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[३] बंस मिच्छ अविर, कसाय जोग त्ति चउ हेऊ ॥ ५० ॥ अनिगहियमणनि गहिया भि: निवेसिअसंसश्चमणाजोगं ॥ पणमिच्छ बार अविर, मणकरणानिअमु बजिअवहो ।५॥ नव सोल कसाया पन-र जोग इय उत्तरा उ सगवएणा ॥ग.चल पण ति गुणेसु, चनति दु ग पच्चयो बंधो।एश चउमिच्छ मिच्छाविरश, पञ्चश्या सा य सोल पणतीसा॥जोग विणुति पञ्चश्याहारग जिणवज सेसाओ ॥ ५३ ॥ पणपन्न पन्न तिबबहि, अचत्त गुणचत्त छ चन दगवीसा।। सोलस दस नव नव स-त्त देउणो न उ अजोगिंमि ॥५४॥ पण न्न मिच्छि हारग दगूण सासाणि पन्न मिच्छ विणा ॥ मीसद्ग कम्मश्रण विणु, तिचत्त मीसे अह बचत्ता ॥४४॥ सदमीसकम्म अजए, अविरश्कम्मुरलमीस बिकसाए ॥ मुत्तु गुणचत्त देसे, वीस साहारदु पमत्ते ॥ ५६ ॥ अविर.
गारतिकसा-यवज्ज अपमत्ति मीसगरहिया चवीस अपुवे पुण, मुवीस अविउविवादारा