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________________ शौव शास्त्रमा एस्यो विचार रे ॥ मु० ॥५॥ जुकाथी जलोदर थायरे, कीडी थावे बुधि पला. एरे॥ कोलीआवमो जो उदरें आवेरे, कुष्ठ रोग ते नरने थावें रे ॥ मु० ॥ ३ ॥ श्री सिद्धांत जिनागम मांही रे, रात्री जोजन दोष बहु त्यांहीरे ॥ कांतिविजय कहे ए व्रत सारोरे, जे पाले तस धन अवतारो रे ॥मु॥७॥ श्री नेमिजिननी सज्झाय, नेम नेम करती नारी, कोश न चाली कारी ॥रथ लीधो पाने वालीरे साहेली मोरीरे, करमे कुमारा रहारे साहेति ॥१॥ मनथीतो माया मूकी, सूनितो दीसे डेलीजी ॥ हवे अमारं कोण बेली रे ॥ साहेलि मोरी ॥२॥ चित्तमांथी गेडि दोधा, प्रीतिथी प्रवेस कीधा॥ मुखमां अमने दिधारे ॥साहेलि मोरी ॥३॥ जावमा जादवराया, आठ भवनी मेहेली माया ॥ श्रावो सीवा देवीना जायारे, साहेलि मोरी ॥४॥ माछलि तो वीण नीर, बचे नही रखे
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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