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[२६] विचित्त दो जमगा॥११॥ दोसय कणयगिरीणं, चल गयदंता य तह सुमेरू य ॥ न वासहरा पिंडे, एगुणसत्तरि सया पुन्नी ॥ १५ ॥ सोखसवख्खारेसु, चउ चउ कूडा य हुँति पत्तेयं ॥ सोमणस गंधमायण, सत्तठ य रुप्पि महा हिमवे ॥१३॥ चउतीसवियलेसु, विज्जुप्पद निसढ. नीलवतेसु ॥ तह मालवंत सुरगिरि, नव नव कूडाई पत्तेयं ॥ १४ ॥ हिम सिहरिसु श्वारस, इगसहीगिरीसु कूडाणं ॥ एगत्ते सबधणं, सय. चउरो सत्तसट्टीयं ॥१५॥ चन-सत्त-अट्ट-नवगेगारसकूडेहिं गुणह जहसंखं ॥ सोलस गुणयालं, ज्वे य सगसहि सयचरो ॥ १६ ॥ चनतीसु विजएसु, उसहकूडा अह मेरुजंबुमि॥यह य देवकुराई, हरिकूड हरिस्सहे सही ॥ १७ ॥ मागह वरदाम पनास तित्थ विजयेसु एरवय जरदे ॥ चलतीसा तिहिं गुणिया, पुरुत्तरसयं तु. तित्थाणं ॥ १० ॥ विजाहर-अनियोगिय, सेढीओ पुन्नि पुन्नि वेअढे ॥श्य घउगुण धन