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________________ [२०१] निकुजा, कुका साहूदिं संथवं ॥ ५३ ॥ जदा कुक्कुडपोयस्स, निच्चं कुललयो भयं, एवं खु बंभयारिस्स, बी विग्गह जयं ॥ २४ ॥ चित्तभित्तिं न निजाए, नारिं वा सुचलंकियं, जरकरं पिव दहूणं, दिहिं पडि समाहरे ॥ ५५ ॥ दब पाय पडिहिन्नं, कन्नं नासवि कप्पियं, अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवज्जए, ॥ २६ ॥ विनूसा इति संसग्गी, पणीयंरस जोयणं, नरस्सत्तगवे सिस्स, विसं तालजमं जहा ॥ ५७ ॥ अंगं पच्चंग संगणं चारुलविय पेहियं, इब्बीणं तं न निझाए, कामराग विवढणं ॥ ५८ ॥ विसएसु मणुन्नेसु, पेमं नाऽजिनिवेसए, अणिच्चं ते सि विन्नाय, परिणामं पुग्गलाय ॥ ५९ ॥ पुग्गलाएं परिणामं तेसि नच्चा जहा तहा, विणीय तन्दा विहरे, सीइएण अपणो ॥ ६० ॥ जाए सद्धाए निरकंतो, परियाय ठाण मुत्तमं तमेव अणुपालेज्जा, गुण आयरिय सम्मए ॥ ६१ ॥
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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