुहीला || || आयरिय पाया पुणे अप्पसन्ना, अबो दियासायण नविमोक्खा, तम्हा अणावाद सुहानिकंखी, गुरुप्प साया निमुहो रमेजा || १० || जहा हियग्गी जलणं नमसे, ना. |हु मंतपया भित्तिं, एवायरियं जवचिव एजा अपंतनाणो वगर्जवितो ॥ ११ ॥ जस्संतिए धम्मपयाई सिखे, तस्संऽतिए विणश्यं पउंजे, सक्कारए सिरसा पंजली खो, कायगि राजो म साय निच्चं ॥ १२ ॥ लज्जा दया संजम बंभच्चेरं, कल्ला भागीस्स विसोही गणं, जे मे गुरु सययं अणुसासयंति, तेहं गुरु सययं पूययामि || १३ | जहा निसंते तव निच्चमाली, पनासर केवल जारहंतु, एवायरि सुय सील बुद्धिए, विराय मुरमज्जेव दो ॥ १४ ॥ जहा ससी कोमुइ जोग जुत्तो, नक्खत्त तारागण परिवुडऽप्पा, खे सोह बिमले अब्जमुक्के, एवं गणी सोहर निक्खुि मज्झे Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५] ॥१५॥ महागरा आयरिया महेसी, समाहिः जोगे सुयसील बुद्धिए, संपाविउ काम अणुत्तराई, आराहए तोसश्धम्मकामी ॥१६॥ सोचाण मेहावी सुनासिया, सुस्सुसए आयरियमप्पमत्तो, आराहश्त्ताण गुणे थाणेगे, से पावर सिद्धि मणुत्तरं त्तिबेमि॥१७॥ इति विषयसमाहि जायणे पढमो उद्देसो समत्तो ॥१॥ (काव्यम्.) मूलाउ खंधप्पभवो उमस्स, खंधाउ पडा समुर्विति साहा, साहप्पसाहा विरुदंति पत्ता, तज से पुप्पं च फल रसोय ॥१॥ (अनुष्टुववृत्तम् ) एवं धम्मस्स विणो ,मूलं परमोथ से मो. क्खो, जेण (कत्तिं सुयं सिग्धं, निस्सेसं चानिगढ॥॥ जे य चंडे मिए यद्धे, जुवा नि. यडी सढे, वजह से अविणीयप्पा, कटं सोयगयं जहा ॥३॥ विणयंपि जो उवाएणं, चोश्यो कुप्पर नरो, दिवं सो सिरि मिजंति, दंडेणं पमिसेहए Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६] ॥४॥ तदेव अविणीयप्पा, उववझा हया गया; दोसंति हमेहंता, बाजिउगमुवहिया॥५॥ तदेव सुविणीयप्पा,उववज्जा हया गया, दीसंति सुहमेहंता, इढिपत्ता महायसा ॥६॥ तदेव अविणीयप्पा लोगसि नर नारियो, दीसंति पु. हमेहंता, हायाते विगलिंदिया ॥७॥ दंडस परिजुन्ना, असब्न वयणेहि य, कलुणा विवन्न बंदा, खुप्पिवासा परिगया ॥७॥ तदेव सुवि. णीयप्पा, लोगसि नर नारिर्ज, दीसंति सुहमेहंता, शढि पत्ता महायप्ता । ए॥ तदेव अवि. णीयप्पा, देवा जक्खाय गुझगा, दीसंति उह मेहंता,अनियोग मुवटिया॥१०॥ तहेव सुवि. णीयप्पा, देवा जक्खाय गुरुगा दीसंति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महायसा ॥ ११ ॥जे थायरिय उवकायाणं, सुस्सूसा वयणं करा, तेसिं सिक्खा पवटुंति जल सित्ता व पायवा ॥१२॥ अप्पपट्टा परावा सिप्पा णेणियाणियं, गिहिणो उवनोगा, इह लोगस्स कारणा ।। १३॥ जेण Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०७] बंधं वहं घोरं, परियावं च दारुणा, सिक्खामाणा नियति, जुत्ता ते ललिइंदिया॥१॥तेवितंगुरूं पूर्वति, तस्स सिप्पस्स कारणा, सकारंति नमः संति, तुझा निदेसवत्तिणो ॥१५॥ किंपुणजो सुयगाही; अणंत हिय कामए, आयरिया जं वए जिख्खू, तम्हा तं नाश्वत्तए ॥१६॥ नियं. सिङ गरंगणं, नियंच यासणाणिय, नीयंच पाए वंदेजा नियं कुजाय अंजलिं ॥१७॥ संघट्टश्त्ता काएणं, तहा उवहिणामवि, खमेह अवराहं मे, वएफ न पुणोत्तिय ॥१७॥ उग्गो वा पओएणं,चोश्यो वहश्रहं,एवं बुधि किच्चाणं वुत्तोवुत्तो पकुवाणअलवंते लवंतेवा,न निसिजाए पडिसुणे, मुत्तण आसणं धोरो, सुस्सूसाए पंमिस्सुणे ॥२०॥ कालं इंदो वयारंच, पमिलेहित्ताण देऊहिं, तेणंतेणं ऊवाएण, तंतं संपमिवायए ॥१॥ विवत्ती अविणीयस्स, संपत्ती विणीयस्स य, जस्सेयं यो नायं, सिक्खंसे अनिगड ॥२॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४] ( काव्यम्.) जेयावि चंडे मर इढि गारवे, पिशुणे नरे साहस हीणपेसणे, अदिधम्मे विणए अकोविए, असंविनागी न हु तस्स मोक्खो ॥३॥ निदेस वित्ती पुण जे गुरूणं, सुयब धम्मा विणयंमि कोविया, तरितु ते ओघमिणं पुरुत्तरं, खवितु कम्मं गइ मुत्तमं गयं तिबेमि ॥२४॥ इति विणसमाहिणाम, ज्झयणे बीमोउद्देसो सम्मतं ॥२॥ ( काव्यम्. ) आयरियग्गिमिवाहियग्गी, सुस्सूसमाणो पमिजागरेज्जा, आलोइय इंगिय मेव नच्चा, जो छंद माराहय स पुज्जो ॥१॥आयारमा वि. णयं पउंजे, सुस्सूसमाणो परिगिक वकं, जहो. वइझं अनिकंखमाणी, गुरु तु नासायइ पुजझो ॥२॥रायणिएसु विणयं पउंजे, महरावि य जे परियाय जेठग, नियत्तणे वट्टर सच्चवार, उवायवं वककरे स पुज्जो॥३॥ अन्नाय उंबं चर Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०९] विसुद्धं, जवणडया समुयाणं च निच्च, अलहुयं नोपरिदेव एजा, लध्धुं न विकरथइ स पुज्जो ॥ ४ ॥ संघार सिजासण नत्तपाणे, अपिच्छया अइलानेवि संते, जो एव मप्पाण जितो सएका, संतोस पाईन्न रएस पुजो ॥ ५ ॥ सक्का सहे आसाए कंटया, मया उच्छयानरेणं, अपासए जो उ सहेऊ कंटए, वइमए कन्न सरे सपुको ॥ ६ ॥ मुहुत्त पुरका उ ढवंति कंटया, मया तेवि तो सुद्धरा; वाया दुरुत्ताणि डुरुराणि, वेराणुबंधाणी मदभयाणि ॥ ७ ॥ समावयंतावयणाभिघाया, कन्नगया डुम्र्माणयं जयंति, धम्मो त्तिकिच्चा परमग्ग सूरे, जिईदिए सह सपुको ॥ ८ ॥ अवन्नवार्य च परं मु इस्स, पच्चरको पडिणीयंच भासं हारिणीं छप्पियकारिणिच, जासं नजासेज सयास पुजो ॥ ए ॥ अलोलुए अकुहए यमाई, अपिसुणे यावि यदी वित्ती, नोभावए नोविय भावियप्पा, को यसया स पुको ॥ १० ॥ गुणेहिं Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१०] साहू गुणेऽसाहू, गिन्दादि साहू गुण मुच्चसाहू, वियाणिया अप्पगमप्पए, जो रागदोसेहिं समोस को ॥ ११ ॥ तदेव डहरं च मल्लगं वा, इबी पुमं पवश्यं गिहं वा, नोदीलए नोविय खिसएजा, थंनंच कोहंच चए स पुको ||१२|| जे भाषिया सययं माणयंति, जुत्तेष कन्नं निवेस ति; ते माणए मारिदे तवस्सी, जिदिए सच्च रए स पुजो ||१३|| तेसिं गुरूणं गुणसागराणं, सुच्चाण मेदावी सुभासियाई, चरे मुणी पंच रए तिगुत्तो, चउकसायाव गए स पुको ॥ १४ ॥ गुरु मिद सययं पडियरिय मुणी, जिणमय निजणे अभिगम कुसले, धुणिय रय. पुरेकरूं, जासुर मडलं गईं गय तिबेमि ॥ १५ ॥ ॥ इति विषय समाहीए तो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ( गद्यम् ) सुयं मे श्रासं तेषं जगवया एव मरकायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विजय समाही ठाणापन्नता, कयरे खलु ते थेरेहिं भ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११] गवतेहिं चत्तारि विणय समाही गणा पन्नत्ता, श्मे खल्तु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणय समाही गणा पन्नत्ता, तं जहा, "विणय समाही १ सुय समाही । तंव समाही ३ थायार स. माही ४” विणए सुय तवेय, आयारे निश्च पंडिया, अजिरामयंति अप्पाणं, जे नवंति जिई. दिया ॥१॥ चनविदा खलु विणय समाही नवर तंजहा अणुसासिज्जतो सुस्सूस १ समं संपडि. वज २ वेयामाराह३ न य जव अत्तसंपगह ए ५ चउई पयं नवश् भवश् य श्व सिलोगो॥ (काव्यम् ) “पेदेशहियाणु सासणं,सुस्सुसतंचपूणो अहिए, न य माण मएण मज्जर, विणय स. माही आयअगिए" ॥२॥ चनविदा खलु सुय समाही नवर, तंजहा सुयं मे भविस्तरत्ति थ. जावं नवर, एगग्गचित्तो नविस्सामित्ति अजाश्यत्वं नवर, विउ परं वावश्स्सामित्ती ध Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२] जाइयवं जवर, चउबं पयं जव जवश्य श्व सिलोगो, “नाणमेगग्ग चित्तोय, ग्यिोअ गवइ परं सुयाणिय अहिफित्ता, रयो सुयसमाहिए ॥३॥ चलविहाखलु तवसमाही नंवर तंजहा नो इहलोगध्याए तवमहिछेज्जा, नो परलोगठयाए त. वमहिछेज्जा, नोकित्ति वन्न सद्द सिलोगध्याए तवमहिछेज्जा, नन्नब निज्जरच्याए तवमहिले. ज्जा, चउहं पयं जव जव य व सिलोगो॥ (काव्यम्.) विविह गुण तवोरए निच्चं, नवनिरासए निज्जरहिए, तवसा धुण पुराण पावगं, जुत्तो य सया तव समाहिए ॥४॥ चविहा खनु थायारसमाही जवर तंजहा नोश्हलोगज्याए बायारमहिछेज्जा, नोपर लोगङ्याए थायारमहिद्वेज्जा, नोकित्ति वन्न सद्द सिलोगट्ठयाए थायारमहिद्वेज्जा, नन्नव अरिहंतेहिं देउहिं आयारमहिज्जा , चउबं पयं जवश् न. वश् य इत्य सिलोगो॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१] .. . ( काव्यम्. ) जिणवयणरए अतितिणे, पमिपुन्नायय मा. ययहिए, बायारसमाही संवुडे, भवश्य दंते जाव संधए ॥५॥ (काव्यम्. ) अनिगम चउरो समाहीयो सुविसुद्धो सुसमा हियप्पयो, विउलहिय सुहावहं पुणो, कुबइ सो पयक्खेम मप्पणो ॥६॥ जाइ मरणायो मुच्चर, श्ववंच चयश् सव्वसो, सिझे वा हव सासए, देवे वा अप्परए महिलिए तिबेमि ॥७॥ इति विणयसमाही नाम चउडो उद्देसो नवमं झयणंसम्मत्तं ॥ ए॥ (काव्यम् . ) ॥ अथ भिख्खू नामं दसम मज्झयणं ॥ निक्खममाणाश्य बुद्ध वयणे, निच्चं चित्त. समाहियो हवेज्जा; इत्थीण वसं नयावि गडे, वंतं नोपडियाय जे स भिख्खू ॥१॥ पुढविं न खणे न खणावए, सीउदगं नपिए नपाया वए, आणि सत्यं जहा सुनिसियं, तं नजले Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नजलावए जे स भिख्खू ॥२॥ अनिलेण न. वीए नवीयावए, हरियाणि नबिंदे नबिंदावए. बीयाणि सया विवजयंतो, सचित्तं नाहारए जे स निख्खू ॥ ३ ॥ वहणं तस्स थावराणं होश. पुढवि तण कठ निसियाणं, तम्हा उद्देसियं न मुंजे, नोवि पए नपयावए जे स निक्खू ॥४॥ रोइय नाय पुत्त वयणे, अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पिकाए, पंचेय फासे महव्वया, पंचासव्व संवरेय जे स निख्खू ॥५॥ चत्तारि वमे सया कसाए, धुव जोगी हवेज बुझ वयणे, अहणे निझाय रूव रयए, गिहि जोगं परिवझा ए जे स भिख्खू ॥६॥ सम्मदिवी सया अमूढे, अस्थि नाणे तव संजमे य, तवसा धुणइ पुराण पावगं, मण वय काय सुसंवुडे जे स निख्खू ॥७॥ तदेव असणं पाणगं वा, विविहं खाश्मं साश्मं ल. जित्ता, होही अगेसुए परेवा, तं न निहे न निहावए जे स भिख्खू ॥ ७॥ तहेव असणं पापागं वा, विविहं खाश्मं साइमं लनित्ता, बंदिय Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१५] सादम्मियाणं मुंजे, जोच्चा सजाय रए य जे स जिरू ॥ ए ॥ नय वुग्गदियंकदं कहेज्जा, नय कुप्पे निहु इंदिए पसंते, संजम धुव जोग जुत्ते, उवसंते उवदेमए जे स जख्खू ॥ १० ॥ जो सदर हू गाम कंटए, अक्कोस पहार तजबाउ य, जयनेरवासह सप्पदा से, सम सुद दुक्ख स देअ जेस जख्खू ॥ ११ ॥ पमिमं पमिव किया मसाणे, नोभीयए जेरवाईदियस्स, विविद गुण तवो रए निच्चं, नसरीरचा निकखए जे स भिख्खू ॥ १२ ॥ असई वोसचत्तदेहे, कुठेवदए व लुसिएवा, पुढवीसमे मुणी दवेज्जा, हानियाणे अकोहलेय जे स निख्ख ||१३|| निय कारण परीसदाई, समुद्धरे जाइपहाड अप्पयं । विउत्तु जाइमरणं मब्जयं; तवे रए सामणिए जे स भिख्खू ॥ १४ ॥ इव संजए पाय संजए, वाय संजए संज इंदिए, अऊप्परए सुसमाही यप्पा, सुत्तहं च वियाण जे स जिल्ख ॥ १५ ॥ उवदिम्म मुहिए अगिद्धे, अन्नाय उनं पुल Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१६] गावगएय णिपुलाए, कय विकय संनिहि उवरए, सवसंजे सखू ॥ १६ ॥ अलोलु निख्खू न रसेसु गिद्धे, जंतुं चरे जीविय नानिकंखी, इष्टिंच सकारणं पूयणंच, चए वियप्पा आणि दे जे स जि ॥ १७ ॥ नपरं वएज्जासि कायं कुसीले, जेणं च कुप्पिज्ज न तं वएका, जापिय पत्तेयं पुन्नपावं, अत्ताएं न समुक्कसे जे सजिख्खू ॥१८॥ न जाइ मत्ते नय रूवमत्ते, न लाजमत्ते नसुए मत्ते, मयाणि सव्वाणि विवज्जयंतो, धम्मज्झाए रए जे स निख्खू ॥ १९ ॥ पवेयए अज्झपयं महामुणी, धम्मे वि गवयइ परंपि, निरकम्म वज्जेज्ज कुसीललिंगं, नयावि हासं कुहुए जेस निरखू ॥२०॥ तं देहवासं असुई असासयं, सया चए निच्च हिय वियप्पा, छिंदितु जाइमरणस्स बंधणं, उवे निख्खू पुणागमं गई बेमि ॥ २१ ॥ इति निक्खू नामं दसम - मज्झयणं संम्मत्तं ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ ॥ अथ श्री दशवैकालिके प्रथमा रइवका चूलिका ॥ श्ह खबु जो पवश्एणं उत्पन्न उक्खेणं सं. जमे अरश्समावन्नचित्तेणं श्रोहाणुप्पेहिणा अणो हाइएणं एव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाजूआई श्माई अडारस गणाई सम्मं संपडिलेहिअवाई जवंति ॥ तं जहा-हं जो उस्सना उप्पजीवी ॥१॥ बहुसग्गा इत्तरिया गिहीणं कामनोगा ॥२॥ जुजो अ सायबहुला मणुस्सा ॥ ३ ॥ श्मे थ मे मुक्खे न चिरकालोवगाइ नविस्स ॥४॥ उमजणपुरकारे ॥५॥ वंतस्स य पमिआयणं ॥६॥ अहरगश्वासो वसंपया ॥७॥5. रहे खलु नो गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं ॥ ॥ यंके से वहाय हो ॥ए ॥ संकप्पे से वहाय होई॥१०॥ सोवकेसे गिहवासे, निरुवकेसे परिआए॥१९॥ बंधे गिहवासे, मुक्खे परिआए॥१२॥ सावजे गिढवासे, अण. Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१८] वले परिवाए ॥१३॥ बहुसाहारणा गिहीणं कामनोगा ॥१४॥ पत्तेचं पुन्नपावं ॥१५॥ अणिच्चे खलु जो मणुआण जीविए कुसग्गजलबिधुचंचले ॥१६॥ बहुं च खलु जो पावं कम्म पगम् ॥ १७ ॥ पावाणं च खलु नो कडाणं कम्माणं पुचि पुच्चिन्नाणं पुप्पमिकंताणं वेश्त्ता मुक्खो नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसश्त्ता ॥ १७ ॥ अगरसमं पयं जव जव अ इत्थ सिलोगो॥ जया य चयश् धम्मं, अणजो जोगकारणा ॥ से तत्थ मुलिए बाले, आयशं नावबुज्झर ॥१॥जया ओदावियो होश, दो वा पडियो छम।। सवधम्मपरिजो ,स पडा परितप्प३॥२॥ जया च वंदिमो होइ, पहा होइ अवंदिमो ॥ राया व रऊपब्जगे, स पडा परितप्पर ॥३॥ जया अपूश्मो होश, पहा होअपूश्मो॥राया व रऊपन्नतो, स पहा परितप्पश्॥॥ जया थ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१९] माणिमो होइपच्छा अमाणिमो। सिट्वि व कब्ब डे बूढो, स पहा परितप्प ॥५॥ जया अथेरठ होश, समश्कंतजुवणो॥मच्छं व गलिं गलित्ता, सपना परितप्पश्॥६॥ जया अ कुकुठंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्म ॥ इत्थी व बंधणे बद्धो, स पल्ला परितप्प३॥ ७ ॥ पुत्तदारपरिकिन्नो, मो. इसंताणसंतयो ॥ पंकोसन्नो जहा नागो, स पडा परितप्पश् ॥ ॥ अज आई गणी हुँतो, नाविअप्पा बहुस्सुओ॥जश्हं रमंतो परिआए, सामन्ने जिणदेसिए ॥ए ॥ देवलोगसमायो अ, परिबाउ महेसिंणं ॥ रयाणं अरयाणं च, महानरयसारिसो॥१०॥ अमरोवमं जाणिअ सुक्खमुत्तमं ॥ रयाण परिवाए तहारयाणं॥निरउवमं जाणिव मुक्ख मुत्तमं, रमिज तम्हा परिआइ पंडिए ॥११॥ धम्माउ नवं सिरिउववेयं, जन्नम्गि विज्झाअ. मिवप्पतेयं ॥ हीलंति णं विहिथं कुसीला, Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२० दाढह्वियं घोरविसं व नागं ॥१२॥ श्हेव धम्मो श्रयसो अकित्ती, मुन्नामधिकं च पिहुछामि ॥ चुवस्स धम्माल अहम्मसेविणो, संजिन्नचित्तस्स य दियो ग॥१३॥ सुजित्तु जोगाई पसज्झचेअसा, तहाविहं कटु असंजमं बहुं, गई च गळे अणिहि जियं ऽहं, बोही अ से नो सुलहा पुणो पुणो ॥ १४॥ श्मस्स ता नेरअस्स जंतुणो, होवणीअस्स किलेसवत्तिको ॥ पलिवमं जिज्झइ सागरोवमं, किमंग पुण मज्झ इमं मणोऽहं ॥ १५॥ न मे चिरं पुरस्क. मिणं विस्सर, असासया जोगपिवास जंतुणो न चे सरीरेण श्मेणविस्सर, अविस्स जीवि. अपज्जवेण मे ॥ १६॥ जस्सेवमप्या उ हविज निबि, चश्ऊ देहं न हु धम्मसासणं ॥ तं तारिसं नो पश्लंति इंदिआ, उविति वाया व सुदंसणं गिरिं ॥ १७ ॥ श्च्चेव संपस्तिथ बुद्धिमं नरो, आयं उवाय विविहं विआणिया ॥का Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२१] माणसे, तिगुत्ति गुत्तो जिए एवाया वयण मद्दिट्टिजासि ॥ तिबेमि ॥ १८ ॥ ॥ अथ द्वितीया विवित्तचरिश्रा चूलिका ॥ चूलियां तु पवक्खामि, सुखं केवलिना सि ॥ जं सुषिन्तु सुपुरणाएं, धम्मे उप्पजए मई ॥ १ ॥ सोपट्टि बहुजणंमि, पडिसोअललक्खेणं ॥ पडिसोश्रमेवाप्पा, दायवो होटकामेणं ॥ २ ॥ ऋणुसो सुदो लोर्ड, पडिसोर्ड वासवो सुविदिखाएं || अणुसो संसारो पनिसोचो तस्स उत्तारो ॥ ३ ॥ तम्हा श्रायारपरकमेणं, संवरसमादिबहुलेणं ॥ चरिश्रा गुणा अ नियमाा, हुंति साहूए दवा ॥ ४ ॥ अनिएवासो समाचरिआ, अन्नायनंढं पयरिक्कया अ || अप्पोवही कलह विवज्जणा अ, वि. दारचरिया इसिणं पसत्या ॥ ५ ॥ आइन्नो माणविवज्जणा अ, प्रसन्न दिवाहनत्तपाणे ॥ संसठकप्पेण चरिक निक्खू, तज्जाय संसद् जई Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२] जजा॥६॥ अमजमंसासि अमबरीआ, अ. जिक्खणं निविगई गया अ॥ अनिक्खणं कानसग्गकारी, सज्झायजोगे पयो हविजा ॥७॥ ण पडिन्नविजा सयणासणाई, सिज्ज निसिज्ज तह नत्तपाणं ॥ गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तनावं न कहिं पि कुजा ॥७॥ गिहिणो वेवामियं न कुजा, अनिवायणवंदणपूअणं वा असंकिलिटेहिं समं सविता, मुणी चरित्तस्स जयो न हाणी॥ ए॥ण या खन्नेज निजणं सहायं, गुणाहियं वा गुणो समं वा ॥ श्को वि पावाइं विवजयंतो, विहरिज कामेसु असजमाणो ॥१०॥ संवबरं वा वि परं पमाणं, बीअं च वासं न तहिं वसिजा ॥ सुत्तस्स मग्गेण परिज निक्खू, सुत्तस्स अत्यो जह थाणवेश ॥११॥ जो पुवरत्तावररत्तकाले,संपिक्ख अप्पगमप्पएणं ॥ किंमे कम किंच मे किच्चसेसं, किं सकणिज्जं न Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२३] समायरामि ॥ १२ ॥ किं मे परो पासइ किंच अप्पा, किं वाद खलियां न विवजयामि ॥ इच्चेव सम्मं अणुपासमाणो, ऋणागयं नो परिबंध कुज्झा | १३ | जत्थेव पासे कइ डुप्पउत्तं, कारण वाया अडु माणसे ॥ तत्थेव धीरो पडिसादरिका, आइनो खिप्पमिव खलीणं ॥ १४ ॥ जस्से रिसा जोग जिइंदिअस्स, धिइमो सप्पुरिसस्स निच्चं ॥ तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीवइ संजमजीविएणं ॥ १५ ॥ अप्पा खलु सइ पररक्खिअवो, सबिंदिएहिं सुसमाहिएहिं ॥ जाइपदं उवेश सुरक्खियो सब हा त्तिबेमि ॥ १६ ॥ रक्खि मुच्चइ || ॥ इति विवित्तचरिआ बीआ चूला सम्मत्ता ॥२॥ ॥ इअ दसवेआलि मूलसुत्तं सम्मतं ॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२५] पंच परमेष्टीनुं चैत्यवंदन. अरिहंत देवा चरणनी सेवा, पंदर नेद सिद्ध प्रणमेवा । थायरिय उवज्जाय ए, सर्व साधुनुं नाम, ए पंच जोगे करु प्रणाम ॥१ बार देवलोके नव अवेकेए, पंच अनुत्तर " ताल जोगे। ती लोके जे जीन नाम, ए पंचासर अतीत अनागतने वर्तमान ए पंच जोगे करु प्रणाम.॥२॥ संप्रति काले वीश विदर उत्कृष्ट काले एकसो सित्तेर जिन नाम । श्वता जुवन जे जिनना कह्याए, शाश्वती तिमा सुनाम लश्ए, शाश्वता अशाश्वता राम, ए पंच जोगे करु प्रणाम. ॥३॥ दि' दीठा श्रवणे न सुणिया, निदान नेदा भाव जणीया। ज्ञानविमल कहे प्रनु समरथ देव भवोचव देज्यो तुम पाय सेव, ए पंचांगे के प्रणाम. ॥४॥ समाप्तम्। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहेर खवर. HOLES 18 0-1-0 श्रीपाल राजानो रास अर्थ तथा चित्रमहीत गुजराती २-:चैत्यवंदनादि पर्वतीर्थानो संग्रह (लाभश्रीजी वाळ)-४-० पूजासंग्रह भाग 1-2-3-4 देववंदनमाला गुजराती देवशीराइ मूल गुजराती पंचपतिक्रमण अर्थसह उ रा. पंचप्रतिक्रमण वीधी सहीत-पाकु पुटुं. पंचप्रतिक्रमण विधि सहितकाचु पुठं. 0.10.0 स्थापनाजी रेशमी 0-1-0 स्थापनाजीनो सापडो लोकेटबुक (बेछबो साथे) रत्नाकर पचीशी नेमनाथना सलोका महोत 0-1-0 प्राचीन स्तवन सज्झाय संग्रह 1-4-0 नवपद ओळीनी वीधी (छपाय छे). 0-12.0 रेशमो नोकारवाळी 1-40 सज्जाय संग्रह 0-2-0 संघवी मुळजीनाइ झवेरचंद पालोताणा. महेता नागरदास प्रागजीजा ठे. दोशीवाडानी पोळ-अमदावाद.