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[२७] तीसा, छत्तीस सयं तु सेढीणं ॥१५॥ चक्की जेयवाई, विजयाई इत्य हुंति चलतीसा ॥ मह. दह छप्पउमाई, कुरुसु दसगति सोलसगं ॥२०॥ गंगा सिंधू रत्ता, रत्तवई चउ नईयो पत्तेयं ॥ चउदसहिं सहस्सेहिं, समगं वच्चंति जलहिं मि ॥१॥ एवं अजितरिया, चउरो पुण अट्ठवीससहस्सेहिं॥ पुणरवि छप्पन्नेहिं जंति चन सलिला ॥ २२॥ कुरुमज्झे चनरासी, सहस्साई तह य विजयसोत्रसेसु॥ बत्तीसाण नईणं, चनदस सहस्साई पत्तेयं ॥२३॥ चउदस सहस्स गुणिया, अमतीस नश्यो विजयमज्झिदा ॥ सीओयाए निवति तहय सीयाई एमेव ॥ २४ ॥ सीया सीओयावि य, बत्तीससहस्स पंचलख्खेहिं ॥ सव्वे चउदस लख्खा, छप्पन्नसहस्स मेलविया ॥५॥ छज्जोयणे सकोसे, गंगासिंधूण वित्थरो मूले ॥ दसगुणियो पाते, इय गुणणेण सेसाणं॥ २६ ॥ जोयणसयमुच्चिता, कणयमया सिहरिचुलहिमवंता ॥ रुप महाहिमवंता, उसुउच्चा