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[४७] तिल पक्कुसहित रिय तिल्बमली। सकर गुल. वाणय, पाय खंग अधकढिय इख्खुरसो ॥३४॥ पूरिय तवपूआ बीय, पूअ तन्नेह तुरिय घाणाई।। गुलहाणो जललप्पसि, य पंचमो पूत्तिकयो ॥३५॥ दुद्ध दही चउरंगुल, दवगुल घयतिब एग नत्तुवरि ॥ पिमगुरु मक्खणाणं , अदामलयं च संसठं ॥३६॥ दवहया विगई विगइ-गय पुणो तेण तं हयं दत्वं ।। उद्धरिए तत्तंमि य, उकिठदवं इमं चन्ने ॥३७॥ तिल सक्कुलि वरसोलाइ, रायणंबा दक्खवाणाई॥ मोली तिहाई श्य, सरसुत्तमदव सेवकमा ॥३॥ विगगया सं. सट्टा, उत्तमदवा य निविगश्यंमि॥ कारणजायं मुत्तुं, कप्पंति न जुत्तुं जं वुत्तं ॥३॥ विगई विगई जीओ, विगगयं जो अ लुंजए साढू ॥ विगई विगश्सहावा, विगई विगई बला नेई। ४० ।। कु. त्तिय मच्छिय भामर, महुँ तिहा कह पिठ मज
हा ॥ जल-थल-खगमंस तिहा, घयव मक्खण चउ अजक्खा ॥४१॥'मण वयण कायमणवय,